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सोमवार, 28 मार्च 2011
सादगी भरा व्यक्ति और प्रसन्नता—

शनिवार, 26 मार्च 2011
क्या आप फिर से एक और जन्म ले सकते है?

शुक्रवार, 25 मार्च 2011
बुधवार, 23 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—29
प्रेम ओर विवाह--
सोमवार, 21 मार्च 2011
चाय का अन्वेषक— बोधिधर्म

रविवार, 20 मार्च 2011
अस्तित्व की आधारभूत संरचना—
अब मैं तुम्हें तुम्हारे अस्तित्व की एक परम आधारभूत यौगिक संरचना के बारे में बताता हूं।

शुक्रवार, 18 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—28
प्रेम ओर विवाह--
वेश्याएं पैदा होती है विवाह के की कारण।
गुरुवार, 17 मार्च 2011
सिद्घपुरुष और संबोधी व्यक्ति में भेद—

बुधवार, 16 मार्च 2011
विवेकानंद और वेश्या– (कथा यात्रा)

मंगलवार, 15 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—27
प्रेम ओर विवाह--

जिसके जीवन में प्रेम की कोई झलक नहीं है। उसके जीवन में परमात्मा के आने की कोई संभावना नहीं है।
रविवार, 13 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—26
युवक और यौन—

अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, की भोजन छिपकर खाना। कोई देख न ले। अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्टर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन। क्योंकि आदमी तब पोस्टरों से भी तृप्ति पाने की कोशिश करेगा। पोस्टर से तृप्ति तभी पायी जाती है। जब जिंदगी तृप्ति देना बंद कर देती है। और जिंदगी में तृप्ति पाने का द्वार बंद हो जाता है।
शुक्रवार, 11 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—25
युवक और यौन—

यह जो सेक्स इतना महत्वपूर्ण हो गया है वर्जना के कारण। वर्जना की तख्ती लगी है। उस वर्जना के कारण यह इतना महत्वपूर्ण हो गया है। इसने सारे मन को घेर लिया है। सारा मन सेक्स के इर्द-गिर्द घूमने लगाता है।
बुधवार, 9 मार्च 2011
गुरु की खोज—

मंगलवार, 8 मार्च 2011
हंसी कि छ: कोटियां—
भगवान बुद्ध ने एक बार सारिपुत्र से कहां की तुम हंसी पर ध्यान के देखो और मुझे बतलाओ हंसी कितने प्रकार की होती है। सारिपुत्र ने पुरा विवरण बुद्ध भगवान को दिया। सारिपुत्र के पहले और सारिपुत्र के बाद कभी भी किसी ने हंसी को इतनी गहराई से नहीं समझा। सारिपुत्र ने हंसी के छह कोटियों में विभक्त किया। जिसमें हंसी की महिमा के सभी अच्छे और बुरे रूपों को वर्णन किया है। सारिपुत्र के सामने हास्य ने अपना पूरा रूप उद्घाटित कर दिया।
1—सिता
2—हंसिता
3—विहंसिता
4—उपहंसिता
5—अपहंसिता
6—अतिहंसिता
सोमवार, 7 मार्च 2011
स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—24

जब मैं विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था। मैंने एथिक्स, निति शास्त्र लिया था। मैं उस विषय के प्रोफेसर के केवल एक ही लेक्चर में उपस्थित हुआ। मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा था कि कोई व्यक्ति इतना पुराने विचारों का भी हो सकता है। वे सौ साल पहले जैसी बातें कर रहे थे। उन्हें जैसे कोई जानकारी ही नहीं थी। कि नीति शास्त्र में क्या-क्या परिवर्तन हो चुके है। फिर भी उस बात को में नजर अंदाज कर सकता था। वे प्रोफेसर एकदम उबाऊ आदमी थे।
और जैसे कि विद्यार्थियों को बोर करने की उन्होंने कसम खा ली थी। लेकिन वह भी कोई खास बात न थी। क्योंकि मैं उस समय सौ सकता था। लेकिन इतना ही नहीं वे झुंझलाहट भी पैदा कर रहे थे। उनकी कर्कश आवाज उनके तौर-तरीके,उनका ढंग, सब बड़ी झुंझलाहट ले आने वाले थे। लेकिन उसके भी अभ्यस्त हुआ जा सकता था। लेकिन वह बहुत उलझे हुए इंसान थे। सच तो यह है मैंने कभी कोई ऐसा आदमी नहीं देखा जिसमें इतने सारे गुण एक साथ हो।
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