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सोमवार, 31 जनवरी 2011

आदमी की प्रौढ़ता और ध्‍यान--

आदमी अकेला प्राणी है, जिसको प्रौढ़ होने में बहुत समय लगता है। कुत्‍ते का बच्‍चा पैदा होता है; कितनी देर लगती है प्रौढ़ होने में? घोड़े का बच्‍चा पैदा होता है; कितनी देर लगता है प्रौढ़ होने में? घोड़े का बच्‍चा पैदा होते ही चलने लग जाता है। प्रौढ़ हो गया। प्रौढ़ पैदा ही होता है। सिर्फ आदमी का बच्‍चा असहाय पैदा होता है। उसको प्रौढ़ होने में बीस-पच्‍चीस साल लग जाते है। पच्‍चीस साल का हो जाता है तब भी मां-बाप डरे रहते है कि अभी चल सकता है अपने पैरों पर। इतना लंबा समय मनुष्‍य को क्‍यों लगता है। प्रौढ़ होने के लिए? अगर आदमी के बच्‍चे को असहाय छोड़ दिया जाए तो वह मर जाएगा। बच नहीं सकता। बाकी पशुओं के बच्‍चे फिर भी बच सकते है। क्‍योंकि व पैदा ही प्रौढ़ होते है। आदमी भर अप्रौढ़ पैदा होता है। क्‍योंकि आदमी के पास बड़ी प्रतिभा की संभावना है। उस प्रतिभा को प्रौढ़ होने में समय लगता है। घोड़े के बच्‍चे के पास प्रतिभा की बड़ी संभावना नहीं है; प्रौढ़ होने में कोई समय नहीं लगता।
      वैज्ञानिक कहते है कि अगर आदमी की उम्र बढ़ाई गई, बढ़ जाएगी, तो हमारा बचपन भी लंबा होने लगेगा। लेकिन उस लंबे बचपन के साथ ही आदमी की प्रतिभा भी बढ़ने लगेगी। अगर समझें कि दो सौ साल आदमी की औसत उम्र हो जाए तो फिर इक्‍कीस वर्ष में बच्‍चा जवान नहीं होगा। प्रौढ़ नहीं होगा। फिर वह पच्‍चीस-साठ वर्ष में प्रौढ़ता के करीब आएगा। युनिवर्सिटी से जब निकलेगा तो साठ वर्ष के करीब शिक्षित होकर बहार आएगा। लेकिन तब मनुष्‍य की प्रतिभा बड़े ऊंचे शिखर छू लेगी। स्‍वभावत: क्‍योंकि प्रौढ़ होने के लिए जितना समय मिलता है उतना ही प्रतिभा पकती है।
      ध्‍यान तो प्रतिभा की अंतिम अवस्‍था है। एक जन्‍म काफी नहीं है। अनेक जन्‍म लग जाते है, तब प्रतिभा पकती है। और कोई व्‍यक्‍ति अनंत जन्‍मों तक अगर सतत प्रयास करे तो ही। अन्‍यथा कई बार प्रयास छूट जाता है। अंतराल आ जाते है; जो पाया था वह भी खो जाता है। भटक जाता है। फिर-फिर पाना होता है। अगर सतत  प्रयास चलता रहे तो अनंत जन्‍म लगते है, तब समाधि उपलब्‍ध होती है।
      इस से घबड़ा मत जाना, इससे बैठ मत जाना पत्‍थर के किनारे कि अब क्‍या होगा। अनंत जन्‍मों से आप चल ही रहे हो; घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। आ गया हो वक्‍त। तो जब कोई कहता है कि एक ही कोस दूर; तो हो सकता है कि आपके लिए एक ही कोस बचा हो। क्‍योंकि कोई आज की यात्रा नहीं है; अनंत जन्‍म से आप चल रहे है। इस क्षण भी ध्‍यान घटित हो सकता है अगर पीछे की परिपक्‍वता साथ हो, अगर पीछे कुछ किया हो। कोई बीज बोए हों तो फसल इस क्षण भी काटी जा सकती है। इसलिए भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है। और न भी पीछे कुछ किया हो तो भी बैठ जाने से कुछ हल नहीं है। कुछ करें ताकि आगे कुछ हो सकें।
      एक बाद बुद्ध एक जंगल से गुजर रहे थे। रास्‍ता भटक गये। संगी साथी। भिक्षु भूखे प्‍यासे थे। घनी दोपहर हो गई। जंगल के रास्‍ते में पानी भी कहीं नजर नहीं आ रहा था। जंगल का रास्‍ता किधर जाना है कुछ मालूम नहीं पड़ रहा था। कोई गांव पास नहीं दिखाई दे रहा। इतनी देर में एक आदमी आता हुआ मिला। बुद्ध के शिष्‍य आनंद ने पूछा, गांव कितनी दूर है? वह आदमी कहता है, बस दो मील,एक कोस।
      एक कोस चलने के बाद गांव नहीं आया। समझ में कुछ नहीं आ रहा था कहां जाये। फिर दूसरा आदमी आता हुआ मिला। तब आनंद ने उससे पूछा की भाई गांव कितनी दूर है। उसने भी कहा की बस दो मील एक कोस। आनंद को थोड़ी बेचैनी हुई, दो कोस भी ज्‍यादा चल लिए पर गांव को कोई नामों निशान नजर नहीं आ रहा है।
      फिर एक अब तो सांझ भी होने वाली है। सूर्य भी असत्ता चल की और चल दिया है। जंगली जानवरों की हंकार भी सुनाई देने लगी है। कुछ ही देर में अँधेरा घिर जायेगा। पर न जाने गांव क्‍यों नहीं आ रहा। भूख प्‍यास भी बहुत लगी है। थकावट भी हो रही है। सुबह मुंह अंधेरे के चले हे। पूरा दिन गुजर गया। इतनी देर में एक लकड़हारा मिला। और उससे आनंद ने पूछा भाई गांव कितनी दूरी पर है? वह कहता है, बस दो मील, एक कोस। आनंद खड़ा हो जाता है। वह कहता है यह किस तरह की यात्रा है। यह एक कोस कभी खत्‍म भी होगा।
      तब भगवान बुद्ध आनंद की झुँझलाहट देख कर हंसे। और कहने लगे। कि आनंद तू खुश हो। कम से कम एक कोस से ज्‍यादा तो नहीं बढ़ता गांव। इतना क्‍या कम है। वह गांव एक कोस पर ठहरा हुआ है। उससे ज्‍यादा हो जाये तो तू कितना घबरा जाता। हमने जितना था उससे खोया नहीं है, इतना पक्‍का है । हम जहां थे कम से कम वही स्‍थिर तो है। वहां से पीछे तो नहीं हटे। और ये लोग कितने भले है। ये कितने प्रेम पूर्ण है। एक कोस तक तुम चल सको, फिर अगले एक कोस को बताते है। अगर यह कह देते की दस कोस है तो तुम्‍हारी हिम्‍मत ही टुट जाती। ये कितने भले और समझदार लोग है। मैं कहता हूं एक कोस यह लंबी यात्रा है, पर एक-एक कोस चल कर करोड़ो मील पर कर जाती है। ये तुम्‍हारे चेहरे को देख कर कहते है। ये दयावान लोग है। एक को से इनका कोई लेना देना नहीं है। अनंत यात्रा ...लेकिन काफी समय लगता है। क्‍योंकि जितनी महा प्रतिभा की खोज हो उतनी ही प्रौढ़ता में समय लगता है। इसे जरा समझें। इसे वैज्ञानिक भी स्‍वीकार करते है।
ओशो
ताओ उपनिषाद, भाग—4
प्रवचन—77
     

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  2. Jiddu Krishnamurti telling a joke...

    “There are three monks, who had been sitting in deep meditation for many years amidst the Himalayan snow peaks, never speaking a word, in utter silence. One morning, one of the three suddenly speaks up and says, ‘What a lovely morning this is.’ And he falls silent again. Five years of silence pass, when all at once the second monk speaks up and says, ‘But we could do with some rain.’ There is silence among them for another five years, when suddenly the third monk says, ‘Why can’t you two stop chattering?”

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    paritosh

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