प्यारे ओशो,
अभी भी कहीं लोग और सामान्यजन हैं लेकिन हमारे पास
नहीं मेरे बंधुओ : यहां तो राज्य है..........
राज्य समस्त क्रूर दानवों में क्रूरतम है।
क्रूरतापूर्वक वह झूठ भी बोलता है; और यह झूठ उसके मुंह से रेगता हुआ बाहर आता है : 'मै — राज्य — ही लोग हूं।
यह एक झूठ है। ये सर्जक थे जिन्होंने लोगों का
सर्जन किया और उनके ऊपर एक भरोसा और एक प्रेम टांगा : इस प्रकार उन्होंने जीवन की
सेवा की।
ये विध्वंसक हैं जो बहुतों के लिए जाल बिछाते हैं
और उसे राज्य कहते हैं : ये उनके ऊपर तलवार और सैकड़ों इच्छाएं टलते हैं।
.......ऐसा जरूथुस्त्र ने कहा।
लोगों की भीड़, यद्यपि उनकी संख्या बहुत है, एक अकेले प्रामाणिक
व्यक्ति से बहुत ज्यादा कमजोर है। भीड़ों ने अपने आप को बस एक भेड़ मान रखा है,
मनुष्य नहीं।