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गुरुवार, 20 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—5

शायद पहला जन्‍म काई, वह जो पानी पर जम जाती है—वह जीवन का पहला रूप है, फिर आदमी तक विकास। जो लोग पानी के ऊपर गहन शोध करते है, वे कहते है पानी सर्वाधिक रहस्‍यमय तत्‍व है। जगत से, अन्‍तरिक्ष से तारों का जो भी प्रभाव आदमी तक पहुंचता है उसमें मीडियम, माध्‍यम पानी है। आदमी के शरीर के जल को ही प्रभावित करके कोई भी रेडिएशन कोई भी विकीर्णन मनुष्‍य में प्रवेश करता है। जल पर बहुत काम हो रहा है और जल के बहुत से मिस्‍टीरियस, रहस्‍यमय गुण खयाल में आ रहे है।
      सर्वाधिक रहस्‍य गुण जो जल का जो ख्‍याल में अभी दस वर्षों में वैज्ञानिकों को आया है वह यह है कि सर्वाधिक संवेदनशीलता जल के पास है—सबसे ज्‍यादा सेंसिटिव। और हमारे जीवन में चारों और से जो भी प्रभाव गतिमान होते है वह जल को ही कम्‍पित करके गति करते है। हमारा जल ही सबसे पहले प्रभावित होता है। और एक बार हमार जल प्रभावित हुआ तो फिर हमारा प्रभावित होने से बचना बहुत कठिन हो जाएगा। मां के पेट में बच्‍चा जब तैरता है। तब भी आप जानकर हैरान होंगे कि वह ठीक ऐसे ही तैरता है जैसे सागर के जल में। और मां के पेट में भी जिस जल में बच्‍चा तैरता है उसमें भी नमक  का वहीं अनुपात होता है जो सागर के जल में है। और मां के पेट से जो-जो प्रभाव बच्‍चे तक पहुंचते है उनमें कोई सीधा संबंध नहीं होता।
      यह जानकर आप हैरान होंगे कि मां और उसके पेट में बनने वाले गर्भ का कोई सीधा संबंध नहीं होता, दोनों के बीच में जल और मां से जो भी प्रभाव पहुंचते है बच्‍चे तक वह जल के माध्‍यम से ही पहुंचते है। सीधा कोई संबंध नहीं है। फिर जीवन भर भी हमारे शरीर में जल का वहीं काम है जो सागर में काम है।
      सागर की बहुत सी मछलियों का अध्‍ययन किया गया। ऐसी मछलियाँ है, जो जब सागर का पूर उतार पर होता है, जब सागर उतरता है, तभी सागर के तट पर आकर अण्‍डे रख जाती है। सागर उतर रहा है वापस मछलियाँ रेत पर आएँगी, सागर की लहरों पर सवार होकर, अण्‍डे देंगी,सागर की लहरों पर वापस लौट जाएंगी। पंद्रह दिन में फिर सागर की लहरें फिर उस जगह आएँगी तब तक अण्‍डे फुटकर चूज़े  आ गए होंगे। आने वाली लहरें वापस उन चूजों को सागर में ले जाएंगी।
      जिन वैज्ञानिकों ने इन मछलियों का अध्‍ययन किया है वे बड़े हैरान हुए है। क्‍योंकि मछलियाँ सदा ही उस समय अण्‍डे देने आती है जब सागर का तूफान उतारता होता है। अगर वह चढ़ते तूफान में अण्‍डे दे दें तो अण्‍डे तो तूफान में बह जाएंगे। वह अण्‍डे तभी देती है जब तूफान उतरता होता है, एक-एक कदम सागर की लहरें पीछे हटती जाती हे। वह जहां अण्‍डे देती है वह लहरें दुबारा नहीं आती फिर, नहीं तो लहरें अण्‍डे वहाँ लें जाएंगी।
      वैज्ञानिक बहुत परेशान रहे है कि इन मछलियों को कैसे पता चलता है कि सागर अब उतरेगा। सागर के उतरने की घड़ी आ गयी है। क्‍योंकि जरा-सी भूल चूक समय की और अण्‍डे तो सब बह जाएंगे, और उन्‍होंने भूल चूक कभी नहीं की लाखों साल में, नहीं तो वे खत्‍म हो गयी होतीं। उन्‍होंने कभी भूल की ही नहीं।
      पर इन मछलियों के पास क्‍या उपाय है जिनसे ये जान पाती है? इनके पास कौन-सी इन्‍द्रिय है जो इनको बताती है कि अब सागर उतरेगा। लाखों मछलियाँ एक क्षण में किनारे पर इकट्ठी हो जाएगी। इनके पास जरूर कोई संकेत लिपि इनके पास कोई सूचना का यंत्र होना ही चाहिए। करोड़ो मछलियाँ दूर-दूर हजारों मील सागर तल पर इकट्ठी होकर अण्‍डे रख जाएंगी एक खास घड़ी में।
      जो अध्‍ययन करते है, वे कहते है कि चाँद के अतिरिक्‍त और कोई उपाय नहीं है। चाँद से ही इनको संवेदनाएं मिलती है। इन मछलियों को उन संवेदनाओं से पता चलता है कि कब उतार पर, कब चढ़ाव पर...। चाँद से जो उन्‍हें धक्‍के मिलते है उन्‍हीं धक्‍कों के अतिरक्‍ति कोई रास्‍ता नहीं है। कि उनको पता चल जाएं। वह भी हो सकता है.....कुछ का ख्‍याल था कि सागर की लहरों से कुछ पता चलता होगा।
      तो वैज्ञानिकों ने इन मछलियों को ऐसी जगह रखा जहां सागर की लहर ही नहीं हे। झील पर रखा, अंधेरे कमरों पर पानी में रखा। लेकिन बड़ी हैरानी की बात है। जब चाँद ठीक घड़ी पर आया....अंधेरे में बंद है मछलियाँ उनको चाँद का कोई पता नहीं, आकाश का कोई पता नहीं, पर जब चांद ठीक जगह पर आया, तब समुद्र की मछलियाँ जाकर तट पर अण्‍डे देने लगीं—तब उन मछलियों ने पानी में ही अण्‍डे दे दिए। उनका पानी में ही अण्‍डे छोड़ देना... क्‍योंकि कोई तट नहीं,कोई किनारा नहीं, तब तो लहरों का कोई सवाल ही नहीं रहा।
      अगर कोई कहता होगा कि दुसरी मछलियों को देख कर यह दौड़ पैदा हो जाती होगी तो वह भी सवाल न रहा। अकेली मछलियों को रखकर भी देखा। ठीक जब करोड़ो मछलियाँ सागर के तट पर आएँगी...। इनके दिमाग को सब तरह से गड़बड़ करने की कोशिश की—चौबीस घण्‍टे  अंधेरे में रखा ताकि उन्‍हें पता न चलें की कब सुबह होती है। झूठे चाँद की रोशनी पैदा कर के देखी, रोज रोशनी को कम करते जाओ, बढ़ाते जाओ, लेकिन मछलियों को धोखा नहीं दिया जा सका। ठीक चाँद जब अपनी जगह पर आया तब मछलियों ने अण्‍डे दे दिए। जहां भी थीं, वहीं उन्‍होंने अण्‍डे दे दिए।
      हजारों लाखों पक्षी हर साल यात्रा करते है। लाखों हजारों मील की। सर्दियों आने वाली है, बर्फ पड़ेगी तो बर्फ के इलाके से पक्षी उड़ना शुरू हो जाएंगे। हजारों मील दूर किसी जगह वे पड़ाव डालेंगे। वहां तक पहुंचने में भी उन्‍हें दो महीने लगेंगे, महीना भर लगेगा। अभी बर्फ गिरनी शुरू नहीं हुई, महीने भर बाद गिरेगी। पक्षी कैसे हिसाब लगाते है कि महीने भर बाद बर्फ गिरेगी। क्‍योंकि अभी हमारी मौसम को बताने वाली जो वेधशालाएं है वह भी पक्की खबर नहीं दे पाती हे।
      मैंने तो सुना है कि कुछ मौसम की खबर देनेवाले लोग पहले ज्‍योतिषियों से पूछ जाते है सड़को पर बैठे हुए कि आज क्‍या ख्‍याल है। पानी गिरेगी कि नहीं?
      आदमी ने अभी जो-जो व्‍यवस्‍था की है वह बचकानी मालूम पड़ती है। यह पक्षी एक डेढ़ महीने, दो महीने पहले पता करते है कि अब बर्फ कब गिरेगी, और हजारों प्रयोग करके देख लिया गया है कि जिस दिन पक्षी उड़ते है, हर पक्षी की जाति का निश्चित दिन है। हर वर्ष बदल जाता है वह निश्‍चित दिन क्‍योंकि बर्फ का कोई ठिकाना नहीं। लेकिन हर पक्षी का तय है कि वह बर्फ गिरने के एक महीने पहले उड़ेगा तो हर वर्ष वह एक महीने पहले उड़ता है। बर्फ दस दिन बाद गिरे तो दस दिन बाद उड़ता है। बर्फ दस दिन पहले गिरे तो वह दस दिन पहले उड़ता है। बर्फ के गिरने का कुछ निश्‍चित तो  नहीं है, यह पक्षी कैसे उड़ जात है महीने भर पहले पता लगाकर।
      जापान में ऐ चिड़िया होती है जो भूकम्‍प आने के चौबीस घण्‍टे पहले गांव खाली कर देती हे। साधारण गांव की चिडिया है। हर गांव में बहुत होती है। भूकम्‍प के चौबीस घण्‍टे पहले चिड़िया गांव खाली कर देगी। अभी भी वैज्ञानिक दो घण्‍टे के पहले भूकम्‍प का पता नहीं लगा पाते। और दो घण्‍टे पहले भी अनसर्टेन्‍टी होती है। पक्‍का नहीं होता है। सिर्फ प्रोबेबिलिटी होती है। सम्‍भावना होती है। कि भूकम्‍प हो सकता है। लेकिन चौबीस घण्‍टे पहले जापान में तो भूकम्‍प का फौरन पता चल जाता है। जिस गांव से चिडिया उड़ जाती है उस गांव के लोग समझ जाते है कि भूकम्‍प आने वाला है। चौबीस घण्‍टे का समय उन्‍हें भाग जाने के लिए मिल जाता है। यह चिडिया हट गई, गांव मे दिखाई नहीं पड़ती। इस चिड़िया को कैसे पता चलता होगा?
      वैज्ञानिक अभी दस वर्षों में एक नयी बात कह रहे है और वह यक कि प्रत्‍येक प्राणी के पास कोई ऐसी अन्‍तर इन्‍द्रिय है जो जागतिक प्रभावों को अनुभव करती है। शायद मनुष्‍य के पास भी है लेकिन मनुष्‍य ने अपनी बुद्धिमानी में खो दिया है। मनुष्‍य अकेला ऐसा प्राणा है जगत में जिसके पास बहुत सी चीजें है जो उसने बुद्धिमानी में खो दी है और बहुत सी चीजें जो उसके पास नहीं थी उसने बुद्धिमानी में उसको पैदा करके खतरा मोल लिया है। जो है उसे खो दिया है जो नहीं है उसे बना लिया है।
      लेकिन छोटे-छोटे प्राणि यों के पास भी कुछ संवेदना के अन्‍तर-स्‍त्रोत है। और अब इसके लिए वैज्ञानिक आधार मिलने शुरू हो गए है। ये अन्‍तर-स्‍त्रोत इस बात की खबर लाते है कि इस पृथ्‍वी पर जो जीवन है वह आईसोलेटेड, पृथक नहीं हे। यह सारे ब्रह्माण्ड से संयुक्‍त है। और कहीं भी कुछ घटना घटती है तो उसके परिणाम यहां होने शुरू हो जाते है।
--ओशो
ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान
वुडलैण्‍ड, बम्‍बई, दिनांक 9 जुलाई 1971

1 टिप्पणी:

  1. प्रकृति के बहुत से तत्व रहस्य हैं और उनकी रहस्यात्मकता ही प्रकृति के प्रति आकर्षण बनाए रखती है।

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