जीवन-क्रांति का प्रारंभः -(प्रवचन-तीसरा)
भय के साक्षात्कार से
मेरे प्रिय आत्मन्!"नये समाज की खोज', इस संबंध में तीन सूत्रों पर मैंने बात की है। आज चौथे सूत्र पर बात करूंगा और पीछे कुछ प्रश्नों के उत्तर।
मनुष्य का मन आज तक भय के ऊपर निर्मित किया गया है। सारी संस्कृति, सारा धर्म, जीवन के सारे मूल्य भय के ऊपर खड़े हुए हैं। जिसे हम भगवान कहते हैं, वह भी भगवान नहीं है, वह भी हमारे भय का ही भवन है। है कहीं कोई भगवान, लेकिन उसे पाने के लिए भय रास्ता नहीं है। उसे पाना हो तो भय से मुक्त हो जाना जरूरी है।
भय जीवन में जहर का असर करता है, विषाक्त कर देता है सब। लेकिन अब तक आदमी को डरा कर ही हमने ठीक करने की कोशिश की थी। आदमी तो ठीक नहीं हुआ, सिर्फ डर गया है।