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गुरुवार, 11 नवंबर 2010

संभोग से समाधि की और—21

समाधि : संभोग-उर्जा का अध्‍यात्‍मिक नियोजन—5

     एक मित्र ने पूछा है कि अगर इस भांति सेक्‍स विदा हो जायगा तो दुनिया में संतति का क्‍या होगा? अगर इस भांति सारे लोग समाधि का अनुभव करके ब्रह्मचर्य को उपलब्‍ध हो जायेंगे तो बच्‍चों का क्‍या होगा।
      जरूर इस भांति के बच्‍चे पैदा नहीं होंगे। जिस भांति आज पैदा होते है। वह ढंग कुत्‍ते,बिल्‍लियों और इल्‍लियों का तो ठीक है, आदमियों का ठीक नहीं हे। यह कोई ढंग है? यह कोई बच्‍चों की कतार लगाये चले जाना—निरर्थक, अर्थहीन, बिना जाने बुझे—यह भीड़ पैदा किये जाना। यह कितनी हो गयी? यह भीड़ इतनी हो गयी है कि वैज्ञानिक कहते है कि अगर सौ बरस तक इसी भांति बच्‍चे पैदा होते रहें और कोई रूकावट नहीं लगाई गई, तो जमीन पर टहनी हिलाने के लिए भी जगह नहीं बचेगी। हमेशा आप सभा में ही खड़े हुए मालूम होंगे। जहां जायेंगे वहीं, सभा मालूम होंगी। सभी करना बहुत मुश्‍किल हो जायेगा। टहनी हिलाने की जगह नहीं रह जाने वाली है सौ साल के भीतर, अगर यही स्‍थिति रही।
      वह मित्र ठीक पूछते है कि अगर इतनी ब्रह्मचर्य अपलब्‍ध होगा तो बच्‍चे कैसे पैदा होंगे? उनसे भी मैं एक और बात कहना चाहता हूं, वह भी अर्थ की है और आपके ख्‍याल में आ जाना चाहिए, ब्रह्मचर्य से भी बच्‍चे पैदा हो सकते है। लेकिन ब्रह्मचर्य से बच्‍चों के पैदा करने का सारा प्रयोजन और अर्थ बदल जायेगा। काम से बच्‍चें पैदा होते है। सेक्‍स से बच्‍चे पैदा होते है—बच्‍चे पैदा करने के लिए कोई सेक्‍स में नहीं जाता है।
      बच्‍चे पैदा होना आकस्‍मित है, एक्सीडेंट है।
      सेक्‍स में आप जाते है किसी और कारण से बीच में आ जाते है, बच्‍चों के लिए आप कभी सेक्‍स में नहीं जाते। बिना बुलाये मेहमान है बच्‍चे और इसीलिए बच्‍चों के प्रति आपके मन में वह प्रेम नहीं हो सकता। जो बिना बुलाये मेहमानों के प्रति होता है। घर में कोई आ जाये अतिथि बिना बुलाये तो जो हालत घर में हो जाती है—बिस्‍तर भी लगाते है उसको सुलाने के लिए, खाना भी खिलाते है, आवभगत भी करते है, हाथ भी जोड़ते है, लेकिन पता होगा आपको कि बिना बुलाये मेहमान के साथ क्‍या घर की हालत हो जाती है। वह सब ऊपर-ऊपर होता है। भीतर कुछ भी नहीं होता। भी कुछ भी नहीं। और पूरे वक्‍त यही इच्‍छा होती है कि कब आप बिदा हों, कब आप जायें।
      बिना बुलाये बच्‍चों के साथ भी दुर्व्यवहार होगा। सद्व्‍यवहार हो ही नही सकता। क्‍योंकि उन्‍हें हमने कभी चाहा न था, कभी हमारे प्राणों की बह आकांक्षा नहीं थी। हम तो किसी और ही तरफ गये थे। वह बाईप्रॉडक्‍ट हैं, प्रोडेक्ट नहीं। आज के बच्‍चे प्रॉडक्‍ट नहीं है। बाईप्रॉडक्‍ट है। वे उत्पती नहीं है। वह उत्पती के साथ, जैसे गेहूँ के साथ भूसा पैदा हो जाता है। वैसी हालत है। आपका विचार आपकी कामना दूसरी थी, बच्‍चे बिलकुल आकस्‍मिक है।
      और इसीलिए सारी दुनिया में हमेशा से यह कोशिश चली है वात्स्यायन से लेकिर आज तक यह कोशिश चली है कि सेक्‍स को बच्‍चों से किसी तरह मुक्‍त कर लिया जाये। उसी से बर्थ कंट्रोल विकासित हुआ। संतति नियमन विकसित हुआ, कृत्रिम साधन विकसित हुए कि हम बच्‍चों से भी बच जायें और सेक्‍स को भी भोग लें। बच्‍चों से बचने की चेष्‍टा हजारों साल से चल रही है। आयुर्वेद के तीर-चार-पाँच हजार साल पुराने ग्रंथ इसका विचार करते है और अभी आज का आधुनिकतम स्‍वास्‍थ्‍य का मिनिस्‍टर भी इसी की बात करता है। क्‍यों? आदमी ने ये ईजाद करने की चेष्‍टा क्‍यों की?
      बच्‍चे बड़े उपद्रव का कारण हो गये है। वे बीच में आते हैं, जिम्‍मेदारी ले आते है। और भी एक खतरा—बच्‍चों के आते से स्‍त्री परिवर्तित हो जाती है।
      पुरूष भी बच्‍चो नहीं चाहता है। नहीं होते है तो चाहता है इस कारण नहीं की बच्‍चों के प्रेम है, बल्‍कि अपनी संपति से प्रेम है। कल मालिक कौन होगा। बच्‍चों से प्रेम नहीं है। बाप जब चाहता है कि बच्‍चा हो जाये एक घर में, लड़का नहीं है, तो आप यह मत सोचना कि लड़के के लिए बड़े उसके प्राण आतुर हो रहे है। नहीं, आतुरता यह हो रही है कि मैं रूपये कमा-कमा कर मरा जा रहा हूं, न मालूम कौन कब्‍जा कर लेगा। एक हकदार मेरे खून का उसको बचाने के लिए होना चाहिए।    
      बच्‍चों के लिए...कोई कभी नहीं चाहता कि बच्‍चे आ जायें। बच्‍चों से हम बचने की कोशिश करते रहे है। लेकिन बच्‍चे पैदा होते चले गये। हमने  संभोग किया और बच्‍चे बीच में आ गये। वह उसके साथ जुड़ा हुआ संबंध था। यह काम जन्‍य संतति है। यह बाई प्रॉडक्‍ट है सेक्सुअलिटी कीओर इसीलिए मनुष्‍य इतना रूग्ण इतना,दीन-हीन इतना उदास इतना चिंतित हो गया है।
      ब्रह्मचर्य से भी बच्‍चे आयेंगे,लेकिन वे बच्‍चे सेक्‍स की बाईप्रॉडक्ट नहीं होगें। उन बच्‍चों के लिए सेक्‍स एक वैहिकल होगा। उन बच्‍चों को लाने के लिए सेक्‍स एक माध्‍यम होगा। सेक्‍स से कोई संबंध नहीं होगा।
      जैसे एक आदमी बैलगाड़ी में बैठकर कहीं गया। उसे बैलगाड़ी से कोई मतलब है? वह हवाई जहाज में भी बैठकर जा सकता था।  आप यहां से बैठकर दिल्‍ली गये हवाई जहाज में। हवाई जहाज से आपको कोई मतलब है। कोई भी संबंध है। कोई भी नाता है? कोई नाता नहीं है, नाता केवल दिल्‍ली जाने से है। हवाई जहाज सिर्फ वैहिकल है, सिर्फ माध्‍यम है।
      ब्रह्मचर्य को जब लोग उपलब्‍ध हों और संभोग की यात्रा समाधि तक हो जाये, तब भी वे बच्‍चे चाह सकते है। लेकिन उन बच्‍चों का जन्‍म, उत्‍पत्‍ति होगी। वह प्रॉडक्‍ट होंगे। वह सृजन होंगे। सेक्‍स सिर्फ माध्‍यम होगा।
      और जिस भांति अब तक यह कोशिश की गयी है—इसे बहुत गौर से सुन लेना—जिस भांति अब तक यह कोशिश की गयी है। कि बच्‍चों से बचकर सेक्‍स को भोगा जा सके। वह नयी मनुष्‍यता यह कोशिश कर सकती है कि सेक्‍स से बचकर बच्‍चे पैदा किये जा सके। मेरी आप बात समझे?
      ब्रह्मचर्य अगर जगत में व्‍यापक हो जाये तो हम एक नयी खोज करेंगे। जैसी पुरानी खोज की है कि बच्‍चों से बचा जा सके और सेक्‍स का अनुभव पूरा हो जाये। इससे  उल्‍टा प्रयोग आने वाले जगत में हो सकता हे। जब ब्रह्मचर्य व्‍यापक होगा। सेक्‍स से बचा जा सके और बच्‍चे हो जाये।
      और यह हो सकता है, इसमें कोई भी कठिनाई नहीं है। इसमें जरा भी कठिनाई नहीं है। यह हो सकता है। ब्रह्मचर्य से जगत का अंत होने कोई संबंध नहीं है।
      जगत का अंत होने का संबंध सेक्सुअलिटी से पैदा हो गया है। तुम करते जाओ बच्‍चे पैदा और जगत का अंत हो जायेगा। न एटम बम की जरूरत है, न हाइड्रोजन बम की जरूरत है। यह बच्‍चों की इतनी बड़ी तादाद, यह कतार यह काम; यह काम से उत्‍पन्‍न हुए कीड़ों-मकोड़ों जैसी मनुष्‍यता यह अपने आप नष्‍ट हो जायेगी।
      ब्रह्मचर्य से तो एक और ही तरह का आदमी पैदा होगा। उसकी उम्र बहुत लंबी हो सकती है। उसकी उम्र इतनी लंबी हो सकती है। जिसकी हम कोई कल्‍पना भी नहीं कर सकते। उसका स्‍वास्‍थ्‍य अद्भुत हो सकता है उसमें बीमारी पैदा न हो। उसका मस्‍तिष्‍क वैसा होगा। जैसा कभी-कभी कोई प्रतिभा दिखायी पड़ती है। उसके व्‍यक्‍ति में सुगंध ही और होगी। बल ही और होगा, सत्‍य ही और होगा। धर्म ही और होगा। धर्म ही और होगा, धर्म ही और होगा। वह धर्म को साथ लेकर पैदा होगा।
      हम अधर्म को साथ लेकर पैदा होते है और अधर्म में जीते है और अधर्म में ही मर जाते है। इसलिए दिन-रात जिंदगी भर धर्म की चर्चा करते रहते है। शायद उस मनुष्‍य में धर्म की कोई  चर्चा नहीं होगी, क्‍योंकि धर्म लोगों का जीवन होगा। हम चर्चा उसी की करते है जो हमारा जीवन नहीं होता। जो जीवन होता है उसकी हम चर्चा नहीं करते है। हम सेक्‍स की चर्चा नहीं करते क्‍योंकि हम जिंदगी में उपलब्‍ध नहीं कर पाते। बातचीत करके उसको पूरा कर लेते है।
      आपने ख्‍याल किया होगा, स्त्रीयां पुरूषों से ज्‍यादा लड़ती है। स्त्रीयां लड़ती ही रहती है, कुछ न कुछ खटपट पास पड़ोस....सब तरफ चलती रहती है। कहते है कि दो स्त्रीयां साथ-साथ बहुत देर तक शांति से बैठी रहें, यह बहुत कठिन हे।
      मैंने तो सुना है कि चीन में एक बार बड़ी प्रतियोगिता हुई और उस प्रतियोगिता में चीन के सबसे बड़े झूठ बोलने वाले लोग इकट्ठे हुए। झूठ बोलने की प्रतियोगिता थी कि कौन सबसे झूठ बोलता है उसको पहला पुरस्‍कार मिल जाए।
      एक आदमी को पहला पुरस्‍कार मिला। और उसने यह बात बोली थी सिर्फ कि मैं एक बग़ीचे में गया। दो औरतें एक ही बेंच पर पाँच मिनट से चुपचाप बैठी थी।
      और लोगों ने कहा कि इससे बड़ा झूठ कुछ भी नहीं हो सकता हे। यह तो अल्‍टीमेट अनटुथ हो गया। और भी बड़ी-बड़ी झूठ लोगों ने बोली थी। उन्‍होंने कहा, यह सब बेकार है, पुरस्‍कार इसको दे दो। वह आदमी बाजी मार ले गया।
      लेकिन कभी आपने सोचा कि स्त्रीयां इतनी बातें क्‍यों करती है? पुरूष काम करते है, स्‍त्रियों के हाथ में कोई काम नहीं है। और काम नहीं होता है तो बात होती है।
      भारत इतनी बातचीत क्‍यों करता है? वही स्‍त्रियों वाला दुगुर्ण है। काम कुछ भी नहीं है—बातचीत-बातचीत।
      ब्रह्मचर्य से एक नये मनुष्‍य का जन्‍म होगा। जो बातचीत करने वाला नहीं जीने वाला होगा। वह धर्म की बात नहीं करेगा। धर्म को जीयेगा। लोग भूल ही जायेंगे कि धर्म कुछ है, वह इतना स्‍वभाविक हो सकता है। उस मनुष्‍य के बाबत विचार भी अद्भुत है। वैसे कुछ मनुष्‍य पैदा होते है। आकस्‍मिक था उनका पैदा होना।
      कभी एक महावीर पैदा हो जाता है। ऐसा सुंदर आदमी पैदा हो जाता है। कि वह वस्‍त्र पहले तो उतना सुंदर न मालूम पड़े। नग्‍न खड़ा हो जाता है। उसके सौंदर्य की सुगंध फैल जाती है। सब तरफ। लोग महावीर को देखने चले आते है। वह ऐसा मालूम होता है, जैसे कोई संगमरमर की प्रतिमा हो। उसमें इतना वीर्य प्रकट होता है कि—उसका नाम तो वर्धमान था—लोग उसको महावीर कहने लगते है। उसके ब्रह्मचर्य का तेल इतना प्रकट होता है कि लोग अभिभूत हो जाते है। कि वह आदमी ही और है।
      कभी एक बुद्ध पैदा होता है, कभी एक क्राइस्‍ट पैदा होता है, कभी एक कंफ्यूशियस पैदा होता है। पूरी  मनुष्‍य जाति के इतिहास में दस-पच्‍चीस नाम हम गिन सकते है, जो पैदा हुए है।
      जिस दिन दुनिया में ब्रह्मचर्य से बच्‍चे आयेंगे। और यह शब्‍द भी सुनना,आपको लगेगा कि ब्रह्मचर्य से बच्‍चे। मैं एक नये ही कंसेप्‍ट की बात कर रहा हूं। ब्रह्मचर्य से जिस दिन बच्‍चे आयेंगे, उस दिन सारे जगत के लोग ऐसे होंगे। ऐसे सुंदर, ऐसे शक्‍तिशाली,ऐसे मेधावी, ऐसे विचार शील—फिर कितनी देर होगी उन लोगों को कि वे परमात्‍मा को न जानें। वे परमात्‍मा को इसी भांति जानेंगे, जैसे हम रात को सोते है।
      लेकिन जिस आदमी को नींद नहीं आती, उससे अगर कोई कहं कि मैं सिर्फ तकिये पर सर रखता हूं और सौ जाता हूं, तो वह आदमी कहेगा। कि यह बिलकुल झूठ है, ऐसा हो नहीं सकता मैं तो सारी रात करवटें ही बदलता रहता हूं, उठता हूं, बैठता हूं,माला फेरता हूं, गाय-भैंस गिनता हूं, लेकिन कुछ नहीं—नींद आती ही नहीं। आप झूठ कहते है। ऐसे कैसे हो सकता है। कि तकिये पर सर रखा है और नींद आ जाये। आप सरासर झूठ बोलते हो। क्‍योंकि मैंने तो बहुत प्रयोग करके देख लिया; नींद तो कभी नहीं आती, रात-रात गुजर जाती है।   
      अमरीका में न्‍यूयार्क जैसे नगरों में तीस से लेकर चालीस प्रतिशत लोग नींद की दवायें लेकर सो रहे है। और अमरीकी वैज्ञानिक कहते है कि सौ वर्ष के भीतर न्‍यूयार्क जैसे नगर में एक भी आदमी सहज रूप से सौ नहीं सकता,उसे दवा लेनी ही पड़ेगी। तो यह हो सकता है कि न्‍यूयार्क में सौ साल बाद होगा,दो सौ साल बाद हिंदुस्‍तान में होगा; क्‍योंकि हिंदुस्‍तान के नेता इस बात के पीछे पड़े है कि हम उनका मुकाबला करके रहेंगे। हम उनसे पीछे नहीं रह सकते है। वे कहते है, हम उनसे पीछे नहीं रह सकते उन की सब बिमारियों को हम आत्‍म सात कर ही चैन लेंगे।
      तो यह हो सकता है कि पाँच सौ साल बाद दुनिया के लोग नींद की दवा लेकर ही सोये। और बच्‍चा जब पहली दफा पैदा हो मां के पेट से तो वह दूध न मांगे, वह कहं ट्रेन्‍कोलाइजर, नहीं मैं सो नहीं पाया तुम्‍हारे पेट में, ट्रेन्‍कोलाइजर कहां है। तो पाँच सौ साल बाद उन लोगों को यह विश्‍वास दिलाना कठिन होगा कि आज से पाँच सौ साल पहले सारी मनुष्‍यता आँख बंद करते ही सो जाती थी। वे कहेंगे इंपासिबल,यह असंभव है, यह बात हो नहीं सकती। ये बात कैसे हो सकती है।
      मैं आपसे कहता हूं उस ब्रह्मचर्य से जो जीवन उपजेगा, उसको यह विश्‍वास करना कठिन हो जायेगा कि लोग चोर थे, लोग बेईमान थे, लोग हत्‍यारे थे। लोग आत्‍म-हत्याएँ कर लेते थे। लोग जहर खाते थे। लोग शराब पीते थे। लोग छुरे भोंकते थे, युद्ध करते थे। उनको विश्‍वास करना मुश्‍किल हो जायेगा। काम से अब तक उत्पती हुई है। और वह भी उस काम से जो फिजियोलॉजिकल से ज्‍यादा नहीं है।
      एक अध्‍यात्‍मिक काम का जन्‍म हो सकता है। और एक नये जीवन का प्रारंभ हो सकता हे। उस नये जीवन के प्रारंभ के लिए ये थोड़ी सी बातें, इस चार दिनों में मैंने आपसे कहीं है। मेरी बातों को इतने प्रेम और इतनी शांति से—और ऐसी बातों को, जिन्‍हें प्रेम और शांति से सुनना बहुत मुश्‍किल हो गया है। बड़ी कठिनाई मालूम पड़ी होगी।
      एक मित्र तो मेरे पास आये और कहने लगे कि मैं डर रहा था कि कहीं दस बीस आदमी खड़े होकर यह न कहने लगें कि बंद करिये। ये बातें नहीं होनी चाहिए। मैंने कहा, इतने हिम्मत वर आदमी भी होते तो भी ठीक था। इतने हिम्मत वर आदमी भी कहां है कि किसी को कह दें कि बंद करिये यह बात।  इतने ही  हिम्मत वर आदमी इस मुल्‍क में होते तो बेवक़ूफ़ों की कतार जो कुछ भी कह रही है मुल्‍क में, वह कभी की बंद हो गयी होती। लेकिन वह बंद नहीं हो पा रही है।
      मैंने कहा कि मैं प्रतीक्षा करता हूं कि कभी कोई बहादूर आदमी खड़े होकर कहेगा कि बंद करे ये बात। उससे कुछ बात करने का मजा होगा। तो ऐसी बातों को, जिनसे कि मित्र डरे हुए थे कि कहीं कोई खड़े होकर न कह दे, आप इतने प्रेम से सुनते रहे, आप बड़े भले आदमी हे। और जितना आपका रिण मानूं उतना कम है।
      अंत में यही कामना करता हूं परमात्‍मा से कि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति के भीतर जो काम है, वह राम के मंदिर तक पहुंचने की सीढ़ी बन सके। बहुत-बहुत धन्‍यवाद। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्‍मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्‍वीकार करें।
 ( क्रमश: अगले अंक में ..................देखें)

ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
प्रवचन—4
गोवा लिया टैंक, बम्‍बई,
2 अक्‍टूबर—1968, 

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