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शनिवार, 29 मई 2010

ज्‍योतिष अर्थात अध्यात्म—3

जगत में न मालूम कितनी घ्‍वनियां है जो चारों तरफ हमारे गुजर रही है। भंयकर कोला हाल है—वह पूरा कोलाहल हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। ध्‍यान रहे, वह हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। वह हमारे रोएं-रोएं को स्‍पर्श करता है। हमारे ह्रदय की धड़कन-धड़कन को छूता है। हमारे स्‍नायु-स्‍नायु को कंपा जाता है। वह अपना काम तो कर ही रहा है। उसका काम तो जारी है। जिस सुगंध को आप नहीं सूंघ पाते उसके अणु आपके चारों तरफ अपना काम तो कर ही जाते हे। और अगर उसके अणु किसी बीमारी को लाए है तो आप को दे जाते है। आपकी जानकारी आवश्‍यक नहीं है। किसी वस्‍तु के होने के लिए।

गुरुवार, 27 मई 2010

ज्‍योतिष अर्थात अध्‍यात्‍म—2

   इजिप्‍ट के एक सम्राट ने आज से चार हजार साल पहले अपने वैज्ञानिको को कहा था कि नील नदी में जब भी जल घटता है, बढ़ता है, उसका पूरा ब्‍योरा रखा जाए। अकेली नील एक ऐसी नदी है जिसकी चार हजार वर्ष की बायो ग्राफी है। उसकी जीवन कथा है पूरी। और किसी नदी की कोई बायो ग्राफी नहीं है। उसकी जीवन कथा है पूरी, कब इसमें इंच भर पानी बढ़ा है, उसका पूरा रिकार्ड है—चार हजार वर्ष फैर हों के जमाने से लेकर आज तक।

ज्‍योतिष अर्थात अध्‍यात्‍म--1

  कुछ बातें जान लेनी जरूरी है। सबसे पहले तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि वैज्ञानिक दृष्‍टि से सूर्य से समस्‍त सौर्य परिवार का—मंगल का, बृहस्‍पति का, चंद्र का, पृथ्‍वी का जन्‍म हुआ है। ये सब सुर्य के ही अंग है। फिर पृथ्‍वी पर जीवन का जन्‍म हुआ—पौधों से लेकर मनुष्‍य तक। मनुष्‍य पृथ्‍वी का अंग है, पृथ्‍वी सूरज का अंग है। अगर हम इसे ऐसा समझें—एक मां है, उसकी एक बेटी है। और उसकी एक बेटी है—उन तीनों के शरीर का निर्माण एक ही तरह के सेल्‍स से एक ही तरह के कोष्‍ठों से होता है।

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—8(अन्‍तिम)

 
ज्‍योतिष सिर्फ नक्षत्रों का अध्‍ययन नहीं हे। वह तो है ही वह तो हम बात करेंगे—साथ  ही ज्‍योतिष और अलग-अलग आयामों से मनुष्‍य के भविष्‍य को टटोलने की चेष्‍टा है कि वह भविष्‍य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरूरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिन्‍ह है, आपके शरीर पर और आपके मन पर भी छुट गये है। उन्‍हें पहचानना जरूरी हे।  और जब से ज्‍योतिषी शरीर के चिन्‍हों पर बहुत अटक गए है तब से ज्‍योतिष की गिराई खो गई है, क्‍योंकि शरीर के चिन्‍ह बहुत उपरी है।

ज्‍योतिष अद्वैत का विज्ञान—7

टाईम ट्रैक और—हुब्‍बार्ड
      भविष्‍य एकदम अनिश्‍चित नहीं है। हमारा ज्ञान अनिश्‍चित है। हमारा अज्ञान भारी है। भविष्‍य में हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे है। भविष्‍य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते है कि निश्‍चित नहीं है। लेकिन भविष्‍य में दिखाई  पड़ने लगे....ओर ज्‍योतिष भविष्‍य में देखने की प्रक्रिया है।
      तो ज्‍योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्‍या कहते है। उनकी गणना क्‍या कहती है। यह तो सिर्फ ज्‍योतिष का एक डायमेंशन है, एक आयाम है। फिर भविष्‍य को जानने के और आयाम भी है।

मंगलवार, 25 मई 2010

धर्म क्‍या है?

  
 मैं धर्म क्‍या कहूं? जो कहा जा सकता है, वह धर्म नहीं होगा। जो विचार के परे है, वह वाणी के अंतर्गत नहीं हो सकता है। शास्‍त्रों में जो है, वह धर्म नहीं है। शब्‍द ही वहां है। शब्‍द सत्‍य की और जाने के भले ही संकेत हों,पर वे सत्‍य नहीं है। शब्‍दों से संप्रदाय बनते है, और धर्म दूर ही रह जाता है। इन शब्‍दों ने ही मनुष्‍य को तोड़ दिया है। मनुष्‍यों के बीच पत्‍थरों की नहीं, शब्‍दों की ही दीवारें है।

रविवार, 23 मई 2010

ज्‍योतिष अद्वैत का विज्ञान—6

जैसा मैं आपसे कह रहा था पैरासेल्‍सस के संबंध में। आधुनिक चिकित्‍सक भी इस नतीजे पर पहुंचे रहे है। कि जब भी सूर्य पर अनेक बार धब्‍बे प्रकट होते है....ऐसे भी सूर्य पर कुछ धब्‍बे है, डाट्स, स्‍पाट्स होते है—कभी वे बढ़ जाते है, कभी वे कम हो जाते है। जब सूर्य पर स्पाट्स बढ़ जाते है तो जमीन पर बीमारियां बढ़ जाती है। और जब सुर्य पर काले धब्‍बे कम हो जाते है, तो जमीन पर बीमारियां कम हो जाती है। और जमीन से हम बीमारियां कभी न मिटा सकेंगे जब तक सूर्य के  स्पाट्स कायम है।

गुरुवार, 20 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—5

शायद पहला जन्‍म काई, वह जो पानी पर जम जाती है—वह जीवन का पहला रूप है, फिर आदमी तक विकास। जो लोग पानी के ऊपर गहन शोध करते है, वे कहते है पानी सर्वाधिक रहस्‍यमय तत्‍व है। जगत से, अन्‍तरिक्ष से तारों का जो भी प्रभाव आदमी तक पहुंचता है उसमें मीडियम, माध्‍यम पानी है। आदमी के शरीर के जल को ही प्रभावित करके कोई भी रेडिएशन कोई भी विकीर्णन मनुष्‍य में प्रवेश करता है। जल पर बहुत काम हो रहा है और जल के बहुत से मिस्‍टीरियस, रहस्‍यमय गुण खयाल में आ रहे है।

बुधवार, 12 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—4

इनके रुझान, इनके ढंग, इनके भाव समानांतर है। अगर करीब-करीब ऐसा मालूम पड़ता है कि ये दोनों एक ही ढंग से जीते है। एक दूसरे की कापी की भांति होते है। इनका इतना एक जैसा होना और बहुत सी बातों से सिद्ध होता है।
      हम सबकी चमड़ियां अलग-अलग हैं, इण्‍डीवीजुअल है। अगर मेरा हाथ टुट जाए और मेरी चमड़ी बदलनी पड़े तो आपकी चमड़ी मेरे हाथ के काम नहीं आयेगी। मेरे ही शरीर की चमड़ी उखाड़ कर लगानी पड़ेगी। इस पूरी जमीन पर कोई आदमी नहीं खोजा जा सकता, जिसकी चमड़ी मेरे काम आ जाए। क्‍या बात है? शरीर शास्‍त्री से पूँछें कि क्‍या दोनों की चमड़ी की बनावट में कोई भेद है—तो कोई भेद नहीं है।

सोमवार, 10 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—3

तो साधारणत: देखने पर पता चलता है कि इन ग्रह-नक्षत्रों की स्‍थिति का किसी के बच्‍चे के पैदा होने से, होरोस्‍कोप से क्‍या संबंध हो सकता है। यह तर्क सीधा और साफ मालूम होत है। फिर चाँद तारे एक बच्‍चे के जन्‍म की चिन्‍ता तो नहीं करते? और फिर एक बच्‍चा  ही पैदा नहीं होता, एक स्‍थिति में लाखों बच्‍चें पैदा होते है। पर लाखों बच्‍चे एक से नहीं होते, इन तर्कों से ऐसा लगने लगा....। तीन सौ वर्षों  से यह तर्क दिये जा रहे हे कि कोई संबंध नक्षत्रों से व्‍यक्‍ति के जन्‍म का नहीं है।

शनिवार, 8 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—2


      और पाइथागोरस जब यह बात  कह रहा था तब वह भारत और इजिप्‍ट इन दो मुल्‍कों की यात्रा करके वापस लौटा था। और पाइथागोरस जब भारत बुद्ध और महावीर के विचारों से तीव्रता से आप्‍लवित लौटा था। पाइथागोरस ने भारत से वापस लौटकर जो बातें कहीं है उसमें उसने महावीर ओ विशेषकर जैनों के संबंध में बहुत सी बातें महत्‍वपूर्ण कहीं है। उसने जैनों का मतलब तो जैन,तो जैन दार्शनिकों पाइथागोरस ने जैनोसोफिस्‍ट कहा है। वे नग्‍न रहते हैं, यह बात भी उसने की है।

गुरुवार, 6 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—1

ज्‍योतिष शायद सबसे पुराना विषय है और एक अर्थ में सबसे ज्‍यादा तिरस्‍कृत विषय भी है। सबसे पुराना इसलिए कि मनुष्‍य जाति के इतिहास की जितनी खोजबीन हो सकी उसमें ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्‍योतिष मौजूद न रहा हो। जीसस से पच्‍चीस हजार वर्ष पूर्व सुमेर में मिले हुए हडडी के अवशेषों पर ज्‍योतिष के चिन्‍ह अंकित है। पश्‍चिम में,पुरानी से पुरानी जो खोजबीन हुई है। वह जीसस से पच्‍चीस हजार वर्ष पूर्व इन हड्डियों की है। जिन पर ज्योतिष के चिन्‍ह और चंद्र की यात्रा के चिन्ह अंकित है। लेकिन भारत में तो बात और भी पुरानी है।

शनिवार, 1 मई 2010

तीर्थ—11 अंतिम पोस्‍ट (वृक्ष के माध्‍यम से संवाद)

तीर्थ है, मंदिर  है, उनका सारा का सारा विज्ञान है। और उस पूरे विज्ञान की अपनी सूत्रबद्ध प्रक्रिया है। एक कदम उठाने से दूसरा कदम उठना है, दूसरा उठाने से तीसरा उठता है। पीछे चौथा उठता है और परिणाम होता है। यदि एक भी कदम बीच में खो गया तो, एक भी सूत्र बीच में खो गया तो। परिणाम नहीं होता। एक और बात इस संबंध में ख्‍याल में ले लेनी चाहिए कि जब भी कोई सभ्‍यता बहुत विकसित हो जाती है और जब भी कोई विज्ञान बहुत विकसित हो जाता है। तो ‘’रिचुअल’’ सिम्‍पलीफाइड़ हो जाता है। काम्प्लैक्स नहीं रह जाता। जब वह काम विकसित होता है तब उसकी प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। पर जब पूरी बात पता चल जाती है। तो उसके क्रियान्‍वित करने की जो व्‍यवस्‍था है वह बिलकुल सिम्पलीफाइड़ और सरल जो जाती है।
     अब इससे सरल क्‍या होगा की आप बटन दबा देते है और बिजली जल जाती है। लेकिन आप सोच सकते है कि जिसने बिजली बनायी, क्‍या उसने बटन दबाकर बिजली जला ली होगीं। अब इससे सरल क्‍यो होगा कि जो मैं बोल रहा हूं वह रिकार्ड  हो रहा है। कुछ भी तो नहीं करना पड़ रहा है हमें। लेकिन आप सोचते है, इतनी आसानी से वह टेप रिकार्डर बन गया। अगर मुझसे कोई पूछे कि क्‍या करना पड़ता है, तो मैं कहूंगा बोल दो और रिकार्ड हो जाता है। लेकिन इस तरह वह बन नहीं गया है।