ऐसी मनुष्यता जमीन पर कभी नहीं थी।
लेकिन आज तक जो मनुष्य को अब तक गलत उसूलों पर ढाला गया है।
समाज ऊंचा उठेगा उसी दिन ,
जिस दिन हम मनुष्य की सहजता को स्वीकार कर लगें,
सरलता को, उसके व्यक्तित्व में जो भी है।
उसको स्वीकार कर लेंगे, उसको समझेंगे,
उस पर मेडि़टेट करेंगे,
उस पर ध्यान को विकसित करेंगे।
दुनिया में संयम की नहीं, ध्यान की जरूरत है।
आदमी को कंट्रोल की नहीं, मेडि़टेशन की जरूरत है।
आदमी को जागना सिखाना है।
और अगर हम जागना सिखा सकें,
तो एक दूसरी मनुष्यता पैदा हो जाएगी, मनुष्यता है।
वह गलत सिद्धांतों के कारण गलत है।