योग—सूत्र:
सत्वपुरूषयोरत्यन्तासंकीर्णयों:
प्रत्यायविशेषो
भोग:
परार्थत्वात्
स्वार्थसंयमात्पुरुषज्ञानम्।।
36।।
पुरुष, सद चेतना और
सत्व, सदबुद्धि
के बीच अंतर
कर पाने की अयोग्यता
के
परिणामस्वरूप
अनुभव के भोग
का उदभव होता
है. यद्यपि ये
तत्व नितांत
भिन्न हैं।
स्वार्थ पर
संयम संपन्न
करने से अन्य
ज्ञान से भिन्न
पुरूष ज्ञान
उपलब्ध होता
है।
तत:
प्रातिभश्रावणवेदनादर्शास्वादवार्ता
जायन्ते।।
37।।
इसके
पश्चात
अंतर्बोधयुक्त
श्रवण, स्पर्श, दृष्टि, आस्वाद और
आध्राण की
उपलब्धि चली
आती है।
ते
समाधावुपसर्गाव्युत्थाने
सिद्धय:।। 38।।
ये वे
शक्तियां है
जो मन के बाहर
होने से
प्राप्त
होती है, लेकिन ये
समाधि के
मार्ग पर
बाधाएं है।