शब्द
जो साकार हो
गया है...
शब्द
साकार हुआ था
पहले—पहल यहीं, भारत में;
विपाशा, वितस्ता,
शतदु, सरस्वती
किसी पुण्य—सलिला
के तट पर।
आंखें
मूंदे, मौन खड़ा था
ऋषि, शब्द
का अनुसंधान
करते; उसे
लय में पिरोते।
सहसा
कुहासा—सा छटा; पूरब कुछ
लाल—लाल—सा
दिखा;
हवा
कुछ इठलाती—सी
लगी और
पाखियों का
संगीत
दिगन्तों तक
फैल गया।
उसने कहां, 'प्रकाश
हो' और
प्रकाश हो
गया!
.. .वह
भगवान था।
भगवत्ता उस
समय उसमें
अवतरित हुई थी।
ऋषियों की यह
परंपरा सनातन
है। सरस्वती
के किनारे भरतों
के कुल में
जन्मा बालक
मंत्र—दर्शन
करने लगा, विश्वामित्र
बन गया। उसकी
रची ऋचाएं
श्रुति बनीं,
स्मृतियों
ने सहेजा
उन्हें।