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शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

अहंकार के सात द्वार-(मनसा मोहनी)

अहंकार के सात द्वार-(मनसा मोहनी)


कुछ दिन पहले हम सात द्वारों के बारे में बात कर रहे थे – कि हम अहंकार को कैसे पोषित करते है। अहंकार कैसे बनता है, अहंकार का भ्रम कैसे मजबूत होता है। इसके बारे में कुछ बातें गहराई से जानना हम सब के लिए मददगार होगा। जिस प्रकार हमारे शरीर में सात चक्र है, तो प्रत्येक चक्र का एक सूर है एक ताल है, लय है। इसी प्रकार हर चक्र का एक रंग है। ठीक इसी प्रकार हर चक्र को एक अहंकार भी है। ये सून कर आप को थोड़ा अजीब जरूर लगेगा।

तो अब एक-एक द्वार से हम अहंकार को समझने की कोशिश करते है। अहंकार से डरना नहीं चाहिए। लेकिन जिस तरह से एक तलवार आप की रक्षा कर सकती है। वह आपकी गर्दन भी काट सकती है। हर उर्जा के दो रूप होते है। इस गहरे से समझना होगा।

शनिवार, 3 अगस्त 2024

05 - हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय - 05

अध्याय का शीर्षक: शून्यता की सुगंध - (The Fragrance of Nothingness)

दिनांक -15 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

सूत्र:

अतः हे सारिपुत्र!

शून्यता में कोई आकार नहीं है,

न भावना, न बोध,

न आवेग, न चेतना;

कोई आँख, कान, नाक, जीभ, शरीर, मन नहीं;

कोई रूप, ध्वनि, गंध, स्वाद, स्पर्शनीय वस्तु नहीं

या मन की वस्तुएं;

कोई दृष्टि-अंग तत्व, इत्यादि नहीं,

जब तक हम इस स्थिति तक नहीं पहुंचते:

कोई मन-चेतना तत्व नहीं;

अज्ञान नहीं है, अज्ञान का नाश नहीं है,

और इसी प्रकार आगे बढ़ते हुए,

जब तक हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाते:

वहाँ कोई क्षय और मृत्यु नहीं है,

क्षय एवं मृत्यु का कोई अन्त नहीं।

वहाँ कोई दुःख नहीं, कोई उत्पत्ति नहीं,

ना कोई रोक, ना कोई रास्ता।

न कोई अनुभूति है, न कोई उपलब्धि

और कोई अप्राप्ति नहीं।

 

शून्यता परे की सुगंध है। यह पारलौकिक के लिए हृदय का खुलना है। यह एक हजार पंखुड़ियों वाले कमल का खिलना है। यह मनुष्य की नियति है। मनुष्य तभी पूर्ण होता है जब वह इस सुगंध तक पहुँच जाता है, जब वह अपने अस्तित्व के भीतर इस परम शून्यता तक पहुँच जाता है, जब यह शून्यता उसके चारों ओर फैल जाती है, जब वह बस एक शुद्ध आकाश होता है, बादल रहित।

गुरुवार, 1 अगस्त 2024

28-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -28

अध्याय का शीर्षक: (यदि आप तैरते हैं, तो आप चूक जाते हैं)

दिनांक15 सितम्बर 1986 अपराह्न

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

अहंकार को समर्पित करने के लिए हम अपनी ओर से क्या कर सकते हैं, जबकि समर्पित करने की यह इच्छा ही हमारा अभिन्न अंग है?

 

लतीफा, अहंकार एक पहेली है। यह अंधकार जैसा कुछ है - जिसे आप देख सकते हैं, जिसे आप महसूस कर सकते हैं, जो आपके रास्ते में बाधा डाल सकता है लेकिन जिसका अस्तित्व नहीं है। इसमें कोई सकारात्मकता नहीं है। यह बस एक अनुपस्थिति है, प्रकाश की अनुपस्थिति।

अहंकार तो अस्तित्व में ही नहीं है - आप उसे कैसे समर्पित कर सकते हैं?

अहंकार केवल जागरूकता का अभाव है।

कमरा अंधकार से भरा है; आप चाहते हैं कि अंधकार कमरे से बाहर निकल जाए। आप अपनी शक्ति के अनुसार सब कुछ कर सकते हैं -- इसे बाहर धकेलें, इसे हराएँ -- लेकिन आप सफल नहीं होने वाले हैं। अजीब बात यह है कि आप किसी ऐसी चीज़ से हार जाएँगे जो मौजूद ही नहीं है। थककर आपका मन कहेगा कि अंधकार इतना शक्तिशाली है कि इसे दूर करना, इसे बाहर निकालना आपकी क्षमता में नहीं है। लेकिन यह निष्कर्ष सही नहीं है; यह जर्मन है, लेकिन यह सही नहीं है।