अज्ञान
का बोध, इस
संबंध में
थोड़ी सी बात
मैं आपसे कहना
चाहता हूं।
जैसा
मुझे दिखाई
पड़ता है, अज्ञान
के बोध के
बिना कोई
व्यक्ति सत्य
के अनुभव में
प्रवेश न कभी
किया है और न
कर सकता है। इसके
पहले कि
अज्ञान छोड़ा
जा सके, ज्ञान
को छोड़ देना
आवश्यक है।
इसके पहले कि
भीतर से
अज्ञान का
अंधकार मिटे,
यह जो ज्ञान
का झूठा
प्रकाश है, इसे बुझा
देना जरूरी
है। क्योंकि
इस झूठे प्रकाश
की वजह से, जो
वास्तविक
प्रकाश है, उसे पाने की
न तो आकांक्षा
पैदा होती है,
न उसकी तरफ
दृष्टि जाती
है। एक छोटी
सी घटना इस
संबंध में
कहूंगा और फिर
आज की चर्चा
शुरू करूंगा।
एक
पूर्णिमा की
रात्रि में, एक बहुत
विलक्षण कवि
एक नौका पर
बजरे में यात्रा
कर रहा था।
छोटा सा झोपड़ा
था बजरे का, नौका थी, पूर्णिमा
की रात थी। वह
भीतर बैठ कर, मोमबत्ती को
जला कर, उसके
प्रकाश में किसी
ग्रंथ को पढ़ता
रहा। फिर जब
आधी रात हो गई और
वह थक गया तो
उसने
मोमबत्ती को
बुझाया, सोने
की तैयारी की।