‘’या
कल्पना करो
कि मयूर पूंछ
के पंचरंगे
वर्तुल निस्सीम
अंतरिक्ष में
तुम्हारी
पाँच इंद्रियाँ
है। अब उनके
सौंदर्य को
भीतर ही घुलने
दो। उसी
प्रकार शून्य
में या दीवार
पर किसी बिंदु
के साथ कल्पना
करो, जब तक कि
वह बिंदु
विलीन न हो
जाए। तब दूसरे
के लिए तुम्हारी
कामना सच हो
जाती है।‘’
ये
सारे सूत्र,
भीतर के
केंद्र को
कैसे पाया
जाए, उससे
संबंधित है।
उसके लिए जो
बुनियादी
तरकीब, जो
बुनियादी
विधि काम में
लायी गयी है,
वह यह है कि
तुम अगर बाहर
कहीं भी, मन
में, ह्रदय
में या बाहर
की किसी दीवार
में एक केंद्र
बना सके और उस
पर समग्रता से
अपने अवधान को
केंद्रित कर
सके और उस बीच
समूचे संसारा
को भूल सके और
एक वहीं बिंदू
तुम्हारी
चेतना में रह
जाए। तो तुम
अचानक अपने
आंतरिक
केंद्र पर
फेंक दिए
जाओगे। यह
कैसे काम करता
है, इसे समझो।
तुम्हारा मन
एक भगोड़ा है,
एक भाग दौड़
ही है। वह कभी
एक बिंदु पर
नहीं टिकता
है। वह निरंतर
कहीं जा रहा
है। गति कर
रहा है।