ब्रह्मसूत्र और आधुनिक मनुष्य के बीच हजारों वर्ष का फासला है। यह फासला सिर्फ समय का नहीं है, मानसिकता का भी है। मनुष्य के अंतरतम पर व्यक्तित्व की इतनी पर्तें चढ़ गई है कि उसका मूल चेहरा खो गया है। अगर कहा जाये कि ब्रह्मसूत्र मुल चेहरे की खोज है। तो गलत नहीं होगा।
भारतीय अध्यात्म के आकाश में कुछ दैदीप्यमान सितारे है, उनमें से एक अनोखा सितारा है: बादरायण व्यास विरचित ब्रह्मसूत्र। ब्रह्मसूत्रों का प्रत्येक पहलू उतना ही रहस्यपूर्ण है,जितना कि स्वयं ब्रह्म। ब्रह्म एक ऐसी अवधारणा है जिसका भारतीय दर्शन में सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। हो सकता है ‘’ब्रह्म’’ कुछ ऋषियों की अनुभूति रही हो, लेकिन अधिकांश लोगों के लिए तो यह महज एक शब्द है, जो उनकी सामान्य जिंदगी में जरा भी उपयोगी नहीं है।