ध्वनि-संबंधी
पहली विधि:
‘’हे
देवी, बोध के
मधु-भरे दृष्टि
पथ में संस्कृत
वर्णमाला के
अक्षरों की
कल्पना करो—पहले
अक्षरों की
भांति, फिर
सूक्ष्मतर
ध्वनि की
भांति, और फिर
सूक्ष्मतर
भाव की भांति।
और तब, उन्हें
छोड़कर मुक्त
होओ।‘’
शब्द
ध्वनि है। विचार एक
अनुक्रम में,
तर्कयुक्त
अनुक्रम में
बंधे, एक खास
ढांचे में
बंधे शब्द
है। ध्वनि
मूलभूत है। ध्वनि
से शब्द बनते
है और शब्दों
से विचार बनते
है। और तब
विचार से धर्म
और दर्शनशास्त्र
बनता है। सब
कुछ बनता है।
लेकिन गहराई
में ध्वनि
है।
यह
विधि विपरीत
प्रक्रिया का
उपयोग करती
है।
शिव
कहते है: ‘’हे
देवी, बोध के
मधु-भरे दृष्टि
पथ में संस्कृत
वर्णमाला के
अक्षरों की
कल्पना करो—पहल
अक्षरों की
भांति, फिर
सूक्ष्मतर
ध्वनि की
भांति, फिर
सूक्ष्म तम
भाव की भांति।
और जब उन्हें
छोड़कर मुक्त
होओ।‘’