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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—21

मुझे सुझाव दे--आदेश नहीं
    मेरे बचपन में मेरे माता पिता के साथ यह प्रतिदिन की समस्‍या थी। मैंने उनसे बार-बार कहा, एक बार आप लोगों को समझ लेनी चाहिए कि यदि आप चाहते है कि मैं कुछ करू, तो मुझको वह करने के लिए कहें मत, क्‍योंकि यदि आप कहेंगे कि मुझको इसे करना पड़ेगा, तो मैं ठीक उलटा कर देने वाला हूं—चाहे जो भी हो।      
      मेरे पिता ने कहा: तुम ठीक उलटा कर ड़ालोगे।
      मैंने कहा: बिलकुल सही—ठीक उलटा। मैं किसी भी दंड के लिए तैयार हूं, लेकिन वास्‍तव में इस स्‍थिति के लिए आप उत्‍तरदायी है, मैं नही; क्‍योंकि मैंने आरंभ से ही इस बात को स्‍पष्‍ट कर दिया है कि यदि आप वास्‍तव में कोई बात मुझसे करवाना चाहते है तो उसे करने के लिए मुझसे मत कहिए। उसे मुझे स्‍वयं ही खोजने दें।  
    
      एक बार मुझको कुछ करने का आदेश दे दिया गया, तो मेरे द्वारा उस कि अवज्ञा होना निशिचत है। भले ही मैं जानता होऊं कि आप जो कह रहे है वह सही है। किंतु यहां पर यह प्रश्‍न ही नहीं है। यह छोटी सी बात और उसके ठीक होने का कोई बहुत अधिक महत्‍व नहीं है। यह मेरे सारे जीवन का प्रश्‍न है। कौन नियंत्रण में होना चाहता है। इस छोटे से उचित और अनुचित को मेरे लिए कोई अर्थ नहीं था। न ही इससे कोई अंतर पड़ता था।
      मेरे लिए जिसका महत्‍व है—और यह जीवन और मृत्‍यु का प्रश्न है—वह है कि नियंत्रण में कौन रहने वाला है। क्‍या आप नियंत्रण में रहेंगे, या मैं नियंत्रण में रहने वाला हूं। यह मेरा जीवन है या आपका जीवन?
      कई बार उन्‍होंने प्रयास किया और उन्‍होंने पाया कि मैं अपने निर्णय पर अडिग था। मैं ठीक उलटा कर डालुगां। निस्संदेह यह ठीक नहीं था। जो वे चाहते थे वह निश्‍चित रूप से उचित था। और इस तथ्‍य का मेरी ओर से कोई इनकार भी नहीं था। मैं कहता: जो आप चाहते थे ठीक था। लेकिन आप चाहते थे इसीलिए मेरे लिए यह ठीक नहीं था, आपने मुझको अवसर दिया होता। आप अधीर थे, आपने मुझको विपरीत कृत्‍य करने के लिए बाध्य कर दिया। अब ये चीजें गलत हो गई है। तो उनके लिए कौन उत्‍तर दायी है।  
      उदाहरण के लिए मेरे दादा अस्वस्थ थे। मेरे पिता बाहर जा रहे थे। और उन्‍होंने मुझसे कहा: तुम यहां हो और तुम अपने दादा के इतने अच्‍छे मित्र भी हो इसलिए जरा थोड़ा सा खयाल रखना। यह दवा तीन बजे दी जानी है और वह दवा छह बजे दी जाने वाली है।
      मैंने ठीक उलटा कर डाला—और मैने वह दवा छह बजे वाली थी वी बजे दे दी, और वह दवा जो तीन बजे दी जाने वाली थी वह छह बजे दे डाली। पूरी व्‍यवस्‍था बदल दी। स्‍वभावत: मेरे दादा और बुरी तरह से अस्‍वस्‍थ हो गए। और जब मेरे पिता लौटे ति उन्‍होंने कहा: यह तो हद हो गई। मैंने कभी कल्‍पना भी नहीं की थी कि तुम ऐसा कर दोगे।
      मैंने कहा: आपको कल्‍पना कर लेना चाहिए थी। आपको कल्‍पना में देखना आरंभ कर देना चाहिए। जब मैंने यह कह दिया है। तो मुझको यही करना पड़ेगा, भले ही उसका अर्थ अपने दादा को खतरे में डालना हो। और मैंने उनसे कह दिया था कि मैंने दवा का क्रम उलटा कर दिया है। क्‍योंकि मुझको इसे इस ढंग से करना पड़ेगा। और वे मेरे साथ सहमत हो गए।
      मेरे दादा मनुष्‍यों में एक रत्‍न थे। उन्‍होंने कहा: तुम ठीक वैसा ही करो जैसा तुमने कहा है। अपने निर्णय पर अडिग रहो। अपना जीवन मैं जी चुका हूं, तुम्‍हारा जीवन जिया जाना शेष है। किसी के द्वारा नियंत्रित मत होओ। यदि मैं मर भी जाता हूं, तो कभी इसके बारे में अपराध बोध अनुभव मत करना।
      वे नहीं मरे। लेकिन मैंने एक खतरनाक निर्णय लिया था। मेरे पिता ने उस दिन से मुझको कोई भी काम कहने के लिए बंद कर दिया। मैंने कहा: आप सुझाव दे सकते है, आप आदेश नहीं दे सकते। आपको अपने पुत्र के प्रति विनम्र होना सीखना पड़ेगा, क्‍योंकि जहां तक कि हमारे अस्तित्व का प्रश्न है। कौन पिता, और कौन पुत्र है? आपकी मुझ पर मालियत नहीं है। मेरी आपके ऊपर मालियत नहीं है। यह तो बस दो अजनबी यों का आकस्‍मिक मिलन मात्र है। आपको जरा भी खयाल न था, कि आप किसको जन्‍म देने जा रहे है। मुझको भी कोई खयाल न था कि कौन मेरा पिता और माता बनने जा रहे है। सह बस रास्‍ते पर होने वाला आकस्‍मिक मिलन है।
      परिस्‍थिति का शोषण करने का प्रयास मत करिए। इस बात का लाभ मत उठाईये कि आप शक्‍तिशाली है, आपके पास धन है, और मेरे पास कुछ भी नहीं है। और मुझको बाध्‍य मत कीजिए, क्‍योंकि ऐसा करना कुरूपता है। आप मुझको सुझाव दें। आप सदा मुझको सुझाव दे सकते है। यह मेरा सुझाव है—तुम इस पर विचार कर सकते हो। यदि तुम्‍हें लगे कि यह उचित है तो तुम उसे करो, यदि तुमको लगता है यह उचित नहीं है, मत करो।
      और धीरे-धीरे यह निर्धारित हो गया कि मेरे परिवार ने केवल सुझाव देना आरंभ कर दिया, लेकिन उनको भी हैरानी हुई, क्‍योंकि मैंने भी उनको सुझाव देना आरंभ कर दिया। मेरे पिता ने कहा: यह कुछ नया मामला है। तुमने हमें इसके बारे में नहीं बताया था।
      मैंने कहा: आसान है यह। यदि आप मुझको सुझाव दे सकते है क्‍योंकि आप अनुभवी हैं, परिपक्‍व है, मैं भी आपको सुझाव दे सकता हूं क्‍योंकि मैं गैर अनुभवी हूं। और यह कोई अयोग्‍यता हो ऐसा अनिवार्य नहीं है। क्‍योंकि संसार के सभी महान अविष्‍कार गैर-अनुभवी लोगों के द्वारा संपन्‍न हुए है। अनुभवी लोग वही बात दोहराए चले जाते है—क्‍योंकि अपने अनुभव से उनको ठीक ढंग पता होता है; वे कोई अविष्‍कार नही कर सकते है।
      अविष्‍कार करने के लिए तुम्‍हें उन ढंग से अनजाना रहना पड़ता है जो सदा अपनाया गया है। तब ही तूम नया मार्ग खोज सकते हो। केवल गैर अनुभवी व्‍यक्‍ति में ही अज्ञात में जा पाने की क्षमता हो सकती है।
      इसलिए मैंने कहा: आपके पास अनुभव की योग्‍यता है, मेरे पास गैर अनुभव की योग्‍यता है। आप परिपक्‍व है, लेकिन परिपक्‍वता का अर्थ यह भी है कि आपका दर्पण उतना स्‍वच्‍छ नहीं रहा जितना मेरा है। उसके उपर धूल जम गई है हो आपने जीवन में बहुत कुछ देख लिया है,  इसलिए वह आपकी योग्‍यता है।
      मेरी योग्‍यता है, मैंने जीवन का कुछ भी नहीं किया है देखा है। मेरे दर्पण पर कोई धूल एकत्रित नहीं हुई है—मेरा दर्पण और स्‍पष्‍टता से और ठीक ढंग से प्रतिबिंबित करता है। आपका दर्पण शायद कल्‍पना भर कर सकता है कि वह प्रतिबिंबित कर रहा है। यह कोई तैरती हुई पुरानी स्मृति भी हो सकती है। वस्‍तुगत यथार्थ सा सच्‍चा प्रतिबिंब नहीं।
      इसलिए ऐसा होना ही है: यदि आप मुझको सुझाव दे सकते है, मैं भी आपको सुझाव दे सकता हूं। मैं आपको उनका पालन करने के लिए नहीं कह रहा हूं। यह कोई आदेश नहीं है। आप उस पर विचार कर सकते है जिस भांति मैं आपके द्वारा दिए सुझावों पर विचार करता हूं।
--ओशो

1 टिप्पणी:

  1. drastant mein jo sandesh chippa hai wah bahut mahtavpoorn hai ...kisi bhi vyakti ki savtrranta per aakraman nakere uski svatranta ko akshun rekhte hue vyavhaar kerna chahiye ....ye bahut mahatpoorn seekh hai ...mansa dhanyawad

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