कैलाश हिमालय में नहीं है। जाते है लोग, सोचते है वहां होगा। कैलाश ह्रदय के उस शिखर का नाम है। ज्ञान के उस शिखर का नाम है, जहां से कभी भगवान च्युत नहीं होता। आपके भीतर का भगवान भी कभी च्युत नहीं होता जहां से।
जिस दिन उस शिखर पर हम पहुंच जाते है। भीतर के—सब घाटियों को छोड़कर, घाटियों की वासनाओं को छोड़ कर—उस दिन ऐसा नहीं हो ताकि हमें कुछ नया मिल जाता है। एकसा ही होता है कि जो हमारा सदा था, उसका आविष्कार, उसका उदघाटन हो जाता है। हम जानते है, हम कौन थे। और हम जानते है कि हम किस तरह च्युत होते रहे, किस तरह भटकते रहे। किस कीमत पर हमने अपने को गंवाया और क्षुद्र चीजों को इक्ट्ठा किया। कंकड़-पत्थर बीनें और आत्मा बेची।
--ओशो (गीता दर्शन—भाग-3, अध्याय-7, प्रवचन—7)
कैलाश ह्रदय के उस शिखर का नाम है। ज्ञान के उस शिखर का नाम है, जहां से कभी भगवान च्युत नहीं होता। ---bahut acchaa darshan
जवाब देंहटाएं