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शनिवार, 30 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—37 (ओशो)

  ध्‍वनि-संबंधी पहली विधि:
     ‘’हे देवी, बोध के मधु-भरे दृष्‍टि पथ में संस्‍कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्‍पना करो—पहले अक्षरों की भांति, फिर सूक्ष्‍मतर ध्‍वनि की भांति, और फिर सूक्ष्‍मतर भाव की भांति। और तब, उन्‍हें छोड़कर मुक्‍त होओ।‘’
      शब्‍द ध्‍वनि है। विचार एक अनुक्रम में, तर्कयुक्‍त अनुक्रम में बंधे, एक खास ढांचे में बंधे शब्‍द है। ध्‍वनि मूलभूत है। ध्‍वनि से शब्‍द बनते है और शब्‍दों से विचार बनते है। और तब विचार से धर्म और दर्शनशास्‍त्र बनता है। सब कुछ बनता है। लेकिन गहराई में ध्‍वनि है।
      यह विधि विपरीत प्रक्रिया का उपयोग करती है।
      शिव कहते है: ‘’हे देवी, बोध के मधु-भरे दृष्टि पथ में संस्‍कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्‍पना करो—पहल अक्षरों की भांति, फिर सूक्ष्‍मतर ध्‍वनि की भांति, फिर सूक्ष्‍म तम भाव की भांति। और जब उन्‍हें छोड़कर मुक्‍त होओ।‘’

शुक्रवार, 29 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—36 (ओशो)

देखने के संबंध में सातवीं ओशो
               ‘’किसी विषय को देखो, फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्‍टि हटा लो, और फिर धीरे-धीरे उससे अपने विचार हटा लो। तब।‘’
      ‘’किसी विषय को देखो..........।‘’
      किसी फूल को देखो। लेकिन याद रहे कि इस देखने का अर्थ क्‍या है। केवल देखो, विचार मत करो। मुझे यह बार-बार कहने की जरूरत नहीं है। तुम सदा स्‍मरण रखो कि देखने का देखना भर है; विचार मत करो। अगर तुम सोचते हो तो वह देखना नहीं है; तब तुमने सब कुछ दूषित कर दिया। यह शुद्ध देखना है महज देखना।
      ‘’किसी विषय को देखा.......।‘’
      किसी फूल को देखो। गुलाब को देखा।
      ‘’फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्‍टि हटा लो।‘’

गुरुवार, 28 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—35 (ओशो)

देखने के संबंध में छट्टी ओशो
            ‘’किसी गहरे कुएं के किनारे खड़े होकर उसकी गहराइयों में निरंतर देखते रहो—जब तक विस्‍मय-विमुग्‍ध न हो जाओ।‘’    
       ये विधियां थोड़े से फर्क के साथ एक जैसी है।
       ‘’किसी गहरे कुएं के किनारे खड़े होकर उसकी गहराईयों में निरंतर देखते रहो—जब तक विस्‍मय-विमुग्‍ध न हो जाओ।‘’
       किसी गहरे कुएं में देखो; कुआं तुममें प्रतिबिंबित हो जाएगा। सोचना बिलकुल भूल जाओ; सोचना बिलकुल बंद कर दो; सिर्फ गहराई में देखते रहो। अब वे कहते है कि कुएं की भांति मन की भी गहराई है। अब पश्‍चिम में वे गहराई का मनोविज्ञान विकसित कर रहे है। वे कहते है कि मन कोई सतह पर ही नहीं है। वह उसका आरंभ भर है। उसकी गहराइयां है, अनेक गहराइयां है, छिपी गहराइयां है।

पागल और कुत्‍ता संबंध—एक विवेचन

पिछले दिनों हमारा पालतू कुत्ता जब 16 साल की आयु पा कर मरा। उसका तिल-तिल मोत के करीब जाते शरीर को मैने बहुत नजदीक से देखा, हिलती गर्दन, धुँधली हुई आंखे। रात को जब वह उठ कर सोच आदि के लिए अपने बिस्‍तरे से बहार आता। उन शरद रातों में भी वह बिस्‍तरे में शोच आदि नहीं करता था। और मनुष्‍य की मृत्‍यु....महीनों बिस्‍तर में गंद मचा-कर मरता है। और उस सुबह कितनी सहजता से उसका मरना। मरने से आधा घंटे पहले जब मैं उससे मिलने गया। तब न जाने उसने कोन सी भाषा में मुझ से कुछ कहना चाहा, न तो वो उसकी भाषा था। और न हमारी। ऊँ....ऊँ......ओ...ओ.....अई.....ई......करके करीब 15 मिनट तक मुझे कुछ कहता रहा। मैं उसके सर और गर्दन पर प्‍यास से हाथ फेरता रहा। उसने अपनी आंखें बंद कर ली। मुझे नहीं पता था कि वह अपनी आखरी विदाई मुझे ले रहा है। लेकिन इतना जरूरत जानता हूं उसकी मृत्‍यु में ऐ विभेद था। वह किसी कुत्‍ते की मोत नहीं मरा था। उसमें एक होश था, जागरण था, उसे समझ थी कि मुझ अपने रहने के स्‍थान को गंदा नहीं करना। उसका मन काम कर रहा था। और मुझे विश्‍वास ही नहीं यकीन है कि उसकी चेतना ने विकास किया है। और वह अपनी योनि से उच्‍च योनि में गति कर गया। और संभावना है, वह मनुष्‍य के संग साथ रहा है। उसमें मन का विकास हो गया था, वह चाह कर खाना खाता था, उसकी अपनी पंसद ना पसंद थी। वह रूठना मनना जानता था। वह प्‍यार और उसका इजहार कर सकता था।

बुधवार, 27 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—34 (ओशो)

देखने के संबंध में पांचवी विधि:
     ‘’जब परम रहस्‍यमय उपदेश दिया जा रहा हो, उसे श्रवण करो। अविचल, अपलक आंखों से; अविलंब परम मुक्‍ति को उपलब्‍ध होओ।‘’
     ‘’जब परम रहस्‍यम उपदेश दिया जा रहा हो। उसे श्रवण करो।‘’
      यह एक गुह्म विधि है। इस गुह्म तंत्र में गुरु तुम्‍हें अपना उपदेश या मंत्र गुप्‍त ढंग से देता है। जब शिष्‍य तैयार होता है तब गुरु उसे उसकी निजता में वक परम रहस्‍य या मंत्र संप्रेषित करता है। वह उसके कान में चुपचाप कह दिया जाएगा। फुसफुसा दिया जाएगा। यह विधि उस फुसफुसाहट से संबंध रखती है।
      ‘’जब परम रहस्‍यमय उपदेश दिया जा रहा हो, उसे श्रवण करो।‘’

मंगलवार, 26 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—33 (ओशो)

देखने के संबंध में चौथी विधि:
‘’बादलों के पार नीलाकाश को देखने से शांति को सौम्‍यता को उपलब्‍ध होओ।‘’    मैंने इतनी बातें इसलिए बताई कि ये विधियां बहुत सरल है। और उन्‍हें प्रयोग करके भी तुम्‍हें कुछ नहीं मिलेगा। और तब तुम कहोगे, ये किस ढंग की विधियां है। तुम कहोगे कि इन विधियों को तो हम अपने आप ही कर सकते है। केवल आकाश को, बादलों के पर नीलाकाश को देखते-देखते कोई शांत हो जाए, आप्‍तकाम हो जाए।
       बादलों के पार नीलाकाश को तुम देखते रह सकते हो, और कुछ भी घटित नहीं होगा। तब तुम कहोगे कि ये कैसी विधियां है। तुम कहोगे कि शिव के मन में जो भी आता है वे बोल देते है; उसमे कोई तर्क या बुद्धि नहीं है। यह कैसी विधि कि बादलों के पार नीलाकाश को देखते-देखते शांति को उपलब्‍ध हो जाओ।

सोमवार, 25 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—32 (ओशो)

तंत्र-सूत्र—विधि—32 (ओशो)
देखने के संबंध में तीसरी विधि:
            ‘’किसी सुंदर व्‍यक्‍ति या सामान्‍य विषय को ऐसे देखो जैसे उसे पहली बार देख रहे हो।‘’
       पहले कुछ बुनियादी बातें समझ लो, तब इस विधि का प्रयोग कर सकते हो। हम सदा चीजों को पुरानी आंखों से देखते है। तुम अपने घर आते हो तो तुम उसे देखे बिना ही देखते हो। तुम उसे जानते हो, उसे देखने की जरूरत नहीं है। वर्षों से तुम इस घर में सतत आते रहे हो। तुम सीधे दरवाजे के पास आते हो, उसे खोलते हो और अंदर दाखिल हो जाते हो। उसे देखने की क्‍या जरूरत है?

रविवार, 24 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—31 (ओशो)


देखने के संबंध में दूसरी विधि:
      ‘’किसी कटोरे को उसके पार्श्‍व-भाग या पदार्थ को देखे बिना देखो। थोड़े ही क्षणों में बोध का उपलब्‍ध हो जाओ।‘’
      किसी भी चीज को देखो। एक कटोरा या कोई भी चीज काम देगी। लेकिन देखने की गुणवत्‍ता भिन्‍न हो।
      ‘’किसी कटोरे को उसके पार्श्‍व-भाग या पदार्थ को देखे बिना देखो।‘’
      किसी विषय को पूरा का पूरा देखो, उसे टुकड़ो में मत बांटो। क्‍यो? इसलिए कि जब तुम किसी चीज को हिस्‍सों में बांटते हो तो आंखों को हिस्‍सों में देखने का मौका मिलता है। चीज को उसकी समग्रता में देखो। तुम यह कह सकते हो।

शुक्रवार, 22 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—30 (ओशो)

देखने के संबंध में कुछ विधियां:
      
‘’आंखें बंद करके अपने अंतरस्‍थ अस्‍तित्‍व को विस्‍तार से देखो। इस प्रकार अपने सच्‍चे स्‍वभाव को देख लो।‘’
     ’आंखें बंद करके......।‘’
       अपनी आंखें बंद कर लो। लेकिन आंखे बंद करना ही काफी नहीं है। समग्र रूप से बंद करना है। उसका अर्थ है कि आँखो को बंद करते उनकी गति भी रोक दो।
अन्‍यथा आंखें बाहर की ही चीजें देखती रहेगी। बंद आंखें भी चीजों को चीजों के प्रतिबिंबों को देखती है। असली चीजें तो नहीं रहती। लेकिन उनके चित्र, विचार, संचित यादें तब भी सामने तैरती रहेंगी। ये चित्र ये यादें भी बाहर की है। इसलिए जब ते वे तैरती रहेगी तब तक आंखों को समग्ररूपेण बंद मत समझो। समग्र रूप से बंद होने का अर्थ है कि अब देखने को कुछ भी नहीं है।

गुरुवार, 21 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—29 (ओशो)

अचानक रूकने की कुछ विधियां:     
पांचवी  विधि:
थोड़े से शब्‍दों की यह विधि एक अर्थ में बहुत सरल है और दूसरे अर्थ में अत्‍यंत कठिन। यह पांचवी विधि कहती है:
      ‘’भक्‍ति मुक्‍त करती है।‘’
            थोड़े से शब्‍द: भक्‍ति मुक्‍त करती है। सच में तो यह एक ही शब्‍द है। क्योंकि ‘’मुक्‍त करती है।‘’ भक्‍ति का परिणाम है। भक्‍ति का क्‍या मतलब है।
      विज्ञान भैरव तंत्र में दो कोटि की विधियां है। एक कोटि उनके लिए है जो मस्‍तिष्‍क प्रधान है। विज्ञानोन्‍मुख है। और दूसरी उनके लिए है जो ह्रदय प्रधान है। भावोन्‍मुख है, कवि है। और दो ही तरह के मन है—वैज्ञानिक मन और काव्यात्मक मन। और इनमें जमीन आसमान का अंतर है। वे एक दूसरे से की नहीं मिलते है। मिलन असंभव है। कभी-कभी वे समानांतर चलते है। लेकिन मिलते कही नहीं।

मंगलवार, 19 जून 2012

कोई नहीं मानता है गुरु की बात?

ओशो ने अपने धर्म को संप्रदाय की लकीर से बचाने की हर संभव कोशिश की। ताकि कोई लकीर का फकीर न बन सके। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति अनूठा है। और उसे चलना भी अपने ही स्‍थान से है। फिर वह नकल क्‍या करे। केवल मार्ग को समझ, अपनी स्‍थिति को समझें और चल पड़े। ओशो पूरी उम्र हम लोगों को जगाते रहे और बताता रहे कि हम कहां पर खड़े और किसी और जाना। प्रत्‍येक प्रवचन यही कहता है। परन्‍तु मनुष्‍य चाल बाज है। उसका मन और भी चतुर चालाक हो गया। वह कहीं न कही उसमे से छेद निकाल ही लेता है। और तो और देखिये कितनी, बेबूझी पहली है। पूरी उम्र आडम्बर और गुरु डोम से बचाने और शास्‍त्र के पीछे नहीं भागने के लिए ओशो प्रयास करते रहे लेकिन कुछ उनके ही परिवार के लोग दुनियां को ब्रह्म ज्ञान दे रहे है। खुद ओशो भी जो नहीं जानते थे। ये वो भी लोगों को बता रहे है। कितनी बड़ी विडम्बना है।

रविवार, 17 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—28 (ओशो)

अचानक रूकने की कुछ विधियां:     
चौथी विधि:
 ‘कल्‍पना करो कि तुम धीरे-धीरे शक्‍ति या ज्ञान से वंचित किए जा रहे हो। वंचित किए जाने के क्षण में अतिक्रमण करो।‘
      इस विधि का प्रयोग किसी यथार्थ स्‍थिति में भी किया जो सकता है। और तुम ऐसी स्‍थिति की कल्‍पना भी कर सकते हो। उदाहरण के लिए लेट जाओ, शिथिल हो जाओ। और भाव करो कि तुम्‍हारा शरीर मर रहा है। आंखें बंद कर लो और भाव करो कि मैं मर रहा हूं। जल्‍दी ही तुम महसूस करोगे कि मेरा शरीर भारी हो रहा है। भाव करो: ‘मैं मर रहा हूं, मैं मर रहा हूं, मैं मर रहा हूं।‘

शनिवार, 16 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—27 (ओशो)

अचानक रूकने की कुछ विधियां:     
तीसरी विधि:
      ‘’पूरी तरह थकनें तक घूमते रहो, और तब जमीन पर गिरकर, इस गिरने में पूर्ण होओ।‘
      वही है, विधि वही है।
      पूरी तरह थकनें तक घूमते रहो।
      बस वर्तुल में घूमों। कुदो, नाचो, दौड़ों, जब तक थ न जाओ घूमते रहा। यह घूमना तब तक जारी रहे जब तक ऐसा न लगे कि और एक कदम उठना असंभव है। लेकिन यह ख्‍याल रखो कि मन कह सकता है कि अब पूरी तरह थक गए। मन की बिलकुल मत सुनो। चलते चलो, दौड़ते रहो। नाचते रहो, कूदते रहो।

शुक्रवार, 15 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि—26 (ओशो)

 अचानक रूकने की कुछ विधियां:     
दूसरी विधि:
      ‘’जब कोई कामना उठे, उसे पर विमर्श करो। फिर, अचानक, उसे छोड़ दो।‘’
      यह पहली विधि का ही दूसरा आयाम है।
      ‘’जब कोई कामना उठे, उस पर विमर्श करो। अचानक, उसे छोड़ दो।‘’
      तुम्‍हें कोई इच्‍छा होती है—चाहे वह कामवासना हो, चाहे प्रेम की इच्‍छा हो, चाहे भोजन की इच्‍छा हो। तुम्‍हें इच्‍छा होती है तो उस पर विमर्श करो। जब यह सूत्र कहता है कि विमर्श करो तो उसका मतलब होता है कि उसके पक्ष या विपक्ष में विचार मत करो। बल्‍कि देखो कि वह इच्‍छा क्‍या है।

गुरुवार, 14 जून 2012

तंत्र-सूत्र— विधि—25 (ओशो)

अचानक रूकने की कुछ विधियां:
पहली विधि:
      ‘’जैसे ही कुछ करने की वृति हो , रूक जाओ।‘’
            ये सारी विधियां मध्‍य में रूकने से संबंधित है। जार्ज गुरजिएफ ने पश्‍चिम में इन विधियों को प्रचलित किया था, लेकिन उसे विज्ञान भैरव तंत्र का पता नहीं था। उसने ये विधियां तिब्‍बत में बौद्ध लामाओं  से सीखी थी। पश्‍चिम में उसने इन विधियों पर काम किया और अनेक साधक इन विधियों के द्वारा केंद्र को उपलब्‍ध हो गए। वह उन्‍हें स्‍टाप एक्सरसाइज‍, रूक जाने का प्रयोग कहता था। लेकिन इन प्रयोगों का स्‍त्रोत विज्ञान भैरव तंत्र है।

मंगलवार, 12 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-24 (ओशो)

केंद्रित होने की बारहवीं विधि:
      ‘’जब किसी व्‍यक्‍ति के पक्ष या विपक्ष में कोई भाव उठे तो उसे उस व्‍यक्‍ति पर मत आरोपित करे।‘’
      अगर हमें किसी के विरूद्ध घृणा अनुभव हो या किसी के लिए प्रेम अनुभव हो तो हम क्‍या करते है? हम उस घृणा या प्रेम को उस व्‍यक्‍ति पर आरोपित कर देते है। अगर तुम मेरे प्रति घृणा अनुभव करते हो तो उस घृणा के ही कारण तुम अपने को बिलकुल भूल जाते हो। और मैं तुम्‍हारा एक मात्र लक्ष्‍य या विषय बन जाता हूं। वैसे ही जब तुम मुझे प्रेम करते हो तो भी तुम अपने को बिलकुल ही भूल जाते हो। और मुझे अपना एक मात्र विषय बना लेते हो। तुम अपनी घृणा को प्रेम को या जो भी भाव हो, उसे मुझे पर प्रक्षेपित कर देते हो। उस दशा में तुम आंतरिक केंद्र को भूल जाते हो। और दूसरे को अपना केंद्र बना लेते हो।

तंत्र-सूत्र—विधि-23 (ओशो)

केंद्रित होने की ग्‍यारहवीं विधि:
      ‘’अपने सामने किसी विषय को अनुभव करो। इस एक को छोड़कर अन्‍य सभी विषयों की अनुपस्‍थिति को अनुभव करो। फिर विषय-भाव और अनुपस्‍थिति भाव को भी छोड़कर आत्‍मोपलब्‍ध होओ।‘’
      ‘’अपने सामने किसी विषय को अनुभव करो।‘’
            कोई भी विषय, उदाहरण के लिए एक गुलाब का फूल है—कोई भी चीज चलेगी।
      ‘’अपने सामने किसी विषय को अनुभव करो....’’
      देखने से काम नहीं चलेगा, अनुभव करना है। तुम गुलाब के फूल को देखते हो, लेकिन उससे तुम्‍हारा ह्रदय आंदोलित नहीं होता है। तब तुम गुलाब को अनुभव नहीं करते हो। अन्‍यथा तुम रोते और चीखते, अन्‍यथा तुम हंसते और नाचते। तुम गुलाब को महसूस नहीं कर रहे हो, तुम सिर्फ गुलाब को देख रहे हो।

सोमवार, 11 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-22 (ओशो)

केंद्रित होने की दसवीं विधि:
      ‘’अपने अवधान को ऐसी जगह रखो, जहां अतीत की किसी घटना को देख रहे हो और अपने शरीर को भी। रूप के वर्तमान लक्षण खो जायेगे, और तुम रूपांतरित हो जाओगे।‘’
      तुम अपने अतीत को याद कर रहे हो। चाहे वह कोई भी घटना हो; तुम्‍हारा बचपन, तुम्‍हारा प्रेम, पिता या माता की मृत्‍यु, कुछ भी हो सकता है। उसे देखो। लेकिन उससे एकात्‍म मत होओ। उसे ऐसे देखो जैसे वह किसी और जीवन में घटा है। उसे ऐसे देखो जैसे वह घटना पर्दे पर फिर घट रही हो, फिल्‍माई जा रही हो, और तुम उसे देख रहे हो—उससे अलग, तटस्‍थ साक्षी की तरह।
      उस फिल्‍म में, कथा में तुम्‍हारा बीता हुआ रूप फिर उभर जाएगा। यदि तुम अपनी कोई प्रेम-कथा स्‍मरण कर रहे हो, अपने प्रेम की पहली घटना, तो तुम अपनी प्रेमिका के साथ स्‍मृति के पर्दे पर प्रकट होओगे और तुम्‍हारा अतीत का रूप प्रेमिका के साथ उभर आएगा। अन्‍यथा तुम उसे याद न कर सकोगे।

शनिवार, 9 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-21( ओशो)

केंद्रित होने की नौवीं विधि:
      ‘’अपने अमृत भरे शरीर के किसी अंग को सुई से भेदो, और भद्रता के साथ उस भेदन में प्रवेश करो, और आंतरिक शुद्धि को उपलब्‍ध होओ।‘’
      यह सूत्र कहता है: ‘’अपने अमृत भरे शरीर के किसी अंग को सुई से भेदों.....।‘’
      तुम्‍हारा शरीर मात्र शरीर नहीं है, वह तुमसे भरा है, और यह तुम अमृत हो। अपने शरीर को भेदों, उसमें छेद करो। जब तुम अपने शरीर को छेदते, सिर्फ शरीर छिदता है। लेकिन तुम्‍हें लगता है कि तुम ही छिद गए। इसी से तुम्‍हें पीड़ा अनुभव होती है। और अगर तुम्‍हें यह बोध हो कि सिर्फ शरीर छिदा है, मैं नहीं छिदा हूं, तो पीड़ा के स्‍थान पर आनंद अनुभव करोगे।

तंत्र-सूत्र—विधि-20 (ओशो)

केंद्रित होने की आठवीं  विधि:
      ‘’किसी चलते वाहन में लयवद्ध झुलने के द्वारा, अनुभव को प्राप्‍त हो। या किसी अचल वाहन में अपने को मंद से मंदतर होते अदृश्‍य वर्तृलों में झुलने देने से भी।‘’
      दूसरे ढंग से यह वही है। ‘’किसी चलते वाहन में..........।‘’
      तुम रेलगाड़ी या बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे हो। जब यह विधि विकसित हुई थी तब बैलगाड़ी ही थी। तो तुम एक हिंदुस्तानी सड़क पर—आज भी सडकें वैसी ही है—बैलगाड़ी में यात्रा कर रहे हो। लेकिन चलते हुए अगर तुम्‍हारा सारा शरीर हिल रहा है तो बात व्‍यर्थ हो गई।

गुरुवार, 7 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-19 ( ओशो)

केंद्रित होने की सातवीं विधि:
      ‘’पाँवों या हाथों को सहारा दिए बिना सिर्फ नितंबों पर बैठो। अचानक केंद्रित हो जाओगे।‘’

चीन में ताओ वादियों ने सदियों से इस विधि को प्रयोग किया है। यह एक अद्भुत विधि है और बहुत सरल भी।
      इसे प्रयोग करो: ‘’पाँवों या हाथों को सहारा दिए बिना सिर्फ नितंबों पर बैठो। अचानक केंद्रित हो जाओगे।‘’

बुधवार, 6 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-18 (ओशो)

केंद्रित होने की छटवीं विधि:
      किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो; दूसरे विषय पर मत जाओ। यहीं विषय के मध्‍य में—आनंद।
      मैं फिर दोहराता हूं: ‘’किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो, दूसरे विषय पर मत जाओ, किसी दूसरे विषय पर ध्‍यान मत ले जाओ, यही विषय के माध्‍य में—आनंद।
      ‘’किसी विषय को प्रेम पूर्ण देखो........।‘’
      प्रेमपूर्वक में कुंजी है। क्‍या तुमने कभी किसी चीज को प्रेमपूर्वक देखा है? तुम हां कह सकते हो, क्‍योंकि तुम नहीं जानते कि किसी चीज को प्रेमपूर्वक देखने का क्‍या अर्थ है। तुमने किसी चीज को लालसा-भरी आंखों से देखा होगा। कामना पूर्वक देखा होगा। वह दूसरी बात है। वह बिलकुल भिन्‍न विपरीत बात है। पहले इस भेद को समझो।

मंगलवार, 5 जून 2012

‘’ओशो की शौर्य गाथा’’—स्‍वामी संजय भारती

ओशो किसी और तैयारी में थे--
      जैसा कि हमने पीछे देखा, धर्म और राजनीति की मशीनरी या तो ओशो के जबरदस्‍त विरोध में थी या मौन समर्थन में जिसे कोई खास समर्थन नहीं कहां जा सकता। लेकिन इस दौर में ज्‍यों-ज्‍यों उनकी आवाज ऊंची और पैनी होती गई, उनके कार्य के प्रति भारतीय समाज के धुरंधरों का ध्रुवीकरण होता गया। जहां राजनेता और धर्माचार्य उनके प्रति अपने वैमनस्‍य में सने हर कोशिश कर रहे थे कि उन्‍हें बोलने ही नहीं दिया जाए, उन्‍हें गोली ही क्‍यों न मार दी जाए, वही साहित्‍य और कला के क्षेत्र से जुड़े हुए प्रमुख नाम उनके पक्ष में आकर खड़े होते हुए—और उनका समर्थन नेहरू या शास्‍त्री की तरह मौन नहीं मुखर था।

सुभाष घई--फिल्‍म निर्माता

हम भारतीय लोग, दृष्‍टि कोण और विश्‍वास दोनों ही धरातलों पर अलग-अलग ढंग सक जीते है। हमारी सोच हमें अलग दिशा में ले जाती है तो हमारी मान्‍यताएं और हमारे संस्‍कार हमें दूसरी दिशा में ले जाते है। ऐसी उलझनों से हम तभी पार पा सकते है जब ओशो जैसे सद्गुरू मार्गदर्शक और मित्र हमारे साथ हों। हर व्‍यक्‍ति को अपने जीवन में पल-पल पर एक गुरु की जरूरत होती है। मगर किसी के लिए यह संभव नहीं है। कि वह बार-बार अपने गुरु के पास जाकर मार्ग दर्शन ले। मेरे लिए तो ओशो की किताबें, उनकी कैसेट्स ही गुरु, मित्र और मार्गदर्शक का काम करती है।

तंत्र-सूत्र—विधि-17 (ओशो)

केंद्रित होने की पांचवी विधि:
      ‘’मन को भूलकर मध्‍य में रहो—जब तक।‘’
      यह सूत्र इतना ही है। किसी भी वैज्ञानिक सूत्र की तरह यह छोटा है, लेकिन ये थोड़ से शब्‍द भी तुम्‍हारे जीवन को समग्ररतः: बदल सकते है।
          ‘’मन को भूल कर मध्‍य में रहो—जब तक।‘’
      ‘’मध्‍य में रहो।‘’—बुद्ध ने अपने ध्‍यान की विधि इसी सूत्र के आधार पर विकसित की। उनका मार्ग मज्झम निकाय या मध्‍य मार्ग कहलाता है। बुद्ध कहते है, सदा मध्‍य में रहो, प्रत्‍येक चीज में।

सोमवार, 4 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-16 (ओशो)

केंद्रित होने की चौथी विधि:
      ‘’हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुँचों।‘’
      प्रत्‍येक विधि किसी मन-विशेष के लिए उपयोगी है। जि विधि की अभी हम चर्चा कर रहे थे—तीसरी विधि, सिर के द्वारों को बंद करने वाली विधि—उसका उपयोग अनेक लोग कर सकते है। वह बहुत सरल है और बहुत खतरनाक नहीं है। उसे तुम आसानी से काम में ला सकते हो।
      यह भी जरूरी नहीं है कि द्वारों को हाथ से बंद करो; बंद करना भी जरूरी है। इसलिए कानों के लिए डाट और आंखों के लिए पट्टी से काम चल जाएगा असली बात यह कि कुछ क्षणों के लिए ये कुछ सेंकेंड के लिए सिर के द्वारों को पूरी तरह से बंद कर लो।

शनिवार, 2 जून 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-15

केंद्रित होने की तीसरी विधि:
           
     ‘’सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने पर आंखों के बीच का स्‍थान सर्वग्राही हो जाता है।‘’
     यह एक पुरानी से पुरानी विधि है और इसका प्रयोग भी बहुत हुआ है। यह सरलतम विधियों में एक है। सिर के सभी  द्वारों को, आँख, कान, नाक, मुंह, सबको बंद कर दो। जब सिर के सब द्वार दरवाजे बंद हो जाते है तो तुम्‍हारी चेतना तो सतत बहार बह रही है। एकाएक रूक जाती है। ठहर जाती है। वह अब बाहर नहीं जा सकती।

तंत्र-सूत्र—विधि-14



दूसरे सूत्र के साथ भी यही तरकीब, वही वैज्ञानिक आधार, यही प्रक्रिया काम करती है:
     अपने पूरे अवधान को अपने मेरुदंड के मध्‍य में कमल-तंतु सी कोमल स्‍नायु में स्‍थित करो। और इसमे रूपांतरित हो जाओ।
     इस सूत्र के लिए, ध्‍यान की इस विधि के लिए तुम्‍हें अपनी आंखे बंद कर लेनी चाहिए। और अपने मेरुदंड को, अपनी रीढ़ की हड्डी को देखना चाहिए, देखने का भाव करना चाहिए। अच्‍छा हो कि किसी शरीर शास्‍त्र की पुस्‍तक में या किसी चिकित्‍सालय या मेडिकल कालेज में जाकर शरीर की संरचना को देखो-समझ लो, तब आंखे बंद करो और मेरुदंड पर अवधान लगाओ। उसे भीतर की आँखो से देखो और ठीक उसके मध्‍य से जाते हुए कमल तंतु जैसे कोमल स्‍नायु का भाव करो।
      ‘’और इसमे रूपांतरित हो जाओ।‘’