जो बोले सो हरि कथा-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन-ग्याहरवां-(स्वानुभव का दीया)
श्री रजनीश आश्रम, पूना, प्रातः, दिनांक ३१ जुलाई,
१९८०
पहला प्रश्न: भगवान, लगता है आचार्य श्री तुलसी आपके प्रवचनों और वक्तव्यों से काफी तिलमिला गए
हैं, क्योंकि कई बार बहुत लोगों के बीच में आपने कहा कि
आचार्य तुलसी आपसे एकांत में ध्यान सीखना चाहते थे। और उनके युवराज शिष्य मुनि
नथमल को आपने मुनि थोथूमल कहा। इससे गुरु-शिष्य की प्रतिष्ठा को काफी धक्का पहुंचा
है और बौखलाहट में उन्होंने संपूर्ण महाराष्ट्र में आपकी विकृत विचार-धारा का
सामना और शुद्धिकरण करने के लिए अपनी साध्वियों के पांच समूह जगह-जगह भेजे हैं। ये
समूह शास्त्र-शुद्ध प्रेक्षा-ध्यान शिविर आयोजित करेंगे। उनकी एक सैंतालीस वर्षीय
साध्वी श्री चांदकुमारी दस हजार मील की यात्रा करके पूना पधारी हैं।
भगवान, यह प्रेक्षा-ध्यान
क्या है? इस विधि से क्या आत्मशुद्धि व पर-शुद्धि हो सकती है?
और कृपया यह भी बताएं कि क्या भगवान महावीर का ध्यान भी इसी प्रकार
का था?
चैतन्य कीर्ति!