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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

सामाजिक तल पर भारत बड़ा कठोर है—ओशो

प्रश्न—भारतीय संस्‍कृति बड़ी सहिष्‍णु संस्‍कृति रही है। बुद्ध ईश्‍वर को नहीं मानते थे, पतंजलि ने भी ईश्‍वर को इंकार कर दिया था। जब आप अमेरिका में पाँच वर्ष रहे, तब क्‍या आपने इस फर्क को देखा?

ओशो—मैंने फर्क देखा है। फर्क यह है कि जहां तक चिंतन का सवाल है, भारत बहुत उदार और सहिष्‍णु है; लेकिन जहां सामाजिक आचरण का सवाल आता है, वहां वह बड़ा कठोर हो जाता है। सामाजिक जीवन के संबंध में अमेरिका बड़ा उदार है, लेकिन चिंतन आदि के बारे में बहुत हठी और अड़ियल है। उनके विचारों का स्‍तर देखा जाए, तो अमेरिका के सर्वाधिक शिक्षित लोगों को भारत के देहाती लोगों की तरह बात करते हुए पाया है। और उन्‍हें अपनी मूढ़ता दिखाई नहीं देती।
      जब मैं कारागृह में था तो वहां का जेलर मुझमें उत्‍सुक हुआ। पूरा जेल ही मुझमें उत्‍सुक था। जेलर मुझसे मिलने आया। काफी पढ़ा लिखा, अनुभवी बूढा आदमी था। वह बोला, मैं आपको यह बाइबल देने आया हूं। ये ईश्‍वर के वक्‍तव्‍य है।

उजाला—कविता

कब तक खड़ा रहेगा ये उजाला
मेरे द्वारा पर और करता रहेगा
यूं तन्‍हा मेरा इंतजार...
पर मैं हूं कि आंखें बंद किये
उलझा हूं किन्‍हीं अंधेरी गलियों में
और ढूंढ रहा हूं, उन आस्‍था और विश्‍वासों में
कुछ वादे और गिले सिकवा
जो कभी के दफ़न हो गये है
नैतिकता और संस्‍कारों के तले
किसी अनबूझी कब्र में

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

स्त्री पहली बार चरित्रवान हो रही है—ओशो

ओशो—तुम्‍हारे चरित्र का एक ही अर्थ होता है, बस कि स्‍त्री पुरूष से बंधी रहे, चाहे पुरूष कैसा ही गलत हो। हमारे शास्‍त्रों में इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है। कि अगर कोई पत्‍नी अपने पति को—बूढ़े, मरते, सड़ते, कुष्‍ठ रोग से गलते पति को भी—कंधे पर रख कर वेश्‍या के घर पहुंचा दे तो हम कहते है: ‘’यह है चरित्र, देखो क्‍या चरित्र है। मरते पति ने इच्‍छा जाहिर की कि मुझे वेश्‍या के घर जाना है। और स्‍त्री इसको कंधों पर रख कर पहुंचा आयी।‘’ इसको गंगा जी में डूबा देना था, तो चरित्र होता। यह चरित्र नहीं है, सिर्फ गुलामी है, यह दासता है और कुछ भी नहीं।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

दांपत्‍य जीवन अशांत क्‍यों ?--ओशो

ओशो—एक बच्‍चा अपनी मां को प्रेम करता है। और मां खुश होगी कि बच्‍चा मा को प्रेम करता है। और वह बच्‍चे को कितना प्रेम करती है, लेकिन बच्‍चे के मन में मां के प्रेम की जो तस्‍वीर बनती चली जायेगी, मां भी नहीं सोच सकती। बच्‍चा भी नहीं सोच सकता कि अंतत: यही प्रेम उसकी जिंदगी को भी उपद्रव में डाल सकता है। अगर बच्‍चे के मन में अपनी मां की तस्‍वीर पूरी तरह बैठ गयी तो वह जिंदगी भर पत्‍नी में अपनी मां को खोजेगा। जो नहीं मिल सकता है।

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

सेक्‍स से मुक्‍ति: सत्‍यम शिवम् सुंदरम्

प्रश्‍न—किसी ने ओशो से पूछा कि वह सेक्‍स से थक गया है।
ओशो—सेक्‍स थकान लाता है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि इसकी अवहेलना मत करो। जब तक तुम इसके पागलपन को नहीं जान लेते, तुम इससे छुटकारा नहीं पा सकते। जब तक तुम इसकी व्‍यर्थता को नहीं पहचान लेते तब तक बदलाव असंभव है।
      यह अच्‍छा है कि तुम सेक्‍स से तंग आते जा रहे हो। और स्‍वाभाविक भी है। सेक्‍स का अर्थ ही यह है कि तुम्‍हारी ऊर्जा नीचे की और बहती है। तुम ऊर्जा गंवा रहे हो। ऊर्जा को ऊपर की और जाना चाहिए तब यह तुम्‍हारा पोषण करती है। तब यह शक्‍ति लाती है। तुम्‍हारे भीतर कभी न थकाने वाली ऊर्जा के स्‍त्रोत बहने शुरू हो जाते है—एस धम्‍मो सनंतनो।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

सेक्‍स और भोजन का गहरा--ओशो

प्रश्न—मेरे बदन में बहुत काम-ऊर्जा है। जब मैं नाचती हूं, कभी-कभी में महसूस करती हूं कि मैं पूरी दुनिया को खत्‍म कर दूंगी और किसी स्‍थिति में इतना क्रोध और हिंसा मेरे भीतर उबलती है कि मैं अपनी ऊर्जा को ध्‍यान की तरफ नहीं ले जाती पाती हूं, यह मुझे पागल कर देती है। मैं काम-वासना में नहीं जाना चाहती हूं परंतु हिंसक ऊर्जा ज्‍वालामुखी की तरह जल रही है। मेरे लिए यह बर्दाश्‍त के बाहर है और यह मुझे आत्‍महत्‍या करने जैसा लगता है। कृपया कर मुझे समझाए कि कैसे मैं अपनी ऊर्जा को सृजनात्‍मकता दूँ।
ओशो—यह समस्‍या मन की बनाई हुई है। न कि ऊर्जा की। अपनी ऊर्जा की सुनो। यह सही दिशा दिखा रही है। यह काम-ऊर्जा नहीं है जो समस्‍या पैदा कर रही है। यह कभी जानवरों में, वृक्षों में, पक्षियों में किसी तरह की समस्‍या पैदा नहीं करती। ऊर्जा समस्‍या पैदा करती है क्‍योंकि तुम्‍हारे मन का ढंग गलत है।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

भोजन की टेबल आनंदपूर्ण होनी चाहिए: ओशो

भोजन की टेबल आनंदपूर्ण होनी चाहिए: ओशो
      जो हम खाते है, उससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण यह है कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते है। उससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है। आप क्‍या खाते है। यह उतना महत्‍वपूर्ण नहीं है। जितना यह महत्‍वपूर्ण है कि आप किस भाव-दिशा में खाते है। आप आनंदित खोते है, या दुखी खाते है, उदास खाते है, चिंता में खाते है, या क्रोध से भरे हुए खाते है, या मन मार कर खाते है। अगर आप चिंता में खाते है, तो श्रेष्‍ठतम भोजन के परिणाम भी पायजनस होंगे। ज़हरीले होंगे। और अगर आप अपने आनंद में खाते रहे है, तो कई बार संभावना भी है कि जहर भी आप पर पूरे परिणाम न ला पाये। बहुत संभावना है। आप कैसे खाते है। किस चित की दशा में खाते है?

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

जवान रहना है तो मौन हो जाओ? –आइंस्‍टीन की क्रांतिकारी खोज

अल्‍बर्ट आइंस्टीन ने खोज की और निश्‍चित ही यह सही होगी, क्‍योंकि अंतरिक्ष के बारे में इस व्‍यक्‍ति ने बहुत कठोर परिश्रम किया था। उसकी खोज बहुत गजब की है। उसने स्‍वयं ने कई महीनों तक इस खोज को अपने मन में रखी और विज्ञान जगत को इसकी सूचना नहीं दी क्‍योंकि उसे भय था कि कोई उस पर विश्‍वास नहीं करेगा। खोज ऐसी थी कि लोग सोचेंगे कि वह पागल हो गया है। परंतु खोज इतनी महत्‍वपूर्ण थी की उसने अपनी बदनामी की कीमत पर जग जाहिर करने का तय किया।