दिनांक
4 मार्च, 1975;
श्री
रजनीश आश्रम पूना।
प्रश्नसार:
1—प्रकृति
विरोध करती है
अव्यवस्था का
और अव्यवस्था
स्वयं ही
व्यवस्थित हो
जाती है
यथासमय तो
क्यों दुनिया
हमेशा
अराजकता और
अव्यवस्था
में रहती रही
है?
2—कैसे
पता चले कि
कोई व्यक्ति
रेचन की ध्यान
विधियों से
गुजर कर
अराजकता के
पार चला गया
है?
3—मन
को अपने से
शांत हो जाने
देना है,
तो योग की
सैकड़ों
विधियों की क्या
अवश्यक्ता
है?
4—आप
प्रेम में
डूबने पर जोर
देते है लेकिन
मेरी मूल समस्या
भय है। प्रेम
और भय क्या
संबंधित है?
5—कुछ
न करना,मात्र
बैठना है,
तो ध्यान की
विधियों में
इतना प्रयास
क्यों करें?