धर्म
और संप्रदाय
में भेद—(प्रवचन—पंद्रहवां)
दिनांक: 15 मार्च, 1974; श्री रजनीश आश्रम, पूना
सूत्र:
साधो
देखो जग
बौराना।
सांची
कहौं तो मारन धावै, झूठे जग
पतियाना।।
हिंदू
कहत है
राम हमारा, मुसलमान रहमाना।
आपस
में दोउ लड़े मरतु हैं, मरम
कोई नहिं
जाना।।
बहुत
मिले मोहि
नेमी धरमी, प्रात करै
असनाना।
आतम
छोड़ि
पखाने पूजैं, तिनका थोथा ग्याना।।
आसन
मारि डिम्भ
धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर
पाथर पूजन लागे, तीरथ वर्त
भुलाना।।
माला
पहिरे
टोपी पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी
सबदै गावत
भूलै, आतम खबर न
जाना।।
घर घर मंत्र
जो देत
फिरत है, माया के अभिमाना।
गुरुवा
सहित सिष्य
सब बूड़ें, अंतकाल पछिताना।।
बहुतक
देखे पीर
औलिया, पढ़ै किताब कुराना।
करै
मुरीद कबर बतलावै, उनहुं खुदा न
जाना।।
हिंदू
की दया मेहर तुरकन की, दोनों घर से
भागी।
वह करै जिबह
वां झटका मारै, आग दोउ घर
लागी।।
या
विधि हंसी चलत
है हमको, आप कहावै
स्याना।
कहै
कबीर सुनो भाई
साधो, इनमें
कौन दिवाना।।