कुल पेज दृश्य

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

ओशो सत्‍संग--एक दृष्‍टी

 जन
फ़र
मार्च
अप्रै
मई
जून
जुला
अग
सित
अक्टू
नव
दिस
Total

2010

6
768
948
2,708
2,526
4,378
7,803
8,276
5,504
6,455
8,911
48,283
2011
9,056
12,061
19,336
20,046
15,785
16,453
17,962
18,209
16,887
13,503
15,684
18,675
193,657
20122
22,1011
24,292
26,170
23,661
27,055
25,474
25,681
23,189
23,919
25,382
21,821
22,272
291,017
2013
26,156
23,336
23,575
11,999
23,435
22,296
22,866
25,602
24,244
28,117
25,473
28,400
285,499
2014
37,520
34,380
37,759
43,084
41,074
41,131
48,037
50,753
60,052
58,778
68,706
73,752
593,026

Average per Day

जन
फ़र
मार्च
अप्रै
मई
जून
जुला
अग
सित
अक्टू
नव
दिस
Overall
2010

6
25
32
87
84
141
252
276
178
215
287
157
2011
292
431
624
668
509
548
579
587
563
436
523
602
531
2012
713
838
844
789
873
849
828
748
797
819
727
718
795
2013
844
833
760
400
756
743
738
826
808
907
849
916
782
2014
1,210
1,228
1,218
1,436
1,325
1,371
1,550
1,637
2,002
1,896
2,290
2,379
1,628

गीता दर्शन--(भाग--5) प्रवचन--113

अज्ञेय जीवन—रहस्‍य—(प्रवचन—पहला)


श्रीमद्रभगवइगीता अथ दशमोउध्याय
अध्‍याय—10 (113)

 श्रीभगवानुवाच:
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वच:।
यतेउहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया।। 1।।
न मे बिंदु:— सुरगणा: प्रभवं न महर्षयः।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः।। 2।।
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्।
असंमूढ़ स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्‍यते।। 3।।

भगवान श्रीकृष्ण बोले हे महाबाहो फिर भी मेरे परम वचन श्रवण कर जो कि मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की हच्छा से कहूंगा।
हे अर्जुन मेरी उत्पति को अर्थात विभूतिसहित लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदि कारण हूं।
और जो मेरे को अजन्मा अनादि तथा लोकों का महान र्ड़श्वर तत्व से जानता है वह मनुष्यों में ज्ञानवान पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।

ताओ उपनिषद--प्रवचन--123

निर्बल के बल राम—(प्रवचन—एकसौतैइसवां)
अध्याय 78
पानी से दुर्बल कुछ नहीं

पानी से दुर्बल कुछ भी नहीं है,

लेकिन कठिन को जीतने में उससे

बलवान भी कोई नहीं है;

उसके लिए उसका कोई पर्याय नहीं है।

यह कि दुर्बलता बल को जीत लेती है

और मृदुता कठोरता पर विजय पाती है;

इसे कोई नहीं जानता है;

इसे कोई व्यवहार में नहीं ला सकता है।

इसलिए संत कहते हैं:

"जो संसार की गालियों को अपने में

समाहित कर लेता है, वह राज्य का संरक्षक है।

जो संसार के पाप अपने ऊपर ले लेता है,

वह संसार का सम्राट है।'

सीधे शब्द टेढ़े-मेढ़े दिखते हैं।

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-18)

वासना-रहितता और विशुद्ध इंद्रियां—(प्रवचन—अट्ठारहवां)
दिनांक 8 जुलाई 1974 (प्रातः),
श्री रजनीश आश्रम; पूना.
भगवान!

संत उत्झूगेन ने एक दिन अपने शिष्यों से कहा,
'तुम में से प्रत्येक के पास एक जोड़ा कान है,
लेकिन उनसे तुमने क्या कभी कुछ सुना?
प्रत्येक के पास मुंह हैं, लेकिन उससे तुमने क्या कभी कुछ कहा?
और प्रत्येक के पास आंखें हैं, उनसे क्या कभी कुछ देखा?'
'नहीं-नहीं। तुमने न कभी सुना है, न कभी कहा है, न कभी देखा है, न कभी सूंघा है।
लेकिन ऐसी हालत में ये रंग, रूप, स्वर और सुगंध आते कहां से हैं?'

पतंजलि: योगसूत्र--(भाग--3) प्रवचन--46

ऊर्जा का रूपांतरण(प्रवचनछट्ठवां)


दिनांंक  6 जूलाई 1975 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्न—सार:



1—आप हमारे लिए कौन सा मार्ग उदघाटित कर रहे हैं?

2—आपके पास आकर ध्यानमय जीवन सरल और स्वाभाविक हो गया है। लेकिन मैंने बुद्धत्व की' आशा छोड़ दी है। क्या ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं?

3—क्या अस्‍तित्‍व मुझसे प्रेम करता है?

4—क्या दमन के मार्ग से चेतना की ऊंचाइओं को छूना संभव है?

5—झेन की सहजता और योग का अनुशासन क्या कहीं आपस में मिलते हैं?

6आपके विरूद्ध प्रचार करने के लिए मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए!

7—प्रेम या ध्‍यान—किस द्वार से प्रवेश करें?

8—आपके विरूद्ध हो रहे प्रचारों से घिरा साधक क्‍या करे?

9—आप किसी की निंदा नहीं करते, फिर सत्‍य साईंबाबा, कृष्‍णमूर्ति और अमरीकी गुरूओं की आलोचना क्‍यों करते है?

10—क्‍या केवल पुस्‍तकें पढ़ कर बुद्धत्‍व घट सकता है?

11—आपका सत्‍संग हमें घंटे, डेढ़ घंटे से ज्‍यादा क्‍यों नहीं मिलता?

12—योग के आठ चरणों का क्रम क्या किसी के लिए बदला भी जा सकता है?

13—तिब्बती गुरु चोग्याम त्रुंगपा का शराब पीकर मूर्च्‍छित हो जाना उनकी क्या स्थिति बताता है?

कहानियां, काबा ओर बुद्ध



मनुष्य की बहुत सी परिभाषाएं की गई हैं। मैं कहना चाहूंगा : मनुष्य कहानी गढ़ने वाला प्राणी है। वह मिथक निर्मित कर लेता है—मनगढ़त किस्से—कहानियां। सारे पुराण कहानियां हैं। मनुष्य जीवन के विषय में, अस्तित्व के विषय में कहानियां निर्मित कर लेता है।
मनुष्यता के प्रारंभ से ही मनुष्य निर्माण करता रहा है सुंदर पुराणों का। वह निर्मित करता है परमात्मा। वह निर्मित करता है यह बात कि परमात्मा ने संसार को बनाया; और वह गढ़ता रहता है सुंदर—सुंदर कहानियां। वह कल्पनाएं बुनता रहता है, वह नई—नई कहानियां अपने चारों ओर गढ़ता रहता है। मनुष्य कहानियां गढ़ने वाला प्राणी है; और जीवन एकदम उबाऊ हो जाएगा यदि उसके आस—पास कोई कहानी न हो।