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शनिवार, 30 नवंबर 2013

06--दसघरा गांव की दस कहानियां--(मनसा-मोहनी)

अंधा कुत्‍ता-कहानी

 (दसघरा की दस कहानियां )

सेन्ट्रल पार्क में जो अंग्रेजों के जमाने का एक मात्र पुराना लैंम्प था। अब उसकी रोशनी-रोशनी न रह कर मात्र जुगनू की चमक भर रह गई थी। परंतु वह अपनी ऐतिहासिकता और कलात्मकता के कारण ही अब देखने की वस्‍तु बन गया था। उसको देख कर अँग्रेजों की याद आये बिन आपको नहीं रहेगी। जो युग लैंम्प पोस्ट उसने जीया था, वह भले ही आज जुगनू प्रकाश बन कर रह गया हो। लेकिन जिस जमाने में ये लगा था। ये इस गांव मोहल्ले के लिए तो ईद का चाँद था। है तो बेचारा आज भी ईद का ही चाँद। क्योंकि दोनों देखने भर के लिए सुंदर होते है परंतु मार्ग कम ही किसी को दिखा पाते है। यही हाल बेचारा लैंम्प पोस्ट था, मात्र मन का भ्रम बना रहता था कि हम प्रकाश में जा रहे है। अब ये भी एक अंग्रेजी राज की तरह इतिहास बन गया है। परंतु अंग्रेजों की कारीगरी गजब भी...सालों बाद भी न गला, न गिरा.....मध्यम ही सही जलता तो है। आस पास के लोगों को आने जाने में सुविधा और साहस देता है। सालों इस ने इस वीरान रास्ते पर लोगों को भय मुक्त किया। इस लिए लोग आज भी इसे आदर सम्मान की नजरों से देखते है। परंतु अब सरकार ने एक आधुनिक तरह की ऊंची लाईट लगा दी थी। जिसकी रोशनी पूरे पार्क को ही नहीं आस पास की सड़क तक को रोशन कर रही थी। वैसे तो स्‍ट्रीट लाईट सालों बाद भी जलती थी। परंतु उस विशाल रोशनी के आगे उस बेचारी की क्‍या बिसात, यूं कि आप सूरज के आगे दीप जलाये रहो। ये सब उन दुकान चलाने वाले के लिए प्रतीकात्मक के साथ सुविधा जनक भी बन गये थे। आज भी उसी के आस पास हाट बाजार लगता था। छोटी-छोटी दुकानों की रौनक श्‍याम के समय देखते ही बनती थी। उधर से आने जाने वाले ज्‍यादातर राहगीर वही से दैनिक इस्‍तेमाल का सामान खरीदते थे। फल-सब्‍जी वाला, एक पान वाला, एक पुराने कपड़े जो हर कपड़े 25रू दाम बोलता था। आज कल जामुन के पेड़ के पास जो कोना था, उस के पास एक जूतों वाला भी बैठने लगा है। जो जूते और चपल का ढेर लगा कर आने-जाने वालों को आवाज मार-मार कर रिझाने की कोशिश करता है। हर जूते का दाम पचास रूपये.....लुट का माल है भाइयों लुट लो। पास ही झनकूँ चाय वाला था।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-22

भारता— मनोवृत्ति की बात भाग—1 (बाइसवां-प्रवचन)    


प्‍यारे ओशो,

... मैं भारता की मनोवृत्ति का शत्रु हूं : और सच में घातक शत्रु महा शपूर जन्मजात शत्रु!... मैं उस संबंध में एक गीत गा सकता हूं — और मैं गाऊंगा एक यद्यपि मैं एक खाली मकान में अकेला हूं और उसे मुझे स्वयं के कानों के लिए ही गाना पड़ेगा।
अन्य गायक भी हैं ठीक से कहें तो जिनकी आवाजें मृदु हो उठती हैं जिनके हाथ
भावभंगिमायुक्त हो उठते हैं जिनकी आखें अभिव्यक्तिपूर्ण हो उठती हैं जिनके हृदय जाग उठते हैं केवल जब मकान लोगों से भरा हुआ होता है : मैं उनमें से एक नहीं हूं। वह व्यक्ति जो एक दिन मनुष्यों को उड़ना सिखाएगा समस्त सीमा— पत्थरों को हटा चुका ' होगा; समस्त सीमा— पत्थर स्वयं ही उस तक हवा में उड़ेगे वह पृथ्वी का नये सिरे से बप्तिस्मा करगे? — 'निर्भार' के रूप में।

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-21

तीन बुरी बातों की बात (इक्‍किस्‍वां-प्रवचन)


प्यारे ओशो,
... अब मैं सर्वाधिक बुरी बातों को तराजू पर रखूंगा और उनको भलीभांति और
मानवीयता सहित तौलूंगा.........
ऐंद्रिक सुख, शक्ति की लिप्सा, स्वार्थपरायणता : ये तीन अब तक सर्वाधिक कोसे गये हैं और सबसे बुरी तथा सर्वाधिक अन्यायपूर्ण ख्याति में रखे गये हैं — इन तीनों को मैं भलीभांति और
मानवीयता सहित तौलूंगा
ऐंद्रिक सुख : एक मीठा जहर केवल मुरझा गये लोगों के लिए लेकिन सिंह— संकल्पी के लिए महा पुष्टिकर और सम्मानपूर्वक परिरक्षित की गयी शराबों की शराब ।
ऐंद्रिक सुख : महान प्रतीकात्मक सुख एक उच्चतर सुख और उर्च्चतम आशा का....

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-01

प्रवचन—पहला    आस्‍था का दीप—सदगुरू की आँख में

दिनांक 21 जुलाई, 1977;
श्री रजनीश आश्रम पूना।

नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार। ।
कैसे उतरै पार पथिक विश्वास न आवै।
लगै नहीं वैराग यार कैसे कै पावै। ।
मन में धरै न ग्यान, नहीं सतसंगति रहनी।
बात करै नहिं कान, प्रीति बिन जैसी कहनी। ।
छूटि डगमगी नाहिं, संत को वचन न मानै।
मूरख तजै विवेक, चतुराई अपनी आनै। ।
पलटू सतगुरु सब्द का तनिक न करै विचार।
नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार ।।1।।

 साहिब वही फकीर है जो कोई पहुंचा होय। ।
जो कोई पहुंचा होय, नूर का छत्र विराजै।
सबर-तखत पर बैठि, तूर अठपहरा बाजै। ।
तंबू है असमान, जमीं का फरस बिछाया।
छिमा किया छिड़काव, खुशी का मुस्क लगाया। ।
नाम खजाना भरा, जिकिर का नेजा चलता।
साहिब चौकीदार, देखि इबलीसहुं डरता। ।
पलटू दुनिया दीन में, उनसे बड़ा न कोय।
साहिब वही फकीर है, जो कोई पहुंचा होय। । २। ।

अजहूं चेत गवांर-(पलटू दास)--ओशो

 अजहूं चेत गंवार (संत पलटू दास)
  ओशो

पलटू उत्सव के पक्षपाती हैं
प्रभु से मित्र ने का निकटतम मार्ग. है उत्सव।
निकटतम मार्ग है : नृत्य।
बुलाओ प्रभु को--आनंद के आंसुओं से बुलाओ!
पैरों में घूंघर बांधो। नृत्य, गीत-गान से बुलाओ!
हृदय की वीणा बजाओ! गीत को फूटने दो!
उत्सव की बांसुरी बजाओ, रास रचाओ!

देखते नहीं, परमात्मा चारो तरफ कितने उत्सव में है!
चांद-तारों में, वृक्षों में, पक्षियों में!
आदमी को छोड़ कर तुम्हें कहीं उदासी दिखाई पड़ती है
आदमी को छोड़ कर तुम्हें कहीं भी पाप दिखाई पड़ता है
आदमी को छोड़ कर कहीं तुम्हें चिंता दिखाई पडती है?
सब तरफ उत्सव चल रहा है--अहर्निश!

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-20

धर्मत्यागियों की बात—(बीसवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो।

वह व्यक्ति जो मेरी किस्म का है उसे मेरी ही किस्म के अनुभवों का साक्षात भी होगा जिससे कि उसके प्रथम साथी अनिवार्य रूप से लाशें व विदूषक ही होंगे बहरहाल उसके दूसरे साथी अपने आपको उसके माननेवाले कहेगे : एक जीवंत समूह प्रेम से भरा हुआ बेवकूफियों से भरा हुआ बचकानी भक्ति से भरा हुआ
मनुष्यों में वह जो मेरी किस्म का है उसे इन माननेवालों से अपना हृदय नहीं उलझाना चाहिए) वह जो मनुष्य के ढुलमुल— कायरतापूर्ण स्वभाव को जानता है उसे इन बसंतों और इन रंगबिरंगे घास— मैदानों में यकीन नहीं करना चाहिए!
'हम फिर से पवित्रात्मा हो गये हैं— ऐसी ये धर्मत्यागी स्वीकारोक्ति करते हैं और उनमें से बहुत तो अभी भी अति कायरतापूर्ण हैं यह स्वीकारोक्ति करने के लिए....

बुधवार, 27 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-19

आनंदमय द्वीपों की बात—(उन्‍नीस्‍वां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  
ओ मेरे जीवन के अपराह्र।
मैने क्या नहीं दे दिया है कि मैं एक चीज पा सकूं : मेरे विचारों की यह जीवित रोपस्थली  (नर्सरी) और मेरी सर्वोच्च आशाओं का यह अरुणोदय!
एक बार स्रष्टा ने साथियों की और अपनी आशा के बच्चों की तलाश की : और लो ऐसा हुआ कि वह उन्हें नहीं पा सका इसके अलावा कि पहले वह स्वयं उनका सृजन करे।

मेरे बच्चे अपने प्रथम वसंत में अभी भी हरे हैं बहुत पास— पास खड़े हुए और हवाओं द्वारा समान रूप से कंपे हुए मेरे बगीचे और मेरी सर्वोत्तम मिट्टी के ये वृक्ष।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-18

परिव्राजक—(अठरहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,

जरथुस्‍त्र स्वयं से कहते हैं :
मैं एक परिव्राजक हूं और एक पर्वतारोही.... मुझे मैदान अच्छे नहीं लगते और ऐसा लगता है मै देर तक शांत नहीं बैठ सकता।
और भाग्य और अनुभव के रूप में चाहे जो कुछ भी अभी मुझ तक आने को हो — परिव्रज्या और पर्वतारोहण उसमें रहेगा ही : अंतिम विश्लेषण में व्यक्ति केवल स्वयं को ही अनुभव करता है।

'तुम महानता का अपना मार्ग तय कर रहे हो : अब पहले जो तुम्हारा परम खतरा था वही
तुम्हारी परम शरण बन चुका है!


'तुम महानता का अपना मार्ग तय कर रहे हाो : तुम्हारे पीछे कोई भी यहां चोरी— छिपे नहीं आ पाएगा! स्वयं तुम्हारे पांव ने ही तुम्हारे पीछे का मार्ग लुप्त कर दिया है और उस मार्ग के ऊपर लिखी पड़ी है : असंभावना।
'और जब समस्त पादाधार विदा हो जाएं तो तुम्हें पता होना जरूरी है कि अपने ही सिर के बल कैसे आरोहण (चढ़ाई) करना : इससे अन्यथा कैसे तुम ऊपर की ओर आरोहण कर सकोगे?

........ऐसा जरथुस्‍त्र ने कहा।

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-17


मानवोचित होशियादी की बात—(सत्रहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,

यह ऊंचाई नहीं, अतल गहराई है जो डरावनी है!
अतल गहराई जहां' निगाह नीचे की तरफ गोता लगाती है और हाथ ऊपर की तरफ कसकर पकड़ते हैं। वहां हृदय अपनी दोहरी आकांक्षा के जरीए मुझे से आक्रांत हो उठता है। आह मित्रो क्या तुमने भी मेरे हृदय की दोहरी आकांक्षा का पूर्वाभास पाया है?
मेरी आकांक्षा मनुष्यजाति के साथ चिपकी रहती है मैं स्वयं को मनुष्यजाति के साथ बंधनों सें बांधता हूं क्योकि मैं परममानव (सुपरमैन) में आकृष्ट हो गया हूं : क्योकि मेरी दूसरी आकांक्षा मुझे परममानव तक खीच लेना चाहती है।


कि मेरा हाथ सुदृढ़ता में अपना विश्वास बिलकुल खो ही न दे : यही कारण है कि मैं मनुष्यों के बीच अंधेपन से जीता हूं जैसे कि मैने उन्हें पहचाना ही नहीं.......... 

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-16

उद्धार की बात—(सौलहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  

सच में मेरे मिखैड़े मैं मनुष्यों के बीच चलता हूं जैसे मनुष्यों के टुल्लों और अंगों के बीच! मेरी आंख के लिए भयावह बात है मनुष्यों को टुकड़ों में छिन्न— भिन्न और बिखरा हुआ पाना जैसे किसी कल्लेआम के युद्ध— मैदान पर।
और जब मेरी आंख वर्तमान से अतीत में भागती है सदा उसे वही बात मिलती है : टुक्ये और अंग और डरावने अवसर — लोइकन मनुष्य नहीं!


पृथ्वी का वर्तमान और अतीत — अफसोस! मेरे मित्रो — वही मेरा सर्वाधिक असह्य बोझ है; और मैं नहीं जानता कि जीना कैसे यदि मैं उसका द्रष्टा न होता जिसे आना ही है।
एक द्रष्टा एक आकांक्षी एक सर्जक स्वयं एक भविष्य ही और भविष्य तक एक सेतु — और अफसोस इस सेतु के ऊपर एक अपंग की भांति भी : जरथुस्‍त्र यह सब कुछ है।

सोमवार, 25 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-15

कवियों की बात—(पंद्रहवां—प्रवचन)  


प्‍यारे ओशो,  

'जब से मैने शब्रेँ को बेहतर रूप से जाना है ' जरथुस्‍त्र ने अपने एक शिष्य से कहा 'आत्मा मेरे लिए केवल अलंकारिक रूप से आत्मा रही है; और वह सब कुछ जो ''नित्यं'' है — वह भी केवल एक ''बिंब'' भर रहा है'
'मैने एक बार पहले भी आपको यह कहते सुना है ' शिष्य ने जवाब दिया; 'और तब आपने आगे कहा था : ''लेकिन कवि लोग बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं''। आपने क्यों ऐसा कहा कि कवि लोग बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं?'

'तथापि जरथुस्‍त्र ने एक बार तुमसे क्या कहा? कि कवि लोग बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं?  लेकिन जरथुस्‍त्र भी एक कवि है।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-14

विद्वानों की बात—(चौदहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  

मैं विद्वानों के घर से बाहर निकल आया हूं और अपने पीछे जोर से दरवाजा बंद कर दिया हूं। मेरी आत्मा उनकी भोजन— मेज पर बहुत काल तक भूखी बैठी रही; मैं उस तरह शिक्षित नहीं हुआ हूं जैसे वे हुए हैं ज्ञान फोड़ने के लिए जैसे कोई काष्ठफल (नट) फोड़ता है
मैं स्वतंत्रता को और ताजी मिट्टी की हवाओं को प्रेम करता है उनकी प्रतिष्ठाओं और
सम्माननीयताओं पर सोने के बजाय मैं वृषचर्मों पर सोऊंगा।
मैं अपने ही विचार से बहुत ज्यादा उत्तप्त हूं और झूलस गया हूं : वह बहुधा मुझे निःश्वास कर देने के करीब होता है। तब मुझे खुली हवा में और सब भूल— धवांस भरे कमरों से दूर निकल जाना होता है।

रविवार, 24 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-13

आत्‍म—विजय की बात—(तैरहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  

(इस हेतु) कि तुम सद् और असद् (अच्छाई और बुराई) के संबंध में मेरी शिक्षाओं को समझ सको मुझे तुम्हें जीवन के संबंध में और समस्त जीवित प्राणियों के स्वभाव के संबंध में मेरी शिक्षाएं कहनी होगी
मैं जीवित प्राणी के पीछे चला हूं मैं महानतम और छुद्रतम मार्गों पर चला हूं ताकि मैं उसके स्वभाव को समझ सकूं।
मैने उसकी निगाह सौ गुना करनेवाले दर्पण में पकड़ी जब उसका मुंह बंद शु ताकि उसकी आंख मुझसे बोल सके। और उसकी आंख बोली मुझसे।
लेकिन जहां कहीं भी मुझे जीवित प्राणी मिले वहीं मैने आज्ञाकारिता की भाषा भी सुनी।
समस्त जीवित प्राणी आज्ञाकारी प्राणी हैं।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-12

प्रसिद्ध दार्शनिकों की बात—( बारहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,

तुमने लोगों की और लोगों के अंधविश्वासों की सेवा की है तुम सारे प्रसिद्ध दार्शनिको! — तुमने सत्य की सेवा च्छीं की है! और ठीक उसी कारण से उन्होने तुम्हें सम्मान दिया।....

तुम गरुड़ नहीं हो : तो न ही तुम आतंक में पड़े प्राण का आनंद जानते हो। और जो एक पक्षी न हो उसे अपना घर अतल गर्तों के ऊपर नहीं बनाना चाहिए।
तुम कुनकुने हो : लेकिन समस्त गहन ज्ञान का प्रवाह शीतल है! प्राण के अंतरतम कुएं बर्फ जैसे शीतल हैं : गर्म हाथों और हाथ में लेनेवालों के लिए एक ताजगी! '


तुम सम्माननीय बने और अकड़े और रीड ताने खड़े रहते हो तुम प्रसिद्ध दार्शनिको! — कोई भी प्रबल हवा या संकल्प तुम्हें आगे की तरफ धक्का नहीं देते।
क्या तुमने कभी भी सागर पर तैरते पाल नहीं देखे हैं गोल हुए और फूलते जा रहे और हवा की तीव्रता के आगे थरथराते?

शनिवार, 23 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-11

सद्गुण संप्रदान करने की बात भाग—01 (ग्‍यारहवां—प्रवचन)


प्‍यारे ओशो,

बताओ मुझे : कैसे स्वर्ण को सर्वोच्च मूल्य उपलब्ध हुआ? क्योकि वह दुर्लभ और निरुपयोगी और चमकदार तथा आभा में स्निग्ध है; वह सदा अपने आपको संप्रदान करता है।
कैवल सर्वोच्च सद्गुण के प्रतीक के रूप में स्वर्ण को सर्वोच्च मूल्य उपलब्ध हुआ देनेवाले की निगाह स्वर्ण सी झलकती है।....
सर्वोच्च सद्गुण दुर्लभ और निरुपयोगी है वह चमकदार और आभा में स्निग्ध है : सर्वोच्च ' सद्गुण संप्रदान किया जाने वाला सद्गुण है।
सच में मैं तुम्हारा ठीक अनुमान लगाता हूं मेरे शिष्यो तुम संप्रदान किये जानेवाले सद्गुण की अभीप्सा करते हो जैसे कि मैं करता हूं।....


तुम स्वयं बलिदान एवम् उपहार बन जाने की प्यास पालते हो; और वही कारण है कि तुम
अपनी आत्मा में समस्त समृद्धियों का ढेर लगा लेने की प्यास से भरते हो।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-10

सर्जक के ढंग की बात—(दसवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो

तुम्हें स्वयं को अपनी ही लपटों में जला देने को तैयार रहना जरूरी है : कैसे तुम नये हो सकते थे यदि प्रथमत: तुम राख न हो गये होते?....
अलग हट जाओ और मेरे आसुओ के साथ अकेले होओ मेरे बंधु। मैं उसे प्रेम करता हूं जो स्वयं के पार सृजन करना चाहता है और इस प्रकार मिट जाता है।

......ऐसा जरथुस्‍त्र ने कहा।


सृजनात्मकता संभवत: एकमात्र अस्तित्वगत धर्म है। सृजन के क्षण वे क्षण हैं जब तुम सृटि के साथ एक हो। एक प्रकार से तुम खो जाते हो, तुम अपना पुराना अहंकार अब और नहीं हो; एक दूसरे प्रकार से तुमने पहली बार अपने आप को पाया है।
केवल सर्जक ही जीवन की गहराइयों और प्रेम की ऊंचाइयों को जानता है। वे लोग जो सृजनात्मकता का आयाम नहीं जानते वे बेखबर रह जाते हैं कि सच्चा धर्म क्या है।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-09

न्‍याय की बात—(नौवां—प्रवचन)

प्यारे ओशो

जब तुम्हारा कोई शत्रु हो उसे बुराई के बदले भलाई मत दो : क्योकि वह उसे शर्मिंदा करेगा। लेकिन सिद्ध करो कि उसने तुम्हारे प्रति कुछ भला किया है।
क्रोधित होना बेहतर है शर्मिंदा करने के बजाय! और जब तुम्हें शाप दिया गया हो मैं इसे नही पसंद करता कि तब तुम आशीर्वाद देना चाहते हो? बल्कि वापस थोद्यू शाप दो।
और यदि तुम्हारे साथ महो अन्याय किया जाए तो जल्दी से उसके बगल में ही पांच छोटे अन्याय करो। जो अन्याय को अकेले सहन करता है वह देखने में भयावह है।



तुम्हारा भावशून्य न्याय मुझे पसंद नहीं है; और तुम्हारे न्यायाधीशों की ऑख से सदा जल्लाद और उसकी सर्द तलवार ही झांकते हैं।
बताओ मुझे वह न्याय कहां पाया जाने वाला है जो देखती आखों से युक्त प्रेम है?....
कैसे मैं हृदय ही से न्यायपूर्ण हो सकता हूं? कैसे मैं प्रत्येक को वह दे सकता हूं जो उसका है मेरे लिए तो यही पर्याप्त रहने दो : मैं प्रत्येक को वह देता हूं जो मेरा है। 

..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-07

मित्र की बात—(सातवां—प्रवचन) 


प्यारे ओशो,  

हमारा दूसरों में भरोसा विश्वासघात करता है जहां पर कि हम स्वयं में इतने प्रियरूप से भरोसा रखना चाहेंगे। मित्र के लिए हमारी अभीप्सा ही हमारी विश्वासघातक है।
और प्राय: अपने प्रेम से हम केवल अपनी ईर्ष्या पर छलांग लगाना चाहते हैं। और प्राय: हम आक्रमण करते हैं और शह बना लेते हैं यह छिपाने के लिए कि हम स्वयं पर आक्रमण के लिए असुरक्षित हैं।
'कम से कम मेरे शत्रु होओ!'ऐसा सच्चा सम्मान बोलता है जो मित्रता मांगने का जोखिम नहीं उठा पाता।
..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।


मित्रता उन विषयों में से एक है जो लगभग सभी दार्शनिकों द्वारा सर्वाधिक उपेक्षित रहे हैl शायद हम इसे मंजूरशुदा ले लेते है क हहम समण्‍ते ही है कह इसका मतलब होता है, इसलिए हम इसकी गहराइयों के संबंध में, विकास की इसकी संभावनाओं के संबंध में, भिन्न—भिन्न अर्थवत्ताओं सहित इसके भिन्न—भिन्न रंगों के संबंध में अज्ञानी ही रहे आए हैं।

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-06

जीवन और प्रेम की बात—(छठवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  

हमारे और गुलाब कली के, बीच समान क्या है जो कंपती है क्योंकि ओस की एक बूंद उस पर पड़ी हुई है?
यह सच है : हम जीवन को प्रेम करते हैं इसलिए नहीं क्योंकि हम जीने के आदी हो गये हैं बल्कि इसलिए क्योकि हम प्रेम करने के आदी हो गये हैं प्रेम में हमेशा एक प्रकार का पागलपन है। लेकिन उस पागलपन में हमेशा एक प्रकार की  पद्धति भी है
और मेरे देखेभी जो जीवन को प्रेम करते हैं ऐसा प्रतीत होता है कि तितलियां और पानी के बबूले और मनुष्यों में जो कुछ भी उनके जैसा है आनंद के बारे में सर्वाधिक जानते हैं। इन हल्की— फुल्की नासमझ सुकुमार भावनामय नन्हीं आत्माओं को इधर— उधर पर फड़फडाते देखना — जरथुस्त्र को इतना प्रभावित करता है कि आंसू आ जाते हैं और गीत फूट पड़ते है।  
 
मैं केवल ऐसे ईश्वर में यकीन कर सकता हूं जिसने समझ लिया हो कि नाचना कैसे।

..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।