तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)
प्रवचन-नौवां-(अमन
ही द्वारा है)
दिनांक
09 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।
सरहा
के सूत्र—
एक
बार पूरे क्षेत्र में जब वह पूर्णानन्द छा जाता है
तो
देखने वाला मन समृद्ध बन जाता है।
सबसे
अधिक उपयोगी होता है।
जब
भी वह वस्तुओं के पीछे दौड़ता है
वह
स्वयं से पृथक से पृथक बना रहता है।
प्रसन्नता
और आनंद की कलियां
तथा
दिव्य सौंदर्य और दीप्ति के पत्ते उगते हैं।
यदि
कहीं भी बाहर कुछ भी नहीं रिसता है
तो
मौन परमानंद फल देगा ही।
जो
भी अभी तक किया गया है
और
इसलिए स्वयं में उससे जो भी होगा
वह
कुछ भी नहीं है।
यद्यपि
इसके परिणाम स्वरूप
वह ‘इस’ और ‘उस’ के लिए उपयोगी होता है।
वह
चाहे कामवासना में लिप्त हो अथवा न हो
उसका स्वरूप शून्यता ही होता है।