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सोमवार, 21 मई 2018

भजगोविंदम मुढ़मते (आदि शंक्राचार्य) प्रवचन--05

आशा का बंधन—(प्रवचन—पांचवां)

सूत्र :

जटिलो मुण्डी लुग्चितकेशः काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढ़ो ह्युदरनिमित्तं बहुकृतवेषः।।
अंगं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुग्चत्याशापिण्डम्।।
अग्रे वह्निः पृष्ठे भानू रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः तदपि न मुग्चत्याशापाशः।।
कुरुते गंगासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहीनः सर्वमतेन मुक्तिं नः भजति जन्मशतेन।।
सुरमंदिरतरुमूलनिवासः शय्या भूतलमजिनं वासः।
सर्वपरिग्रहभोगत्यागः कस्य सुखं न करोति विरागः।।
योगरतो वा भोगरतो वा संगरतो वा संगविहीनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं नन्दति नन्दति नन्दत्येव।।

गुरुवार, 17 मई 2018

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-31

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-इक्कतीसवां
शिक्षा: नया धर्म

मेरे प्रिय आत्मन्!
बीसवीं सदी नये मनुष्य के जन्म की सदी है। इस संबंध में थोड़ी सी बात आपसे करना चाहूंगा। इसके पहले कि हम नये मनुष्य के संबंध में कुछ समझें, यह जरूरी होगा कि पुराने मनुष्य को समझ लें।
पुराने मनुष्य के कुछ लक्षण थे। पहला लक्षण पुराने मनुष्य का था कि वह विचार से नहीं जी रहा था, विश्वास से जी रहा था। विश्वास से जीना अंधे जीने का ढंग है। मानव की अंधे होने की भी अपनी सुविधाएं हैं। और यह भी माना कि विश्वास के अपने संतोष हैं और अपनी सांत्वनाएं हैं। और यह भी माना कि विश्वास की अपनी शांति और अपना सुख है लेकिन यदि विचार के बाद शांति मिल सके और संतोष मिल सके, विचार के बाद यदि सांत्वना मिल सके और सुख मिल सके तो विचार के आनंद का कोई भी मुकाबला, विश्वास का सुख नहीं कर सकता है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-30

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-तीसवां
बोध का जागरण
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

पहली बात तो, साधारणतः हम ऐसा ही सोचते हैं कि गुलामियों के कारण हमारे चरित्र का पतन हुआ, गुलामी के कारण हमारा व्यक्तित्व नष्ट हुआ!
गुलामी आई, तभी हम चरित्रहीन हुए! गुलामी आई तभी, जब कि हम चरित्रहीन हुए?
 उसको ही मैं कहना चाहता हूं कि चरित्रहीनता जो है वह गुलामी के कारण नहीं आई, बल्कि चरित्रहीनता के कारण ही गुलामी आई। और चरित्रहीन हम बने, ऐसा कहना मुश्किल है, चरित्रहीन हम थे। बनने का तो मतलब यह होता है कि हम चरित्रवान थे, फिर हम चरित्रहीन बने। तो हमें कारण खोजने पड़ें कि हम चरित्रवान कैसे थे, कब थे। और कैसे हम चरित्रहीन बने! मुझे नहीं दिखाई पड़ता कि हम कभी चरित्रवान थे। हमारी चरित्रहीनता बड़ी पुरानी है और चरित्रहीन का काफी जो बुनियादी कारण है, वह हमारी संस्कृति में सदा से मौजूद है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-29

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-उन्नतीसवां
नई दिशा, नया बोध
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

लक्ष्मी ने जो पूछा है, वह सवाल तो छोटा मालूम पड़ता है लेकिन उससे बड़ा कोई और दूसरा सवाल नहीं है। नई पीढ़ी को कैसे शिक्षित करना, यह बड़े से बड़ा सवाल है। और मनुष्यता का सारा भविष्य इस पर निर्भर है। इसकी दो-तीन गहरी बातों को खयाल में लेना चाहिए।
एक तो अब तक बच्चे का पूरी दुनिया में कहीं भी कोई आदर नहीं है। बच्चे से आदर हम मांगते थे, बच्चे को आदर देते नहीं थे। प्रेम देते थे, आदर नहीं देते थे। इसके बहुत ही भयानक परिणाम हुए। इसका सबसे बुरा जो परिणाम हुआ, वह यह हुआ कि जब तक बच्चे को आदर न दिया जाए तब तक हम किसी न किसी गहरे रूप में यह प्रकट करते हैं कि वह हमसे हीन है। हम उसमें हीनता का भाव पैदा करते हैं।

बुधवार, 16 मई 2018

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-28

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-अट्ठाईसवां
कम्यून जीवन
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

यह सवाल हिंदू-मुस्लिम का नहीं है। असल में बड़ा सवाल सदा यही है कि जो ऊपर से लक्षण दिखाई पड़ता है उसे हम बीमारी समझे हुए हैं। लक्षण को बदलने में बड़ी मेहनत उठानी पड़ती है। जब तक लक्षण को बदल पाते हैं तब तक बीमारी नया लक्षण दे जाती है। सवाल हिंदू-मुसलमान का नहीं है और न सवाल गुजराती और मराठी का है, और न सवाल उत्तर और दक्षिण का है। सवाल यह है कि आदमी बिना लड़े नहीं रह सकता है। इसलिए जब तक हम, जो-जो लड़ाइयां वह लड़ता है उनको हल करने में लगे रहेंगे, तब तक जारी रहेगा। सवाल बदलेंगे, नाम बदलेंगे, खूंटी बदलेगी, लेकिन जो हमें टांगना है वह हम टांगे चले जाएंगे।
आदमी बिना लड़े नहीं रह सकता है। इसको अगर हम बीमारी समझें तो कोई हल हो सकता है। यह है बीमारी। मगर हमेशा भूल हो जाती है। बुखार चढ़ आया है किसी को, तो हम समझते हैं शरीर का गर्म हो जाना बीमारी है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-27

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-सत्ताईसवां
अंकुरित होने की कला
मेरे प्रिय आत्मन्!
जीवन मिलता नहीं, निर्मित करना होता है। जन्म मिलता है, जीवन निर्मित करना होता है। इसीलिए मनुष्य को शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा का एक ही अर्थ है कि हम जीवन की कला सीख सकें। एक कहानी मुझे याद आती है।
एक घर में बहुत दिनों से एक वीणा रखी थी। उस घर के लोग भूल गए थे, उस वीणा का उपयोग। पीढ़ियों पहले कभी कोई उस वीणा को बजाता रहा होगा। अब तो कभी कोई भूल से बच्चा उसके तार छेड़ देता था तो घर के लोग नाराज होते थे। कभी कोई बिल्ली छलांग लगा कर उस वीणा को गिरा देती तो आधी रात में उसके तार झनझना जाते, घर के लोगों की नींद टूट जाती। वह वीणा एक उपद्रव का कारण हो गई थी। अंततः उस घर के लोगों ने एक दिन तय किया कि इस वीणा को फेंक दें--जगह घेरती है, कचरा इकट्ठा करती है और शांति में बाधा डालती है। वह उस वीणा को घर के बाहर कूड़े घर पर फेंक आए।

सोमवार, 14 मई 2018

जीवन का खेल—(कविता)


जीवन का खेल—(कविता)
जीवन करता नित-नुतन खेल।
घूप-छांव का अदभुत मेल।।

स्वर्ण चमक सी ये मुस्कार।
सुरमयी कालीमा गाती गान।
जीवन की इस दीप शीखा से
नित-नित घटता जाता तेल...
घूप-घांव का अदभुत मेल...

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-26

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-छब्बीसवां
जीवंत शिक्षकों की खोज
मेरे प्रिय आत्मन्!

आधुनिक शिक्षक के संबंध में कुछ कहना थोड़ा कठिन है। इसलिए कठिन है कि शिक्षक आज के पहले कभी दुनिया में था ही नहीं। आधुनिक ही शिक्षक का होना है। जैसा अभी परिचय में कहा, शिक्षक का धंधा, वह बहुत आधुनिक घटना है। वह कभी पहले था नहीं। गुरु थे, वे शिक्षक से बहुत भिन्न थे। शिक्षण उनका धंधा नहीं था, उनका आनंद था। शिक्षण पहली दफे धंधा बना है। और जिस दिन शिक्षण धंधा बन जाएगा, उस दिन शिक्षक गुरु होने की हैसियत खो देता है। उस दिन वह गुरु नहीं रह जाता, नौकर ही हो जाता है या व्यवसायी हो जाता है।
आधुनिक शिक्षक आधुनिक घटना है। पुराने युगों में लोग थे। वे शिक्षण में धंधे की भांति संबंधित नहीं थे। असल में कभी सोचा ही नहीं गया था कि शिक्षण भी कभी धंधा बन सकता है, लेकिन अब बन गया है। और उसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षण संस्थाएं फैक्ट्रियों और कारखानों से ज्यादा नहीं हैं।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-25

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-पच्चीसवां
शक्ति-नियोजन
मेरे प्रिय आत्मन्!
शिक्षा का जगत सदा से क्रांति का विरोधी रहा है। शिक्षा सदा से प्रतिगामी रही है, रिएक्शनरी रही है। ऐसा होने का कारण था--आज तक की सारी शिक्षा अतीत-उन्मुख रही है, पीछे की तरफ देखती रही है। यही कारण है कि शिक्षकों ने आज तक क्रांतिकारी विचारक पैदा नहीं किए। शिक्षकों के ऊपर आज तक किसी आविष्कार का इल्जाम नहीं लगाया जा सकता। शिक्षकों ने कोई आविष्कार नहीं किए। शिक्षालय और विद्यापीठ नये का अब तक स्वागत नहीं करते रहे हैं, उसका कारण था कि पुराने को नई पीढ़ी तक पहुंचा देना ही उनका काम था। वह काम पूरा हो जाए, शिक्षा का काम पूरा हो जाता था।
यह अब तक ठीक था, लेकिन आगे ठीक न हो सकेगा। शिक्षा के सामने एक नई बात और पैदा हो गई है। अतीत का ज्ञान ही युवकों को नहीं दे देना है, युवकों को भविष्य का नागरिक भी बनाना है। एक काम अब तक किया गया। दूसरा काम पहली बार शिक्षक के हाथ में आया है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-24

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-चौबीसवां
अंधविश्वासों से मुक्ति
मेरे प्रिय आत्मन्!
मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य और दुर्भाग्य एक ही बात में है और वह यह कि मनुष्य को जन्म के साथ कोई सुनिश्चित स्वभाव नहीं मिला। मनुष्य को छोड़ कर इस पृथ्वी पर सारे पशु, सारे पक्षी, सारे पौधे एक निश्चित स्वभाव को लेकर पैदा होते हैं। लेकिन मनुष्य बिलकुल अनिश्चित तरल और लिक्विड है। वह कैसा भी हो सकता है। उसे कैसा भी ढाला जा सकता है।
यह सौभाग्य है, क्योंकि यह स्वतंत्रता है। लेकिन यह दुर्भाग्य भी है क्योंकि मनुष्य को खुद अपने को निर्मित करने में बड़ी भूल-चूक भी करनी पड़ती है। हम किसी कुत्ते को यह नहीं कह सकते कि तुम थोड़े कम कुत्ते हो। सब कुत्ते बराबर कुत्ते होते हैं। लेकिन किसी भी मनुष्य को हम कह सकते हैं कि तुम थोड़े कम मनुष्य मालूम पड़ते हो। मनुष्य को छोड़ कर और किसी को हम दोषी नहीं ठहरा सकते। मनुष्य को हम दोषी ठहरा सकते हैं। मनुष्य को छोड़ कर इस पृथ्वी पर और कोई भूल नहीं करता क्योंकि सबकी प्रकृति बंधी हुई है। जो उन्हें करना है, वे वही करते हैं।

रविवार, 13 मई 2018

मां (कविता)--मनसा मोहनी

मां (कविता)
मॉं, ये एक शब्‍द ही नहीं, न है ये कोई धर्म हे और न पुराण। ये तो केन्‍द्र है समपूर्ण श्रृष्टि का, गंगा के उद्गगम सा, और समेटे है अपने में सागर कि विशालता को, मां तू ही तो प्रकृति का सौन्दर्य, श्रृष्‍टि में फैला प्‍यार भी तु ही है, जीवन तेरा ही स्पंदन नहीं है क्‍या? चारों ओर फैला ये पूर्णता का विस्तार तेरा ही स्वरूप है तेरी पवित्रता हिमालय से भी ऊंची है, किसी स्‍वेत धवल श्वेतांबर सी तेरे आँचल की छांव, ही तो है समग्रता में फैला ये जीवन

शनिवार, 12 मई 2018

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-23

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-तेईसवां
नारी की मुक्ति और शांति

मेरे प्रिय आत्मन्!
नारी और शांति के संबंध में कुछ थोड़े से सूत्र समझना उपयोगी हैं।
एक तो सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि नारी का अब तक कोई व्यक्तित्व नहीं रहा है और पुरुष ने उसके व्यक्तित्व को मिटाने की भरसक चेष्टा भी की है। नारी या तो किसी की बेटी होती है, या किसी की बहन होती है और या किसी की पत्नी होती है। नारी का अपना होना नहीं है। विवाह हो तो उसका नाम भी पुरुष बदल डालते हैं, नया नाम रख लेते हैं। विवाह हो जाने के बाद उसका सीधा कोई तादात्म्य, कोई सीधी आइडेंटिटी अपने साथ नहीं होती है। वह किसी की श्रीमती हो जाती है। उसके परिचय में भी हम कहते हैं, श्रीमती खन्ना या श्रीमती गूजर या कुछ। सीधा उसका कोई व्यक्तित्व समाज के समक्ष नहीं होता। बीच में पुरुष को लेकर ही उसका कोई अर्थ बनता है। पुराने शास्त्र कहते हैं कि जब वह कुंआरी हो तो पिता उसकी रक्षा करे; जब वह युवा हो तो पति उसकी रक्षा करे; जब वह वृद्ध हो जाए तो उसके बेटे उसकी रक्षा करें; लेकिन किसी भी स्थिति में उसका अपना कोई अस्तित्व स्वीकार नहीं किया गया है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-22

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-बाईसवां
मनोविश्लेषण, मनोजागरण ओर मनोसाधना
ओशो , इनफेक्ट इट इ.ज नाॅट रियली क्लियर टु मी व्हेदर आर वि लीविंग आर डाइंग। सर, ए.ज इट एपीयर्स टु मी देट दि सोसाइटी इन व्हिच वी लीव इ.ज नाॅट हेल्थी इन इट्स ट्रू सेंस एण्ड इ.ज डाॅमिनेटेड बाई दि कंट्रोवर्शियल इस्यूस लाइक एजुकेशन, रिलीजन एण्ड साइंस, रादर नाॅट बीइंग डाइनैमिक। ए.ज आई अंडरस्टैंड सर, बिका.ज आॅफ दी.ज वेरियस कंडीशंस वी आर सिं्वगिंग लाइक दि क्लाक पेंडुलम। वुड यू प्लीज सजेस्ट सम एजुकेशन रिफार्मस व्हिच शुड मेक अवर लाइव्स वर्थ लीविंग?

जीवन और मृत्यु के संबंध में एक बात सबसे पहले समझ लेनी जरूरी है और वह यह कि जीवन है परिवर्तन, सतत परिवर्तन और मृत्यु है थिरता, अनंत थिरता। मृत्यु का अर्थ है किसी का ऐसी स्थिति में पहुंच जाना जहां फिर परिवर्तन न हो सके। और जीवन का अर्थ है, ऐसी स्थिति में बना रहना जहां परिवर्तन निरंतर हो सकता है। जो व्यक्ति जितना परिवर्तनशील है, उतना जीवित है। और जो व्यक्ति जितना थिर हो गया है, स्टैग्नेंट हो गया है, रुक गया, ठहर गया उतना ही मृत है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-21

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-इक्कीसवां
मनुष्य के आमूल रूपांतरण की पक्रिया
टु मी दि प्रेजेंट स्टेट ऑफ वल्र्ड अफेयर्स अपियर्स टु बी इलुजरी। द एमीनेंट स्कॉलर्स फ्रॉम डिफरेंट वाक्स ऑफ लाइफ गिव वेरियस थीम्स ऑर ट्रांसफार्मेशन ऑफ लाइफ। ऑर इंस्टांस रिलिजियस लीडर्स अफर्म दैट इट इ.ज दि गाॅड ऑर रिलीजन व्हिच इ.ज ओनली ओमनीपोटेंट एण्ड कैन ट्रांसफार्म दि लाइफ एण्ड प्रोवाइड हेवन। सोशियोलॉजिस्टस, पोलिटिशियंस, एजुकेशनिस्टस एण्ड माॅरेलिस्टस बिलीव दैट बैटर सोसायटी कैन बी ओनली विद बैटर ऑर्मस। नैचुरेलिस्टस से.ज दैट दि अंडरस्टैंडिंग ऑफ दि नेचर शैल बिंरग दि ट्रांसफार्मेशन। व्हेयर ए.ज साइकोलाजिस्ट एण्ड साइकोपैथालाॅजिस्ट बिलीव दैट साइकोएनालिसिस, ट्रैंक्वेलाइजरस, सेडेटिव्स ऑर ब्रेन-वाशिंग एजेंटस कैन ट्रांसफार्म लाइफ एटसेट्रा एटसेट्रा। बट टु मी सर, दिस अपियर्स नियरली ए पार्शियल ट्रांसफार्मेशन। वुड यू सजेस्ट वॉट टोटल एण्ड स्पांटेनियस ट्रांसफार्मेशन इ.ज?

मनुष्य निरंतर ही यह सोचता रहा है, कैसे आमूल जीवन परिवर्तित हो। सोचने के कारण भी हैं। जैसा जीवन है, उसमें सिवाय दुख, पीड़ा, अशांति, संघर्ष और कलह के कुछ भी नहीं है। जीवन के इस दुखद रूप ने ही जीवन को रूपांतरित करने की प्रेरणा भी पैदा की है। शायद ही ऐसा कोई क्षण हो जब मनुष्य आनंद को उपलब्ध हो पाता है। आनंद की आशा रहती है, कल मिलेगा और आज उसी आशा में हम दुख में व्यतीत करते हैं।

मार्ग की अनुभुतिया-(सन्यास का फूल )


सन्यास का फूल-

सन्यास की यात्रा से पहले जीवन में कुछ पडाव कुछ घटनाये घटित होती है, जो इतनी मंद्र ओर अनछुई सी होती है कि उन्हें उस समय समझने के लिए एक लयवदिता चाहिए। क्योंकि जन्मों की यात्रा का बीज बिना मेध या अषाढ के अंकुरण होना कठिन है। ये कार्य गुरू के प्रेम की वर्षा ही कर सकती है। इसी लिए हिंदुओ ने सन्यास या गुरू को एक विशेष महत्व दिया है। मैं रोज पैडो में पानी डालता था किसी क्यारी में पूरानें पोधो के बीज गिर जाते है जो आंखों से दिखाई नहीं देते। परंतु मैं अकसर देखता की जैसे ही बरसात का मौसम होता अषाढ के बादल मंडराते ओर बरसात की चार बूंदे गिरी नहीं की वह पडे बीज अंकुरित हो उठते तब मैंने सोचा साल के 365 दिन मैं पानी डालता हूं परंतु ये बीज पहले क्यों नहीं अकुंरित हुए। पानी-पानी में भी भेद है बीज की भी मर्जी है की उस के उचित महोल नहीं उत्तपन हुआ था।

शुक्रवार, 11 मई 2018

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-20

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-बीसवां
जीवन-विरोधों में लयवद्धता का बिंदु
आचार्य जी, टुडे आई शैल आस्क अबाउट कंट्राडिक्शन। टु मी सर दिस इस्यू हैज बीन वेरी मच कनफ्यूजिंग। साक्रेटीज क्लीन्स दि सिस्टम बाई प्रोनाउंसिंग दि डेमोक्रेसी, व्हेयर इन ड्यूरेशन ऑफ टाइम चेंज्ड द एटिट्यूड ऑफ अरिस्टोटल टु चेंज दि सिस्टम। आई एग्री विद योर व्यू.ज दैट अवर फ्यूचर आर्गनाइजेशंस विल बी दि आर्गनाइजेशंस ऑफ ओवर लव नाॅट ऑफ डामिनेशंस। बट आई हैव टु एडमिट सर दैट टु रन ए गवर्नमेंट व्हेदर ऑफ स्माल यूनिट आर ऑफ वर्क आर्गनाइजेशंस, वी शैल हैव टु फ्रेम ए कोड ऑफ कंडक्ट व्हिच शैल चेक दि माल-प्रेक्टिसस ऑफ दि बैड एलिमेंट्स एण्ड कीप दि साउंड सिस्टम। शुड आई हैव फ्राॅम यू सर दि डिटेल्स ऑफ अकाउंट?

जीवन निश्चित ही विरोधों से भरा है, कंट्राडिक्शंस से भरा है। विरोध जीवन के लिए जरूरी भी है। जैसे कोई भवन निर्माण करने वाला द्वार के ऊपर विरोधी ईंटों को लगा कर आर्च निर्मित करता है। दो तरफ से विरोधी ईंटों का दबाव द्वार बन जाता है। जीवन की सारी व्यवस्था विरोध और उनके दबाव पर निर्भर है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-19

शिक्षा में क्रांति-ओशो
प्रवचन-उन्नीसवां
आचार्य जी, टुडे आई शैल प्रिपेयर टु इनवाइट योर व्यू.ज ऑन दि इस्यू ऑफ वेनिटी एण्ड फियर। टु मी सर, दिस इस्यू आलसो अपिअर्स टु बी वैल्युएबल टु बी एनालाइजड। एज आई हैव बीन गिवन अंडरस्टैंडिंग सर, इम्मैच्योरिटी बिंरग्स वेनिटी, वेनिटी बिंरग्स प्राइड एण्ड प्राइड बिं्रग्स प्रिज्युडिसिस, प्रिज्युडिसिस अल्टिमेटली रिजल्ट्स इन कंपेरिजन एण्ड कंपेरिजन रिजल्ट्स इन डिवीजंस एण्ड एण्ड्स इन डिस्ट्रकशंस। सर, दिस विसियस सर्किल अपियर्स टु बी वेरी डिसीसिव एण्ड डिस्ट्रायस दि ह्युमैनिटी एट लार्ज। इट हैज बीन स्टेटड बाई दि मैनी-मैनी स्कालर्स दैट दिस कल्चर ऑफ मैनकाइंड इ.ज वेरी एनसिएंट वन। वुड यू प्लीज एनलाइटन ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ?

भय निश्चित ही मनुष्य की सबसे गहरी और बुनियादी समस्या है। भय से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है क्योंकि सारी संस्कृति, सभ्यता, धर्म, शिक्षा, हमारे जीवन की सारी व्यवस्था भय से बचने के लिए ही हमने की है। और जीवन का एक कीमती सूत्र यह है कि जिससे हम बच कर भागते हैं उससे हम कभी नहीं बच पाते हैं। भय से बचने के लिए धन इकट्ठा करते हैं, भय से बचने के लिए मित्र जुटाते हैं। पति-पत्नी, परिवार बसाते हैं। भय से बचने के लिए समाज और राष्ट्र बनाते हैं। लेकिन इनसे भय मिटता नहीं बल्कि नये भय खड़े हो जाते हैं।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-18

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-अठारहवां
निराग्रही, अन्वेषक चित्त की खोज
आचार्य जी, मैनी स्काॅलर्स ऑफ ईस्ट एण्ड वेस्ट हैव गिवन मैनी-मैनी एक्सप्लेनेशंस ड्राविंग दि थिन लाइन बिटवीन अंडरस्टैंडिंग एण्ड एग्जे.जरेशन। इवन खलील जिब्रान वेंट टु द एक्सटेंट स्टेटिंग दैट एग्जे.जरेशन इ.ज दि डेड बॉडी ऑफ अंडरस्टैंडिंग। क्रुएल्टी इ.ज द आउटकम ऑफ द एंटी-थिसिस ऑफ लव, एस्केप ऑफ दि कोवरडाइज। इफ आई से सो सर, दैट इट इ.ज दि नॉन-कविजन...ऑर नॉन-अंडरस्टैंडिंग व्हिच बिंरग्स ऑल दि ब्रुटेल्टीज एण्ड केऑस इन दि सोसाइटी। वुड यू प्लीज थ्रो लाइट ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ?

इस संबंध में दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। यह ठीक है कि जीवन की सारी अराजकता, सारा दुख, सारी क्रूरता नासमझी का ही फल है; अज्ञान का ही फल है। और अज्ञान गहरा है। अज्ञान के गहरे होने में या ज्ञान के होने में जो सबसे बड़ा कारण है, वह चित्त का सम्यक्त्व का अभाव है--एक ऐसी जगह खड़े होना, जिसे हम कहें दो अतियों के बीच में।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-17

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-सत्रहवां
महत्वाकांक्षा रहित अतुलनीय प्रेम
प्रेम आत्मन
ए.ज आई हैव अंडरस्टुड योर...सेक्स दैट यू वांट दैट एवरी इंडिविजुअल शुड बी अवेअर आॅफ एण्ड शुड अंडरस्टैंड दि लाइफ एट लार्ज। बट टुडे दि सोसाइटी व्हिच वी हैव इ.ज वेरी कांप्लिकेटेड। अवर इनवायरनमेंट्स आर सो कांप्लिकेटेड दैट दे डु नाॅट अलाउ अस टु लिव फ्री लाइफ, टु लव दि पीपल आर टु लिव इन दि स्टेट व्हेअर वी शुड लिव वेरी क्लीन एण्ड स्मूथ लाइफ।

     समाज ऐसा है, इस सत्य को स्वीकार करके ही कुछ किया जा सकता है। समाज ऐसा है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को यह दिखाई पड़ जाए कि एक सरल, प्रेमपूर्ण, आनंदपूर्ण, स्वच्छ जीवन के अतिरिक्त कोई जीवन ही नहीं है, यदि एक व्यक्ति को यह दिखाई पड़ जाए कि प्रेमपूर्ण हुए बिना जीवन के आनंद से मैं वंचित ही रह जाऊंगा, अगर एक व्यक्ति को यह दिखाई पड़ जाए कि सरल हुए बिना सत्य को पाने, पहुंचने का कोई मार्ग ही नहीं है तो फिर इसकी फिकर वह छोड़ देगा कि समाज कैसा है! क्योंकि समाज उसे दे क्या सकता है, दे क्या रहा है?

गुरुवार, 10 मई 2018

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-16

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-सोलहवां
आचार्य जी, टुडे आई शैल प्रिपेयर टु इनवाइट योर व्यूज ऑन दि इश्यु ऑफ वेनिटी एण्ड फियर। टु मी सर, दिस इस्यू आलसो अपियर्स टु बी वैल्युएबल टु बी अनालाइज्ड। ए.ज आई हैव बीन गिवन अंडरस्टेंडिंग, सर, इम्मैच्योरिटी बिंरग्स वेनिटी, वेनिटी बिंरग्स प्राइड, प्राइड बिंरग्स...
...एण्ड गिव डिफरेंट फ्राॅम देयर टाइम, स्पेस एण्ड कांशस एण्ड प्रोवाइडिंग डेफिनिशंस अकार्डिंग टु देयर फील्ड ऑफ एक्टिविटीज। सर ए.ज आई अंडरस्टैंड, देयर हैव बीन सब्जेक्टिव ए.ज वैल ए.ज ऑब्जेक्टिव एप्रोचस। सर, इंस्पाइट ऑफ दैट देयर हैव बीन टू स्कूल्.ज ऑफ थॉटस्। दि वन व्हिच मेंटेन, देयर इ.ज ए क्रिएटिविटी एण्ड इनर एथीक्स, मिन्स ए साइड ऑफ रिनंसिएशन फ्री फॉम दि पेयर ऑफ अपोजिट्स एण्ड ए.ज ए स्टेट ऑफ स्पांटेनियस ट्रांसफार्मेशन एण्ड लव ब्यूटी एण्ड ट्रूथ। दि अदर व्यूव वा.ज इन फेवर ऑफ चेरिटेबल एटिट्यूड्स ए.ज वैल ए.ज लिमिटेड पजेशंस। बट ए.ज आइ अंडरस्टेंड सर, ड्यूरेशन ऑफ टाइम फेक्टर हैज ब्राट इनवर्ड पॉवर्टी एण्ड परवर्टनेस ए.ज वैल ए.ज आउटवर्ड कल्ट एण्ड कंट्रोवर्सी.ज। वुड आइ बी फेवर्ड विद योअर व्यूज ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ?

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-15

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-पंद्रहवा
अखंड जीवन का सूत्र
आचार्य जी, इनफेक्ट टु बी वेरी ट्रू लेट मी पुट दिस क्वेश्चन ऑफ परपजफुल वे ऑफ लाइफ टुडे। टु मी सर, दिस इ.ज नॉट वेरी क्लियर, ए.ज आई सी, ट्रांसफर्मेशन ऑफ फिनामिना इ.ज एवरचेंजिंग, वेदर इट मे बी ऑफ मिनरल किंग्डम, वेजिटेबल किंगडम, एनिमल किंग्डम, इनक्लुडिंग रेशनल बीइंगस् एण्ड नेचरल फिनामिना। आई सी सर, नेचर एवरचेंजिंग, हाउ कैन अवर रेडीमेड फार्मूला.ज सर्व दि परपज? इनफेक्ट सर वॉट इ.ज दि परपज ऑफ लाइफ--इ.ज नॉट वेरी क्लियर टु मी। शुड आई एक्सपेक्ट फ्रॉम यू दि डिटेल अकाउंट ऑन दिस आस्पेक्ट ऑफ लाइफ?

सबसे पहली बात तो यह है कि जीवन का अर्थ और लाइफ का परपज--ऐसी कोई चीज ही नहीं है। जीवन स्वयं में ही अपना अर्थ है। जीवन से पार और जीवन से अलग कोई मंजिल नहीं है। जीवन को ही उसकी पूर्णता में जीना जीवन का लक्ष्य है।

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-14

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-चौदहवां
साध्य ओर साधन
प्रश्नः ओशोटुडे आई वुड लाइक टु आस्क यू अबाउट मीन्स एण्ड एण्ड्स। सरइनफेक्ट दिस इस्यू हैज बीन वेरी मच कनफ्यूजिंग फॅर दि वल्र्ड एट लार्ज। मैनी-मैनी स्कॉलर्स फ्रॉम मिडिवियल टु दि प्रेजेंट हैव टेकन दिस इस्यू फ्रॉम मैनी साइड्स गिविंग डिफरेंट डेफिनिशंस एण्ड व्यूज। फॉर इंस्टांस पोलिटिकल फिलॉसफर्स हैव नेम्ड इट फंडामेंटल ट्रूथ एण्ड डिप्लोमेटिक ट्रूथ। सोसियल फिलॉसफर्स हैव यूज्ड इट एज एन इथिकल ट्रूथ एण्ड सोसियल ट्रूथ। सेप्टिकल फिलॉसफर्स हैव यूज्ड इट एज एक्चुअल ट्रूथ एण्ड रिलेटिव ट्रूथ। साइंस फिलॉसफर्स हैव यूज्ड इट एज साइंटिफिक लिविंग एण्ड आर्ट ऑफ लिविंग। बट इफ आई एम नॉट मिस्टेकन सरदे डील विद आल दि नाइन बेसिक इस्यूज ऑफ लिविंग ईदर सब्जेक्टिवली ऑर ऑब्जेक्टिवली व्हिच आर एज अंडरः

शिक्षा में क्रांति-प्रवचन-13

शिक्षा में क्रांति-ओशो

प्रवचन-तेरहवां
संदेह की ज्योति
मेरे प्रिय आत्मन्!
जैसे व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है, वैसे ही समाज भी बूढ़े हो जाते हैं। और जैसे एक व्यक्ति मरता है, वैसे ही समाज और संस्कृतियां भी मरती हैं। लेकिन कोई व्यक्ति न बूढ़े होने से इनकार कर सकता है और न मरने से। लेकिन कोई समाज, कोई संस्कृति, कोई सभ्यता यदि चाहे तो बूढ़े होने और मरने से इनकार कर सकती है। लेकिन जो समाज मरने से इनकार कर देगा, उसका नया जीवन पैदा होना बंद हो जाता है।
मरने से इनकार करना आसान है, लेकिन अगर नया जीवन मिलना बंद हो जाए, तो फिर एक तरह का मरा हुआ जीवन शुरू होता है। ऐसा इस देश में हो गया है। इस देश की संस्कृति और सभ्यता बहुत दिनों से जन्म लेना बंद कर दी है।

मा सीता के गीत-06

06-मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!
कण-कण पे तू है छा गया,
मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!

खुली दृष्टि में है तू ही तूं,
हे बंद आंखों में भी तू ही तूं
जाती नजर जहां है तूं
अंतर में मेरे रात दिन
आवाज तेरी गूंजती है सदा
स्वांसों में संगीत झनक उठता है
मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!

मा सीता के गीत-05

05-बाहु पसारे प्रभु खड़ा

प्रभु प्रेम में पागल बने ये जीव सब कोई यहां
बह-बह के आता है सभी जल सब ओर से सागर जहां
जब दे रहा सागर निमंत्रण, कैसे कोई रूक सके
तट तोड़कर नदियां बहेंगी, प्रियतम के अंक समा सके
सब देश के व्यक्ति यहां आकर समर्पित हो रहे है
बाहु पसारे प्रभु खड़ा, बाहु पसारे प्रभु खड़ा।
(1975 ओशो युग पूना)