हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा
प्रेम मुख विहीन आता है—(अध्याय—03)
प्रेम मुख विहीन आता है—(अध्याय—03)
लाओत्से
हाउस (ओशो-गृह)
एक महाराजा की
सम्पति था।
जिसका चुनाव
इसके बीच खड़े
बादाम के उस
विशाल पेड़ के
कारण किया गया
था। जिसके रंग
गिरगिट की
भांति लाल से केसरी
पीले फिर हरे
रंग में बदल
जाते है। इसके
मौसम कुछ सप्ताह
उपरान्त
बदलते रहते
है। और फिर भी
मैंने इसकी
शाखाओं को कभी
पत्र-विहीन
नहीं देखा।
उधर एक पत्ता
गिरा कि नया
चमकीला हरा
पत्ता उसका
स्थान लेने
को आतुर होता
है। पेड़ के
पत्तों की
छाया के नीचे
एक छोटा सा
झरना है और एक
रॉक गार्डन
है। जिसका
निर्माण एक
सनकी दीवाने
इटालियन ने
किया था। जो
उसके बाद कभी
दिखाई नहीं
दिया।
कुछ ही
वर्षों में यह
उद्यान ओशो के
जादुई स्पर्श
से एक जंगल बन
गया है—यहां
बांस के उपवन
है, हंस-सरोवर
है। एक श्वेत
संगमरमर का जल
प्रपात है जो
रात्रि में
नीले प्रकाश
से जगमगा उठता
है और जैसे ही
जल छोटे-छोटे
कुंडों में से
गुजरता है, वे
कुंड सुनहरे
पीले प्रकाश
से चमकने लगते
है। राजस्थान
की खदानों से
लाई गई विशाल
चट्टानें,
लाइब्रेरी की ग्रेनाइट
पत्थर से बनी
काली दीवारों
की पृष्ठभूमि
में सुर्य की
रोशनी में
जगमगा उठती
है।