तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(सरहा के गीत) भाग-पहला
पांचवां-प्रवचन-(मनुष्य
एक कल्पना है)
(दिनांक
25 अप्रैल 1977 ओशो आश्रम पूना।)
सूत्र:
सड़े
मांस की गंध पर रीझने वाली मक्खी को
चंदन
की सुगंध भी,
जान पडती है दुर्गंध
प्राणी
जो तज देते है निर्वाण
लोलुप
हो जाते हैं क्षुद्र संसारिक विषयों के
जल
से भरे ताल में बैल के पदचिंह
जल्दी
ही हो जाते हैं शुष्क, वैसे ही वह दृढ़ मन
जो
भरपूर है उन गुणों से जो है अपूर्ण
शुष्क
हो जाएंगी ये अपूर्णताएं समय पर
समुद्र
का नमकीन जल जैसे हो जाता है मधुर,
जब
पी लेते है मेघ उसे
वैसे
ही वह स्थिर मन,
काम जो करता है
औरों
के हेतु बना देता है अमृत
उन
एंन्द्रिक-विषयों के विष को
यदि
वर्णनातित घटे,
कभी नहीं रहता कोई असंतुष्ट
यदि
अकल्पनिय,
होगा यह स्वयं आनंद ही
यद्यपि
भय होता है मेघ से तड़ित का
फसलें
पकती है जब यह बरसता है जल