ध्यान
योग शिविर
दिनांक
13 जनवरी 1972
रात्रि:
माथेरान।
सूत्र
:
सत्यं
ज्ञानमनन्तमानन्द
सर्वोपाधिविनिर्मुक्तं
कटकमुकुटाद्युपाधिरहित
सुवर्ण
धनवद्विज्ञानचिन्मात्रस्वभावात्मा
यदा भासते
तदा त्वं
पदार्थ:
प्रत्यगात्मुच्येते।
सत्यं
ज्ञानमनंतं
ब्रह्म।
सत्यमाविनाशि।
अविनाशिनाम
देशकाल
वस्तुनिमित्तेषु
विनश्यत्सु
यत्र विनश्यति
तदविनाशि
सत्य,
ज्ञान अनंत और
आनंदरूप सर्व
उपाधि से रहित
और कड़ा,
मुकुट आदि की
उपाधि से रहित
केवल सोना जैसा
ज्ञान
और चैतन्य
रूप आत्मा जब
भासमान होता
है
तब
उसे त्वम्
नाम से पुकारा
जाता है।