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बुधवार, 12 मई 2010

ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—4

इनके रुझान, इनके ढंग, इनके भाव समानांतर है। अगर करीब-करीब ऐसा मालूम पड़ता है कि ये दोनों एक ही ढंग से जीते है। एक दूसरे की कापी की भांति होते है। इनका इतना एक जैसा होना और बहुत सी बातों से सिद्ध होता है।
      हम सबकी चमड़ियां अलग-अलग हैं, इण्‍डीवीजुअल है। अगर मेरा हाथ टुट जाए और मेरी चमड़ी बदलनी पड़े तो आपकी चमड़ी मेरे हाथ के काम नहीं आयेगी। मेरे ही शरीर की चमड़ी उखाड़ कर लगानी पड़ेगी। इस पूरी जमीन पर कोई आदमी नहीं खोजा जा सकता, जिसकी चमड़ी मेरे काम आ जाए। क्‍या बात है? शरीर शास्‍त्री से पूँछें कि क्‍या दोनों की चमड़ी की बनावट में कोई भेद है—तो कोई भेद नहीं है।
      चमड़ी में जो तत्‍व निर्मित करते है चमड़ी को उसमें कोई भेद है तो कोई भेद नहीं है। चमड़ी के रसायन में कोई भेद नहीं? चमड़ी में जो तत्‍व निर्मित करते है चमड़ी को उसमें कोई भेद है—तो कोई भेद नहीं।
      चमड़ी में जो तत्‍व निर्मित करते है चमड़ी को, उसमें कोई भेद नहीं है। मेरी चमड़ी और दूसरे आदमी की चमड़ी को अगर हम रख दें एक वैज्ञानिक को जांच करने के लिए तो वह यह न बता पाएगा कि ये दो आदमियों की चमड़ियां  है। चमड़ियां में कोई भेद नहीं है। लेकिन फिर भी हैरानी की बात है कि मेरी चमड़ी पर दूसरे की चमड़ी नहीं बिठाई जा सकती। मेरा शरीर उसे इनकार कर देगा। वैज्ञानिक जिसे नहीं पहचान पाते कि कोई भेद है, लेकिन मेरा शरीर पहचानता हे। मेरा शरीर इनकार कर देता है। इसे स्‍वीकार नहीं करता।
      हां,एक ही अण्‍डे से पैदा हुए दो बच्‍चें की चमड़ी ट्रांसप्‍लांट हो सकती है सिर्फ। एक दूसरे की चमड़ी को एक दूसरे पर बिठाया जा सकता है। शरीर इनकार नहीं करेगा। क्‍या कारण होगा। क्‍या वजह होगी? अगर हम कहें, एक ही मां-बाप के बेटे है तो दो भाई भी एक ही मां बाप के है। उनकी चमड़ी नहीं बदली जा सकती। सिवाय  इसके कि ये दोनों बेटे एक क्षण में निर्मित हुए है और कोई इनमें समानता नहीं हे।
      क्‍योंकि उसी मां और उसी बाप से पैदा हुए दूसरे भाई भी हे, उन पर चमड़ी काम नहीं करती है। उनकी चमड़ी एक दूसरे पर नहीं बदली जा सकती। सिर्फ इनका बर्थ मूवमेंट.....बाकी जन्‍म का क्षण इतना महत्‍वपूर्ण रूप से प्रभावित करता हे। कि उम्र भी करीब-करीब, बुद्धि माप भी करीब-करीब, दोनों की चमड़ियां का ढंग एक-सा, दोनों के शरीर के व्‍यवहार करने की बात एक सी दोनों बीमार पड़ते है तो एक-सी बीमारियों से, दोनों स्‍वास्‍थ होते हे, तो एक सी दवाओं से—क्‍या जन्‍म का क्षण इतना प्रभावी हो सकता है। ज्‍योतिष कहता रहा है। इससे भी ज्‍यादा प्रभावी है, जन्‍म का क्षण।
      लेकिन आज तक ज्‍योतिष के लिए वैज्ञानिक सहमति नहीं थी। पर अब सहमति बढ़ती जाती हे। इस सहमति में कई नये प्रयोग सहयोगी बने है। एक तो जैसे ही हमने आर्टीफीशियल सेटेलाइट, हमने कृत्रिम उपग्रह अन्‍तरिक्ष में छोड़े हे। वैसे ही हमें पता चला कि सारे जगत से सारे ग्रह-नक्षत्रों से, सारे ताराओं से निरंतर अनंत प्रकार की किरणों का जाल प्रवाहित होता हे। जो पृथ्‍वी पर टकराता है। और पृथ्‍वी पर कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो उससे अप्रभावित छूट जाए।
      हम जानते है कि चाँद से समुद्र प्रभावित होता है। लेकिन हमे ख्‍याल नहीं है कि समुद्र में पानी और नमक का जो अनुपात है वही आदमी के शरीर में पानी और नमक का अनुपात हे—द सेम परफोरशन। और आदमी के शरी में पैंसठ प्रतिशत पानी हे। और नमक और पानी का वहीं अनुपात अरब की खाड़ी में है। अगर समुद्र का पानी प्रभावित होता है चाँद से तो आदमी के शरीर के भीतर का पानी क्‍यों प्रभावित नहीं होगा।
      अभी इस संबंध में जो खोजबीन हुई है उसमें दो ती तथ्‍य ख्‍याल में ले लेने जैसे हे, वह यह कि पूर्णिमा के निकट आते-आते सारी दुनिया में पागलपन की संख्‍या बढ़ती हे। अमावस के दिन दुनिया में सबसे कम लोग पागल होते है। पूर्णिमा के दिन पागलख़ानों में सर्वाधिक लोग प्रवेश करते है ओर अमावस के दिन पागलख़ानों से सर्वाधिक लोग बाहर आते हे। अब तो इसके स्‍टेटिक्‍स अपलब्‍ध है।
      अंग्रेजी में शब्‍द है, लुनाटिक—लुनाटिक का मतलब होता है, चांद मारा। लुनार...हिन्‍दी में भी पागल के लिए चांद मारा शब्‍द हे। बहुत पुराना शब्‍द हे। और लुनाटिक भी कोई तीन हजार साल पुराना शब्‍द है। इससे पता चलता है वे लोग जानते थे चाँद पागल के साथ कुछ न कुछ करता है। आखिर मस्तिष्क की बनावट, आदमी के शरीर के भीतर की संरचना तो एक जैसी है। हां यह हो सकता है कि पागल पर थोड़ा ज्‍यादा करता होगा। गैर-पागल पर थोड़ा कम कर सकता होगा।
      यह मात्रा का भेद होगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि गैर पागल पर बिलकुल नहीं करता होगा। तब तो कोई पागल कभी पागल न हों। क्‍योंकि फिर सब गैर पागल ही पागल होते। पहले तो काम गैर-पागल पर ही करना पड़ता होगा चाँद को।
      प्रोफेसर ब्राउन ने एक अध्‍ययन किया है। वह खुद ज्‍योतिष में विश्‍वासी आदमी नहीं थे। अविश्‍वासी थे और अपने पिछले लेखों में उन्‍होंने बहुत मजाक उड़ायी थी ज्‍योतिष की। लेकिन पीछे उन्‍होंने खोजबीन के लिए सिर्फ एक काम शुरू किया। मिलिट्री के बड़े-बड़े जरनलस की उन्‍होंने जन्‍म कुण्‍डलियां इकट्ठी कीं—डाक्‍टर्स की, अलग-अलग प्रोफेशंस की, व्‍यवसायों की—बड़ी मुश्‍किल में पड़ गए इकट्ठी करके की—डाक्‍टर्स की, प्रोफेशन के आदमी एक विशेष ग्रह में पैदा होते है। एक विशेष नक्षत्र स्‍थिति में पैदा होते है।
      जैसे जितने भी बड़े प्रसिद्ध जरनलस है, मिलिट्री के सेनापति है, योद्धा हे—उनके जीवन में मंगल का भारी प्रभाव है। वही प्रभाव प्रोफेसर की जिन्‍दगी में बिलकुल नहीं है। ब्राउन ने जो अध्‍ययन किया, कोई पचास हजार व्‍यक्‍तियों की—जो भी सेनापति है उनके जीवन में मंगल के जन्‍म के समय मंगल प्रभाव भारी हे। आमतौर से जब वे पैदा होते है तब मंगल जन्‍म ले रहा होता है। उनके जन्‍म की घड़ी मंगल के जन्‍म की घड़ी होती हे।
      ठीक उससे विपरीत जितने पैयीफिस्‍ट है दुनिया में, जितने शान्‍तिवादी है, वह कभी मंगल के जन्‍म के साथ पैदा नहीं होते। एकाध मामले में यह संयोग हो सकता है। लेकिन लाखों मामले में संयोग नहीं हो सकता। गणितज्ञ एक खास नक्षत्र में पैदा होते है। कवि उस नक्षत्र में कभी पैदा नहीं होते। यह कभी एकाध मामले में संयोग हो सकता है। लेकिन बड़े पैमाने पर संयोग नहीं हो सकता।
      असल में कवि के ढंग और गणितज्ञ के ढंग में इतना भेद है कि उनके जन्‍म के क्षण में भेद होना ही चाहिए। ब्राउन ने कोई दस अलग-अलग व्‍यवसाय के लोगों का जिनके बीच तीव्र फासले है जैसे कवि है, और गणितज्ञ है, या  युद्ध खोर सेनापति है ओ एक शान्‍तिवादी बर ट्रेंड रसल है, एक आदमी जो कहता है। विश्‍व में शान्‍ति होना चाहिए और एक आदमी नीत्‍से जैसा। जो कहता है जिस दिन युद्ध न होंगे उस दिन दुनिया में कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
      इनके बीच बौद्धिक विवाद ही है सिर्फ या नक्षत्रों का भी विवाद है? इनके बीच केवल बौद्धिक फासले है या इनकी जन्‍म की घड़ी भी हाथ बँटाती है। जितना अध्‍ययन बढ़ता जाता है। उतना ही पता चलता है कि प्रत्‍येक आदमी जन्‍म के साथ विशेष क्षमताओं की सूचना देता है। ज्‍योतिष के साधारण जानकार कहते है कि वह इस लिए ऐसा करता है क्‍योंकि वह विशेष नक्षत्रों में पैदा हुआ हे।
      मैं आपसे कहना चाहता हूं कि विशेष नक्षत्रों की व्‍यवस्‍था में पैदा होने को उसने चुना। वह जैसा होना चाह सकता था। जो उसके होने की आंतरिक संभावना थी, जो उसके पिछले जन्‍मों का पूरा का पूरा रूप था जो उसकी संयोजित अर्जित चेतना थी वह इस नक्षत्र में पैदा होगी।
      हर बच्‍चा हर आनेवाला नया जीवन इनसिस्‍ट करता है, जोर देता है। अपनी घड़ी के लिए—अपनी घड़ी में ही पैदा होना चाहता है। अपनी घड़ी में गर्भाधान लेना चाहता हे। दो अन्योन्य श्रित है, इन्टर डिपेंडेंट हे1
      मैंने आपसे कहा, जैसे समुद्र का पानी प्रभावित होता है, सारा जीवन पानी से निर्मित है। पानी के बिना कोई जीवन की संभावना नहीं है। इसलिए यूनान में पुराने दार्शनिक कहते थे। पानी से ही जीवन जन्‍मा है या पानी ही जीवन है। यहाँ पुराने भारतीय या चीनी और दूसरे दुनिया की मैथिोलिजी सभी कहती हे। आज विकास को मानने वाले वैज्ञानिक भी कहते है कि जीवन का जन्‍म पानी से है।
--ओशो
ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान
वुडलैण्‍ड, बम्‍बई, दिनांक 9 जुलाई 1971

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