दिनांक
11
नवम्बर1979;
श्री
रजनीश आश्रम
पूना।
सूत्र:
अब
तेरी शरण आयो
राम।।
जबै सुनिया
साध के मुख, पतितपावन
नाम।।
यही
जान पुकार कीन्ही, अति
सतायो
काम।।
विषय
सेती भयो आजिज, कह
मलूक
गुलाम।।
सांचा
तू गोपाल, सांच
तेरा नाम है।
जहंवां
सुमिरन होय, धन्य
सो ठाम है।।
सांचा
तेरा भक्त, जो
तुझको जानता।
तीन
लोक को राज, मनैं
नहिं आनता।।
झूठा
नाता छोड़ि, तुझे
लव लाइया।