भोजन की टेबल आनंदपूर्ण होनी चाहिए: ओशो
जो हम खाते है, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। आप क्या खाते है। यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप किस भाव-दिशा में खाते है। आप आनंदित खोते है, या दुखी खाते है, उदास खाते है, चिंता में खाते है, या क्रोध से भरे हुए खाते है, या मन मार कर खाते है। अगर आप चिंता में खाते है, तो श्रेष्ठतम भोजन के परिणाम भी पायजनस होंगे। ज़हरीले होंगे। और अगर आप अपने आनंद में खाते रहे है, तो कई बार संभावना भी है कि जहर भी आप पर पूरे परिणाम न ला पाये। बहुत संभावना है। आप कैसे खाते है। किस चित की दशा में खाते है?
भाव दशा—आनंदपूर्ण, प्रसाद पूर्ण निशचित ही होनी चाहिए।
लेकिन हमारे धरों में हमारे भोजन की जो टेबल है या हमारा चौका है, वह सबसे ज्यादा विषादपूर्ण अवस्था में है। पत्नी दिन भर प्रतीक्षा करती है कि पति कब घर खाने आ जाये। चौबीस घंटे का जो भी रोग और बीमारी इकट्ठे हो गयी है। वह पति की थाली पर ही उसकी निकलती है। और उसे पता नहीं कि वह दुश्मन का काम कर रही है। उसे पता नहीं, वह जहर डाल रही है। थाली में।
और पति भी घबराया हुआ दिन भर की चिंता से भरा हुआ थाली पर किसी तरह भोजन को पेट में डालकर हट जाता है। उसे पता नहीं है कि एक अत्यंत प्रार्थना पूर्ण कृत्य था, जो उसने इतनी जल्दी में किया है और भाग खड़ा हुआ है। यह कोई ऐसा कृत्य नहीं था कि जल्दी में किया जाये। यह उसी तरह किये जाने योग्य था। जैसे कोई मंदिर में प्रवेश करता है। जैसे कोई प्रार्थना करने बैठता है, जैसे कोई वीणा बजाने बैठता है।
--ओशो
(ध्यान के लिए अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं है, उसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। जो कर रहे है उसे ही ध्यान में बदल लें। इसे कैसे करे....यहीं तो कला है जो गुरु हमें देता है। आप सजग और होश पूर्ण हो कर प्रत्येक कार्य करे। अति आनंद से भर कर)
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