पहली
विधि:
‘वस्तुओं
और विषयों का
गुणधर्म
ज्ञानी वे
अज्ञानी के
लिए समान ही
होता है।
ज्ञानी की
महानता यह है
कि वह आत्मगत
भाव में बना
रहता है। वस्तुओं
में नहीं
खोता।’
यह बड़ी प्यारी
विधि है। तुम
इसे वैसे ही
शुरू कर सकते
हो जैसे तुम
हो; पहले कोई
शर्त पूरी
नहीं करनी है।
बहुत सरल विधि
है: तुम व्यक्तियों
से, वस्तुओं
से, घटनाओं से
घिरे हो—हर
क्षण तुम्हारे
चारों और कुछ
न कुछ है। वस्तुएं
है, घटनाएं है, व्यक्ति
है—लेकिन क्योंकि
तुम सचेत नही
हो, इसलिए तुम
भर नहीं हो।
सब कुछ मौजूद
है लेकिन तुम
गहरी नींद में
सोए हो। वस्तुएं
तुम्हारे
चारों तरफ
मौजूद है,
लोग तुम्हारे
चारों तरफ घूम
रहे है।
घटनाएं तुम्हारे
चारों तरफ घट
रही है। लेकिन
तुम वहां नहीं
हो। या, तुम सोए हुए
हो।