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शनिवार, 10 अगस्त 2013

ओशो के हिंदी साहित्‍य की बहार....

पिछले दिनों एक मित्र सन्‍यासी जब मुझसे मिलने के लिए आई तब बातों ही बातों में बात ओशो के हिन्‍दी साहित्‍य तक आ गई। तब उसे सन्‍यासी ने कहां की ओशो की मधुर वाणी जितनी हिन्‍दी में लगती है। उतना रसा-स्‍वाद अंग्रेजी में नहीं आता। मुझे अंदर से खुशी हुई। और गर्व भी हुआ की हिंदी या संस्‍कृत में जरूर कुछ है जो अंग्रेजी या दुनियां की दूसरी भाषाओं में नहीं है। क्‍यों हिंदी मस्‍तिष्‍क के तीन आयामों में चहली है। और संस्‍कृत तो शायद इससे भी अधिक में। जबकि अंग्रेजी दो एक ही आयाम में फंस कर रह जाती है।

     ओशो के हिंदी साहित्‍य पर मैं तीन साल से काम कर रहा हूं। एक-एक किताब को पढ़ कर टाईप कर रहा हूं। कितना कठिन ओर थका देने वाला काम है। इतने सालों के अथक प्रयास से मात्र में ओशो के सागर से पाँच या छ: पुस्तकें ही आप तक पहुंचा सका हूं। और मेरे पास ओशो साहित्‍य की 250 पुस्‍तकों का भंडार है। तब इस कठिन काम को हम तीनों यानि स्‍वामी प्रेम विस्‍तार, स्‍वामी जीवन प्रमोद ने उठाया की जितना अधिक से अधिक हो सके हिंदी साहित्‍य को जन-जन तक पहुंचाया जाए। और इतने दिन तक आप के पास मेरी पोस्‍ट न आने का यहीं कारण है। मैं दिन में 14घंटे इसी काम को देता हूं।
     ओशो वर्ड पर हिंदी साहित्‍य की पी डी फ फाईल देखी वह इतने ज्‍यादा युनिकोड़ में टाईप की  हुई है.....शायद एक ही किताब 20-30 सर चकरा जाता है। तब क्‍या किया जाये। इतनी किताबें टाईप तो कि नहीं  जा सकती। उसके लिए तो समय भी बहुत चाहिए। पूना से भी हिन्‍दी साहित्‍य की इ बूक तैयार नहीं की जा रही। अब पी डी फ फाईल को आप केवल कम्‍पयूटर पर पढ़ सकते है। या प्रिंट कर सकते है। पुस्तकें तो सफर में या कहीं भी साथ होनी चाहिए। आज आधुनिक युग में जहां ओशो समय से 100 साल आगे थे। उस जमाने में उनके प्रवचनों की डीबीसी रिकार्ड किया गया। आडियों रिर्काडिंग किया गया। परंतु आज कुछ नहीं हो रहा। आप हिंदी की पुस्तकें (इ बुक) ढूंढ नहीं सकते। जिसे आप फोन या किन डल टेप पर पढ़ सके। लेकिन हमने इसका हल निकल लिया है....अब आप तैयार हो जाये। ओशो के हिंदी साहित्‍य को पढ़ने के लिए.....इसका एक उदाहरण आज आपके सामने ला रहा हूं। भगवान बुद्ध का एस धम्‍मो सनंतनो पर दिए गये 125 प्रवचनों की 12 पुस्‍तकें है। जिसमे से पहले भाग के 10 प्रवचन आप पढ़े....भगवान की सलिल शब्‍दों में.......
     आप का हिंदी प्रेम ही मुझे उत्‍साहित कर रहा है....मेरे ब्‍लाक पर इतने लोग रोज पढ़ने के लिए आते है। मन करता है ओशो समुद्र से चंद मोती और निकाल कर रख दूं........मेरा प्रेम
स्‍वामी
आनंद प्रसाद

4 टिप्‍पणियां:

  1. मान्यवर मनसा आनन्द जी,

    यह सचमुच कठिन और थका देने वाला काम है पर एक फायदा---एक राहत इस थकान में से ही मिलती है---की कुछ समय के लिए फिर से एक बार उस महान पुरुष के साथ में अंतरंगता से खो जाना----गुजर गया समय---बीता हुआ जो वक्त कभी नहीं आता--उसे एक बार फिर लौटा लाना----

    आप ओशो की कालजयी वाणी को जिस तरह सहेज कर हिंदी में प्रस्तुत कर रहे हैं वह प्रशंसा का कार्य तो है ही साथ ही समाज के प्रति एक गंभीर ज़िम्मेदारी भी---

    धीरे धीरे ही सही पर एक दिन उह दुनिया आपकी इस थकन भरी मेहनत के अहसास को महसूस भी करेगी और इस कार्य में आपके संग हो कर एक काफिला भी बनेगी----

    यह थकान जारी रहे---यह जनून जारी रहे---इसी कामना के साथ---आभारी भी हूँ---एक पुराना गीत याद आ रहा है---
    दर्द ज़माने में कम नहीं मिलते
    सब को मोहब्बत के गम नहीं मिलते ....!
    कोई प्याले से पीता है---कोई आँखों से पीता है---आप शब्दों से पी भी रहे हैं---पिला भी रहे हैं-----एक बार फिर धन्यवाद----चलती रहे यह मधुशाला----! -रेक्टर कथूरिया (पंजाब स्क्रीन)

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  2. मधू ने भर दी गागर ओर अथाह ने पकड़ा दामन।
    चल पड़े हम उस ड़गर पर जो मुझे पता नहीं है।
    कौन पकड़ता है दामन, क्‍यों छूता एक रहस्‍य।
    किन कानों मेंगुनगुनाये गीत,
    को वीणा के तार जोडता है।
    एक यही है्......
    यही है ....यहीं है
    उसे सब प्रेम कहते है।
    स्‍वामी आनंद प्रसाद मनसा
    कथुरीयां जी आपका प्रेम पाकर लगा ओशो के आंचल से एक झोंका प्रेम का आयाओर मीलो की थकानपल में कफूर ओर गई.....प्रेम।

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  3. जीवन की हर परिस्तिथियों में प्रेरणा दाई

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