ओशो
मेरी नजर में—(अध्याय—अठावनवां)
ओशो
के साथ एक युग
जीया है, लौटकर
देखूं तो
यूं लगता है
कि पता नहीं
कितने सालों
से, सदियों
से, युगों
से ओशो के साथ
हूं। जिस पल
ओशो मिले वहां
से लेकर इस पल
तक सिवाय ओशो
के कुछ भी तो
जीवन में नहीं
हुआ है। हर पल,
हर समय ओशो
हर श्वास में
बने रहे हैं।
ओशो
से संन्यास
दीक्षित हुआ, ओशो
के सान्निध्य
में ध्यान
किये, ओशो
के अनगिनत
प्रवचन सामने
बैठ कर सुनें।
सालों तक देश
भर में घूमते
हुए लाखों
मित्रों के
साथ ओशो संदेश
का आनंद लिया,
ध्यान का
आनंद लिया।
अनगिनत
मित्रों को
ओशो के संन्यास
में, ध्यान
की राह पर
दीक्षित होते
देखा, न
जाने कितने
रूपांतरण
अपनी आंखों के
सामने से
गुजरे......मेरे
व्यक्ति—गत
जीवन से लेकर
लाखों
मित्रों के
जीवन में होने
वाले
परिवर्तनों, रूपांतरण को
देखते, महसूस
करते
स्वाभाविक ही
ओशो के प्रति
प्रेम, श्रद्धा
और उनकी
महानता अधिक
से अधिक होती
चली गई।