प्यारे
ओशो,
...
मैं भारता की
मनोवृत्ति का
शत्रु हूं :
और सच में
घातक शत्रु
महा शपूर
जन्मजात
शत्रु!...
मैं उस संबंध
में एक गीत गा
सकता हूं — और
मैं गाऊंगा एक
यद्यपि मैं एक
खाली मकान में
अकेला हूं और
उसे मुझे
स्वयं के
कानों के लिए
ही गाना पड़ेगा।
अन्य
गायक भी हैं
ठीक से कहें
तो जिनकी
आवाजें मृदु
हो उठती हैं
जिनके हाथ
भावभंगिमायुक्त
हो उठते हैं
जिनकी आखें
अभिव्यक्तिपूर्ण
हो उठती हैं
जिनके हृदय
जाग उठते हैं केवल
जब मकान लोगों
से भरा हुआ
होता है : मैं
उनमें से एक
नहीं हूं। वह
व्यक्ति जो एक
दिन मनुष्यों
को उड़ना सिखाएगा
समस्त सीमा—
पत्थरों को
हटा चुका ' होगा;
समस्त सीमा—
पत्थर स्वयं
ही उस तक हवा
में उड़ेगे वह
पृथ्वी का नये
सिरे से
बप्तिस्मा
करगे? — 'निर्भार'
के रूप में।