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सोमवार, 31 जनवरी 2011

आदमी की प्रौढ़ता और ध्‍यान--

आदमी अकेला प्राणी है, जिसको प्रौढ़ होने में बहुत समय लगता है। कुत्‍ते का बच्‍चा पैदा होता है; कितनी देर लगती है प्रौढ़ होने में? घोड़े का बच्‍चा पैदा होता है; कितनी देर लगता है प्रौढ़ होने में? घोड़े का बच्‍चा पैदा होते ही चलने लग जाता है। प्रौढ़ हो गया। प्रौढ़ पैदा ही होता है। सिर्फ आदमी का बच्‍चा असहाय पैदा होता है। उसको प्रौढ़ होने में बीस-पच्‍चीस साल लग जाते है। पच्‍चीस साल का हो जाता है तब भी मां-बाप डरे रहते है कि अभी चल सकता है अपने पैरों पर। इतना लंबा समय मनुष्‍य को क्‍यों लगता है। प्रौढ़ होने के लिए?

धन-शक्‍ति का संचित रूप है—


धन-धन नहीं है। धन एक शक्‍ति का संचित रूप है। एक रूपया आपकी जेब में पडा है तो सिर्फ वह रूपया नहीं है, शक्‍ति संचित पड़ी है। इसका आप तत्‍काल उपयोग कर सकते है। जो आदमी अकड़ कर जा रहा था। उसको रूपया दिखा दीजिए, वह झुक जायेगा। वह रात भर आपके पैर दबायेगा। उस रूपए में वह आदमी छीपा था। जो रात भर पैर दबा सकता है। रूपये की इतनी दौड़ रूपए के लिए नहीं हे। रूपया तो संचित शक्ति है। कनड़ेंस्‍ड पावर। और अद्भुत शक्‍ति है। क्‍योंकि अगर आप एक तरह की शक्‍ति इकट्ठी कर लें तो आप दूसरी शक्‍ति में नहीं बदल सकते। रूपया बदला जा सकता है। एक रूपया आपकी जेब में पडा है, चाहे आप किसी से पैर दबाओ,चाहे किसी से सर पर मालिश करा लो। चाहे किसी से कहें कि पाँच दफे उठक-बैठक करो। उसके हजार उपयोग है। अगर आपके पास एक तरह की शक्‍ति है तो वे एक ही तरह की है, उसका एक ही उपयोग हे। रूपया अनंत आयामी है।

रविवार, 30 जनवरी 2011

अरविंद का आजादी में योगदान—गांधी जी से अधिक


     श्री अरविंद को किसी ने एक बार पूछा कि आप भारत की स्‍वतंत्रता के संघर्ष की आजादी के युद्ध में अग्रणी सेनानी थे; लड़ रहे थे। फिर अचानक आप पलायनवादी कैसे हो गये कि सब छोड़कर आप पांडिचेरी में बैठ गए आँख बंद करके। वर्ष में एक बार आप निकलते है दर्शन देने को। आप जैसा संघर्षशील, तेजस्‍वी, व्‍यक्‍ति जो जीवन के घनेपन में खड़ा था और जीवन को रूपांतरित कर रहा था, वह अचानक इस भांति पलायनवादी होकर अंधेरे में क्‍यों छिप गया?

इस सदी का बड़ा चमत्‍कार—

  चीन का कम्यूनिज़म का हमला भंयकर है। न केवल चीन में, बल्‍कि तिब्‍बत से भी सारी संभावनाओं को विनाश करने की चेष्‍टा चीन ने की है। तिब्‍बत में भी लाओत्‍से और बुद्ध को मान कर चलने वाला एक वर्ग था। शायद पृथ्‍वी पर अपने तरह का अकेला ही मुल्‍क था तिब्‍बत, जिसको हम कह सकते है पूरा का पूरा देश एक आश्रम था। जहां धर्म मूल था, बाकी सब चीजें गोण थी।

शनिवार, 29 जनवरी 2011

पूर्ण--संतोष—

 
एक सूफी फकीर के संबंध में मैंने सूना है। उसके मरने के दिन करीब थे। रहता तो एक छोटे झोंपड़े में था। लेकिन एक बड़ा खेत और एक बड़ा बग़ीचा भक्‍तों ने उसके नाम कर रखा था। मरने के कुछ दिन पहले उसने कि अब मैं मर जाऊँगा। ऐसे तो जिंदा में भी इस बड़ी जमीन की मुझे कोई जरूरत नही थी।

स्‍वर्ग-पृथ्‍वी आलिंगन—और कैंसर


स्‍वर्ग और पृथ्‍वी–लाओत्‍से के लिए प्रतीक है। आपके भीतर भी दोनों हैं, आपके भीतर स्‍वर्ग ओर पृथ्‍वी दोनों है। और जब आप अपने स्‍वभाव के  अनुकूल चल रहे होते है, तब स्‍वर्ग और पृथ्‍वी के आलिंगन में होते है। जब आप कुछ और होने की कोशिश कर रहे होते है। जो कि आपकी नियति नहीं है, तब आपकी परिधि और आपके केंद्र का संबंध टूट जाता है।

विपश्‍यना की उड़ान—

प्रश्‍न—प्‍यारे ओशो,

      कल प्रथम बार मैंने शिविर में विपश्‍यना ध्‍यान किया। इतनी उड़ान अनुभव हुई, कृपया विपश्‍यना के बारे में प्रकाश डालें।
      ईश्‍वर समर्पण। विपश्‍यना मनुष्‍य जाति के इतिहास का सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण ध्‍यान-प्रयोग है। जितने व्‍यक्‍ति विपश्यना से बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हुए उतने किसी और विधि से कभी नहीं। विपश्यना अपूर्व हे। विपश्यना शब्‍द का अर्थ होता है: देखना, लौटकर देखना।

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

विपस्‍सना ध्‍यान की तीन विधियां—

विपस्‍सना  ध्‍यान—
       विपस्‍सना का अर्थ है: अपनी श्‍वास का निरीक्षण करना, श्‍वास को देखना। यह योग या प्राणायाम नहीं है। श्‍वास को लयबद्ध नहीं बनाना है; उसे धीमी या तेज नहीं करना है। विपस्‍सना तुम्‍हारी श्‍वास को जरा भी नहीं बदलती। इसका श्‍वास के साथ कोई संबंध नहीं है। श्‍वास को एक उपाय की भांति उपयोग करना है ताकि तुम द्रष्‍टा हो सको। क्‍योंकि श्‍वास तुम्‍हारे भीतर सतत घटने वाली घटना है।

गुरु की खोज—

 
हम बड़े मजेदार लोग है। हम में से अनेक लोग गुरु को खोजते फिरते है। पूछो कहां जा रहे हो, वो कहते है हम गुरु की खोज कर रहे है।
      आप कैसे गुरु की खोज करिएगा? आपके पास कोई मापदंड, कोई तराजू है? आप तौलिएगा कैसे कि कौन गुरु आपका? और अगर आप इतने कुशल हो गए है कि गुरु की भी जांच कर लेते है, तो अब बचा क्‍या है ?

बुधवार, 26 जनवरी 2011

महात्‍मा गांधी और हरिदास—

  आप क्‍यों सुधारने के लिए इतने दीवाने है। ओर अगर किसी ने नही सुधरना है तो आप  कुछ भी नहीं कर सकते हो। इस दुनियां में किसी को जबरदस्‍ती ठीक करने का कोई उपाय नही है। जबरदस्‍ती ठीक करने की कोशिश उसको ओर जड़ कर सकती  है। कई बार तो बहुत अच्‍छे बाप भी बहुत बुरे बेटों के कारण हो जाते है। महात्‍मा गांधी के लड़के सुधारने का बदला लिया है। अब महात्‍मा गांधी से अच्‍छा बाप पाना मुश्‍किल है। बहुत कठिन है। अच्‍छा बाप का जो भी अर्थ हो सकता है, वह महात्‍मा गांधी में पूरा है। लेकिन हरिदास के लिए बुरे बाप सिद्ध हुए। क्‍या कठिनाई हुई?

सोमवार, 24 जनवरी 2011

महाभारत में एटम का विस्‍फोट—

अगर महाभारत पढ़ें, और महाभारत में जो युद्ध का विवरण है, पहली दफा जब हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिरा तो जो दृश्‍य बना, उस दृश्‍य का विवरण पूरा का पूरा महाभारत में है। उसके पहले तो कल्‍पना थी। महाभारत में जो बात लिखी थी।/ तब तो यही सोचा था कवि का ख्‍याल है। लेकिन जब हिरोशिमा में एटम गिरा और धुँऐ का बादल उठा और वृक्ष की तरह आकाश में फैला; नीचे जैसे वृक्ष की पीड़ होती है,

रविवार, 23 जनवरी 2011

जूदास और जीसस

 
जूदास ने जीसस को धोखा दिया था। उसे बिकवाया था। उसे पकड़वाया था रात में आकर। जीसस रात में ठहरे हुए थे। और जूदास लाया दुश्मन के सिपाहियों को और जीसस को पकड़वा दिया। तो जूदास से ज्यादा गंदा नाम ईसाइयत के इतिहास में दूसरा नहीं है। यानी किसी आदमी को गाली देनी हो तो जूदास कह दो। तो इससे बड़ी कोई गाली नहीं है। जीसस को फांसी लगवाने से बड़ा और बुरा हो भी क्या सकता है।

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

बिल्‍ली मत पलना—(कथा यात्रा)

एक बार एक महात्मा मरने के करीब था। उसने अपने पिय शिष्‍य को अपने पास बुलाया और कहने लगा। देख तू मेरी एक बात मान जो चाहे करना पर बिल्‍ली मत पालना। ये में अपने जीवन भी निचोड़ तुझे दिये जा रहा हूं। ये तेरी जीवन का सूत्र है। शिष्‍य ने कहा पर गुरूदेव में इस सूत्र का अर्थ समझ नहीं पाया। पर गुरु के पास समय कम था सो वह स्‍वर्ग सीधार गये। अब युवक उस सूत्र में उलझा रह गया। कितने शस्‍त्र पढ़ पर उसका हल नहीं मिला।

शनिवार, 8 जनवरी 2011

दोस्‍तोव्‍सकी और फांसी—

दोस्तोव्सकी को फांसी की सज़ा दी गई थी—रूस के एक चिंतक, विचारक और लेखक को। ठीक छह बजे उसका जीवन नष्‍ट हो ने वाला था, और छह बजने के पाँच मिनट पहले खबर आई , जार की कि वह क्षमा कर दिया गया है। एन वक्‍त पर उसकी फांसी की सज़ा माफ हो गई। दोस्‍तोव्‍सकी ने बाद में अपने संस्‍मरणों में लिखा है। कि उस क्षण जब छह बजने के करीब आ रहे थे तक मेरे मन में न कोई वासना थी और न कोई इच्‍छा थी। न कोई जीवन में रस था। न ही सपने बचे थे।