एक बार एक बौद्ध भिक्षु एक गांव से गुजर रहा था। चार कदम चलने के बाद वह ठिठका। क्योंकि भगवान ने भिक्षु संध को कह रखा था। दस कदम दूर से ज्यादा मत देखना। जितने से तुम्हारा काम चल जाये। अचानक उसे लगया ये गली कुछ अलग है। यहां की सजावट, रहन सहन। लोगों का यूं राह चलते उपर देखना। इशारे करना। कही कोई किसी को बुला रहा है। इशारा कर के। कोई किसी स्त्री को प्रश्न करने के लिए मिन्नत मशक्कत कर रहा है। जगह-जगह भीड़ इक्कठी है। ओर गांव और गलियों में ये दृश्य कम ही देखने को मिलते है। पर भिक्षु विचित्र सेन, थोड़ा चकित जरूर हुआ पर, निर्भय आगे बढ़ा, वह समझ गया की ये वेश्याओं का महोला है। यहां भिक्षा की उम्मीद कम ही है। वैसे तो भगवान ने कुछ वर्जित नहीं किया था कि किस घर जाओ किस घर न जाओ। पर जीवन में ऐसा उहाँ-पोह पहले आई नहीं थी। वह कुछ आगे बढ़ा।
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
बौद्ध भिक्षु और वेश्या–( कथा यात्रा-009)
एक बार एक बौद्ध भिक्षु एक गांव से गुजर रहा था। चार कदम चलने के बाद वह ठिठका। क्योंकि भगवान ने भिक्षु संध को कह रखा था। दस कदम दूर से ज्यादा मत देखना। जितने से तुम्हारा काम चल जाये। अचानक उसे लगया ये गली कुछ अलग है। यहां की सजावट, रहन सहन। लोगों का यूं राह चलते उपर देखना। इशारे करना। कही कोई किसी को बुला रहा है। इशारा कर के। कोई किसी स्त्री को प्रश्न करने के लिए मिन्नत मशक्कत कर रहा है। जगह-जगह भीड़ इक्कठी है। ओर गांव और गलियों में ये दृश्य कम ही देखने को मिलते है। पर भिक्षु विचित्र सेन, थोड़ा चकित जरूर हुआ पर, निर्भय आगे बढ़ा, वह समझ गया की ये वेश्याओं का महोला है। यहां भिक्षा की उम्मीद कम ही है। वैसे तो भगवान ने कुछ वर्जित नहीं किया था कि किस घर जाओ किस घर न जाओ। पर जीवन में ऐसा उहाँ-पोह पहले आई नहीं थी। वह कुछ आगे बढ़ा।
बुधवार, 24 नवंबर 2010
राहुल पर मार का हमला—(कथा यात्रा-008)

जिस रात बुद्ध ने घर छोड़ा, महा अभिनिष्क्रमण किया, राहुल बहुत छोटा था। एक ही दिन का था। अभी-अभी पैदा हुआ था। बुद्ध घर छोड़ने के पहले गए थे यशोधरा के कमरे में इस नवजात बेटे को देखने। यशोधरा अपनी छाती से लगाए राहुल को सो रही थी। चाहते थे, देख ले राहुल का मुंह, क्योंकि फिर मिले देखने ल मिले। लेकिन इस डर से की अगर राहुल के और पास गए, उसका मुंह देखने की कोशिश की, कहीं यशोधरा जग न जाए, जग जाए, तो रोएगी, चीखेगी, चिल्लाएगी, जाने न देगी। इसलिए चुपचाप द्वार से ही लोट गए थे।
उस बेटे को राहुल का नाम भी बुद्ध ने इसी लिए दिया था—राहु-केतु के अर्थों में। इसलिए दिया कि बुद्ध घर छोड़ने जा रहे थे। तब यह बेटा हुआ। सोचते थे कब छोड़ दू्ं, कब छोड़ दू्ं, तब यह बेटा पैदा हुआ। इस बेटे का प्रबल आकर्षण, और हजार शंकाओं-कुशंकाओं का जमघट लग गया।
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
मैं द्वार बनूं—दीवार न बनूं--
मैं तुम्हें अपने पर नहीं रोकना चाहता। मैं तुम्हारे लिए द्वार बनूं, दीवार न बनूं। तुम मुझसे प्रवेश करो, मुझ पर मत रुको। तुम मुझसे छलांग लो, तुम उड़ो आकाश में। मैं तुम्हें पंख देना चाहता हूं। तुम्हें बाँध नहीं लेना चाहता। इसलिए तुम्हें सारे बुद्धों का आकाश देता हूं।
मैं तुम्हारे सारे बंधन तोड़ रहा हूं। इसलिए मेरे साथ तो अगर बहुत हिम्मत हो तो ही चल पाओगे। अगर कमजोर हो तो किसी कारागृह को पकड़ो, मेरे पास मत आओ।
वस्तुत: मैं तुम्हें कही ले जाना नहीं चाहता; उड़ना सिखाना चाहता हूं। ले जाने की बात ही ओछी है। मैं तुमसे कहता हूं; तुम पहुँचे हुऐ हो। जरा परों को तौलो, जरा तूफ़ानों में उठो, जरा आंधियां के साथ खेलो,जरा खुले आकाश का आनंद लो। मैं तुमसे वही नहीं कहता कि सिद्धि कहीं भविष्य में है। अगर तुम उड़ सको तो अभी है,यहीं है।
--ओशो
एस धम्मो सनंतनो
भाग—6
रविवार, 21 नवंबर 2010
भगवान बुद्ध और यशोधरा--कथा यत्रा

संभोग से समाधि की और—24
युवक और यौन—
एक कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा।
एक बहुत अद्भुत व्यक्ति हुआ है। उस व्यक्ति का नाम था नसीरुद्दीन एक दिन सांझ वह अपने घर से बाहर निकलता था मित्रों से मिलने के लिए। तभी द्वार पर एक बचपन का बिछुड़ा मित्र घोड़े से उतरा। बीस बरस बाद वह मित्र उससे मिलने आया था। लेकिन नसीरुद्दीन ने कहा कि तुम ठहरो घड़ी भर मैंने किसी को बचन दिया है। उनसे मिलकर अभी लौटकर आता हूं। दुर्भाग्य कि वर्षो बाद तुम आये हो और मुझे घर से अभी जाना पड़ रहा है।, लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊँगा।
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
भगवान बुद्ध और ज्योतिषी— ( कथा यात्रा )
एक गर्म दोपहरी थी। भगवान बुद्ध नदी किनारे चले जा रहे थे। नंगे पाव होने के कारण ठंडी बालु रेत का सहारा ले पैरों को ठंडा कर लेते थे। आस पास कहीं कोई वृक्ष नहीं था। नदी का पाट गर्मी के सुकड़ कर सर्प की तरह आड़ा तिरछा और संकरा भी हो गया। चारों और बालु का विस्तार फैला हुआ था। सुर्य शिखर पर था। रेत गर्मी के कारण तप रही थी। भगवान पैरो की जलन को कम करने के लिए गीली रेत पर चल कर पैरो को ठंडा कर रहे थे। जिसके कारण उनके पद चाप नदी के गिले बालु पर चित्र वत छपे अति सुंदर लग रहे है। दुर तक कोई बड़ा पेड़ न होने के कारण, पास ही एक कैंदु की झाड़ी की छांव को देख कर पल भर विश्राम करने के लिए रूप गये। कैंदु की छांव इतनी सधन थी कि कोई-कोई धूप का चितका छन कर ही आपा रहा था।
शनिवार, 13 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और—23
यौन : जीवन का ऊर्जा-आयाम–6
इस लिए मैं तंत्र के पक्ष में हूं, त्याग के पक्ष में नहीं हूं। और मेरा मानना है जब तक धर्म दुनिया से समाप्त नहीं होते, तब तक दुनिया सुखी नहीं हो सकती। शांत नहीं हो सकती। सारे रोग की जड़ इनमें छिपी है।
तंत्र की दृष्टि बिलकुल उल्टी है। तंत्र कहता है कि अगर स्त्री पुरूष के बीच आकर्षण है तो इस आकर्षण को दिव्य बनाओ। इससे भागों मत, इसको पवित्र करो। अगर काम-वासना इतनी गहरी है तो उससे तुम भाग सकोगे भी नहीं। इस गहरी काम वासना को ही क्यों ने परमात्मा से जुड़ने का मार्ग बनाओ। और अगर सृष्टि काम से हो रही है तो परमात्मा को हम काम वासना से मुक्त नहीं कर सकते। नहीं तो कुछ तो कुछ होने का उपाय नहीं है।
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और—22

धर्म के दो रूप है। जैसा सभी चीजों के होत है। एक स्वस्थ और एक अस्वस्थ।
स्वस्थ धर्म जो जीवन को स्वीकार करता है। अस्वस्थ धर्म जीवन को अस्वीकार करता है।
जहां भी अस्वीकार है, वहां अस्वास्थ्य है जितना गहरा अस्वीकार होगा, उतना ही व्यक्ति आत्मघाती है। जितना गहरा स्वीकार होगा, उतना ही व्यक्ति जीवनोन्मुक्त होगा।
संभोग से समाधि की और—21
समाधि : संभोग-उर्जा का अध्यात्मिक नियोजन—5
एक मित्र ने पूछा है कि अगर इस भांति सेक्स विदा हो जायगा तो दुनिया में संतति का क्या होगा? अगर इस भांति सारे लोग समाधि का अनुभव करके ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जायेंगे तो बच्चों का क्या होगा।
जरूर इस भांति के बच्चे पैदा नहीं होंगे। जिस भांति आज पैदा होते है। वह ढंग कुत्ते,बिल्लियों और इल्लियों का तो ठीक है, आदमियों का ठीक नहीं हे। यह कोई ढंग है? यह कोई बच्चों की कतार लगाये चले जाना—निरर्थक, अर्थहीन, बिना जाने बुझे—यह भीड़ पैदा किये जाना। यह कितनी हो गयी? यह भीड़ इतनी हो गयी है कि वैज्ञानिक कहते है कि अगर सौ बरस तक इसी भांति बच्चे पैदा होते रहें और कोई रूकावट नहीं लगाई गई, तो जमीन पर टहनी हिलाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी। हमेशा आप सभा में ही खड़े हुए मालूम होंगे। जहां जायेंगे वहीं, सभा मालूम होंगी। सभी करना बहुत मुश्किल हो जायेगा। टहनी हिलाने की जगह नहीं रह जाने वाली है सौ साल के भीतर, अगर यही स्थिति रही।
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और—20
समाधि : संभोग-उर्जा का अध्यात्मिक नियोजन—5
यहां से मैं भारतीय विद्या भवन से बोल कर जबलपुर वापस लौटा और तीसरे दिन मुझे एक पत्र मिला कि अगर आप इस तरह की बातें कहना बंद नहीं कर देते है तो आपको गोली क्यों ने मार दि जाये? मैंने उत्तर देना चाहा था, लेकिन वह गोली मारने वाले सज्जन बहुत कायर मालूम पड़े। न उन्होंने नाम लिखा था, न पता लिखा था। शायद वे डरे होंगे कि मैं पुलिस को न दे दू्ं। लेकिन अगर वह यहां कहीं हों—अगर होंगे तो जरूर किसी झाड़ के पीछे या किसी दीवाल के पीछे छिप कर सून रहे होंगे। अगर वह यहां कहीं हों तो मैं उनको कहना चाहता हूं। कि पुलिस को देने की कोई भी जरूरत नहीं है। वह अपना नाम और पता मुझे भेज दें। ताकि में उनको उत्तर दें सकूँ। लेकिन अगर उनकी हिम्मत न हो तो मैं उत्तर यहीं दिये देता हूं। ताकि वह सुन ले।
सोमवार, 8 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और—19
समाधि : संभोग-उर्जा का अध्यात्मिक नियोजन—5
एक मित्र ने इस संबंध में और एक बात पूछी है। उन्होंने पूछा है कि आपको हम सेक्स पर कोई आथोरिटी कोई प्रामाणिक व्यक्ति नहीं मान सकते है। हम तो आपसे ईश्वर के संबंध में पूछने आये थे। और आप सेक्स के संबंध में बताने लगे। हम तो सुनने आये थे ईश्वर के संबंध में तो आप हमें ईश्वर के संबंध में बताइए।
रविवार, 7 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और—18
समाधि : संभोग-उर्जा का अध्यात्मिक नियोजन—5
लेकिन मैं जिस सेक्स की बात कर रहा हूं, वह तीसरा तल है। वह न आज तक पूरब में पैदा हुआ है, न पश्चिम में। वह तीसरा तल है स्प्रिचुअल, वह तीसरा तल है, अध्यात्मिक। शरीर के तल पर भी एक स्थिरता है। क्योंकि शरीर जड़ है। और आत्मा के तल पर भी स्थिरता है, क्योंकि आत्मा के तल पर कोई परिवर्तन कभी होता ही नहीं। वहां सब शांत है, वहां सब सनातन है। बीच में एक तल है मन का जहां पारे की तरह तरल है मन। जरा में बदल जाता है।
शनिवार, 6 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और—17
समाधि : संभोग-उर्जा का अध्यात्मिक नियोजन—5
मेरे प्रिय आत्मजन,
मित्रों ने बहुत से प्रश्न पूछे है। सबसे पहले एक मित्र ने पूछा है कि मैंने बोलने के लिए सेक्स या काम का विषय क्यों चूना?
इसकी थोड़ी सी कहानी है। एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को कुछ लोग बंबई कहते है। उस बड़े बाजार में एक सभा थी और उस सभा में एक पंडितजी कबीर क्या कहते है, इस संबंध में बोलते थे। उन्होंने कबीर की एक पंक्ति कहीं और उसका अर्थ समझाया। उन्होंने कहा, ‘’कबिरा खड़ा बजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर बारे अपना चले हमारे साथ।’’ उन्होंने यह कहा कि कबीर बाजार में खड़ा था और चिल्लाकर लोगों से कहने लगा कि लकड़ी उठाकर बुलाता हूं उन्हें जो अपने घर को जलाने की हिम्मत रखते हों वे हमारे साथ आ जायें।
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
संभोग से समाधि की और-16
समाधि : अहं-शून्यता समय शून्यता का अनुभव—4
और अब तो हम उस जगह पहुंच गये है कि शायद और पतन की गुंजाइश नहीं है। करीब-करीब सारी दुनिया एक मेड हाऊस एक पागलखाना हो गयी है।
अमरीका के मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगया है न्यूयार्क जैसे नगर में केवल 18 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्वस्थ कहे जा सकते है। 18 प्रतिशत, 18 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्वास्थ है। तो 82 प्रतिशत लोग करीब-करीब विक्षिप्त होने की हालत में है।
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