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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-03

तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(सरहा के राजगीत) (भाग-एक)

तीसरा प्रवचन—(मधु तुम्हारा है)  
(दिनांक 23 अप्रैल 1977 ओशो आश्रम पूना।)  

एक मेध की तरह, जो उठता है समुंद्र से
अपने भीतर समाएं वर्षा को,
करती हो आलिंगन घरती जिसका,
वैसे ही, आकाश की भांति
समुंद्र भी उतना ही रहता है,
न बढ़ता, न घटता है।

अतः, उस स्वच्छंदता से जो कि है अद्वितीय
बुद्ध की पूर्णमाओं से भरपूर
जन्मती हैं चेतनाएं सभी
और आती है विश्राम हेतु वहीं
पर यह साकार है न निराकार है

वे करते हैं विचरण अन्य मार्गों पर
और गंवा बैठते हैं सच्चे आनंद को
उद्धीपक जो निर्मित करते है, खोज में उन सुखों की
मधु है उसके मुख में, इतना समीप...
पर हो जाएंगा अदृश्य, यदि तुरंत ही न करले वे उसका पान

पशु नहीं समझ पाते कि संसार है दुख,
पर समझते हैं वे विद्वान तो
जो पीते हैं इस स्वर्मिक अमृत को
जबकि पशु भटकते फिरते हैं
एंद्रिंक सुखों के लिए 

बुधवार, 29 जुलाई 2020

पूर्ण कश्यप-(ऐतिहासिक कहानी)-मनसा दसघरा


पूर्ण कश्यप—(कथायात्र)—मनसा दसघरा

    पूर्ण का जन्‍म सुपारा (मुम्‍बई) में एक अमीर व्‍यापारी के घर हुआ। उस व्यापारी की पहले ही तीन पत्‍नी थी जिनसे उनके संताने भी थी फिर भी उसका एक दासी से प्रेम हो गय। एक दासी और एक व्यापारी के मधुर प्रेम की उत्‍पती थे पूर्ण। पहली तीनों पत्नियों से एक-एक पुत्र पहले ही से थे। जब पूर्ण नवयुवक हुआ तब उसने अपनी पिता से पूछा की वह अपनी भाईयों के संग व्यापार कर सकता है। समुन्दरी यात्राओं पर जाने का उसका बड़ा मन करता था। पर उसके पिता ने कहा नहीं तुम दुकान देखो। मणि माणिक का व्यापार थी, थाईलैंड, मलेशिया, मलद्वार, सिंगापुर, बसरा.....दूर-दूर तक उनका आना जाना था। दुकान पर बैठ कर भी पूर्ण ने अच्‍छा व्‍यवसाय किया और जो भी मुनाफा मिलता अपने तीनों भाइयों  का हिस्‍सा अलग कर देता था। यानि एक हिस्‍सा अपने पास रखता और तीन हिस्‍से तीनों भाइयों में बराबर बाट देता। इससे उसके भाई उसकी चतुराई से बहुत प्रसन्‍न हुए और धीरे-धीरे उसे समुन्दरी यात्राओं पर भी संग ले जाने लगे।
       पूर्ण मेधावी और चतुर था पर चालाक नहीं था। वह जब दुर समुन्दरी यात्रा पर चलता तब बहुत से और व्यापारियों को संग ले लेता उस जमाने में समुन्दरी यात्रा करना जान जोखिम में डालने जैसा था। चोर डाकू के साथ तूफान का खतरा हमेशा बना रहता था। जितने ज्‍यादा व्यापारी संग ले सकता उतने ले कर चलता पूर्ण और किसी को कोई कर देने की आवश्‍यकता भी नहीं होती।

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision -भाग-01)-प्रवचन-02


तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision: (सरहा के गीत) भाग-पहला


दूसरा प्रवचन-The goose is out!-(हंस बाहर है)
(दिनांक 22 अप्रैल 1977 ओशो आश्रम पूना।) 
प्रश्नचर्चा-
पहला प्रश्न: ओशो, शिव का मार्ग भाव का है, हृदय का है। भाव को रूपांतरित करना है। प्रेम को रूपांतरित करना है ताकि यह प्रार्थना हो जाए। शिव के मार्ग में तो भक्त और मूर्ति रहते हैं, भक्त और भगवान रहते हैं। आत्यंतिक शिखर पर वे दोनों एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं। इसे ध्यान से सून लो: जब शिव का तंत्र अपने आत्यंतिक आवेग में पहुंचता है, ‘मैं’ ‘तूमें विलीन हो जाता है, और तू- मैंमें विलीन हो जाता है--वे साथ-साथ होते हैं, वे एक इकाई हो जाते हैं।

जब सरहा का तंत्र अपने आत्यंतिक शिखर पर पहुंचता है, तब यह पता चलता है: न तुम हो, न तुम सत्य हो, न तुम्हारा अस्तित्व है, न तुम सही हो, न तुम्हारा अस्तित्व है, और न ही मेरा, दोनों ही वहां विलीन हो जाते हैं। दो शून्य मिलते हैं--मैं नही, तू नहीं, न तू न मैं। दो शून्य, दो रिक्त आकाश एक दूसरे में विलीन हो जाते हैं, क्योंकि सरहा के मार्ग पर सारा प्रयास यही है, कि विचार को कैसे विलीन किया जाए, और मैं और तू दोनों विचार के ही अंग हैं।
जब विचार पूर्णतः विलीन हो जाए, तुम स्वयं को मैंकैसे कह सकते हो? और किसे तुम अपना ईश्वर कहोगे? ईश्वर विचार का अंग है, यह एक चिर-निर्मित, विचार-सृजित, मन-सृजित बात है। अतः समस्त मन-सृजन विलीन हो जाते हैं, और केवल शून्य रिक्तता उत्पन्न होती है।

शनिवार, 25 जुलाई 2020

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-प्रवचन-01


तंत्रा-विजन-(सरहा के गीत)-भाग-पहला

पहला-प्रवचन--(One whose arrow is shot) (जिसका एक तीर नीशाने पर)

(सरहा के पदों पर दिए गए ओशो के अंग्रेजी प्रवचनों का दिनांक 21 अप्रैल, 1977 ओशो सभागार, पूना में दिये गए बीस अमृत प्रवचनों में से पहले दस प्रवचनों तथा उसके शिष्यों द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों के उत्तरों का हिंदी अनुवाद)
सूत्र:

महान मंजुश्री को मेरा प्रणाम,
प्रणाम हैं उन्हें
जिन्होंने किया सीमित को अधीन

जैसे पवन के आघात से
शांत जल में उभर आती है, उतंग तरंगें,
ऐसे ही देखते हो सरहा
अनेक रूपों में, हे राजन!
यद्यपि है वह एक ही व्यक्ति।

भेंगा है जो मूढ़
दिखते उसे एक नहीं, दो दीप,
जहां दृश्य और द्रष्टा नहीं दो,
अहा! मन करता संचालन
दोनों ही पदार्थगत सत्ता का।

गृहदीप यद्यपि प्रज्वलित,  जीते अंधेरे में नेत्रहिन,
सहजता से परिव्याप्त सभी,
निकट वह सभी के,
पर रहती सब परे मोहग्रस्त के लिए।

सहजता से परिव्याप्त सभी, निकट वह सभी के,
पर रहती सदा परे मोहग्रस्त के लिए।
सरिताएं हो अनेक, यद्यपि,
सागर मे मिल होती है एक,
हों झूठ अनेक परंतु
होगा सत्य एक, विजयी सभी पर।
मिटेगा अंधकार, कितना ही हो गहन,
उदित होने पर एक ही सूर्य के।

इस प्रथ्वी पर जितने भी सदगुरु हुए हैं उनमें गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ हैं। ईसा क्राइस्ट, महावीर, मोहम्मद और अन्य कई महान सदगुरु हुए परंतु बुद्ध फिर भी इन सबमें श्रेष्ठ हैं। ऐसा नहीं है कि बुद्ध की ज्ञानोपलब्धि किसी अन्य की ज्ञानोपलब्धि से अधिक है--ज्ञान की उपलब्धि न कम होती है न ज्यादा। वस्तुतः गुणात्मक दृष्टि से तो बुद्ध भी उसी चेतना को प्राप्त हुए जिस चेतना को महावीर, क्राइस्ट, जरथुस्त्रा तथा लाओत्सु प्राप्त हुए। अतः यह सवाल ही नहीं है कि कौन किससे अधिक ज्ञानोपलब्धि को प्राप्त हुआ। परंतु जहां तक सदगुरु होने का प्रश्न है, बुद्ध अतुलनीय हैं, क्योंकि उनके द्वारा हजारों व्यक्तियों को ज्ञान उपलब्ध हुआ।

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision-भाग-01)-ओशो

तंत्रा-विज्ञान-(Tantra Vision)-भाग-पहला (हिन्दी अनुवाद)

(सरहा के पदों पर दिए गए ओशो के अंग्रेजी प्रवचनों Tantra Vision का दिनांक 21 अप्रैल, 1977 ओशो सभागार, पूना में दिये गए बीस अमृत प्रवचनों में से पहले दस प्रवचनों तथा उसके शिष्यों द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों के उत्तरों का हिंदी अनुवाद)
..........  तंत्र कहता है: किसी चीज की निंदा न करो, निंदा करने की वृत्ति ही मूढ़तापूर्ण है। निंदा करने से तुम अपने विकास की पूरी संभावना रोक देते हो। कीचड़ की निंदा न करो, क्योंकि उसी में कमल छिपा है। कमल पैदा करने के लिए कीचड़ का उपयोग करो। माना कि कीचड़ अभी तक कीचड़ है कमल नहीं बना है, लेकिन वह बन सकता है। जो भी व्यक्ति सृजनात्मक है, धार्मिक है, वह कमल को जन्म देने में कीचड़ की सहायता करेगा, जिससे कि कमल की कीचड़ से मुक्ति हो सके।
सरहा तंत्र-दर्शन के प्रस्थापक हैं। मानव-जाति के इतिहास की इस वर्तमान घड़ी में जब कि एक नया मनुष्य जन्म लेने के लिए तत्पर है, जब कि एक नई चेतना द्वार पर दस्तक दे रही है, सरहा का तंत्र-दर्शन एक विशेष अर्थवत्ता रखता है। और यह निश्चित है कि भविष्य तंत्र का है, क्योंकि द्वंदात्मक वृत्तियां अब और अधिक मनुष्य के मन पर कब्जा नहीं रखा सकतीं। इन्हीं वृत्तियों ने सदियों से मनुष्य को अपंग और अपराध-भाव से पीड़ित बनाए रखा है। इनकी वजह से मनुष्य स्वतंत्र नहीं, कैदी बना हुआ है। सुख या आनंद तो दूर इन वृत्तियों के कारण मनुष्य सर्वाधिक दुखी है। इनके कारण भोजन से लेकर संभोग तक और आत्मीयता से लेकर मित्रता तक सभी कुछ निंदित हुआ है। प्रेम निंदित हुआ, शरीर निंदित हुआ, एक इंच जगह तुम्हारे खड़े रहने के लिए नहीं छोड़ी है। सब-कुछ छीन लिया है और मनुष्य को मात्र त्रिशंकु की तरह लटकता छोड़ दिया है ।

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-11

सजग,शांत और संतुलित बने रहो--प्रवचन-ग्याहरवां

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा: -
भिक्षु जुईगन अपना प्रत्येक दिन स्वयं अपने आप मैं जोर-जोर से-
यह कहते हुए ही शुरू करता था- ''मास्टर! क्या तुम हो वहां?’’
और वह स्वयं ही उसका उत्तर भी देता था- '' जी हां श्रीमान? मैं हूं। ''
तब वाह कहता- '' अच्छा यही है- सजग, शांत और संतुलित बने रहो।''
और वह लौट कर जवाब देता—‘’जी श्रीमान? मैं यही करूंगा ''
तब वह कहता- ''और अब देखो वे कहीं तुझे बेवकूक न बना दें।‘’
और वह ही उसका उत्तर देता- ''अरे नहीं श्रीमान? मैं नहीं बगूंगा
मैं हरगिज नहीं बनूंगा?

ध्यान टुकड़ों में करने वाली चीज नहीं हो सकती, वह एक सतत प्रयास होना चाहिए। प्रत्येक को हर क्षण सचेत, सजग और ध्यानपूर्ण होना चाहिए। लेकिन मन एक चालबाजी करता है, तुम सुबह ध्यान करते हो और तब उसे उठाकर बगल में रख देते हो अथवा तुम मंदिर जाकर प्रार्थना करते हो और तब भूल जाते हो। तब तुम पूरी तरह बिना ध्यान इस संसार में वापस लौटते हरे, लगभग अचेत से जैसे तुम सम्मोहित निद्रा में चल रहे हो।

गुरुवार, 23 जुलाई 2020

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-10

मौन का सदगुरु-प्रवचन-दसवां

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा: -
बुद्ध को एक दिन अपने प्रवचन के द्वारा एक विशिष्ट सन्देश देना
था और चारों ओर मीलों दूर से हजारों अनुयायी आए हुए थे) जब
बुद्ध पधारे तो वे अपने हाथ में एक फूल लिए हुए थे। कुछ समय बीत
गया लेकिन बुद्ध ने कुछ कहा नहीं वह बस फूल की ही ओर देखते
रहे। पूरा समूह बेचैन होने लगा, लेकिन महाकाश्यप बहुत देर तक
अपने को रोक न सका, हंस पड़ा। बुद्ध ने हाथ से इशारा कर उसे
अपने पास बुलाया। उसे वह फूल सौंपा और सभी भिक्षुओं के समूह
से कहा- '' मैंने जो कुछ अनुभव किया, उस सत्य और सिखावन
को जितना शब्द के द्वारा दिया जाना सम्भव था, वह सब कुछ तुम्हें दे
दिया लेकिन इस फूल के साथ, इस सिखावन की कुंजी मैंने आज
महाकाश्यप करे सौंप दी।''

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-09

बिल्ली को बचाओ-प्रवचन-नौवां

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा: -
नानसेन ने भिक्षओं के दो समूह, को, एक बिल्ली के स्वामित्व के
लिए आपस में शोर करते और झगड्‌ते हुए पाया नानसेन उस घर में
गया और एक तेज धार की छुरी लेकर लौटा उसने बिल्ली को हाथ
में उठाकर भिक्षओं से कहा- ''तुममें से कोई भी यदि कोई अच्छा
और भला शब्द कहे तो तुम इस बिल्ली को बचा सकते हो ''
कोई भी ऐसे शब्द को न कह सका इसलिए नानसेन ने बिल्ली के
दो टुकड़े कर दिए और आधा-आधा भाग प्रत्येक समूह को दे दिया
शाम को जब जोशू मठ में लौटा तब जो कुछ भी हुआ कु नानसेन
ने उसे उसकी बाबत बताया
जोशू ने कुछ भी नहीं कहा:
उसने बस अपनी चप्पलें अपने सिर पर रखीं और चला गया
नानसेन से कहा- '' यदि तुम वहां रहे होते तो तुमने बिल्ली को बचा लिया होता ''

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-08

झेन का शास्त्र है कोरी किताब-प्रवचन-आठवां


मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा: -
झेन सदगुरू मूनान का एक ही उत्तराधिकारी था, उसका नाम था-शोजू
जब शोजू झेन का प्रशिक्षण और अध्ययन पूरा कर चुका, मू-नान ने
उसे अपने कक्ष में बुलाकर कहा- '' मैं अब बूढ़ा हुआ और जहां तक
मैं जानता हूं, तुम्हीं अकेले ऐसे हो जो इस प्रशिक्षण को विकसित कर
आगे ले जाओगे। यहां मेरे पास एक पवित्र ग्रंथ है- जो सात पीढ़ियों
से एक सद्‌गुरु से दूसरे सदगुरु को सौपा गया है, मैंने भी अपनी समझ
के अनुसार-उसमें कुछ जोड़ा है यह ग्रंथ बहुत कीमती है और मैं इसे
तुम्हें सौंप रहा जिससे मेरा उत्तराधिकारी बन कर तुम मेरा प्रतिनिधित्व
शोजू? ने उत्तर- '' कृपया अपनी यह किताब अपने पास रखिए मैंने
तो आपसे अनलिखा झेन पाया है और मैं उसे ही पाकर आंनदिन हूं,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।''
मूनान ने उत्तरदिया- ''मैं इसे जानता हूं, लेकिन यह एक महान कार्य
का पवित्र दस्तावेज है? जो एक सदगुरू से दूसरे सदगुरू तक सात
पीढ़ियों से हस्ततिरित होता रहा है और यह तुम्हारे भी प्रशिक्षण का
एक प्रतीक बनेगा यह रहा वह पवित्र ग्रंथ।''

शनिवार, 18 जुलाई 2020

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-07

हैं साधारण होने का चमत्कार-प्रवचन-सातवां

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा:
जापानी सदगुरु इकीदो एक कठोर शिक्षक थे और उनके शिष्य
उससे डरते थे एक दिन उनका एक शिष्य दिन का समय बताने के
लिए मठ का घंटा बजा रहा था। समय के अनुसार वह घंटे पर एक
चोट करना भूल गया क्या? क्योंकि वह द्वार से गुजरती हुई एक सुंदर लड़की
को देख हाथ' उस शिष्य की जानकारी में आए बिना इकीदो उसके
पीछे ही खड़ा था। इकीदो ने अपने डंडे से उस शिष्य पर प्रहार किया
इस आघात से उस शिष्य की हृदयगति रुक गई और वह मर गया
पुरानी परंपरा के अनुसार शिष्य अपना जीवन सदगुरू के नाम लिखकर
अपने हस्ताक्षर करके दे देने के लेकिन अब यह परंपरा समाप्त होते
हुए औपचारिकता रह गई है, सामान्य लोगों के द्वारा इकीदो की निंदा
की गई लेकिन इस घटना के बाद इकीदो के दस निकट शिष्य बुद्धत्व
को उपलब्ध हुए जो इकीदो के उत्तराधिकारी बने एक सदगुरू के
निकट बोध को प्राप्त होने वालों की यह संख्या असाधारण रूप से
काफी अधिक थी।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-06


हैं साधारण होने का चमत्कार-प्रवचन-छठवां

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा:
एक दिन झेन सदगुरू बांके अपने शिष्यों के साथ शांति से बैठा
कुछ चर्चा- परिचर्चा कर रहा था, तभी एक दूसरे पंथ के धर्माचार्य ने
उसकी बात चीत में विध्न डाल दिया, यह पंथ चमत्कारों की शक्ति में
विश्वास रखता था और उसका मानना था कि मुक्ति पवित्र मंत्री के
निरंतर उच्चारण से मिलती है बांके ने चचा-परिचर्चा रोककर उस
धर्माचार्य से पूछा- '' आप क्या कहना चाहते है?''
उस धर्माचार्य ने शेखी बधारते हुए कहा- '' उसके धर्म के संस्थापक
नदी के एक किनारे पर खड़े होकर अपने हाथ में लिए हुए बुश से?
नदी के दूसरे किनारे पर खड़े अपने शिष्य के हाथ में थमे कोरे कागज
पर पवित्र नाम लिख सकते हैं।''
फिर उस धर्माचार्य ने बांके से पूछा-- '' आप क्या चमत्कार कर सकते हें?''
बांके ने उत्तर दिया- '' केवल एक हुई चमत्कार में जानता हूं, जब
मुझे भूख लगती है? मैं भोजन करता हूं और जब मुझे कम लगती है? मैं पानी पीता है।''

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

मनुष्य होने की कला–(A bird on the wing)-प्रवचन-05

नए मठ के लिए सदगुरु कौन?-(प्रवचन-पांचवां) 

मनुष्य होने की कला--(The bird on the wing)-ओशो की बोली गई झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
कथा:
ह्याकूजो ने अपने सभी भिक्षुओं, को एक साध बुलाया वह उनमें
से एक को नए मठ के संचालन के लिए भेजना चाहता था जमीन पर
पानी से भरा एक जग रखते हुए उसने कहा- '' बिना इसका नाम
प्रयोग किए हुए कौन बता सकता है कि यह क्या है?''
प्रधान भिक्षु ने कहा- जिसे उस पद करे प्राप्त करने की आशा थी।
उसने कहा- '' कोई भी इसे लकड़ी कर खड़ा के तो नहीं कह सकता।''
दूसरे भिक्षु ने कहा- '' यह कोई तालाब नहीं है? क्योंकि इसे कहीं
भी ले जाया सकता है। ''
भोजन बनाने वाला भिक्षु जो पास ही खड़ा था, आगे बड़ा, उसने
जग को एक ठोकर मारी और चला गया।
ह्याकूजो मुस्कुराया और उसने कहा, '' भोजन बनाने वाला भिक्षु
ही नए मत का सदगुरु होगा।