लेकिन जो जानते है, वे यह कहेंगे,दो व्यक्ति अनिवार्यता: दो अलग-अलग व्यक्ति है। वे जबरदस्ती क्षण भी को मिल सकते है। लेकिन सदा के लिए नहीं मिल सकते। यही प्रेमियों की पीड़ा और कष्ट है कि निरंतर एक संघर्ष खड़ा हो जाता है। जिसे प्रेम करते है, उसी से संघर्ष करते है, उसी से तनाव, अशांति और द्वेष खड़ा हो जाता है। क्योंकि ऐसा प्रतीत होने लगता है। जिससे मैं मिलना चाहता हूं, शायद वह मिलने को तैयार नहीं। इसलिए मिलना पूरा नहीं हो पाता।
लेकिन इसमें व्यक्तियों का कसूर नहीं है। दो व्यक्ति अनंत कालीन तल पर नहीं मिल सकते। हम क्षण के लिए मिल सकते है। क्योंकि सीमित है। उनके मिलने का क्षण भी सीमित होगा। अगर अनंत मिलन चाहिए तो वह परमात्मा से हो सकता है। वह समस्त अस्तित्व से हो सकता है।
जो लोग संभोग की गहराई में उतरते हैं, उन्हें पता चलता है, एक क्षण मिलन का इतना आनंद है, तो अनंत काल के लिए मिल जाने का कितना आनंद होगा। उसका तो हिसाब लगाना मुश्किल होगा। एक क्षण मिलन की इतनी अद्भुत प्रतीति है तो अनंत से मिल जाने की कितनी प्रतीति होगी,कैसी प्रतीति होगी।
जैसे एक घर में दीया जल रहा हो और उस दीये से हम हिसाब लगाना चाहें कि सूरज की रोशनी में कितने दीये जल रहे है। हिसाब लगाना बहुत मुशिकल है। एक दिया बहुत छोटी बात है। सूरज बड़ी बात है। सूरज पृथ्वी से साठ हजार गुणा बड़ा है। दस करोड़ मील दूर है। तब भी हमें तपाता है। तब भी हमें झुलसा देता है। उतने बड़े सूरज को एक छोटे से दीये से हम तौलने जायें तो कैसे तोल सकेंगे?
लेकिन नहीं, एक दीये से सूरज को तौला जा सकता है। क्योंकि दीया भी सीमित है और सूरज भी सीमित है। दीये में एक कैंडल का लाइट है तो अरबों-खरबों कैंडल का लाइट होगा सूरज में। लेकिन सीमा आंकी जा सकती है, तौली जा सकती है।
लेकिन संभोग में जो आनंद है और समाधि में जो आनंद है, उसे फिर भी नहीं तौला जा सकता। क्योंकि संभोग अत्यंत क्षणिक दो क्षुद्र व्यक्तियों का मिलन है और समाधि बूंद का अनंत के सागर से मिल जाना है। उसे कोई भी नहीं तौल सकता। उसे तौलने का कोई भी उपाय नहीं है। उसे......कोई मार्ग नहीं कि हम जाँचे कि वह कितना होगा।
इसलिए जब वह उपलब्ध होता है, जब वह उपलब्ध हो जाता है तो फिर कहां सेक्स, फिर कहां संभोग, फिर कहां कामना? जब इतना अनंत मिल गया तब कोई कैसे सोचेगा, कैसे विचार करेगा उसी क्षण भर के सुख को पाने के लिए? तब वह सुख दुःख जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख पागलपन जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख शक्ति का अपव्यय प्रतीत होता है, और ब्रह्मचर्य सहज फलित हो जाता है।
लेकिन संभोग और समाधि के बीच एक सेतु है, एक ब्रिज है, एक यात्रा है, एक मार्ग है। समाधि जिसका अंतिम छोर है आकाश में जाकर, संभोग अस सीढ़ी का पहला सोपान है, पहला पाया है। और जो इस पाये के ही विरोध में जाते है, वे आगे नहीं बढ़ पाते। यह मैं आपसे कह देना चाहता हूं, जो पहले पाये को इंकार करने लगते है, वे दूसरे पाये पर पैर नहीं रख सकते है। मैं आपसे यह कह देना चाहता हूं। इस पहले पाये पर भी अनुभव से ज्ञान से, बोध से पैर रखना जरूरी है। इसलिए नहीं कि हम उसी पर रुके रह जायें। बल्कि इसलिए कि हम उस पर पैर रखकर आगे निकल जा सकें।
लेकिन मनुष्य जाति के साथ एक अदभुत दुर्घटना हो गयी। जैसा मैंने कहा,वह पहले पाये के विरोध में हो गया है। और अंतिम पाये पर पहुंचना चाहता है। उसे पहले पाये का ही अनुभव नहीं, उसे दीये का भी अनुभव नहीं और वह सूरज के अनुभव की आकांशा करता है। यह कभी भी नहीं हो सकता। जो दीया मिला है प्रकृति की तरफ से पहले उस दीये की रोशनी को समझ लेना जरूरी है, पहले उस दीये की हल्की सी रोशनी को जो क्षण भर में जीती है, और बुझ जाती है। जरा सा हवा का झोंका जिसे मिटा देता है। उस रोशनी को भी जान लेना जरूरी है। ताकि सूरज की आकांशा की जा सके। ताकि सूरज तक पहुंचने के लिए कदम उठाया जा सके, ताकि सूरज की प्यास, असंतोष, आकांक्षा, और अभीप्सा भीतर पैदा की जा सके।
संगीत के छोटे से अनुभव से ही परम संगीत की तरफ जाया जा सकता है। प्रकाश के छोटे से अनुभव से अनंत प्रकाश की तरफ जाया जा सकता है। एक बूंद को जान लेना पूरे सागर को जान लेने के लिए पहला कदम है। एक छोटे से अणु को जानकर हम पदार्थ की सारी शक्ति को जान लेते है।
संभोग का एक छोटा सा अणु है, जो प्रकृति की तरफ से मनुष्य को मुफ्त में मिला हुआ है। लेकिन हम उसे जान नहीं पाते हे। आँख बन्द करके जी लेते है किसी तरह, पीठ फेर कर जी लेते है। उसकी स्वीकृति नहीं हमारे मन में, स्वीकार नहीं हमारे मन में। आनंद और अहो भाव से उसके जानने और जीने और उसमें प्रवेश करने की कोई विधि नहीं हमारे हाथ में।
मैंने जैसा आप से कहा, जिस दिन आदमी इस विधि को जान पायेगा, उस दिन हम दूसरे तरह के मनुष्य को पैदा करने में समर्थ हो जायेगे।
मैं इस संदर्भ में आपसे यह कहना चाहता हूं कि स्त्री और पुरूष दो निगेटिव पोल्स है, विद्युत के—पाजीटिव और निगेटिव, विधायक और नकारात्मक दो छोर है। उन दोनों के मिलन से एक संगीत पैदा होता है। विद्युत का पूरा चक्र पैदा होता है।
मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं। कि अगर गहराई और देर तक संभोग स्थिर रह जायें तो दो जोड़ा....स्त्री और पुरूष का एक जोड़ा अगर आधे घंटे के पास तक संभोग में रह जाये तो दोनों के पास प्रकाश का एक विलय, दोनों के पास प्रकाश का एक घेरा निर्मित हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पूरी तरह मिलती है तो आसपास अंधेरे में भी रोशनी दिखाई पड़ने लगती है।
कुछ अद्भुत खोजी यों ने इस दिशा में काम किया है। और फोटोग्राफ भी लिए है। जिस जोड़े को उस विद्युत का अनुभव उपलब्ध हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पुरी तरह से मिलती है। वह जोड़ा सदा के लिए संभोग से बहार हो जाता है।
लेकिन यह हमारा अनुभव नहीं है, और ये बातें अजीब मालूम होती है। ये तो हमारे अनुभव में नहीं है बात। अगर अनुभव में नहीं है तो उसका मतलब है कि आप फिर से सोचें, फिर से देखें और जिन्दगी को कम से कम सेक्स की जिन्दगी को क ख ग से फिर से शुरू करें।
समझने के लिए बोध पूर्वक जीने के लिए—मेरी अपनी अनुभूति यह है, मेरी अपनी धारणा यह है कि महावीर यह बुद्ध या क्राइस्ट और कृष्ण आकस्मिक रूप से नहीं पैदा हाँ जाते। यह उन दो व्यक्तियों के परिपूर्ण मिलन का परिणाम है।
मिलन जितना गहरा होगा, जो संतति पैदा होगी। वह उतनी ही अद्भुत होगी। मिलन जितना अधूरा होगा, जो संतति पैदा होगी वह उतनी ही कचरा और दलित होगी।
आज सारी दुनिया में मनुष्यता का स्तर रोज नीचे चला जा रहा है। लोग कहते है कि कलयुग आ गया है। इसलिए स्तर नीचे जा रहा है। लोग कहते है कि नीति बिगड़ गयी है। इसलिए स्तर नीचे जा रहा है। गलत, बेकार की और फिजूल की बातें करते है।
सिर्फ एक फर्क पडा है। मनुष्य के संभोग का स्तर नीचे उतर गया है। मनुष्य के संभोग ने पवित्रता खो दी है। मनुष्य के संभोग ने वैज्ञानिकता खो दी है। सरलता और प्राकृतिकता खो दी है। मनुष्य का संभोग जबरदस्ती एक नाइट मेयर, एक दुखद स्वप्न जैसा हो गया है। मनुष्य के संभोग ने हिंसात्मक स्थिति ले ली है। वह एक प्रेमपूर्ण कृत्य नहीं है। वह एक पवित्र और शांत कृत्य नहीं है। वह एक ध्यान पूर्ण कृत्य नहीं है। इसलिए मनुष्य नीचे उतरता चला जायेगा।
एक कलाकार कुछ चीज बनाता हो, कोई मूर्ति बनाता हो और कलाकार नशे में हो, तो आप आशा करते है कि कोई सुन्दर मूर्ति बन पायेगी? एक नृत्यकार नाच रहा हो, क्रोध से भरा हो, अशांत हो, चिंतित हो, तो आप आशा करते है कि नृत्य सुन्दर हो सकेगा?
हम जो भी करते है वह हम किसी स्थिति में है, इस पर निर्भर करता है। और सबसे ज्यादा उपेक्षित निग्लेक्टेड, सेक्स है, संभोग है।
और बड़े आश्चर्य की बात है, उसी संभोग से जीवन की सारी यात्रा चलती है। नये बच्चे, नयी आत्माएं जगत में प्रवेश करती है।
शायद आपको पता न हो, संभोग तो एक सिचुएशनल है, जिसमें एक आकाश में उड़ती हुई आत्मा अपने योग्य स्थिति को समझकर प्रविष्ट होती है। आप सिर्फ एक अवसर पैदा करते है। आप बच्चे के जन्मदाता नहीं है, सिर्फ एक अवसर पैदा करते है। वह अवसर जिस आत्मा के लिए जरूरी उपयोगी और सार्थक मालूम होता है, वह आत्मा प्रविष्ट होती है।
अगर आपने एक रूग्ण अवसर पैदा किया है, अगर आप क्रोध में दुःख में, पीड़ा में और चिंता में है तो जो आत्मा अवतरित होगी, वह आत्मा उसी तल की हो सकती है। उसके ऊंचे तल की नहीं हो सकती है।
श्रेष्ठ आत्माओं की पुकार के लिए श्रेष्ठ संभोग का अवसर और सुविधा चाहिए तो श्रेष्ठ आत्माएं जन्मती है। और जीवन ऊपर उठता है।
इसलिए मैंने कहा कि जिस दिन आदमी संभोग के पूरे शस्त्र में निष्णात होगा। जिस दिन हम छोटे-छोटे बच्चों से लेकर सारे जगत को उस कला और विज्ञान के सबंध में सारी बात कहेंगे और समझा सकेंगे,उस दिन हम बिलकुल नये मनुष्य को, जिसे नीत्से सुपरमैन कहता था। जिसे अरविन्द अतिमानव कहते थे। जिसको महान आत्मा कहा जा सकता है, वैसा बच्चा वैसी संतति जगत में निर्मित की जा सकेगी। और जब तक हम ऐसा जगत निर्मित नहीं कर लेते है, तब तक न शांति हो सकती है, विश्व में,और न युद्ध ही रूक सकते है, न धृणा रूकेगी, न अनीति रूकेगी, न दुश्चरित्र रूकेगी। न व्यभिचार रुकेगा,न जीवन का यह अंधकार रुकेगा।
लाख राजनीतिज्ञ चिल्लाते रहे....मत फिक्र करें, यह पाँच मिनिट के पानी गिरने से कोई फर्क न पड़ेगा। बंद कर लें छाते,क्योंकि दूसरे लोगों के पास छाते नहीं है। यह बहुत अधार्मिक होगा कि कुछ लोग छाते खोल लें। उसे बंद कर लें। सबके पास छाते होते तो ठीक था। और लोगों के पास नहीं है और आप खोलकर बैठेंगे तो कैसा बेहूदा होगा। कैसा असंस्कृत होगा। उसको बंद कर लें। मैं जरूर मेरे ऊपर छप्पर है, तो जितनी देर आप पानी में बैठे रहेंगे, मीटिंग के बाद उतनी देर में पानी में खड़ा हो जाऊँगा।
नहीं मिटेगे युद्ध, नहीं मिटेगी अशांति, नहीं मिटेगी हिंसा, नहीं मिटेगी ईर्ष्या। कितने दिन हो गये। दस हजार साल हो गये। मनुष्य जाति के पैगम्बर, तीर्थकर,अवतार समझा रहे है कि मत लड़ों, मत करो हिंसा, मत करो क्रोध, लेकिन किसी ने कभी नहीं सुना। जिन्होंने हमें समझाया कि मत करो हिंसा मत करो क्रोध उनको हमने सूली पर लटका दिया। यह उनकी शिक्षा का फल हुआ। गांधी हमें समझाते थे कि प्रेम करो, एक हो जाओ,हमने गोली मार दी। यह कुल उनकी शिक्षा का फल हुआ।
दुनिया के सारे मनुष्य सारे महापुरुष हार गये है, यह समझ लेना चाहिए। असफल हो चुके है। आज तक कोई भी मूल्य जीत नहीं सका। सब मूल्य हार गये। सब मूल्य असफल हो गये। बड़े से बड़े पुकारने वाले लोग, भले से भले लोग भी हार गये और समाप्त हो गये। और आदमी रोज अंधेरे और नरक में चला जाता रहा है। क्या इससे यह पता नहीं चलता कि हमारी शिक्षाओं में कहीं कोई बुनियादी भूल है।
अशांत आदमी इस लिए अशांत है कि वह अशांति में जन्मता है। उसके पास अशांति के कीटाणु है। उसके प्राणों की गहराई में अशांति को रोग है। जन्म के पहले दिन वह अशांति को, दुःख और पीड़ा का लेकिन पैदा हुआ है। जन्म के पहले क्षण में ही उसके जीवन का सारा स्वरूप निर्मित हो गया है। इसलिए बुद्ध हार जायेंगे,महावीर हार जायेंगे,कृष्ण हारे गे, क्राइस्ट हारे गे, हार चुके है। हम शिष्टता वश यह न कहते हों कि वह नहीं हारे है तो दूसरी बात है। लेकिन वह सब हार चुके है।
और आदमी रोज बिगड़ता चला गया है रोज बिगड़ता गया है। अहिंसा की इतने शिक्षा और हम छुरी से एटम और हाइड्रोजन बम पर पहुंच गये है। यह अहिंसा की शिक्षा की सफलता होगी?
पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हत्या की। और उसके बाद शांति और प्रेम की बातें करने के बाद दूसरे महायुद्ध में हमने साढे सात करोड़ लोगों की हत्या की। और उसके बाद भी चिल्ला रहे है बर्ट्रेंड रसल से लेकिन विनोबा भावे तक सारे लोग कि शांति चाहिए, शांति चाहिए। और हम तीसरे महायुद्ध की तैयारी कर रहे है। और तीसरा युद्ध दूसरे महायुद्ध को बच्चो का खेल बना देगा।
आइंस्टीन से किसी ने पूछा था तीसरे महायुद्ध में क्या होगा। आइंस्टीन ने कहा,तीसरे के बाबत कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन चौथे के संबंध में मैं कुछ कह सकता हूं। पूछने वालों ने कहा, आश्चर्य आप तीसरे के संबंध में नहीं कह सकते तो चौथे के संबंध में क्या कहेंगे। आइंस्टीन ने कहा चौथे के संबंध में एक बात निश्चित है कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं हो सकता। क्योंकि तीसरे के बाद किसी आदमी के बचने की उम्मीद नहीं है।
यह मनुष्य की सारी नैतिक और धार्मिक शिक्षा का फल है। मैं आपसे कहना चाहता हूं, इसकी बुनियादी वजह दूसरी है। जब तक हम मनुष्य के संभोग को सुव्यवस्थित, मनुष्य के संभोग को आध्यात्मिक जि तक हम मनुष्य के संभोग को समाधि का द्वार बनाने में सफल नहीं होते,तब तक अच्छी मनुष्यता पैदा नही हो सकती हे। रोज को जन्म दे जायेंगे। हर पीढ़ी नीचे उतरती चली जायेगी। यह बिलकुल ही निश्चित है। इसकी ‘प्रोफेसी’ की जा सकती है, इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है।
( क्रमश: अगले अंक में ..................देखें)
ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
प्रवचन—4
गोवा लिया टैंक, बम्बई,
1 अक्टूबर—1968,
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