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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

भारत एक सनातन यात्रा—गंगा-

गंगा—एक जीवंत नदी है
      गंगा के प्रतीक को भी समझने जैसा है। गंगा के साथ हिंदू मन बड़े गहरे में जुड़ा है। गंगा को हम भारत से हटा लें, तो भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । सब बचा रहे, गंगा हट जाए, भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए। गंगा को हटा ले तो भारत का साहित्‍य अधूरा पड़ जाए। गंगा को हम हटा ले तो हमारे तीर्थ ही खो जाए, हमारे सारे तीर्थ की भावना खो जाए।
      गंगा के साथ भारत के प्राण बड़े पुराने दिनों से कमिटेड़ है। बड़े गहरे से जुडे है। गंगा जैसे हमारी आत्‍मा का प्रतीक हो गई है। मुल्‍क की भी अगर कोई आत्‍मा होती हो और उसके प्रतीक होते हो तो, गंगा ही हमारा प्रतीक है। पर क्‍या कारण होगा गंगा के इस गहरे प्रतीक बन जाने का कि हजारों-हजारों वर्ष पहले कृष्‍ण भी कहते है। नदियों में मैं गंगा हूं।
      गंगा कोई नदियों में विशेष विशाल उस अर्थ में नहीं है। गंगा से बड़ी नदिया है। गंगा से लंबी नदिया है। गंगा से विशाल नदिया पृथ्‍वी पर है। गंगा कोई लंबाई में, विशालता में, चौड़ाई में किसी दृष्‍टि से बहुत बड़ी गंगा नहीं है। कोई बहुत बड़ी नदी नहीं है। ब्रह्मपुत्र  है, और अमेजान है, और ह्व्‍गांहो हो है। और सैकड़ों नदिया है। जिसके सामने गंगा फीकी पड़ जाए।
      पर गंगा के पास कुछ और है, जो पृथ्‍वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है। और उस कुछ के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ ताल-मेल बना लिया है। एक तो बहुत मजे की बात है। कि पूरी पृथ्‍वी पर गंगा सबसे ज्‍यादा जीवंत नदी है, अलाइव। सारी नदियों का पानी आप बोतल में भर कर रख दें, सभी नदियों का पानी सड़ जाएगा। गंगा भर का नहीं सड़ेगा। केमिकली गंगा बहुत विशिष्‍ट है। उसका पानी डिटरिओरेट नहीं होता, सड़ता नहीं, वर्षों रखा रहे। बंद बोतल में भी वह अपनी पवित्रता, अपनी स्‍वच्‍छता कायम रखता है।
      ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्‍वी पर नहीं है। सभी नदियों के पानी इस अर्थों में कमजोर है। गंगा का पानी इस अर्थ में विशेष मालूम पड़ता है। उसका विशेष केमिकल गुण मालूम पड़ता है।
      गंगा में इतनी लाशें हम फेंकते है। गंगा में हमने हजारों-हजारों वर्षों से लाशें बहाई है। अकेले गंगा के पानी में, सब कुछ लीन हो जाता है, हड्डी भी। दुनिया की किसी नदी में वैसी क्षमता नहीं है। हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है। और बह जाती है और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती। गंगा सभी को आत्‍म सात कर लेती है। हड्डी को भी। कोई भी दूसरे पानी में लाश को  हम डालेंगे, पानी सड़ेगा। पानी कमजोर और लाश मजबूत पड़ती है। गंगा में लाश को हम डालते है, लाश ही बिखर जाती है। मिल जाती है अपने तत्‍वों में। गंगा अछूती बहती रहती है। उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
      गंगा के पानी की बड़ी केमिकल परीक्षाएं हुई है वैज्ञानिक। और अब तो यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गया है कि उसका पानी असाधारण है।
      यह क्‍यों है असाधारण, यह भी थोड़ी हैरानी की बात है, क्‍योंकि जहां से गंगा निकलती है वहां से बहुत नदियों निकलती है। गंगा जिन पहाड़ों से गुजरती है वहां से कई नदियों गुजरती है। तो गंगा में जो खनिज और जो तत्‍व मिलते है वे और नदियों में भी मिलते है। फिर गंगा में कोई गंगा का ही पानी तो नहीं होता, गंगोत्री से तो बहुत छोटी-सी धारा निकलती है। फिर और तो सब दूसरी नदियों का पानी ही गंगा में आता है। विराट धारा तो दूसरी नदियों के पानी की ही होती है।    
      लेकिन यह बड़े मजे की बात है कि जो नदी गंगा में नहीं मिली, उस वक्‍त उसके पानी का गुणधर्म और होता है। और गंगा में मिल जाने के बाद उसी पानी का गुण धर्म और हो जाता है। क्‍या होगा कारण? केमिकली तो कुछ पता नहीं चल पाता। वैज्ञानिक रूप से इतना तो पता चलाता है कि विशेषता है और उसके पानी में खनिज और कैमिकल्स का भेद है। विज्ञान इतना कहा सकता है। लेकिन एक और भेद है वह भेद विज्ञान के खयाल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा। और वह भेद है, गंगा के पास लाखों-लाखों लोगों का जीवन की परम अवस्‍था को पाना।
      यह मैं आपसे कहना चाहूंगा कि पानी जब भी कोई व्‍यक्‍ति, अपवित्र व्‍यक्‍ति पानी के पास बैठता है—अंदर जाने की तो बात अलग—पानी के पास भी बैठता है, तो पानी प्रभावित होता है। और पानी उस व्‍यक्‍ति की तरंगों से आच्‍छादित हो जाता है। और पानी उस व्‍यक्‍ति की तरंगों को अपने में ले लेता है।
      इसलिए दुनिया के बहुत से धर्मों ने पानी का उपयोग किया है। ईसाइयत ने बप्‍तिस्‍मा, बेप्‍टिज्‍म के लिए पानी का उपयोग किया है।
      जीसस को जिस व्‍यक्‍ति ने बप्‍तिस्‍मा दिया, जान दि बैपटिस्ट ने, उस आदमी का नाम ही पड़ गया थ जान बप्‍तिस्‍मा वाला। वह जॉर्डन नदी में—और जॉर्डन यहूदियों के लिए वैसी ही नदी रही, जैसी हिंदुओं के  लिए गंगा। वह जॉर्डन नदी में गले तक आदमी को डूबा देता, खुद भी पानी में डुबकर खड़ा हो जाता, फिर उसके सिर पर हाथ रखता और प्रभु से प्रार्थना करता उसके इनीशिएशन की, उसकी दीक्षा की।
      पानी में क्‍यों खड़ा होता था जान? और पानी में दूसरे व्‍यक्‍ति को खड़ा करके क्‍या कुछ एक  व्‍यक्‍ति की तरंगें और एक व्‍यक्‍ति के प्रभाव ओ एक व्‍यक्‍ति की आंतरिक दशा का आंदोलन दूसरे तक पहुंचना आसान है।
      आसान है। पानी बहुत शीध्रता से चार्ज्‍ड हो जाता है। पानी बहुत शीध्रता से व्‍यक्‍तित्‍व से अनुप्राणित हो जाता है। पानी पर छाप बन जाती है।    
      लाखों-लाखों वर्ष से भारत के मनीषी गंगा के किनारे बैठकर प्रभु को पाने की चेष्‍टा करते रहे है। और जब भी कोई एक व्‍यक्‍ति ने गंगा के किनारे प्रभु को पाया है, तो गंगा उस उपलब्‍धि से वंचित नहीं रही है। गंगा भी आच्‍छादित हो जाती है। गंगा का किनारा, गंगा की रेत के कण-कण, गंगा का पानी, सब, इन लाखों वर्षों से एक विशेष रूप से स्‍प्रिचुअली चार्ज्ड, आध्‍यात्‍मिक रूप से तरंगायित हो गया है।
      इसलिए हमने गंगा के किनारे तीर्थ बनाए।
      गंगा साधारण नदी नहीं है। एक अध्यात्मिक यात्रा है और एक अध्‍यात्‍मिक प्रयोग। लाखों वर्षों तक लाखों लोगों को उसके निकट मुक्‍ति को पाना,परमात्‍मा के दर्शन को उपलब्‍ध होना,आत्‍म-साक्षात्‍कार को पाना, लाखों का उसके किनारे आकर अंतिम घटना को उपलब्‍ध होना,वे सारे लोग अपनी  जीवन-ऊर्जा को गंगा के पानी पर उसके किनारों पर छोड़ गए है।
ओशो—गीता दर्शन—भाग-5, (अध्‍याय-10, प्रवचन-12)

2 टिप्‍पणियां:

  1. ganga par adbhut niband....mera janm banaras me hua, isliye bhi ganga ko lekar mai bhavuk ho jata hu. pata nahi aaj bhi ganga kajal utana hi svaksh rahataa hai, jitana pahale hua karata tha? jaisa osho ne kaha hai..? khair, fir bhi ganga gangahai. usako naman...

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  2. प्रिय गिरिश पंकज जी,
    गंगा अगर इस पृथ्‍वी की धडकन है। जिस दिन वो सुख गई ये पृथ्‍वी बहुत कुछ खो देगी। शयद इस से पहलें को चमत्‍कार हो जाए......गंगा नाम से ही कुछ-कुछ होने लग जाता है। जब मैं अपने ओशे ब्‍लाग का नाम चुल रहा था तो दो ही शब्‍द मेंरे दिमाग मैं थे, एक ओशो ओर दुसरा गंगा दो ही दोनो ही ने मिल कर मेरे ब्‍लाग की शोभ बढा दी।
    मनसा आनंद मानस

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