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रविवार, 16 सितंबर 2012

विज्ञान भैरव तंत्र विधि—71 (ओशो)

या बीच के रिक्‍त स्‍थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
     थोड़े से फर्क के साथ यह विधि भी पहली विधि जैसी ही है।
     या बीच के रिक्‍त स्‍थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
     एक केंद्र से दूसरे केंद्र तक ताकी हुई प्रकाश-किरणों में बिजली के कौंधने का अनुभव करो—प्रकाश की छलांग का भाव करो। कुछ लोगों के लिए यह दूसरी विधि ज्‍यादा अनुकूल होगी, और कुछ लोगों के लिए पहली विधि ज्‍यादा अनुकूल होगी। यही कारण है कि इतना सा संशोधन किया गया है।
      ऐसे लोग है जो क्रमश: घटित होने वाली चीजों की धारणा नहीं बना रहते; और  कुछ लोग है जो छलाँगों की धारणा नहीं बना सकते। अगर तुम क्रम की सोच सकते हो, चीजों के क्रम से होने की कल्‍पना कर सकते हो, तो तुम्‍हारे लिए पहली विधि ठीक है। लेकिन अगर तुम्‍हें पहली विधि के प्रयोग से पता चले कि प्रकाश-किरणें एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर सीधे छलांग लेती है। तो तुम पहली विधि का प्रयोग मत करो। तब तुम्‍हारे लिए यह दूसरी विधि बेहतर है।
      यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
      भाव करो कि प्रकाश की एक चिनगारी एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर छलांग लगा रही है। और दूसरी विधि ज्‍यादा सच है, क्‍योंकि प्रकाश सचमुच छलांग लेता है। उसमें कोई क्रमिक, कदम-ब-कदम विकास नहीं होता। प्रकाश छलांग है।
      विद्युत के प्रकाश को देखो। तुम सोचते हो कि यह स्‍थिर है; लेकिन वह भ्रम है। उसमें भी अंतराल है; लेकिन वे अंतराल इतने छोटे है कि तुम्‍हें उनका पता नहीं चलता है। विद्युत छलाँगों में आती है। एक छलांग, और उसके बाद अंधकार का अंतराल होता है। फिर दूसरी छलांग, और उसके बाद फिर अंधकार का अंतराल होती हे। लेकिन तुम्‍हें कभी अंतराल का पता नहीं चलता है। क्‍योंकि छलांग इतनी तीव्र है। अन्‍यथा प्रत्‍येक क्षण अंधकार आता है; पहले प्रकाश की छलांग और फिर अंधकार। प्रकाश कभी चलता नहीं, छलांग ही लेता है। और जो लोग छलांग की धारणा कर सकते है। यह दूसरी संशोधित विधि उनके लिए है।
      या बीच के रिक्‍त स्‍थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
      प्रयोग करके देखो। अगर तुम्‍हें किरणों का क्रमिक ढंग से आना अच्‍छा लगता है। तो वही ठीक है। और अगर वह अच्‍छा न लगे। और लगे कि किरणें छलांग ले रही है। तो किरणों की बात भूल जाओ और आकाश में कौंधने वाली विद्युत की, बादलों के बीच छलांग लेती विद्युत की धारणा करो।
      स्‍त्रियों के लिए पहली विधि आसान होगी और पुरूषों के लिए दूसरी      । स्‍त्री–चित क्रमिकता की धारणा ज्‍यादा आसानी से बना सकता है और पुरूष-चित ज्‍यादा आसानी से छलांग लेगा सकता है। पुरूष चित उछलकूद पसंद करता है; वह एक से दूसरी चीज पर छलांग लता है। पुरूष-चित में एक सूक्ष्‍म बेचैनी रहती है। स्‍त्री-चित में क्रमिकता की एक प्रक्रिया है। स्‍त्री-चित उछलकूद नहीं पसंद करता है। यही वजह है कि स्‍त्री और पुरूष के तर्क इतने अलग होते है। पुरूष एक चीज से दूसरी चीज पर छलांग लगाता रहता है। स्‍त्री को यह बात बड़ी बेबूझ लगती है। उसके लिए विकास क्रमिक विकास जरूरी है।
      लेकिन चुनाव तुम्‍हारा है। प्रयोग करो, और जो विधि तुम्‍हें रास आए उसे चुन लो।
      इस विधि के संबंध में  और दो-तीन बातें। बिजली कौंधने के भाव के साथ तुम्‍हें इतनी उष्‍णता अनुभव हो सकती है। जो असहनीय मालूम पड़े। अगर ऐसा लगे तो इस विधि को असहनीय है तो इसका प्रयोग मत करो। तब तुम्‍हारे लिए पहली विधि है। अगर वह तुम्‍हें रास आए। अगर बेचैनी महसूस हो तो दूसरी विधि का प्रयोग मत करो। कभी-कभी विस्‍फोट इतना बड़ा हो सकता है। तुम भयभीत हो जा सकते हो। और यदि तुम एक दफा डर गए तो फिर तुम दुबारा प्रयोग न कर सकोगे। तब भय पकड़ लेता है।
      तो सदा ध्‍यान रहे कि किसी चीज से भी भयभीत नहीं होना है। अगर तुम्‍हें लगे कि भय होगा ओर तुम बरदाश्‍त न कर पाओगे तो प्रयोग मत करो। तब प्रकाश किरणों वाली पहली विधि सर्वश्रेष्‍ठ है।
      लेकिन यदि पहली विधि के प्रयोग में भी तुम्‍हें लगे कि अतिशय गर्मी पैदा हो रही है—और ऐसा हो सकता है। क्‍योंकि लोग भिन्‍न-भिन्‍न है—तो भाव करो कि प्रकाश किरणें शीतल है, ठंडी है। तब तुम्‍हें सब चीजों में उष्‍णता की जगह ठंडक महसूस होगी। वह भी प्रभावी हो सकता है। तो निर्णय तुम पर निर्भर है; प्रयोग करके निर्णय करो।
      स्‍मरण रहे, चाहे इस विधि के प्रयोग में चाहे अन्‍य विधियों के प्रयोग में, यदि तुम्‍हें बहुत बेचैनी अनुभव हो या कुछ असहनीय लगे। तो मत करो। दूसरे उपाय भी है; दूसरी विधियां भी है। हो सकता है, यह विधि तुम्‍हारे लिए न हो। अनावश्‍यक उपद्रवों में पड़कर तुम समाधान की बजाय समस्‍याएं ही ज्‍यादा पैदा करोगे।
      इसीलिए भारत में हमने एक विशेष योग का विकास किया जिसे सहज योग कहते है। सहज का अर्थ है सरल, स्‍वाभाविक, स्‍वत: स्‍फूर्त। सहज को सदा याद रखो। अगर तुम्‍हें महसूस हो कि कोई विधि सहजता से तुम्‍हारे अनुकूल पड़ रही है। अगर वह तुम्‍हें रास आए अगर उसके प्रयोग से तुम ज्‍यादा स्‍वस्‍थ,ज्‍यादा जीवंत,ज्‍यादा सुखी अनुभव करो, तो समझो कि वह विधि तुम्‍हारे लिए है। तब उसके साथ यात्रा करो; तुम उस पर भरोसा कर सकते हो। अनावश्‍यक समस्‍याएं मत पैदा करो। आदमी की आंतरिक व्‍यवस्‍था बहुत जटिल है। अगर तुम कुछ भी जबरदस्‍ती करोगे तो तुम बहुत जटिल है। अगर तुम कुछ भी जबरदस्‍ती करोगे तो तुम बहुत सी चीजें नष्‍ट कर दे सकते हो। इसलिए अच्‍छा है कि किसी ऐसी विधि के साथ प्रयोग करो जिसके साथ तुम्‍हारा अच्‍छा तालमेल हो।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग-तीन
प्रवचन-47

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