श्रद्धावान
योगी श्रेष्ठ
है (अध्याय—6) प्रवचन—इक्कीसवां
तपस्विभ्योऽधिको
योगी ज्ञानिभ्योऽपि
मतोऽधिकः।
कर्मिभ्यश्चाधिको
योगी तस्माद्योगी
भवार्जुन।।
46।।
योगी
तपस्वियों
से श्रेष्ठ है, शास्त्र के
ज्ञान वालों
से भी श्रेष्ठ
माना गया है, तथा सकाम
कर्म करने
वालों से भी
योगी श्रेष्ठ
है, इससे
हे अर्जुन, तू योगी हो।
तपस्वियों
से भी श्रेष्ठ
है, शास्त्र
के ज्ञाताओं
से भी श्रेष्ठ
है, सकाम
कर्म करने
वालों से भी
श्रेष्ठ है, ऐसा योगी
अर्जुन बने, ऐसा कृष्ण
का आदेश है।
तीन से
श्रेष्ठ कहा
है और चौथा
बनने का आदेश
दिया है। तीनों
बातों को
थोड़ा-थोड़ा देख
लेना जरूरी
है।
तपस्वियों
से श्रेष्ठ
कहा योगी को।
साधारणतः
कठिनाई मालूम
पड़ेगी।
तपस्वी से
योगी श्रेष्ठ? दिखाई तो
ऐसा ही पड़ता
है साधारणतः
कि तपस्वी श्रेष्ठ
मालूम पड़ता है,
क्योंकि
तपश्चर्या
प्रकट चीज है
और योग अप्रकट।
तपश्चर्या
दिखाई पड़ती है
और योग दिखाई
नहीं पड़ता है।
योग है अंतर्साधना,
और
तपश्चर्या है बहिर्साधना।