(28 नवंबर 1953 के नव भारत (जबलपुर) में इस संपादकीय टिप्पणी के साथ यह कहानी पहली बार प्रकाशित हुई थी)
‘’ अधूरी वासना ’’ लेखक की रोमांटिक कहानी है।
भारत के तत्व दर्शन में पुनर्जन्म का आधार इस जीवन की अधूरी छूटी वासनायें ही है। कहानी के लेखक नह ऐ अन्य जगह लिखा है कि ‘’ शरीर में वासनायें है पर वह शरीर के कारण नहीं है, वरन शरीर ही इन वासनाओं के कारण से है।
अधूरी वासनायें जीवन के उस पास भी जाती है। और नया शरीर धारण करती है। जन्मों–पुनर्जन्मों का चक्र इन अधूरी छूटी वासना ओर का ही खेल है, लेखक की इस कहानी का विषय केंन्द्र यही है।
23 अगस्त 1984 को पुन: नव भारत ने इस के साथ इस कहानी को प्रकाशित किया: संपादकीय टिप्पणी:-
‘श्री रजनीश कुमार से आचार्य रजनीश और भगवान रजनीश तक का फासला तय करने वाले आचार्य रजनीश का जबलपुर से गहरा संबंध रहा है। अपनी चिंतन धारा और मान्यताओं के कारण भारत ही नहीं समूचे विश्व में चर्चित श्री रजनीश ने आज से लगभग 31 वर्ष पूर्व ‘नव भारत’को एक रोमांटिक कहानी प्रकाशनार्थ भेजी थी और वह जिस संपादकीय टिप्पणी के साथ प्रकाशित की गई थी, 28 नवंबर 1953 के ‘नव भारत से लेकिर अक्षरशः: प्रकाशित कर रहे है।‘
मैं पथ पर अकेला था, मेरा गीत था और दूर-दूर तक पहाड़ी पगडंडियों में चांदनी बिखरी सोई था। रातें ठंडी हो गई थी। और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर बर्फ गिरने लगी थी एक माह की दे थी कि यहां भी बर्फ के गोले पड़ने लगेंगे, नदिया जमकर चाँदी की धारों में बदल जायेगी और काले पहाड़ों की चोटियों पर शुभ्र हिम ऐसे चमकने लगेगा, जैसे पहाड़ों ने अपने जूड़ों पर जुही के सफेद फूल बाँध लिये हो।
मैं अपने आप में खोया-खोया आगे बढ़ता गया। कभी-कभी पक्षी रात में मौन को तोड़ता निकल जाता और सूनी वादियाँ उसके परों की फड़फड़ाहट में गूंज जाती। फिर रात का ठंडा मौन वैसे ही वापस घिर आता जैसे नदी की छाती पर गिरे पत्थर से कांपती लहरें फिर एक दूसरे में मिलकर मौन जो जाती।