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बुधवार, 30 नवंबर 2011

ब्रह्मसूत्र—(बादनारायण)-011

ब्रह्मसूत्र—(महाऋिषि बादनारायण)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Brahma Sutra- Badarayana

ब्रह्मसूत्र और आधुनिक मनुष्‍य के बीच हजारों वर्ष का फासला है। यह फासला सिर्फ समय का नहीं है, मानसिकता का भी है। मनुष्‍य के अंतरतम पर व्‍यक्‍तित्‍व की इतनी पर्तें चढ़ गई है कि उसका मूल चेहरा खो गया है। अगर कहा जाये कि ब्रह्मसूत्र मुल चेहरे की खोज है। तो गलत नहीं होगा।

      भारतीय अध्‍यात्‍म के आकाश में कुछ दैदीप्‍यमान सितारे है, उनमें से एक अनोखा सितारा है: बादरायण व्‍यास विरचित ब्रह्मसूत्र। ब्रह्मसूत्रों का प्रत्‍येक पहलू उतना ही रहस्‍यपूर्ण है,जितना कि स्‍वयं ब्रह्म। ब्रह्म एक ऐसी अवधारणा है जिसका भारतीय दर्शन में सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। हो सकता है ‘’ब्रह्म’’ कुछ ऋषियों की अनुभूति रही हो, लेकिन अधिकांश लोगों के लिए तो यह महज एक शब्‍द है, जो उनकी सामान्‍य जिंदगी में जरा भी उपयोगी नहीं है।

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

दि लाइट ऑफ एशिया:(अर्नाल्ड)-010

दि लाइट ऑफ एशिया: (सर एडविन अर्नाल्‍ड)

The Light Of Asia--Sir Edwin Arnold


     विश्‍व की महान कृतियों में जो श्रेष्‍ठ कोटि का साहित्‍य है उनमें ‘’लाइट ऑफ एशिया’’ का स्‍थान बहुत ऊँचा है। अंग्रेज पत्रकार और कवि सर एडविन अर्नाड न सन 1879 में इस सुमधुर काव्‍य सलिला की रचना की। सर अर्नाल्‍ड का जीवन बहुत अनूठा है। वे सन् 1861 में भारत आये और सीधे पूना आकर बसे। उनकी विद्वता को देखते हुए उन्‍हें यहां के डेक्‍कन कॉलेज का प्रिंसिपल बनाया गया। भारत में उन्‍होंने संस्‍कृत भाषा सीखी ओर उनके लिए संस्‍कृत साहित्‍य के समृद्ध और विस्मयकारी भंडार के द्वार खुल गये। वे भारतीय दर्शन, चिंतन और प्रगल्‍भता और साहित्‍य से इतने अभिभूत हुए कि अपने अंग्रेज देशवासियों तक उसका ऐश्‍वर्य पहुंचाने की अभीप्‍सा से भर उठे। उनहोंने अनेक संस्‍कृत ग्रंथों का अनुवाद किया। गौतम बुद्ध के जीवन से वह अत्‍यंत प्रभावित हुए और उनके कवि ह्रदय ने बुद्ध की जीवनी को काव्‍य रस में डुबोकर एक अद्भुत माला बनाई जिसमें कल्‍पना विलास और यथार्थ का खूबसूरत संमिश्रण किया।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

दि मैडमैन: (खलील जिब्रान)-009

दि मैडमैन: (खलील जिब्रान)-ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The Madman -Khalil Gibran

मैडमैन खलील जिब्रान की प्रतीक कथाएं है। उसने एक पागल आदमी के ज़रिये कहलवायी है। यह पागल वस्‍तुत: एक रहस्‍यदर्शी फकीर है और वह दुनियां की नजरों में पागल है। दूसरी तरफ से देखा जाये तो वह वास्‍तव में समझदार है क्‍योंकि उसकी आँख खुल गई है। इस छोटी सी किताब में कुछ 34 प्रतीक कथाएं है जो ईसप की कहानियों की याद दिलाती है।

किताब की शुरूआत पागल की जबानी से होती है। वह कहता है, ‘’तुम मुझे पूछते हो मैं कैसे पागल हुआ। वह ऐसे हुआ, एक दिन बहुत से देवताओं के जन्‍मनें के पहले मैं गहरी नींद से जागा और मैंने पाया कि मेरे मुखौटे चोरी हो गये है। वे सात मुखौटे जिन्‍हें मैंने सात जन्‍मों से गढ़ा और पहना था। मैं भीड़ भरे रास्‍तों पर यह चिल्‍लाता दौड़ा, चौर-चौर। बदमाश चौर। स्‍त्री-पुरूषों ने मेरी हंसी उड़ाई। उनमें से कुछ डर कर अपने घर में छुप गये। और जब मैं बाजार मैं पहुंचा तो छत पर खड़ा एक युवक चिल्‍लाया, ‘’यह आदमी पागल है।‘’ उसे देखने के लिए मैंने अपना चेहरा ऊपर किया ओर सूरज ने मेरे नग्‍न चेहरे को पहली बार चूमा। और मेरी रूह सूरज के प्‍यार से प्रज्‍वलित हो उठी। अब मेरी मुखौटों की चाह गिर गई।

रविवार, 27 नवंबर 2011

थियोलॉजिया मिस्‍टिका-(डियोनोसियस)-008

थियोलॉजिया मिस्‍टिका—(एलन वॉटस)-ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

Woody Allen Whats- New Pussycat Stock
     अगर ‘’गागर में सागर’’ इस मुहावरे का सही इस्‍तेमाल करना हो तो वह इस छोटी सी पुस्‍तिका के लिए किया जा सकता है। इतने थोड़े से शब्‍दों में इतना गहरा आशय भर देना, जैसे एक-एक शब्‍द अणु बम हो, एक रहस्‍यदर्शी ही कर सकता है।
      ग्रीक रहस्‍यदर्शी डियोनोसियस के वचनों ने यही कमाल कर दिखाया है। इसीलिए ओशो न उन वचनों के अपने प्रवचनों के काबिल समझा। डियोनोसियस पर दिये गये ओशो के प्रवचनों की किताब उसी नाम से प्रकाशित है। और डियोनोसियस को उन्‍होंने अपनी मनपसंद किताबों में भी सम्‍मिलित किया है।

      पूरी किताब कुल 20 पन्‍नों की है। उसमें दस पन्‍नों में सुप्रसिद्ध अमरीकी लेखक एलन वॉटस की पठनीय भूमिका है। और दस पन्‍नों में डियोनोसियस के पाँच संक्षिप्‍त आलेख है। यह किताब इतनी दुर्लभ है कि आम दुकानों में मिलनी मुश्किल है। अंत: मैंने ओशो के निजी पुस्‍तकालय की शरण ली। और जो हाथ में आया वह अद्भुत था। किताब के आखिरी पृष्‍ठ पर ओशो ने अपने हाथों से बनायी हुई उनके प्रवचनों की रूपरेखा है। वह इस प्रकार है:

शनिवार, 26 नवंबर 2011

मिटिंग्‍ज़ विद रिमार्केबल मैन-(गुरूजिएफ)-007

असाधारण लोगो से मुलाक़ातें-(जार्ज गुरजिएफ)-ओशो की प्रिय पुस्तकें
Meetings with Remarkable-G. I. Gurdjieff
     (एक आसाधारण इंसान द्वारा लिखी गई असाधारण किताब। बीसवीं सदी का रहस्‍यदर्शी जार्ज गुरजिएफ कॉकेशन में पैदा हुआ और उसने मूलत: योरोप और अमेरिका में अपना आध्‍यात्‍मिक संदेश फैलाया। यह किताब उसके जीवन के कुछ प्रसंगों का, उन प्रसंगों की प्रमुख भूमिका निभाने वाले कुछ अद्भुत व्‍यक्‍तियों का चित्रण है जिन्‍होंने गुरजिएफ की चेतना को प्रभावित और शिल्‍पित किया।)

      गुरजिएफ सत्‍य का खोजी था। उसे कुदरत ने कुछ अतींद्रिय शक्‍तियां दे रखी थी। उनका विकास और उनका उपयोग कर जीवन के कुछ गहन रहस्‍यों को खोजने में और बाद में उन्‍हें अपने शिष्यों को बांटने में गुरूजिएफ का जीवन व्‍यतीत हुआ।
      गुरजिएफ को जीवन के सफर में जो लोग मिले उनमें नौ लोगों को चुन कर उनका अनूठापन उसने इस किताब में सशक्‍त रूप से चित्रित किया है। ये दस लोग है: उसके पिता, पिता का जिगरी दोस्‍त, और गुरजिएफ के पहले शिक्षक डीन बॉर्श।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

सिद्धार्थ—हरमन हेस-006

सिद्धार्थ—हरमन हेस-(ओशो की प्रिय पुस्तकें) 


Siddhartha - Hermann Hes
     हरमन हेस की सिद्धार्थ बहुत ही विरल पुस्‍तकों में से एक है। वह पुस्‍तक उसकी अंतर्तम गहराई से आयी है। हरमन हेस सिद्धार्थ से ज्‍यादा सुंदर और मूल्‍यवान रत्‍न कभी नहीं खोज पाया। जैसे वह रत्‍न तो उसमें विकसित ही हो रहा था। वह इससे ऊँचा नहीं जा सका। सिद्धार्थ हेस की पराकाष्‍ठा है।

      सिद्धार्थ बुद्ध भगवान से कहता है, आप जो कुछ कहते है सच है। इससे विपरीत हो ही कैसे सकता है। आपने वह सब समझा दिया है। जिसे पहले कभी नहीं समझाया गया था। आपने सभी कुछ स्‍पष्‍ट कर दिया है। आप बड़े से बड़े सदगुरू है। लेकिन आपने संबोधि स्‍वयं के असाध्‍य श्रम से ही उपलब्‍ध की है। आप कभी किसी के शिष्‍य नहीं बने। आपने किसी का अनुसरण नहीं किया; आपने अकेले ही खोज की। आपने अकेले ही यात्रा करके संबोधि उपलब्‍ध की है। आपने किसी का अनुसरण नहीं किया।

तंत्र-आर्ट (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)-005

तंत्र-आर्ट: इट्स फिलॉसफी एंड फिजिक्‍स (अजित मुखर्जी)

Tantra Art: Its Philosophy & Physics -Ajit Mukerji 
     एक अत्‍यंत दर्शनीय किताब की झलक हम प्रस्‍तुत करने जा रहे है। तंत्र कला: दर्शन और भौतिक तंत्र का दर्शन तो समझ में आता है लेकिन भौतिकी.....? इस के लेखक अजित मुखर्जी ने आधुनिक फ़िज़िक्स के ज़रिये तंत्र के प्रतीकों की व्‍याख्‍या कर तंत्र को एकदम बीसवीं सदी में ला खड़ा कर दिया है। तंत्र उसकी दुरूह संज्ञाओं और रेखा-कृतियों के कारण मनुष्‍य चेतना की मूल धारा से हटकर एकांत कोठरी में बंदी हो गया था। उसे भौतिकी के वैज्ञानिक नियमों की रोशनी में लाकर उन्‍होंने दिखा दिया है कि तंत्र जितना पुराना है उतना नया। या कहें, न नया, न पुराना; वह नित्‍य नूतन है।

      155 पन्‍नों की इस लावण्‍यमयी किताब में कुल 55 पन्‍ने शब्‍दों के लिए है। बाकी सारे पन्‍ने चित्रों के लिए आरक्षित है। ये चित्र तांत्रिकों की पूजा स्‍थानों से, मठों और संग्रहालयों से उठाये गये है। इनका सृजन काल है दसवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्‍दी तक। इसके लेखक अजित मुखर्जी परंपरागत कला और कारीगरी के काविद है। कलकत्‍ता विश्‍वविद्यालय से प्राचीन भारत के इतिहास और संस्‍कृति में एम. ए. की उपाधि लेने के बाद वे लंदन गये और वहां उन्‍होंने ‘’हिस्‍ट्री आफ आर्ट’’ विषय में पुन: एम. ए. किया। 1945 से लेकर आज तक वे भारत, योरोप और अमेरिका में भ्रमण कर अपनी किताबों की सामग्री जुटाते रहे।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

हज़रत इनायत खान—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)-004

हज़रत इनायत खान—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

(The Mysticism Of Sound And Music)

अपनी मनपसंद किताबों के खुशबूदार गुलशन से हुए कभी तो ओशो उन किताबों का जि़क्र करते है जो उन्‍हें कीमती मालूम हुई और कभी उन लेखकों को अपने काफिले में शरीक करना चाहते है जिनकी किताबें उन्‍हें सार्थक लगी हों। खलील जिब्रान जैसे लेखकों का तो समूचा साहित्‍य ही अपना लिया।
      हज़रत इनायत खान का जन्‍म सन 1882 के जुलाई महीने में बड़ौदा में हुआ। उनके खानदान में संगीत और सूफीवाद हाथ से हाथ मिला कर चलते थे। इनायत खान के दादा मौला बख्‍श, वालिद रहमत खान धुपद गाते और वीणा बजाते थे। स्‍वभावत: इन दोनों धाराओं का संगम इनायत खान में भी हुआ। बड़ौदा के महाराज संगीत और अन्‍य कलाओं के बड़े कद्रदान थे। उनके संरक्षण में वहां संगीत खूब पल्‍लवित और कुसुमित हुआ।

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

हकीम सनाईृ-(दि बॉलड् गार्डन ऑफ ट्रूथं)-003

दि बॉलड् गार्डन ऑफ ट्रूथं(हदीक़त-अल-हक़ीकत)

यूनो मिस्टिका-ओशो-(Hakim Sanai Ghazani)

     हकीम सनाई के बारे में जो थोड़ी सी जानकारी है वह किंवदंती अधिक है। ऐतिहासिक तथ्‍य कम है। गझाना में, सन 1118-1152 के दौरान बहरा शाह राज करता था। उसी दौर में हकीम सनाई पनापा। उसकी इंतकाल सन 1150 में बताया जाता है। पैदा कब हुआ इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। उसके संबंध में एक ही किस्‍सा पाया जाता है।

      हकीम सनाई ने गझाना के सुलतान इब्राहिम की तारीफ में एक कविता लिखी थी और वह सुलतान को सुनाने के लिए उसके दरबार की और चल पडा। सुलतान इब्राहिम हिंदुस्‍तान पर एक और हमला करने की तैयारी कर रहा था। हिंदुस्‍तान की और जाते हुए रास्‍ते में एक खुशबूदार हदीक़ा, (बग़ीचा) पडा। बग़ीचे से गाने के पुख्‍ता सुर लहराते हुए आये। सुलतान उन्‍हें सुनने की खातिर रुका। गानेवाला शख्‍स आइ-खुर था—एक पियक्‍कड़ और पागल आदमी। लेकिन उसके ढीठ उदगारों के भीतर सचाई धधकती थी।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

’दि मिथ ऑफ सिसिफस’-002

’दि मिथ ऑफ सिसिफस’’ (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

The Myth of Sisyphus-Alberd Camus 

मानव जीवन की एक गहरी समस्या, आत्‍महत्‍या को कामू ने जिस सौंदर्य बोध के साथ और नाजुकता से प्रगट किया है शायद ही किसी लेखक या दार्शनिक ने किया हो
      इस बार हम जिस किताब का परिचय आपको दे रहे है वह किताब नहीं, एक निबंध मात्र है। यह निबंध प्रसिद्ध अस्‍तित्‍ववादी लेखक आल्‍बेर कामू की पुस्‍तक ‘’दि मिथ ऑफ सिसिफस’’ में संग्रहीत है। यह किताब कामू ने एब्‍सर्डिटी, तर्कातीत या जीवन का जो अतर्क्‍य घटना हे जो सिर्फ मनुष्‍य के साथ घटती है। पूरी सृष्‍टि में मनुष्‍य अकेला प्राणी है जो अपने आपको मारता है। बाकी सारे प्राणी या तो अपने आप मर जाते है या दूसरों को मारते है। निश्‍चित ही यह घटना एब्‍सर्ड जो है और इस पर विचारशील लोगों को चिंतन करना चाहिए।

      ‘’मिथ ऑफ सिसिफस’’ की भूमिका में कामू लिखता है: ‘’यह स्‍वाभाविक और आवश्‍यक है कि हम जीवन के अर्थ पर चिंतन करें। इसलिए आत्‍महत्‍या के प्रश्‍न का सामना करना जरूरी है। हम ईश्‍वर में विश्‍वास करें या न करें, आत्‍महत्‍या योग्‍य नहीं है। जीवन एक निमंत्रण है जीने का, सृजन का।‘’
      इस किताब को अपनी मनपसंद किताबों में शामिल करते हुए ओशो केवल सिसिफस की कहानी कहते है।

रविवार, 20 नवंबर 2011

इ चिंग: (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)-001

इ चिंग-(ओशो की प्रिय पुस्तके)

दि बुक ऑफ चेंजेस-(I Ching: Book of Changes) 


(प्राचीन चीन की गहन प्रज्ञा, संस्‍कृति और दर्शन का सार-निचोड़ है ‘’इ चिंग’ अर्थात दि बुक ऑफ चेंजेस—परिवर्तनों की किताब उसी ऊँचाई से लिखी गई है जिससे उपनिषाद, ब्रह्म सूत्र, धम्म पद, या अन्‍य आध्‍यात्‍मिक ग्रंथ। फर्क इतना ही है कि इसे किसी एक लेखक ने नहीं लिखा है। इस किताब में संग्रहीत ज्ञान सदा से है, जो इन पृष्‍ठों में केवल प्रगट हुआ है
। सूत्र रूप में।)
  
      एक और फर्क जो भारतीय और चीनी साहित्‍य में बहुत स्‍पष्‍ट है, वह यह कि चीनी चित्रमय है। ये सूत्र शुरूआत में चित्रों और रेखाओं के ज़रिये अभिव्‍यक्‍त हुए, और बाद में शब्‍द बनकर। रेखाओं के द्वारा बात कहनी चीनी भाषा की विशेषता है। इन रेखांकनों को हैक्‍साग्राम कहा जाता है। शब्‍दों में लिखे गए सूत्र इन रेखांकनों की व्‍याख्या करने की खातिर बनाने पड़े।

शनिवार, 19 नवंबर 2011

कुरान-ए- शरीफ-ृ068)

कुरान शरीफ:-ओशो की प्रिय पुस्तके

इस्‍लाम उस परंपरा का हिस्‍सा है जिससे यहूदी और ईसाई धर्म पैदा हुआ। उसे इब्राहीम का धर्म कहते है। इब्राहीम का बेटा था इस्माइल। इब्राहीम को दूसरी पत्‍नी सारा से एक बेटा हुआ—इसाक। सारा के सौतेले पन से इस्माइल को बचाने की खातिर इब्राहीम इस्माइल को लेकर अरेबिया के एक गांव मक्‍का चले गए। उनके साथ एक इजिप्‍त का गुलाम हगर भी था। इब्राहीम और इस्माइल ने मिलकर क़ाबा का पवित्र आश्रम बनाया। ऐसा माना जाता था कि क़ाबा आदम का मूल आशियाना था। काबा में एक पुराना धूमकेतु गिरकर पत्‍थर बन गया था। कुरान के जिक्र के मुताबिक अल्‍लाह ने इब्राहीम को हुक्‍म दिया कि काबा को तीर्थ स्‍थान बनाया जाये। काबा में बहुत सी पुरानी मूर्तियां भी थी। जिन्‍हें अल्‍लाह की बेटियाँ कहा जाता था। उन देवताओं को काबा के पत्‍थर से ताकत मिलती थी।

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

दि सर्मन ऑन दि माउंट—(067)

दि सर्मन ऑन दि माउंट—ओशो की प्रिय पुस्तके

ये सूत्र ईसाई धर्म ग्रंथ ‘’पवित्र बाइबल’’ का एक अंश हे। बाइबल, अंत: प्रज्ञा से परि पूर्ण विभिन्‍न व्‍यक्‍तियों के वक्‍तव्‍यों का संकलन है। जो लगभग सौ साल की अवधि में संकलित किया गया। जैसे जोशुआ, सैम्‍युएल, सेंट मैथ्‍यूज इत्‍यादि। जीसस जब सत्‍य को उपलब्‍ध हुए तब उन्‍होंने अपना सत्‍य लोगों को संप्रेषित करना चाहा। समय-समय पर भिन्‍न-भिन्‍न समूह के साथ उनका जो उद्बोधन हुआ वह सब बायबल में संकलित है। ये वक्‍तव्‍य उनके शिष्‍यों ने अपनी स्‍मृति के अनुसार संकलित किये है।


बाइबल के दो हिस्‍से है: दि ओल्‍ड टैस्टामैंट ओ दि न्‍यू टैस्टामैंट। ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ न्‍यू टैस्टामैंट में ग्रंथित है जो सेंट मैथ्‍यू ने संकलित किया है।

लॉग पिलग्रिमेज—शिवपुरी बाबा (066)

दि लाईफ ऐंड टीचिंग ऑफ श्री गोविंदान्‍द भारती-(नान एक शिवपुरी बाबा)

ओशो की प्रिय पुस्तके

कभी-कभी किसी सिद्ध पुरूष के बारे में ऐसा घटता है कि उनकी देशना से भी अधिक प्रभावशाली होता है उनका जीवन। जो पहुंचे वे बात तो एक ही कहते है क्‍योंकि सबका अंतिम अनुभव एक जैसा होता है। लेकिन जिस राह से सयाने पहुँचे है वे राहें अलग होती है। शिवपुरी बाबा इसी कोटि के योगी है जिनके जीवन का वर्णन करने के लिए एक ही शब्‍द काफी है: ‘’अद्भत’’

केरल प्रांत, सन् 1826, एक ब्राह्मण परिवार में जुड़वाँ बच्‍चे पैदा हुए उनमें एक लड़का और एक लड़की। यह परिवार नंबुद्रीपाद ब्राह्मण था। याने कि उसी जाति का जिसके आदि शंकराचार्य थे। वह लड़का पैदा होते ही मुस्‍कुराया, रोया नहीं। उसके दादा उच्‍युत्‍म विख्‍यात ज्‍योतिषी थे। उन्‍होंने बालक की कुंडली देखकर बताया कि कोई बहुत बड़ा योगी पैदा हुआ है। उसका नाम रखा गया गोविन्‍दा। जब वह 18 साल का हुआ तो उसके दादा ने संन्‍यास लिया और वे वन की और प्रस्‍थान करने को तैयार हुए। उस समय गोविन्‍दानंद ने उनके साथ जाने की तैयारी की।

बुधवार, 16 नवंबर 2011

समयसार—आचार्य कुन्‍दकुन्‍द-065

समयसार—आचार्य कुन्‍दकुन्‍द

(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

दिगम्‍बर जैन संप्रदाय का महान ग्रंथ समयसार जैन परंपरा के दिग्‍गज आचार्य कुन्द कुन्द द्वारा रचित है। दो हजार वर्षों से आज तक दिगम्‍बर साधु स्‍वयं को कुन्‍कुन्‍दाचार्य की परंपरा का कहलाने का गौरव अनुभव करते है।

जैसी की भारत की अध्‍यात्‍मिक परंपरा रही है, अध्‍यात्‍म-ग्रंथों के रचेता स्‍वयं के व्‍यक्‍तिगत जीवन के संबंध में कभी-कभी उल्‍लेख नहीं करते। आचार्य कुन्‍दकुन्‍द भी उसके अपवाद नहीं है। चूंकि उनकी कोई ऐतिहासिक जानकारी नहीं है। उनके बारे में विभिन्‍न कथाएं प्रचलित है। उन कथाओं में ऐतिहासिक तथ्‍य चाहे कम हों, लेकिन सत्‍य बहुत है। कथाओं में वर्णित आलेखों तथा कुछ शिलालेखों को जोड़ कर जो कहानी बनती है वह इस प्रकार है:

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

गॉड स्‍पीक्‍स—मेहर बाबा-064


गॉड स्‍पीक्‍स—मेहर बाबा

ओशो की प्रिय पुस्तके

यह एक अदभुत किताब है जो मौन से प्रगट हुई है। जो व्‍यक्‍ति आजीवन निःशब्द में डूबा हुआ था उसने उस परम मौन को और परात्‍पर की अनुभूति को शब्‍दों में ढाला है।

यह जिक्र हो रहा है बीसवीं सदी के प्रारंभ में हुए विश्‍व विख्‍यात संत मेहर बाबा का। उनकी किताब ‘’गॉड स्‍पीक्‍स’’ ओशो की मनपसंद किताबों में शामिल है।


मेहर बाबा जबान से कभी नहीं बोले, लेकिन उंगलियों से हमेशा बोलते थे। उनके पास ए, बी, सी के अक्षरों का एक तख्‍ता था। और उस तख्‍ते पर बिजली की तरह नाचती हुई उनकी उंगलियां उनका आशय लोगों तक पहुंचा देती। काश उस जमाने में कम्‍पयूटर होता। मेहर बाबा का संदेश वे खुद ही टाइप कर के संप्रेषित कर देते। जो भी हो, जिस ढंग से यह किताब संकलित और संपादित की गई है वह अपने आप में एक आश्‍चर्य है। किताब के संपादक आइ वी डयूस और जॉन स्‍टीवन्‍स खुद हैरान है कि यह असंभव काम उन्‍होंने कैसे कर लिया। अक्षर-तख्‍त पर द्रुत गति चलती हुई मेहर बाबा की उंगलियों के शब्‍दों को समझकर साथ ही साथ वे उन्‍हें टाइप करते गये। उनकी पांडुलिपि को बाद में स्‍वयं मेहर बाबा ने संपादित किया।

सोमवार, 14 नवंबर 2011

दी कन्‍फेशन्‍स ऑफ सेंट ऑगस्‍टीन-(063)

 दी कन्‍फेशन्‍स ऑफ सेंट ऑगस्‍टीन

संत अगस्‍तीन एक महान संत और बिशप था। जो सन 354 में न्‍यूमिडिया में पैदा हुआ जिसे अब अल्‍जीरिया कहते है।

अगस्‍तीन के पिता जमीदार थे। और पेगन (गैर-धार्मिक) थे। अगस्‍तीन की मां मोनिका का प्रभाव उन पर अधिक था। कन्‍फेशन्‍स में मोनिका का जिक्र बार-बार आता है। और कुछ परिच्‍छेद तो केवल उसी के बारे में है। मोनिका की बदौलत अगस्‍तीन ईसाई धर्म में शिक्षित हुआ। अगस्‍तीन एक मेधावी युवक था। इसलिए उसके पिता उसे वकील बनाना चाहते थे। वह जब अठारह साल का हुआ तो पिता ने उसे कार्थाज नामक एक बड़े शहर में उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए भेज दिया। लेकिन वहां पर उस मायावी नगरी के मोह जाल में फंस गया और एक स्‍त्री के साथ अनैतिक संबंध बना बैठा। यह संबंध पंद्रह साल तक चला। और उस स्‍त्री से उसे ऐ बैटा भी पैदा हुआ। जिसे अगस्‍तीन ‘’मेरे पाप का फल’’ कहते है। इस समय उनकी उम्र उन्‍नीस साल थी।

रविवार, 13 नवंबर 2011

1--लाइट ऑन का पाथ--एम0 सी0(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

1--लाइट ऑन का पाथ--एम0 सी0
उन दिनों लेखकों को उनके लेखन के लिए पुरस्कार नहीं दिया जाता था। नोबेल पुरस्कार या साहित् अकादमियां किसी के ख्याल में नहीं थी। क्योंकि रचना क्रम में लेखक सिर्फ एक वाहक था। ज्ञान तो आस्तित् में भरा पडा है। उससे थोड़ा सुर साध लिया बस।