तीसरी विधि:
‘हे
प्रिये, ज्ञान
और अज्ञान,
अस्तित्व
और अनस्तित्व
पर ध्यान दो।
फिर दोनों को
छोड़ दो ताकि
तुम हो सको।’
ज्ञान और
अज्ञान, अस्तित्व
और अनस्तित्व
पर ध्यान दो।
जीवन के
विधायक पहलू
पर ध्यान करो
और ध्यान को
नकारात्मक
पहलू पर ले
जाओ, फिर दोनों
को छोड़ दो क्योंकि
तुम दोनों ही
नहीं हो।
फिर दोनों
को छोड़ सको
ताकि तुम हो
सको।
इसे इस तरह
देखो:
जन्म पर ध्यान
दो। एक बच्चा
पैदा हुआ,
तुम पैदा हुए।
फिर तुम बढ़ते
हो, जवान
होते हो—इसे
पूरे विकास पर
ध्यान दो।
फिर तुम बूढ़े
होते हो। और
मर जाते हो।
बिलकुल आरंभ
से, उस
क्षण की कल्पना
करो जब तुम्हारे
पिता और माता
ने तुम्हें
धारण किया था।
और मां के
गर्भ में
तुमने प्रवेश
किया था।
बिलकुल पहला
कोष्ठ। वहां
से अंत तक
देखो, जहां
तुम्हारा
शरीर चिता पर
जल रहा है। और
तुम्हारे
संबंधी तुम्हारे
चारों और खड़े
है। फिर दोनों
को छोड़ दो, वह जो पैदा
हुआ और वह जो
मरा। वह जो
पैदा हुआ और वह
जो मरा। फिर
दोनों को छोड़
दो और भीतर
देखो। वहां
तुम हो, जो
न कभी पैदा
हुआ और न कभी
मरा।