तंत्रा-विज्ञान-Tantra Vision-(भाग-दूसरा)
प्रवचन-चौथा-(आस्था
विश्वासघाती नहीं बन सकती)
दिनांक 04 मई 1977 ओशो आश्रम पूना।
पहला प्रश्न:
प्यारे ओशो!
मैं हमेशा विवाहित
स्त्रियों में ही अभिरुचि क्यों लेता हूं?
इस बारे में वहां विशिष्ट कुछ भी नहीं हैं—यह बहुत सामान्य बीमारी है, जो लगभग एक व्यापक रोग के रूप में विद्यमान है। लेकिन इसके लिए वहां कारण भी हैं। लाखों लोग जिनमें स्त्री और पुरूष दोनों ही हैं। विवाहित लोगों की और कहीं अधिक आकर्षित होते हैं। पहली बात-व्यक्ति का अविवाहित होना यह प्रदर्शित करता है कि अभी तक उसकी कामना किसी भी स्त्री अथवा पुरूष ने नहीं की हैं, और विवाहित व्यक्ति से यह प्रदर्शित होता है कि किसी व्यक्ति ने उसे चाहा है। और तुम इतने अधिक अनुकरण शील हो कि तुम अपनी और से प्रेम भी नहीं कर सकते। तुम एक ऐसे गुलाम हो कि जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करता है, केवल तभी तुम उसका अनुसरण कर सकते हो। लेकिन यदि व्यक्ति अकेला है और कोई भी व्यक्ति उसके साथ प्रेम में नहीं है, तब तुम्हें संदेह होता हैं। हो सकता है वह व्यक्ति इस योग्य न हो, अन्यथा उसे क्यों तुम्हारे लिए प्रतीक्षा करना चाहिए? विवाहित व्यक्ति के पास अनुकरण करने वालों के लिए बहुत बड़ा आकर्षण होता है।
दूसरी बात यह कि
लोग प्रेम कम करते हैं, वास्तव में वे यह जानते ही
हनीं कि प्रेम क्या होता है—वे प्रतियोगिता अधिक करते है।
कोई पुरूष अथवा कोई स्त्री विवाहित है—और तुम उसकी और
आकर्षित हो जाते हो—और तुम इसलिए आकर्षित होते हो क्योंकि अब
वहां प्रतियोगिता की सम्भावना है। अब त्रिकोण संघर्ष की संभावना है। वह स्त्री
सरलता से उपलब्ध नहीं है, और वहां संघर्ष होने जा रहा है।
वास्तव में
तुम्हारी अभिरुचि स्त्री में नहीं है, तुम्हारी
अभिरुचि संघर्ष करने में है। अब स्त्री लगभग एक वस्तु है, तुम
उसके लिए लड़ सकते हो, और अपनी दिलेरी और साहस सिद्ध कर सकते
हो। तुम उसके पति को प्रतिष्ठा से च्युत कर सकते हो और तुम्हें बहुत अच्छा महसूस
होगा—यह प्रेम की यात्रा न हो अहंकार की यात्रा है। लेकिन
स्मरण रहे, एक बार तुम उसके पति को प्रतिष्ठा से च्युत करने
में सफल हो गए। फिर स्त्री में और अधिक तुम्हारी अभिरुचि नहीं रहेगी। तुम एक
विवाहित स्त्री की और आकर्षित थे, अब तुम एक अविवाहित स्त्री
की और कैसे आकर्षित हो सकते हो? तुम फिर कहीं और किसी संघर्ष
की और देखना प्रारंभ कर दोगे। तुम हमेशा एक त्रिकोण बनाओगे। यह प्रेम नहीं है।
प्रेम के नाम पर
वहां ईर्ष्या है, वहां प्रतियोगिता है। वहां
आक्रामकता और वहां हिंसा है। तुम स्वयं अपने को सिद्ध करना चाहते हो। तुम एक दूसरे
पुरूष के विरूद्ध अपने आप को सिद्ध कर उसे यह बताना चाहते हो; ‘देखो मैंने तुम्हारी स्त्री तुमसे अलग कर दी है।’ एक
बार तुमने स्त्री को इसके पति से अलग कर दिया तुम्हारी उसमें किसी भी तरह की कोई
भी अभिरुचि नहीं रह जाएगी, क्योंकि वह चाही गई चीज़ नहीं थी।
चाही हुई चीज़ तो एक तरह की विजय पाना था।
मैंने सुना
है.......
एक विशिष्ट
प्रसिद्ध व्यापारी ने अपनी पत्नी को खो दिया और उसका दाह संस्कार एक सार्वजनिक
अवसर बन गया। नगर के लगभग सभी सम्मानित और प्रतिष्ठित लोग वहां उपस्थित थे और
पत्नी से अलग हुए व्यक्ति को लगभग सभी लोग जानते थे। किसी प्रकार वहां एक अजनबी भी
था और वह किसी भी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक मानसिक रूप से उद्विग्न था।
दाह संस्कार पूरा होने से पूर्व ही वह रोते हुए नीचे गिर पड़ा।
पत्नी विहीन पति ने
लोगों से पूछा—‘यह कौन अजनबी व्यक्ति रो रहा था?’
किसी व्यक्ति ने
फुसफुसाते हुए कहा—‘आह! आप उसे नहीं जानते। वह
आपकी मृतक पत्नी का प्रेमी है।’
पत्नी से वंचित वह
व्यक्ति आगे बढ़कर उस सिसकते हुए व्यक्ति के पास गया और उसकी पीठ सहलाते हुए उससे
कहा—‘भूतपूर्व प्रेमी महोदय, खुशी मनाइये। मैं संभवतः:
फिर से विवाह करूंगा।’
सावधान रहिए।
विवाहित स्त्री अथवा एक विवाहित पुरूष के साथ प्रेम में गिरना एक बीमारी है। इसके
लिए कारणों की और देखों। यह प्रेम नहीं है, तुम्हारे
मन की पीछे कुछ अन्य चीज ही तुम्हारे अचेतन में कार्य कर रही है।
एक दूसरी चीज यह भी
है कि विवाहित स्त्री सरलता से उपलब्ध नहीं होती है। इससे भी चाह उत्पन्न होती है।
सरलता से उपलब्ध होने वाली चीज़ चाह को मार देती है। स्त्री जितनी अधिक पहुंच से
बाहर और अगम्य होती है, चाह उतनी ही अधिक होती है।
तुम उसके बारे में स्वप्न देख सकते हो। और वास्तव में वहां अधिक सम्भावना नहीं
होती है कि वह कभी एक वास्तविकता भी बनेगी। एक विवाहित स्त्री के साथ खेल सकते हो।
उसका तुम्हारे लिए उपलब्ध हो पाना सरल नहीं है। तुम अविवाहित स्त्री कि और आकर्षित
नहीं होते, क्योंकि वे रोमाँस के लिए अधिक अवसर नहीं
छोड़ेंगी। यदि तुम उनकी और आकर्षित हो, तो वे पहले ही से
तैयार हैं, वहां कोई स्थान बचना ही नहीं है। वहां लम्बी और
बहुत लम्बी प्रतीक्षा नहीं करनी होती।
बहुत से लोग प्रेम
में रूचि नहीं रखते—बल्कि वे प्रतीक्षा में रूचि
रखते हैं: वे कहते हैं कि प्रेम की अपेक्षा प्रतीक्षा करना कहीं अधिक सुंदर है। एक
तरह से यह ऐसा इसलिए है, क्योंकि जब तक तुम प्रतीक्षा कर रहे
हो, तुम पूरी तरह से कल्पना करते हुए सपने देख रहे हो।
निश्चित रूप से तुम्हारा सपना तुम्हारा सपना है और तुम उसे जितना अधिक सुंदर बनाना
चाहते हो, बना सकते हो। वास्तविक स्त्री तुम्हारे सभी सपनों
को तोड़ने जा रही है। लोग असली स्त्री से भयभीत रहते हैं। और एक विवाहित स्त्री,
वास्तविक होने की अपेक्षा कहीं अधिक अवास्तविक बन जाती है। विवाहित
पुरूष के साथ भी समान स्थिति ही होती है। वह बहुत दूर होता है। इस बारे में अधिक
सम्भावना नहीं होती कि वह वास्तव में तुम्हारे साथ प्रेम संबंध में प्रविष्ट होगा।
मैंने सुना है.....
एक युवा व्यक्ति एक
बहुत बुद्धिमान वृद्ध व्यक्ति के पास गया और उसने उससे कहा: ‘श्रीमान! मैं प्रेम का रोगी हूं। क्या आप मेरी सहायता कर सकते है?’
उस बुद्धिमान
व्यक्ति ने सोचा और फिर कहा—‘इस बारे में प्रेम के
लिए केवल एक ही उपचार है, और वह है विवाह। और यदि यह रोग
विवाह करने से ठीक नहीं हो सकता, तब कोई भी चीज इसे ठीक नहीं
कर सकती। यदि तुम विवाह कर लो तो तुम ठीक हो जाओगे और फिर तुम कभी प्रेम के बारे
में सोचोगे ही नहीं।’
हां,
विवाह इतनी अधिक सुनिश्चित और इतनी अधिक पूर्णता से इसका उपचार कर
सकता है, लेकिन यदि विवाह तुम्हारे प्रेम का उपचार नहीं कर
सकता—तब तुम लाइलाज हो। एक विवाहित स्त्री के साथ प्रेम में
गिरना अच्छा है, क्योंकि तब वहां उपचार की कोई सम्भावना ही
नहीं है; तुम प्रेम के रोगी बने ही रहोगे।
इस बारे में ऐसे
लोग हैं जो रोते हुए, आंसू बहाते हुए, प्रतीक्षा करते हुए, कल्पनाएं करते हुए कविताएं
पढ़ते और कविताएं लिखते हुए, चित्रकला करते हुए अथवा संगीत
आदि सभी प्रतिरूपों में अपने प्रेम रोग का अत्यधिक आनंद लेते है। एक वास्तविक
स्त्री खतरनाक होता है। एक वास्तविक स्त्री केवल दूर से ही संगीतमय दिखाई देती है।
निकट आओ और उसका असली रूप दिखाई देगा। वह परी देश की कोई कोमल कमनीय ही नहीं है,
वह एक अफसाना ही नहीं है उसकी वास्तविकता को मानना ही होगा। और जब
एक स्त्री तुम्हारे निकट आती है तो न केवल उसका असली रूप प्रकट होता है, बल्कि वह तुम्हें सामान्य जीवन की व्यवहारिक समस्याओं से पृथक नीचे भूमि
पर ले आती है।
संसार की सभी
संस्कृतियों में स्त्री पृथ्वी की भांति और पुरूष आकाश की भांति होने का
प्रतिनिधित्व करता है। स्त्री बहुत भूमि से जुड़ी हुई है। वह भूमि की और खींचती
है। वह पुरूष की अपेक्षा कहीं अधिक सांसारिक कहीं अधिक व्यवहारिक और कहीं अधिक
परिणाम वादी है। यहीं कारण है कि स्त्रियों में महान कवयित्रियां,
महान चित्रकार और महान संगीतकार तुम नहीं पाते हो, नहीं। स्त्रियां बहुत अधिक आकाश में नहीं उड़ती है। वे पृथ्वी को पकड़े
रहती हैं, वे अपनी जड़ों के साथ पृथ्वी में प्रवेश करती हैं।
और वह एक मजबूत वृक्षों की भांति खड़ी रहती है। पुरूष कहीं अधिक एक पक्षी की भांति
होता है। जब एक पुरूष विवाहित होता है, तो स्त्री उसे भूमि
पर और व्यवहारिक संसार में ले आती है। कवि, विवाह नहीं करना
चाहते। वे हमेशा प्रेम में ही बना रहना चाहते है और अपनी इस बीमारी का उपचार नहीं
करना चाहते।
लोग विवाहित
स्त्रियों के साथ ही प्रेम करते है, यह घर का
आधा अधूरा मार्ग है और यह एक चालबाजी भी है। वे विश्वास कर सकते हैं कि वे प्रेम
कर रहे है और वे उससे दूर भी रह सकते हैं। प्रेम बहुत बड़ा भय उत्पन्न करता है
क्योंकि प्रेम एक बहुत बड़ी चुनौती हैं। तुम्हें विकसित होना होगा। तुम किशोर और
अविकसित बने नहीं रह सकते, तुम्हें जीवन की वास्तविकताओं के
साथ बंधना होगा, उनके साथ संघर्ष करना होगा। तुम्हारे
तथाकथित महान कवियों में हमेशा लगभग बहुत बचपना और अपरिपक्वता होती है। वे बचपन के
परलोक में फिर भी बने रहते है। वे नहीं जानते कि वास्तविकता क्या है, और वे अपने सपनों में वास्तविकता को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देते।
एक स्त्री निश्चित
रूप से कल्पित कथाओं का विनाश करने वाली होती है। वह कल्पनाओं में न रहकर यथार्थ
सत्य में जीती है। इसलिए यदि तुम यह विश्वास करना चाहते हो कि तुम प्रेम में हो,
और तो भी तुम प्रेम से बचकर दूर रहना चाहते हो, तो एक विवाहित स्त्री अथवा एक विवाहित पुरूष के साथ प्रेम करना अच्छा हैं,
स्वयं सुरक्षित भी है। यह बहुत बाजीगर के खेल जैसा है। यह एक धोखा
देना है। स्वयं को धोखा में बनाये रखना है। स्त्रियां भी एक स्वतंत्र पुरूष के साथ
प्रेम करने से डरती हैं क्योंकि एक स्वतंत्र अथवा एक स्वतंत्र पुरूष के साथ प्रेम
करने में वहां चौबीसों घंटे एक उलझन बनी रहती है, एक संकट
बना रहता है।
विवाहित स्त्री के
साथ प्रेम करने में ये संकट अथवा उलझन उतनी अधिक बड़ी नहीं होती है,
तुम उससे जहां कहीं किसी अंधेरे कोने में मिल सकते हो, चुराकर थोड़े से चुम्बन ले सकते हो, क्योंकि हमेशा
यह डर बना रहता है कि पति आ सकता है अथवा कोई व्यक्ति देख सकता है। यह प्रेम
आधा-अधूरा होता है। यह हमेशा शीघ्रता में होता है और अपने चौबीस घंटों के जीवन में
वह स्त्री जैसी है तुम उसे वैसा नहीं जान पाते हो। तुम उसके सत्य को नहीं, केवल उसके प्रदर्शन अथवा उसके नाटक को जानते हो।
जब एक स्त्री
शॉपिंग पर जाने के लिए तैयार होकर घर से बाहर निकलती है,
तो वह वहीं स्त्री नहीं होती। वह लगभग एक भिन्न व्यक्ति होती है। अब
वह एक व्यवस्थित स्त्री होती है। अब वह एक प्रदर्शन कर्ता होती है। स्त्रियां महान
अभिनेत्रियां होती हैं। घर के अंदर व इतनी अधिक सुंदर नहीं दिखाई देती, लेकिन घर के बाहर वह अचानक अत्यधिक सुंदर और प्रसन्न और आनंदित बन जाती
हैं। वे फिर से अचानक जीवन के साथ प्रेम में हंसती मुस्कराती छोटी सी लड़कियों
जैसी बन जाती है। उनके चेहरे दीप्तिमान होकर भिन्न हो जाते है: उनकी आंखें भिन्न
हो जाती हैं। अपने मेकअप और प्रदर्शन से वे कुछ और हो जाती है।
एक स्त्री को सागर
तट अथवा एक शॉपिंग सेंटर में देखकर तुम पूर्ण रूप से एक भिन्न तरह का रूप देखते
हो। एक स्त्री तो साथ पूरे दिन चौबीसों घंटे साथ रहना बहुत सांसारिक और तुच्छ लगता
है और उसे ऐसा होना भी है। लेकिन यदि तुम वास्तव में एक स्त्री से प्रेम करते हो
तो तुम उसकी काल्पनिक कथा नहीं, उसकी वास्तविकता जानना
चाहोगे, क्योंकि प्रेम केवल सत्य के साथ ही जीवित रह सकता
है। और प्रेम सत्य को जानने के लिए और एक स्त्री को सभी कमियों को जानकर और फिर भी
उससे प्रेम करने में पर्याप्त समर्थ है। प्रेम में अत्यधिक शक्ति होती है।
जब तुम एक व्यक्ति
के साथ चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरूष हो चौबीसों घंटे साथ रहते हो तो तुम उसके
बारे में सभी कुछ जान जाते हो। वह सभी कुछ जो अच्छा है और वह सभी कुछ जो बुरा है,
वह सभी कुछ जो सुंदर है; और वह सभी कुछ जो
कुरूप है, और वह सभी कुछ जो प्रकाश की किरणों की भांति है और
वह सभी कुछ जो अंधेरी रात की तरह है। सभी कमियों और खूबियों के साथ जान जाते हो।
तुम उस व्यक्ति को पूर्ण रूप से जान लेते हो। प्रेम में सभी कमियों, सीमाओं, दुर्बलताओं और दूसरी जानकारियों से प्रेम
करने की जिनकी और मनुष्य जाति की प्रवृति होती है। उसमें पर्याप्त दृढ़ता होती है।
लेकिन एक झूठा प्रेम प्रर्याप्त मजबूत नहीं होता। वह केवल फिल्म के पर्दे पर ही एक
स्त्री से प्रेम कर सकता है। वह केवल एक उपन्यास में अथवा एक काव्य में वर्णित
स्त्री से ही प्रेम कर सकता है। वह केवल उसी स्त्री से प्रेम कर सकता है जो उससे
बहुत दूर कहीं सितारे पर हो। वह एक ऐसी स्त्री से प्रेम कर सकता है जो वास्तविक न हो।
प्रेम पूर्ण रूप से
एक भिन्न आयाम है। वह वास्तविकता के साथ प्रेम में गिरना है। हां,
वास्तविकता के पास कमियां होती हैं। लेकिन वे कमियां ही विकास के
लिये चुनौतियां हैं। प्रत्येक कमी, उसके पार जाने की एक
चुनौती है। और जब दो व्यक्ति वास्तव में प्रेम में होते हैं। वे एक दूसरे की
विकसित होने में सहायता करते हैं। वे एक दूसरे की और देखते हुए एक दूसरे के लिए
दर्पण बन जाते है। वे एक दूसरे को प्रतिबिम्बित करते हैं। वे एक दूसरे को थामते
हैं, वे एक दूसरे की सहायता करते हैं। अच्छा और बुरे समय में
प्रसन्नता के क्षणों में और उदासी के क्षणों में वे एक साथ संयुक्त होते है।
एक दूसरे के साथ
सम्बन्ध होना ही सभी कुछ होता है।
यदि मैं केवल तभी
तुम्हारे साथ हूं, जब तुम प्रसन्न होते हो,
और जब तुम दुःखी होते हो, तब मैं तुम्हारे साथ
नहीं होता हूं, तो यह सम्बन्ध होना नहीं है। यह एक शोषण है।
जब तुम प्रवाहित होते हुए भरपूर होते हो, और यदि मैं केवल
तभी तुम्हारे साथ हूं और जब तुम भरपूर नहीं हो और मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं,
तो किसी भी तरह से तुम्हारे साथ हूं ही नहीं। तब मैं तुमसे प्रेम
नहीं करता हूं और मैं केवल स्वयं से और केवल अपनी प्रसन्नता से ही प्रेम करता हूं।
जब तुम प्रसन्न और आनंदित हो, तब तक ठीक है और जब तुम पीड़ित
होते हो तो मैं तुम्हें उठाकर अलग कर दूंगा। यह प्रेम नहीं है, यह सम्बन्ध होना नहीं है। यह एक प्रतिबद्धता नहीं है। यह दूसरे व्यक्ति के
लिए सम्मान नहीं है।
किसी अन्य व्यक्ति
की स्त्री से प्रेम करना सरल है क्योंकि पति को ही वास्तविक सत्य का कष्ट झेलना
होता है। और तुम एक काल्पनिक कथा का सा आनंद लेते हो। यह परिश्रम का बहुत अच्छा
विभाजन है। लेकिन यह अमानवीय है। मनुष्य का प्रेम तो एक बहुत बड़ा आमना-सामना है,
और प्रेम केवल तभी अस्तित्व में रहता है, यदि
उससे विकास होता है—अन्यथा यह किसी तरह का प्रेम है?
प्रेम प्रत्येक तरह
से एक दूसरे में वृद्धि करता है, एक दूसरे को ऊपर उठाता
है। जब प्रेम एक साथ होता हैं, तो वे प्रसन्नता के सर्वोच्च
शिखर पर पहुंचते हैं, और जब वे एक साथ होते हैं तो वे उदासी
की भी गहराइयों तक में भी पहुंचते हैं। उनकी प्रसन्नता और उदासी उतार-चढ़ाव बहुत
विराट होता है: और यही प्रेम होता है। यदि तुम होता है। यदि तुम अकेले में रोते
चीखते हो तो उनमें अधिक गहराई नहीं होती। क्या तुमने इसे देखा है? अकेले में वे उथले होते हैं। जब तुम किसी व्यक्ति के साथ एक साथ रोते हो,
तब उसमें एक गहराई होती है और तुम्हारे आंसुओं का एक नया आयाम होता
है।
अकेले तुम हंस सकते
हो,
लेकिन तुम्हारा हास्य उथला होगा। वास्तव में यह कुछ पागलपन जैसा ही
होगा। अकेले में केवल पागल लोग ही हंसते हैं। जब तुम किसी व्यक्ति के साथ हंसती हो,
तो उसमें वहां एक गहराई होती है, इस बारे में
उसमें एक समझदारी होती है। तुम अकेले हंस सकते हो, लेकिन वह
हास्य बहुत अधिक गहराई तक नहीं जायेगा, जा भी नहीं सकता। एक
साथ वह तुम्हारे अस्तित्व के प्रामाणिक केन्द्र तक जाता हैं। दो व्यक्ति सभी तरह
की जलवायु और वातावरण में एक साथ रात-दिन, गर्मी-जाड़े और
सभी तरह की चित वृतियों में साथ-साथ विकसित होते है।
वृक्ष को सभी
मौसमों में सभी तरह की जलवायु की जरूरत होती है। हां,
उसे ग्रीष्म की जलती दोपहरी की और बर्फ जैसी ठंडी शीत ऋतु ऊष्मा की
भी जरूरत होती है। और उसे रात्रि की खामोशी की भी जरूरत होती है। जिसमें वह स्वयं
अपने को चारों और से बंद कर गहरी नींद में जा सके। उसे शांत, आह्लादित और आनंद पूर्ण दिनों की जरूरत हाथी है। और उसे धुंधले और बादलों
से भरे दिनों की भी जरूरत होती है। वह इन सभी द्वंदो के द्वारा ही विकसित होता है।
प्रेम एक द्वंद्व
है। तुम अकेले विकसित नहीं हो सकते। सदा स्मरण रहे कि यदि तुम प्रेम में हो तो वचन
वद्धता से मत बचो, सम्बन्ध होने से मत बचो। तब
समग्रता से उसके अंदर जाओ। यदि स्थितियां कहीं अधिक कठिन हो जाती हैं, तो केवल परिधि पर खड़े रहकर भागने को पहले से तैयार मत रहो।
प्रेम एक बलिदान भी
है। तुम्हें बहुत अधिक बलिदान करना होगा। तुम्हें अपने अहंकार का बलिदान करना
होगा। तुम्हें अपनी महत्वाकांक्षाओं का बलिदान करना होगा,
तुम्हें अपनी निजता का बलिदान करना होगा, तुम्हें
अपनी गोपयिता का बलिदान करना होगा और तुम्हें अनेक चीजों का बलिदान करना होगा।
इसलिए केवल रोमांटिक प्रेम में ही बने रहो, जिसमें किसी भी
चीज़ के बलिदान करने की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब वहां कोई बलिदान नहीं होता तो
वहां कोई विकास भी नहीं होता।
प्रेम तुम्हें
पूर्ण रूप से बदल देता है। वह एक नया जन्म होता है। तुम कभी भी फिर से वही व्यक्ति
नहीं रह जाते जैसे तुम एक स्त्री अथवा एक पुरूष से प्रेम करने से पूर्व थे। तुम
अग्नि से होकर गुजर चुके हो और तुम निर्मल और विशुद्ध हो गए हो। लेकिन इसके लिए
साहस की ज़रूरत होती है।
तुम पूछते हों: मैं
हमेशा विवाहित स्त्रियों की और ही आकर्षित क्यों होता हूं?
क्योंकि तुम साहसी नहीं हो। तुम सम्बन्ध होने से और संकट में पड़ने
से बचना चाहते हो। तुम उसे सस्ते में चाहते हो और तुम उसके लिए मूल्य नहीं चुकाना
चाहते।
दूसरा प्रश्न:
प्यारे ओशो!
यह अब और प्रेम
करने जैसा नहीं है—और मैं अनुभव करता हूं कि
मैं पूर्ण रूप मिट कर आपके ही साथ एक पूजागृह में हूं। इस क्षण मैं सचेत हूं,
जब कि आपके मिलने के पूर्व मैं कभी भी न था। मेरे लिए और मेरी अर्ध
ज्ञानी के लिए प्रत्येक चीज प्रत्येक समय भिन्न होती है। इस क्षण आपको धन्यवाद
देना कदापि भी उपयुक्त नहीं है। और तो भी हम फिसल कर पीछे लौट जाते हैं। हम कैसे
इसे छोड़ कर उपर उठ सकते हैं। अपने अंदर की स्त्री के साथ एक हो जाने के लिए मैं
बाहर की स्त्री की सहायता किस तरह से ले सकता हूं?
यह प्रश्न है आनंद कूल
भूषण का। पहली बात तो स्त्री को अन्य दूसरे आधा भाग की भांति कदापि मत सोचो। न वह
आधा भाग है और न तुम हो। तुम भी पूर्ण हो और वह भी पूर्ण है। वह एक वैयक्तिकता है
और तुम भी एक वैयक्तिकता हो। तुम भी पूरे हो और वह भी पूरी है। पुराना दृष्टिकोण
कि स्त्री एक अर्द्धांगिनी है। बहुत ही दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ है। जिस क्षण तुम
अधिकार जमाना प्रारम्भ कर देते हो, वह एक
सम्पति बन जाती है—जिस क्षण तुम दूसरे की वैयक्तिकता को नष्ट
करना प्रारम्भ कर देते हो, तुम कोई बहुत मूल्यवान चीज़ को
नष्ट कर रहे हो। यह असृजनात्मकता है। स्त्री के बारे में अन्य दूसरे भाग की भांति
मत सोचो जो वह नहीं है।
खलील जिब्रान कहता
है कि दो प्रेमी एक मंदिर के दो खम्भों की भांति होते हैं। वे एक ही छत को सहारा
देते हैं। लेकिन वे अलग-अलग एक दूसरे से दूर होते हैं। वे कभी भी एक साथ नहीं
होते। यदि एक मंदिर के दो खम्भे बहुत निकट आ जायें तो छत को किसी भी प्रकार का कोई
सहारा नहीं मिलेगा और मंदिर गिर पड़ेगा। च्वांगत्सू सभागार में इन खम्भों की और
देखो,
वे कुछ दूरी पर खड़े हुए, एक ही छत को संभाले
हुए है। ऐसा ही दो प्रेमियों को भी होना चाहिए, एक दूसरे से
दूर अपनी पूरी वैयक्तिकता के साथ खड़े रहना। फिर भी उनमें कुछ चीज समान होती हैं।
जो उन्हें सहारा देती है।
पत्नी,पति का आधा भाग नहीं है। और न पति ही पत्नी का आधा भाग है। न तो पति पत्नी
को समर्पण करता है और न पत्नी पति को अपना समर्पण करती है, वे
दोनों देवता को समर्पण करते हैं। यह बात स्मरण बनी रहे अन्यथा वास्तव में यह चीज़
शक्ति हीन और निकम्मा बनाने वाली सिद्ध हुई है। पुरूष ने बहुत अधिक बरदाश्त नहीं
किया है। क्योंकि स्त्री के बारे में यह पुरूष का ही विचार है कि वह उसका आधा भाग
है। वह स्वयं यह नहीं सोचता कि वह भी दूसरा आधा भाग है। नहीं, यह पुरूष का ही विचार है कि स्त्री ही उसका दूसरा भाग है। पुरूष पूर्ण बना
रहता है और स्त्री दूसरा आधा भाग बन जाती है।
यह कारण है कि
विवाह के बाद पति को नहीं केवल स्त्री को अपने नाम के साथ पति का ही नाम लगाना
पड़ता है। वह विलुप्त हो जाती है। वह मिट जाती है, वह
फिर और अधिक स्त्री नहीं रह जाती—वह एक पत्नी बन जाती है।
पत्नी एक संस्था है। पुरूष फिर भी वैसा ही पुरूष बना रहता है, जैसा कि वह पहले था। पुरूष में कुछ नया जूड़ जाता है, लेकिन स्त्री से कुछ चीज़ अलग हो जाती है। यह एक कुरूपता हैं।
कुछ दिनों पूर्व
मैं एक सुंदर कविता पढ़ रहा था:
एक प्रेम अपनी
प्रेमिका से कहता है—‘तुम अपने प्रेम के बारे में
मुझे मत बताओ।’
तुम अपने प्रेम के
बारे में मुझे मत बतलाओं
मैं उसे भली भांति
जानती हूं
तुम्हारी एक दृष्टि
में मैंने उसका अनुभव किया है,
और सबसे अधिक बुरा
यह है कि
तुम्हारा चाबुक
मारने जैसा डांट-फटकार
में मैंने उस प्रेम
का अनुभव किया है,
तुम अपनी ज़बान से
अपने प्रेम का बखान मत करो
वह एक ऐसा
प्रवाहमान लावा है—
जिसमें मैं और मेरी
नीचता डूब गई है।
मेरे पास उसकी
तीव्र जलन और दर्द है
और केवल कुछ स्थान ही भय विहीन बने हैं
तुम्हारे प्रेम के ताप में वह सभी कुछ है
लेकिन उसने मेरी बुद्धि को नष्ट कर दिया है
तुम्हारे प्रेम की सुरक्षा की खातिर
मैंने अपने पिता को
छोड़कर तुम्हें अपने को सौंप दिया हैं।
तुम्हारे प्रेम का
प्रमाण यह है कि मैं एक बंदिनी बनकर रह गई हूं
तुम्हारे प्रेम के
गीत न मुझे स्वर ही बना दिया है
मैं अब और गीत नहीं
गा पाऊंगी
मैं अब और हूं ही
नहीं
तुमने मुझसे प्रेम
किसी नशे की बेहोशी में किया है।
मुझे फिर से
दोहराने दो: ‘तुमने मुझसे प्रेम किया नशे की बेहोशी
में किया है।’
तब इस प्रेम ने एक
प्रेमी की भांति अपनी प्रमुखता सिद्ध नहीं की हैं। यह सूक्ष्म रूप से एक तरह का
स्वामित्व है। और जब वहां स्वामित्व होता है, प्रेम
विलुप्त हो जाता है। जब वहां शासन होता है तो प्रेम मिट जाता है।
कृपया एक स्त्री और
एक पुरूष को नियंत्रण में मत रखिये। स्वामित्व और नियंत्रण में रखना प्रेम नहीं
है। स्मरण रहे, कि एक स्त्री को एक वैयक्तिकता की भांति
अपने को अछूता बनाये रखना होता है। अपनी स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करना चाहिए,
आपकी स्वतंत्रता का वह चाहे कुछ भी खाती-पीती है, सम्मान करना है। तंत्र की भी यही अंतर्दृष्टि है: स्त्री की स्वतंत्रता
बेशर्त अछूती बनी रहना है। वह चाहे कुछ भी निर्णय लेती है। यदि तुम वास्तव में
उससे प्रेम करते हो, तो तुम उसकी स्वतंत्रता से भी प्रेम
करोगे—और वह तुम्हारी स्वतंत्रता से प्रेम करेगी। यदि तुम एक
व्यक्ति से प्रेम करते हो तो तुम उसकी स्वतंत्रता को कैसे नष्ट कर सकते हो?
यदि तुम एक व्यक्ति पर विश्वास करते हो, तो
तुम उसकी स्वतंत्रता पर भी विश्वास करते हो।
एक दिन ऐसा
हुआ.......
एक व्यक्ति मेरे
पास आया,
जो वास्तव में बहुत अव्यवस्थित और दुखी था। और उसने मुझसे कहा—‘अब मैं आत्महत्या कर लूंगा।’
मैंने उससे पूछा—‘आखिर क्यों?’
उसने कहा—‘मैं अपनी पत्नी पर विश्वास करता था, पर उसने मुझसे
विश्वासघात किया है। मैं उस पर पूर्ण रूप से विश्वास करता था, और वह किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करती रही और मैं इस बारे में कभी नहीं
जान पाया और केवल अभी ही मुझे उसका पता लगा है। मैंने उसके लिखे कुछ पत्रों को
पकड़ लिया....और तब मैंने जांच करते हुए उससे बताने का आग्रह किया और अब उसने
स्वीकार किया कि वह पूरी अवधि में उससे ही प्रेम करती रही। तब उसे आदमी ने कहां अब
मैं आत्म हत्या कर लूंगा।’
मैंने उससे कहा—‘तुम कहते हो कि तुम उस पर विश्वास करते थे।’
उसने कहा—‘हां, मैं उस पर विश्वास करता था, लेकिन उसने विश्वासघात किया है।’
मैंने कहा—‘तुम्हारे विश्वास करने का अर्थ क्या है? विश्वास
करने के बारे में तुम्हारी धारणा कुछ गलत है—तुम्हारा
विश्वास भी राजनीतिक प्रतीक होता है। तुम उस पर इसलिए विश्वास करते थे जिससे वह
तुमसे विश्वासघात न करें। तुम्हारा विश्वास करना एक चालबाजी थी। अब तुम चाहते हो
कि वह अपराध-बोध का अनुभव करें। यह विश्वास नहीं है।’
वह बहुत अधिक
परेशान हो गया। उसने कहां—‘यदि यह विश्वास नहीं है,
तब विश्वास करने का और क्या अर्थ हो सकता है? मैं
तो उस पर पूरा विश्वास करता था।’
मैंने कहा—‘यदि मैं तुम्हारे स्थान पर होता तो विश्वास करने का मेरा अर्थ यह होता कि
मैं उसकी स्वतंत्रता पर भी विश्वास रखता हूं, मैं उसकी
बुद्धिमत्ता और प्रेम करने की क्षमता पर भी विश्वास करता हूं। यदि वह किसी अन्य
व्यक्ति से प्रेम में पड़ती है मैं तब भी
उस पर विश्वास करता हूं। वह बुद्धिमान है, वह चुनाव कर सकती
है। वह स्वतंत्र है, वह प्रेम कर सकती है। मैं उसकी समझ पर
विश्वास पर विश्वास करता हूं।’
विश्वास करने का
तुम्हारा आखिर क्या अर्थ है? जब तुम उसकी
बुद्धिमत्ता, उसकी समझ और उसकी सचेतनता पर विश्वास करते हो—तो तुम बस विश्वास करते हो। और यदि वो पाती है कि वह किसी अन्य व्यक्ति के
प्रति प्रेम करने की और गतिशील होना पसंद करती है तो यह पूर्ण रूप से ठीक है। यदि
इससे तुम्हें कष्ट का अनुभव होता है तो यह तुम्हारी अपनी समस्या है, और यह उसकी समस्या नहीं है। और यदि तुम कष्ट का अनुभव करते हो, तो यह प्रेम के कारण नहीं है, यह इसलिए है क्योंकि
तुम ईर्ष्या करते हो। यह किसी तरह का विश्वास है?
इस बात पर विचार
करो। यदि मैं एक स्त्री से प्रेम करता हूं मैं उसकी बुद्धि पर अपरिसीमितता विश्वास
करता हूं। और यदि कुछ क्षणों के लिए वह कसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करना चाहती है
तो ये पूर्ण रूप से ठीक है। मैंने हमेशा उसकी बुद्धि पर विश्वास किया है। उसे
निश्चित रूप से इस तरह का अनुभव होना चाहिए। वह स्वतंत्रता है। वह मेरा आधा भाग
नहीं है,
वह मुक्त है। और जब दो व्यक्तियों की वैयक्तिकता स्वतंत्र होती है,
केवल तभी वहां प्रेम होता है। प्रेम केवल दो स्वतंत्रताओं के मध्य
ही प्रवाहित हो सकता है।
मैं कूल भूषण के
प्रश्न को समझता हूं। उसने दूसरे आधे शब्दों को प्रयोग अचेतन रूप से किया है।
मैंने पत्नी के प्रति उसके प्रेम को देखा है, मैंने
उसके लिए उसकी पत्नी के भी प्रेम को देखा है। वे लोग किसी भी तरह से एक दूसरे का
आधा भाग नहीं हैं। यह शब्दों का प्रयोग करने की केवल एक अचेतन प्रवृति है। लेकिन
मैं इसे स्पष्ट कर देना चाहता हूं।
दूसरी बात यह है:
यह अब और प्रेम करने जैसा नहीं है—‘जब प्रेम
गहरे में विकसित होता है, वह कुछ अन्य चीज़ बन जाता है। जब
प्रेम विकसित नहीं होता है, वह कुछ अन्य बन जाता है। प्रेम
बहुत नाजुक चीज़ है। यदि वह विकसित नहीं होता है, तो वह कड़वा
बन जाता है, वह विषैला होकर घृणा बन जाता है। वह घृणा से भी
नीचे गिर सकता है—वह उदासीनता अथवा उपेक्षा बन सकता है,
जो प्रेम से सबसे अधिक दूर है।’
प्रेम एक
उत्तेजनापूर्ण और तीव्र ऊर्जा है। इसी तरह घृणा में भी उत्तेजना होती है। लेकिन
उपेक्षा या उदासीनता उत्साहहीन, जमी हुई बर्फ की तरह
ठंडी होती है। तुम प्रेम घृणा और उदासीनता के बारे में इसी पैमाने पर विचार कर
सकते हो: ठीक घृणा और प्रेम के मध्य में वहां एक शून्यता का बिंदु होता हैं—ठीक जैसे की एक थर्मामीटर में वहां एक ‘जीरो प्वाइंट’
होता है। जिसके नीचे ठंडक होती है और उसके ऊपर उष्णता होती है।
प्रेम एक उत्तेजना हैं एक आवेग है जीरो बिंदु पर घृणा है; उसे
नीचे तुम और भी ठंडे हो जाते हैं। तुम बर्फ की तरह जम कर-उदासीन हो जाते हो। यदि
प्रेम विकसित नहीं होता है, तो वह नीचे की और गिरना शुरू हो
जाता है। उसे गतिशील होना ही होता है।
प्रेम एक ऊर्जा है;
ऊर्जा गतिशील होती है। यदि वह गतिशील होती है तो तुम शीघ्र ही पाओगे
कि वह अब और प्रेम नहीं रहा है, वह ध्यान बन गया है, वह प्रार्थना पूर्ण बन गया है। तंत्र की पूरा मार्ग यहीं हैं—कि यदि प्रेम ठीक से विकसित होता है, यदि प्रेम की
प्रवृति की सावधानी से देखभाल की जाती है तो वह प्रार्थना पूर्ण बन जाता है। वह
अंतिम रूप से धार्मिकता का सर्वोच्च अनुभव बन जाता है।
प्रेम परमात्मा का
एक मंदिर है।
इस लिए वे लोग जो
उदासीनता में जीते हैं, धार्मिकता की स्थिति को
नहीं जान सकते। उदासीनता ही असली नास्तिकता है। वे लोग जो बिना उत्साह के उदासीनता
की भांति जीते हैं—इस बात को कोर्ट कचहरी भी समझते है। यदि
किसी व्यक्ति की हत्या क्रोध और उत्तेजना की स्थिति में की जाती है तो कोर्ट उसे
उतनी अधिक गम्भीरता से नहीं लेता। यदि किसी व्यक्ति की हत्या प्रेम, क्रोध अथवा घृणा के तीव्र आवेग में की जाती है तो भी कोर्ट दयालुता का
दृष्टिकोण अपनाता है और हत्यारे को निश्चित रूप से बहुत कठोर दंड नहीं दिया जाता।
वह केवल तीव्र भाव वेग में किया गया कार्य होता है और आकस्मिक क्रोध के कारण ही
होता है।
लेकिन जब हत्या,
उदासीनता, निर्दयता और हिसाब-किताब फैलाकर योजनाबद्ध
तरीके से की जाती है तो कोर्ट कचहरी बहुत कठोर दंड देते है। इस तरह की हत्या करने
वाला व्यक्ति बहुत खतरनाक होता है। वह प्रत्येक चीज की विस्तृत तैयारी करता है,
वह सोच समझ कर उस बारे में एका ग्रह चित होकर पूरी नाप तौल कर एक
योजना के तहत करता है। वह बहुत-बहुत यांत्रिक और दक्ष तरीके से अपने कार्य को बहुत
चतुराई से गतिशील होता है। उसके पास हृदय नहीं होता है, वह
केवल उदासीन, निर्दय और कठोर होता है।
निर्दय,
कठोर और उदासीन हृदय ही मृत हृदय अथवा हृदयहीन होता है। ऐसा निर्दय
कठोर और उदासीन हृदय ही मृत शुष्क और पृथ्वी से खोदकर निकाले गए अस्थिपंजर की
भांति होता है। यदि प्रेम उच्चता की और गतिशील नहीं होता है, तो स्मरण रहे कि वह निम्नतल की और जायेगा, वह स्थिर
नहीं बना रह सकता। वह प्रवाहित होता ही है, या तो वह निम्न
तल की और जाता है। अथवा उच्च तल की और गति करता है—लेकिन वह
प्रवाहित होता है, वह गतिशील होता है। इसलिए यदि तुम वास्तव
में उत्साह, उत्तेजना और उमंग भरा जीवन जीना चाहते हो तो
प्रेम को विकसित होने में उसकी सहायता करो।
दो व्यक्ति प्रेम
में पड़ते हैं। यदि शीघ्र ही उनका प्रेम मित्रतापूर्ण होना प्रारम्भ नहीं होता है
तो देर-अबेर वहां तलाक होने जा रहा है। प्रेम से मित्रता विकसित होना चाहिए,
अन्यथा शत्रुता विकसित होगी। कुछ न कुछ होना सुनिश्चित है। प्रेम एक
खुलापन है, एक शुरूआत है। तुरंत ही मित्रता विकसित होना शुरू
हो जाती है, अन्यथा उत्पन्न होगी। किसी चीज़ का भी विकसित
होना सुनिश्चित है।
प्रेम में उर्वरता
है। यदि तुम सुंदर फूलों के बीज नहीं बो रहे हो, तब
खरपतवार उगेगी—लेकिन किसी चीज का उत्पन्न होना सुनिश्चित ही
है। जब प्रेम वास्तव में गहराई तक उतरता है वह प्रार्थना पूर्ण बन जाता हैं। तब
पूरी गुणात्मकता में सेक्स नहीं होता है, वह वासना विहीन
होता है। तब तुम्हारे पास दूसरे के लिए श्रद्धा की एक विशिष्ट अनुभूति होती है,
उसमें किसी भी भांति की कोई कामवासना नहीं होती, बल्कि एक आदरपूर्ण भय होता है। उस अन्य व्यक्ति की प्रामाणिक उपस्थिति में
तुम दिव्यता और पावनता जैसी किसी चीज का अनुभव होना शुरू हो जाता है। तुम्हारा प्रिय
पात्र तुम्हारा परमात्मा अथवा दिव्य बन जाता है।
यह किसी और प्रेम
करने के समान बिलकुल भी नहीं होता है। मैं अनुभव करता हूं कि मैं तुम्हारे साथ एक
मंदिर में सभी जगह हूं। यह ठीक है कि तुम पर अनुग्रह और आर्शीवाद बरस रहे है। इस
क्षण में सचेत होता हूं, जैसा मैं तुमसे मिलने के
पूर्व कभी भी न था। प्रेम और अधिक प्रार्थना बन जाता है और ठीक एक छाया की भांति
कहीं अधिक सचेतनता घटित होती है।
यह मैं आग्रहपूर्वक
कहता हूं कि यदि सचेतनता होती है, तब प्रेम आता है—प्रेम एक छाया की भांति आता है। यदि प्रेम घटता है तब छाया की भांति
सचेतनता आती है। तुम प्रेम में विकसित हो अथवा तुम ध्यान में विकसित हो, लेकिन अंतिम परिणाम समान होता है। दोनों एक साथ आते है; तुम एक के लिए प्रयास करो, तो दूसरा आता ही है। यह
तुम पर निर्भर है।
यदि तुम प्रेम के
साथ अधिक कल्पना बद्ध होना अनुभव करते हो, तब प्रेम
ही तुम्हारा मार्ग है—वह भक्ति मार्ग है। यदि तुम चेतना के
साथ अधिक लयबद्ध होने का अनुभव करते हो, तब तुम्हारा मार्ग
ध्यान है। केवल ये ही दो मूल मार्ग है; और अन्य सभी दूसरे
मार्ग इन दो का जोड़ है। यदि प्रेम विकसित होता है तो तुम प्रत्येक क्षण उसके
प्रति अधिक से अधिक सचेत होते जाओगे। वह जितना उच्चता की और जाता है। चीजों को
देखने की अंर्तदृष्टि भी उतनी ही उच्च होगी।
उस क्षण तुम्हें
धन्यवाद देना कभी भी ठीक नहीं है। वह हो भी नहीं सकता है और न वहां उसकी जरूरत ही
होती है। वास्तव में कई बार जब हम तुम्हें धन्यवाद कहते हैं,
तो हमारा वह अर्थ नहीं होता। कोई व्यक्ति जब मेज पर नमक दानी सरका
देता है तो तुम धन्यवाद कहते हो—क्या तुम्हारा यही अर्थ होता
है? तुम्हारा यह अर्थ नहीं होता है, वह
केवल एक औपचारिकता होती है। एक सदगुरू और एक शिष्य के मध्य वहां कोई भी औपचारिकता
नहीं होना चाहिए; वहां उसकी कोई भी जरूरत नहीं होती। मैं
तुम्हारी और कोई नमक दानी नहीं सरका रहा हूं।
‘धन्यवाद
करना’ यह पश्चिम की व्यावहारिक रीति है, जो की पूरब में असम्भव है। मैंने कभी भी अपने पिताजी को धन्यवाद नहीं दिया,
मैं दे भी नहीं सकता। मैं अपने पिता को कैसे धन्यवाद दे सकता हूं?मैंने कभी अपनी मां को धन्यवाद नहीं दिया। उनको धन्यवाद देने के लिए मेरे
पास प्रत्येक चीज़ थी, लेकिन मैंने उन्हें धन्यवाद नहीं
दिया। मैं कैसे दे सकता था उसे? धन्यवाद कहना बहुत गलत होता
है, वह बहुत लज्जित करने वाला शब्द है। वह बहुत अधिक औपचारिक
उथला होता है। वह प्रेम विहीन होता है। इस बारे में खामोश रहना ही बेहतर है। वह
इसे समझती है।
एक सदगुरू और एक शिष्य
के मध्य में, वहां कोई भी औपचारिकता सम्भव नहीं है।
सारी औपचारिकता हमेशा अपर्याप्त होगी। वहां इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। कूल
भूषण! मैं इसे समझता हूं। मैं देख सकता हूं कि तुम्हारा हृदय कृतज्ञता से भरा हुआ
है। इसे केवल मौन में ही कहा जा सकता है। इसे बिना कहे हुए ही कहा जा सकता है;
यदि तुम इसे कहने का प्रयास करते हो, तो वह
कभी भी ठीक नहीं लगेगा।
इस क्षण तुम्हारा
धन्यवाद देना कभी भी उचित नहीं है। और तो भी हम फिसल कर पीछे लौट जाते हैं। हम
कैसे इसे छोड़कर ऊपर उठ सकता है? मैं अंदर की स्त्री के
साथ एक हो जाने के लिए बाहर की स्त्री की कैसे सहाया ले कसता हूं? फिसल कर पीछे लौट जाना स्वाभाविक है। अतीत बहुत अधिक बड़ा है और वर्तमान
का क्षण बहुत अधिक छोटा है। अतीत का खिंचाव बहुत अधिक विशाल है और यह चेतना वृक्ष
पर अभी हाल ही आई नहीं कोंपल की भांति है—ताज़ा युवा,
कोमल और कमजोर। और अतीत हिमालय जैसा विशाल है, जहां चट्टानें पहाड़ियां और बस पहाड़ियां ही हैं। यह नन्हीं सी पत्ती और
यह विशाल हिमालय की पहाड़ियां.....इस पत्ती को, हजारों जन्म
में यंत्रवत और अचेतन रूप से अतीत में रहने वाले हिमालय से संघर्ष करना पड़ा। लेकिन
तो भी यह बहुत छोटी सी पत्ती पूरे हिमालय की सारी पहाड़ियों और पहाड़ियों पर की
अपेक्षा कहीं अधिक शक्तिशाली सिद्ध होगी। क्यों? क्योंकि यह
पत्ती जीवंत है, प्रेम के साथ प्राणम्य है और प्रेम के साथ
ही दीप्तिवान है। यह पत्ती चेतना से परिपूर्ण है और यह विजित होने जा रही है।
लेकिन कई बार तुम
अनुभव करोगे कि तुम फिसल गए हो—जो बहुत स्वाभाविक है।
इस बारे में फिक्र मत करो, इस बारे में अपराध बोध का अनुभव
मत करो। जब भी तुम स्मरण आ जाये, फिर से विकसित होना
प्रारम्भ करो। अपनी चेतना रूपी पत्ते अर्थात किस जागृति को हमेशा बनाये रखो। इस
नूतन अंतदृष्टि में जो तुममें विकसित हो रही है। अपनी पूरी चेतना को उड़ेल दो
प्रारम्भ में ये क्षण बहुत थोड़े से और बहुत दूरी के मध्य आना एक बाध्यता है। लेकिन
यदि एक बार भी यह क्षण आता है, जब प्रेम फिर और प्रेम नहीं
रह जाता और प्रार्थना पूर्ण बन जाता है, तो तुम तंत्र के
क्षण में हो। अंधेरी रातों के बारे में फिक्र मत करो; इस
बारे में फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। एक दिन से दूसरे दिन की और आगे बढ़ो
दिन प्रति दिन का स्मरण बना रहे।
वह रातें आयेगी—जब कभी वे बहुत लम्बी रातें होंगी। उन रातों के बारे में केवल अंधेरी
सुरंगों की भांति विचार करो। बीच में एक अंधेरी सुरंग होती है, पर उसके एक सिरे पर प्रकाश होता है और दूसरे सिरे पर भी प्रकाश होता हे।
यह और भी अच्छा है, क्योंकि तुम्हारी आंखें कहीं अधिक
स्पष्टता से प्रकाश देखने को तैयार होती है। वे आराम और विश्राम देती हैं। एक राम
और दूसरी रात के मध्य आने वाले केवल दिन की सीमा में मत सोचो, नहीं। यद्यपि वे क्षण भी तो बहुत थोड़े और काफी दूरी के मध्य बहुत छोटे
क्षण होता हैं। पर वे बहुमूल्य रत्नों की भांति चमकते हुए होते है। केवल उन क्षणों
के बारे में सोचो। एक क्षण आज आ सकता है और दूसरा क्षण हो सकता है, एक साल के बाद आये। साल के बारे में फिक्र मत करो—वह
असंगत है; इस क्षण से उस क्षण तक अपनी आंखों को केंद्रित बना
रहने दो। यह पूरा वर्ष एक दिन से दूसरे दिन तक, एक प्रकाश से
दूसरे प्रकाश तक, प्रेम के एक क्षण से प्रेम के दूसरे क्षण
तक, और एक चेतना से दूसरी चेतना तक केवल एक सुरंग है। शीघ्र
ही फिसलन कम होने लगेगी और शीघ्र ही वह समाप्त हो जायेगी। लेकिन इस बारे में
पश्चाताप करने की अथवा अपराध बोध अनुभव करने की कोई जरूरत नहीं है। यह स्वाभाविक
है। इसे स्वीकार करो।
‘मैं अंदर
की स्त्री के साथ एक होने के लिए बाहर की स्त्री की कैसे सहायता ले कता हूं?’—इस ‘कैसे’ के बारे में कत
सोचो। यदि वहां प्रेम है, तो ऐसा होने जा रहा है। और प्रेम ‘कैसे’ नहीं होता, प्रेम कैसे
जानूं नहीं है। प्रेम तो केवल बिना किसी कारण के होता है। प्रेम तो केवल श्रद्धा
के साथ और आश्चर्य से स्तब्ध होने के साथ होता है। प्रेम, केवल
दूसरे का शरीर नहीं, बल्कि आत्मा देखकर, दूसरे का मन नहीं, बल्कि अमन देखकर करो। यदि तुम
अपनी स्त्री का अमन देख सकते हो, तो तुम अपने अंदर की स्त्री
को खोजने में बहुत सरलता से समर्थ हो सकोगे। तब बाहर की स्त्री केवल एक माध्यम
होती है। बाहर की स्त्री के द्वारा, बाहर की स्त्री के
माध्यम से, तुम अपने अंदर की स्त्री के पास वापस फेंक दिये
जाते हो। लेकिन यदि बाहर की स्त्री केवल एक शरीर है, तब तुम
रूक जाते हो, तुम्हारे सामने अवरोध आ जाता है। यदि दूसरी
स्त्री केवल एक आत्मा है, वह केवल एक शून्यता है, केवल एक मार्ग है, तब तुम्हारे लिए वहां कोई भी
रूकावट नहीं है। तुम्हारी ऊर्जा वापस लौटेगी और तुम्हारी अंदर की स्त्री को खोजकर
उसमें प्रविष्ट हो जायेगी।
प्रत्येक स्त्री और
पुरूष,
अपने अंदर के पुरूष अथवा स्त्री को खोजने में बाहर से सहायता ले सकता
हैं। लेकिन इसके लिए वहां कैसे नहीं है। श्रद्धा की आवश्यकता है। दूसरे की दिव्यता
की सीमा या मर्यादा में रहते हुए उसके बारे में सोचो और उस पर ध्यान करो। दूसरा
व्यक्ति दिव्य है। इसी दृष्टि कोण को प्रबल होने दो, और तुम
अपने चारों और इसी तरह का वातावरण बनने दो। और वह होने जा रहा है। वह पहले ही से
उस होने के मार्ग पर है।
तीसरा प्रश्न:
प्यारे ओशो!
लोग आपसे क्यों चिड़े
जा रहे है? जब से मैंने संन्यास लिया
है, मैं उनकी मूर्खता को बहुत स्पष्ट रूप से देख सकता हूं?
वे लोग इसे क्यों नहीं देख सकते?
दूसरों के प्रति
बहुत कठोर मत बनो। और यह तुम्हारा कार्य-व्यापार भी नहीं है। यदि वे इसे नहीं
देखना और समझना चाहते, तो यह उनकी स्वतंत्रता और
उनका अपना निर्णय है। इसे मूर्खता कहकर भी मत पुकारो, क्योंकि
यदि तुम इसे मूर्खता कहकर पुकारते हो, तो तुम्हारे अंदर एक
सूक्ष्म अहंकार उत्पन्न होगा कि तुम तो देख सकते हो, और वे
नहीं देख सकते, कि तुम तो बुद्धिमान हो और वे मूर्ख है। नहीं
यह बात ठीक नहीं है।
एक बार ऐसा
हुआ.......
मुहम्मद साहिब अपनी
सुबह की नमाज पढ़ने मस्जिद गए तो अपने साथ एक युवक को लेते गए,
जो पहले कभी भी मस्जिद नहीं गया था। वह गर्मियों की एक सुबह थी और
वास लोटने पर भी लोग तब भी सो रहे थे—वापस लौटते हुए उस युवक
ने मुहम्मद साहब से कहा—‘हज़रत देखिए, ये
पापी लोग अभी तक सो रहे हैं, क्या यह सोने का समय है?
यह प्रार्थना करने का समय है।’ और यह उसका
पहला ही अवसर था जब वह स्वयं प्रार्थना करने गया था।
क्या तुम जानते हां
के मुहम्मद साहिब ने क्या कहा? आकाश की और देखकर
उन्होंने कहा—‘मुझे बहुत अफसोस है।’
उस युवक ने पूंछा—‘यह आप किस के लिए कह रहे हैं?’
उन्होंने कहा—‘अल्लाह के लिए, मुझे वापस लौटकर मस्जिद जाना होगा—और कृपया इस बार तुम मत आना यह अच्छा था, कि तुम
इससे पहले कभी मस्जिद नहीं गए थे। मैंने तुम्हें मस्जिद साथ ले जाकर बहुत बड़ी
गलती की है। यह अच्छा था की तुम भी सोये ही रहते--कम से कम तुम्हारे पास यह अहंकार
जो जमा हुआ वह तो न होता। अब चूंकि तुमने एक बार नमाज पढ़ ली है तो तुम एक फकीर बन
गए हो और ये लोग तुम्हारे लिए पापी हैं। और चूंकि मैं तुम्हें साथ ले गया था इसलिए
मेरे द्वारा की गई प्रार्थना भी बरबाद हो गई, इसलिए मैं फिर
वापस लौटकर जा रहा हूं।’
और वह पुन:
प्रार्थना करने वापस लौट कर परमात्मा से क्षमा मांगने मस्जिद गए और उनके चेहरे पर
आंसू ढलक रहे थे।
तुमने कुछ दिनों
पूर्व अथवा कुछ सप्ताह पूर्व ही संन्यास लिया है और तुम सोचते हो कि दूसरे लोग
मूर्ख है?
यह ठीक नहीं है, यह किसी भी प्रकार ठीक नहीं
है। वास्तव में एक संन्यासी वह व्यक्ति होता है जो दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप
नहीं करता है। यह व्यवहार, एक हस्तक्षेप करने जैसा है। क्यों?
यदि वे लोग मुझे नहीं देखना चाहते, यदि वे
मुझे नहीं सुनना चाहते, यदि वे लोग यह नहीं समझना चाहते कि
यहां क्या हो रहा है, तब यह उनकी अपनी स्वतंत्रता है। वे
मूर्ख नहीं है, यह पूर्ण रूप से उनकी स्वतंत्रता है कि
उन्हें अपने मैं बने रहना है।
यदि तुम ऐसी ही
स्थितियां अथवा दृष्टि कोण बटोरते जाते हो तो इसी तरह से सनक उत्पन्न होती है तब
एक दिन तुम सनकी बन जाते हो। तब तुम उन्हें आने के लिए विवश करते हुए उनसे कह सकते
हो कि तुम्हें आना ही होगा। करूणा वश तुम्हें उन्हें विवश करना ही होगा। यहीं है
वह चीज़ जो धर्म पिछली शताब्दियों से करते आ रहे हैं। मुसलमान,
हिन्दुओं को मार रहे हैं, हिंदू मुसलमान को
मार रहे हैं, ईसाई मुसलमानों की हत्या कर रहे है। और मुसलमान
ईसाइयों की हत्या कर रहे हैं। आखिर किसके लिए?—बस करूणावश वे
कहते हैं—‘हम तुम्हें ठीक रास्ते पर ले जायेंगे। तुम भटके
चले जा रहे हो। हम तुम्हें भटकते चले जाने की अनुमति नहीं दे सकते।’
स्वतंत्रता का अर्थ
है परिपूर्ण स्वतंत्रता। स्वतंत्रता का अर्थ है—भटके
चले जाना भी। यदि तुम एक व्यक्ति को भटकते चले जाने की अनुमति नहीं देते हो,
तब यह किस तरह की स्वतंत्रता हुई? यदि तुम एक
बच्चे से कहते हो—‘तुम केवल ठीक कार्य करने के लिए स्वतंत्र
हो और यह निर्णय मैं ले रहा हूं कि ठीक कार्य क्या होता हैं। तुम गलत कार्य करने
के लिए स्वतंत्र नहीं हो और यह मैं तय कर रहा हूं कि गलत कार्य क्या है।’—तो यह किस तरह की स्वतंत्रता है? तुम तय करने वाले
होते कौन हो कि क्या ठीक है? प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं अपने
लिए निर्णय लेने दो।
इस तरह के
दृष्टिकोण अथवा रवैये को बटोरना बहुत सरल है। इसी कारण पिछली सदियों में यह
मूर्खता हुई है कि प्रेम के नाम पर और परमात्मा के नाम पर लाखों लोगों की हत्या कर
दी गई। यह कैसे सम्भव हुआ? ईसाई सोच रहे थे कि वे एक
महान कर्तव्य का पालन कर रहे हैं, क्योंकि वे सोचते थे—‘जब तक तुम जीसस के माध्यम से नहीं आते हो, तुम कभी
परमात्मा तक नहीं पहुंच पाओगे।’ यदि तुम तर्क को देखो तो वह
बहुत-बहुत करुणापूर्ण प्रतीत होता है। यदि वास्तव में ऐसी ही स्थिति है कि तुम
केवल जीसस के द्वारा ही परमात्मा के निकट आ सकते हो, तो वे
लोग जो आग लगाते हुए लोगों को दण्ड देते हुए उन्हें मार रहे थे, तो वे वास्तव में महान संत थे।
लेकिन समस्या यहीं
है। मुसलमान सोचता हैं कि तुम केवल मुहम्मद के द्वारा ही उस तक पहुंच सकते हो;
मुहम्मद ही आखिरी पैगंबर है। जीसस पहले ही से समय के बाहर हैं।
परमात्मा ने एक दूसरा ही संदेश भेजा है—जो कहीं अधिक विकसित
होकर एक नये संस्करण के रूप में आया है। इसलिए जब मुहम्मद आ गए हैं, फिर जीसस के बारे में फिक्र क्यों करते हो? निश्चित
रूप से सबसे अधिक बाद में आने वाले को ही सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए, इसलिए तुम्हें मुहम्मद के द्वारा आना होगा। अब वहां केवल एक ही परमात्मा
है और वहां परमात्मा का केवल एक ही पैगंबर है, और वह मुहम्मद
है। और यदि तुम उनकी बात नहीं सुनते हो, तो वे तुम्हें मारने
के लिए तैयार हैं—वह भी केवल प्रेम वश, तुम्हारे स्वयं के अच्छे के लिए।
और हिंदूओं की बात
सुनो—वे कहते हैं कि यह सभी मूर्खता पूर्ण है, वेद ही
परमात्मा का प्रथम संस्करण है और सर्वश्रेष्ठ हैं। क्यों?—क्योंकि
परमात्मा कोई भी त्रुटि नहीं कर सकता इसलिए उसमें कोई भी सुधार नहीं कर सकता।
प्रथम ही अंतिम है। परमात्मा ने एक बार ही सभी के लिए सभी कुछ लिख दिया, तब ये दूसरे अन्य संस्करण क्यों? ये सभी मूर्ख लोगों
के लिए हैं जो मूल को नहीं समझ सकते। यदि तुम वेदों को समझ सकते हो, तो इस बारे में बाइबिल और कुरान को समझने की कोई भी आवश्यकता नहीं है,
वे केवल अर्थ ही हैं। प्रथम ही सर्व श्रेष्ठ है। परमात्मा विश्वास
करता था कि मनुष्य उसे समझेगा। लेकिन तब उसने पाया कि मनुष्य बहुत मुर्ख था और
केवल थोड़े से बुद्धिमान लोग ही उसे समझ सके। तब उसे स्वयं को थोड़े से निम्नतल पर
लाना पड़ा। यह सुधार अथवा विकास नहीं है, ये केवल अपने को
वहां तक ले आना हैं, जहां मनुष्य है, इसलिए
उसने बाइबिल की रचना की। लेकिन वह भी नहीं समझी गई। तब उसने कुरान दिया। अभी भी
उसे भी नहीं समझा गया, इसलिए उसने गुरु ग्रंथ दिया। इसी तरह
से मनुष्य नीचे गिरा है।
हिंदु धारणा में
अतीत में परिपूर्णता थी, और तभी से मनुष्य का पतन
होता रहा है। यह युग सबसे अधिक मूर्खतापूर्ण युग है; मनुष्य
विकसित नहीं हुआ है, मनुष्य का पतन ही हुआ है। यह विकास नहीं
है। हिन्दू कहते हैं कि यह उलझाव अर्थात पेचीदगी है। इसलिए सब से बाद की पुस्तक सब
से अधिक साधारण है, और उसे ऐसा होना ही है कयोंकि वह सामान्य
लोगों के लिए है। पूर्ण कुशल लोग तो वेदों के साथ थे।
अब इस जगह पृथ्वी
पर तीन सौ धर्म हैं और प्रत्येक श्रेष्ठ होने का दावा करता है और प्रत्येक धर्म
दूसरे को मारने के लिए पहले से ही तैयार है। उनमें एक दूसरे का निरंतर गला काटने
का उन्माद है। मौलिक रूप से कुछ चीज़1 गलत हो गई
है। यही है वह चीज़ जो गलत हो गई है: तुम मुझसे उन्मादी बनने की अनुमति देने के
बारे में पूंछ रहे हो। नहीं, यह कम से कम मेरे साथ तो होने
नहीं जा रहा है—कम से कम तब तक, जब तक
मैं यहां हूं। दूसरे लाग जो कुछ वे करना चाहते हैं, जैसे वे
देखना चाहते हैं, अथवा जैसी वह व्याख्या करना चाहते हैं,
उसके लिए स्वतंत्र हैं। तुम्हें यह मानकर नहीं चलना है कि वे लोग
मूर्ख हैं। यह सुंदर बात है कि उन लोगों के पास अपने मस्तिष्क हैं।
एक नीग्रो लड़का
सफेद रंग से पुता हुआ घर आया और उसने कहा—‘स्कूल में
लड़कों ने मेरे पूरे शरीर पर सफेद रंग पोत दिया।’ इसलिए उसकी
मां ने उसकी गंदगी हटाने के लिए उसकी पिटाई की।
उसका पिता घर आया
और उसने पूंछा—‘यह आखिर क्या हो रहा है?’ इसलिए उसकी मां ने उसे बताया कि स्कूल में बच्चों ने हमारे सेम को सफेद
रंग से रंग दिया। इसलिए उसके पिता ने स्वयं अपनी प्रतिष्ठा न बचा पाने के लिए उसकी
दूसरी बार धुलाई और पिटाई की।
कुछ समय बाद एक दबी
हुई हल्की सी आवाज़ सुनी गई—‘मैं केवल दो घंटो के
लिए ही एक श्वेत लड़का बनकर रहा हूं, लेकिन मैं पहली ही से
गंदा व्यवहार करने वाले काले लोगों से घृणा करता हूं।’
और तुम केवल कुछ
सप्ताहों से ही नारंगी वस्त्र पहल कर एक संन्यासी बनकर रहे हो। कृपया धैर्यवान बनो,
बुद्धिमान बनो, दूसरे व्यक्तियों के उनके अपने
ढंग और शैली से बने रहने की प्रति सम्मान पूर्ण बन कर रहो।
चौथा प्रश्न:
प्यारे ओशो!
पिछले युगों से सभी
समाजों में सेक्स एक निषेध बनकर क्यों रहा है?
यह बहुत जटिल
प्रश्न है, लेकिन बहुत अधिक महत्वपूर्ण भी है और
इसके अंदर जाने योग्य भी है। मनुष्य के अंदर सेक्स सबसे अधिक शक्तिशाली प्रवृति
है। राजनीति को और पुरोहितों ने बिलकुल प्रारम्भ से ही सह समझा कि सेक्स मनुष्य को
नियंत्रण में रखने वाली प्रमुख ऊर्जा है। उसे नष्ट करना होगा अथवा उसे न्यूनतम
करना होगा और यदि मनुष्य को सेक्स में पूरी स्वतंत्रता की अनुमति दी जाती है तब इस
बारे में उन्हें नियंत्रण में रखना असम्भव होगा और उन्हें गुलाम बनाना भी सम्भव न
हो सकेगा।
क्या तुमने ऐसा
होते हुए नहीं देखा है?जब तुम एक सांड पर बैलगाड़ी
का जुआ रखकर उसे भार वाहक बनाना चाहते हो, तो तुम क्या करत
हो? तुम उसके अंडकोश निकालकर उसे बधिया बना देते हो और उसकी
सेक्स ऊर्जा को नष्ट कर देते हो। और क्या तुमने एक सांड और एक बैल के मध्य अंतर को
देखा है?कितना अधिक अंतर होता है। एक बैल बेचारा एक वस्तु
बनकर गुलाम बन जाता है। एक सांड के पास एक सौंदर्य होता है, वह
एक गौरवमय दृष्यसत्ता होती है, उसमें बहुत तेज और प्रताप
होता है। एक सांड को चलते हुए देखो, वह किस तरह एक सम्राट की
भांति चलता है। और एक बैल को बैलगाड़ी खींचते हुए देखो। ऐसा ही मनुष्य के साथ भी
किया गया है: उसके अंदर सेक्स की प्रवृति को काट कर न्यूनतम करते हुए उसे अपंग बना
दिया गया है। मनुष्य अब एक सांड की भांति न रहते हुए एक बैल की भांति रहता है। और
प्रत्येक मनुष्य तरह-तरह बैलगाड़ियां खींच रहा है।
ज़रा देखो,
और तुम अपने पीछे अनेक बैलगाड़ियां पाओगे जिनके जुओं का भार
तुम्हारे कंघों पर है। तुम एक सांड के ऊपर जुओं का भार क्यों नहीं रखते? सांड बहुत शक्तिशाली है। यदि वह पास से गुजरती हुई एक गाय देखता है तो वह
तुम्हें और बैलगाड़ी दोनों को उठाकर फेंक देगा और गाय की और बढ़ जायेगा। वह इस
बारे में ज़रा भी फिक्र नहीं करेगा कि तुम कौन हो और न वह तुम्हारी कोई भी बात
सुनेगा। सांड को नियंत्रण में रखना असम्भव होगा।
सेक्स ऊर्जा जीवन
ऊर्जा है,
जो अनियंत्रित हे। और राजनेताओं तथा पुरोहितों की दिलचस्पी तुममें न
होकर, उनकी दिलचस्पी तुम्हारी ऊर्जा को विशिष्ट दिशाओं में
मार्ग देने की है। इसलिए उसके पीछे वहां एक विशिष्ट बनावट है जिसे ठीक से समझना
है।
सेक्स ऊर्जा का दमन
और सेक्स करने का निषेध, ये दोनों मनुष्य की गुलामी
की वास्तविक बुनियाद हैं। और मनुष्य तब तक स्वतंत्र नहीं हो सकता जब तक कि वह
सेक्स को स्वतंत्र न करेगा। वास्तव में मनुष्य स्वतंत्र नहीं हो सकता जब तक कि
उसकी सेक्स ऊर्जा को स्वाभाविक रूप से विकसित होने की अनुमति न दी जाये।
वे पाँच छल और कपट
हैं जिनके द्वारा मनुष्य एक गुलाम में, एक
कुरूपता और अपंगता में बदल गया हैं।
पहला छल या चालबाजी
है कि यदि तुम मनुष्य को अपने अधिकार या नियंत्रण में रखना चाहते हो तो जितना
सम्भव हो से उसे कमज़ोर बना कर रखो। यदि पुरोहित तुम्हें अपने नियंत्रण में रखना
चाहता है यदि राजनेता तुम्हें अपने काबू में रखना चाहता है तो जितना सम्भव हो सके
तुम्हें कमज़ोर बनाकर रखना होगा। हां, कुछ खास
मामलों में अपवादों की अनुमति है—वह है कि जब शत्रु से युद्ध
करने के लिए सेना की जरूरत हो केवल तभी अनुमति दी जाये अन्यथा न दी जाये। सेना को
बहुत सी चीज़ों की अनुमति है जिनकी अनुमति सामान्य लोगों को नहीं दी जाती। सेना
मृत्यु की सेवा में है, इसलिए उसे शक्तिशाली बनने की अनुमति
है। उसकी जरूरत शत्रु को मारने के लिए है, इसलिए उसे जितना
भी शक्तिशाली बने रहना सम्भव हो, उसकी अनुमति है।
दूसरे लोग मिट जाते
हैं। उन्हें अनेक तरह से निर्बल बने रहने के लिए विवश किया जाता है। और एक मनुष्य
को निर्बल बनाये रखने का श्रेष्ठतम उपाय है उसे प्रेम करने की पूर्ण स्वतंत्रता न
देना। प्रेम पोषण करता है। अब मनोवैज्ञानिकों ने खोज की है कि यदि एक बच्चे को
प्रेम नहीं दिया जाता तो वह स्वयं ही सिकुड़ जाता है और निर्बल हो जाता है। तुम
उसे दूध दे सकते हो, तुम उसे दवा दे सकते हो,
तुम उसे प्रत्येक चीज़ दे सकते हो, बस उसे
प्रेम मत दो, उसे आलिंगन में मत लो, उसे
चूमो मत उसे पकड़ कर अपने शरीर के निकट लाकर उसे अपनी उष्णता मत दो, और वह बच्चा कमजोर और कमजोर और अधिक कमजोर होता जायेगा। और इस बारे में
उसके जीवित रहने की अपेक्षा उसके मर जाने की अधिक संभावना बन जाती है। ऐसा क्या
होता है?और क्यों होता है? केवल आलिंगन
में लेने से, उसे चूमने से, उसे शरीर
की उष्णता देने से, बच्चा स्वीकार किये जाने का, प्रेम किये जाने का और पोषण होने का अनुभव करता है। जितनी की उसे आवश्यकता
थी। बच्चा अपना मूल्य होने का अनुभव करना शुरू कर देता है, बच्चा
अपने जीवन में एक विशिष्ट अर्थ पूर्ण होने का अनुभव करना शुरू कर देता है।
अब हम बिलकुल बचपन
से ही लोगों को प्रेम का भूखा रखते हैं,
हम उन्हें उतना प्रेम नहीं देते, जितने कि
उन्हें उसकी जरूरत थी। तब हम युवकों और युवतियों को प्रेम में न पड़ते के लिए तब
तक उन्हें विवश करते हैं। जब तक कि उनका विवाह नहीं हो जात। चौदह वर्ष की आयु होने
पर वे सेक्स की दृष्टि से विकसित हो जाते हैं, लेकिन उनकी
शिक्षा दस वर्ष बीस वर्ष अथवा पच्चीस वर्षों का अधिक समय ले सकती है। तब वे अपना
एम.ए. अथवा पी.एच.डी. अथवा एम. डी. का कोर्स पूरा करेंगे, इसलिए
हमें उन्हें प्रेम न करने के लिए विवश करना होता है।
सेक्स ऊर्जा लगभग अठारह
वर्ष की आयु में अपनी पराकाष्ठा पर होती है। एक पुरूष में कभी भी इतनी अधिक पुरुषत्व
होगा और न कभी एक स्त्री भी संभोग के महानतम सर्वोच्च शिखर आनंद को उपलब्ध हो
सकेगी। जितना कि वह लगभग अठारह वर्ष की आयु में समर्थ होगी। लेकिन हम उन्हें प्रेम
न करने के लिए विवश करते हैं। जम लड़कों को अपने पृथक शयन और विश्राम कक्षों में
रहने को विवश करते हैं—लड़कियों और लड़के एक दूसरे
से पृथक रखे जाते हैं—दो लोगों के मध्य में बाधा डालने के
लिए पुलिस, मजिस्ट्रेट, वाइस चांसलर,
प्रधानाचार्य और हेडमास्टर का पूरा तंत्र खड़ा रहता है। ठीक उन
दोनों के मध्य में वे लोग वहां खड़े रहते है, जिससे वे
लड़कों को पकड़ कर लड़कियों की और आगे बढ़ने से रोकते हुए-वापस लौट सकें और
लड़कियों को पकड़कर लड़कों की और आगे बढ़ने से रोकते हुए वापस लौटा सकें। क्यों?आखिर इतनी अधिक सावधानी क्यों ली जाती है? वे लोग सांड
को मारकर एक बैल सृजित करने का प्रयास कर रहे हैं।
जिस समय तुम अठारह
वर्ष के होते हो, तुम अपनी काम-ऊर्जा और अपनी
प्रेम ऊर्जा के शिखर पर होते हो। जिस समय तुम्हारा विवाह होता है, तुम पच्चीस, छब्बीस या सत्ताईस वर्ष के होते हो—और आयु अधिक होती जाती है.....एक देश जितना अधिक सांस्कृतिक होता है,
उतने ही अधिक समय तक तुम प्रतीक्षा करते हो, क्योंकि
सीखने के लिए बहुत अधिक होता है, कोई धंधा नौकरी अथवा यह और
वह खोजना होता है। जिस समय तुम्हारा विवाह होता है तुम्हारी शक्तियां लगभग क्षय हो
चूकी होती हैं।
तब तुम प्रेम करते
हो,
लेकिन वास्तव में प्रेम कभी तीव्र उत्तेजना पूर्ण और जोश से भरा हुआ
नहीं होता। वह कभी भी उस बिंदु तक नहीं पहुंचता जहां लोग वाष्प रूप में उड़ने लगते
हैं, वह कुनकुना बना रहता हैं, और जब
तुम पूर्णता से प्रेम करने में समर्थ नहीं हुए हो, तो अपने
बच्चों से भी प्रेम नहीं कर सकते। क्योंकि तुम जानते हो नहीं कि वह कैसे किया
जाये। जब तुम उसके शिखरों को जानने में समर्थ नहीं हुए हो, तो
तुम अपने बच्चों को कैसे सिखा सकते हो?तुम अपने बच्चों को उन
शिखरों को पाने में कैसे सहायता कर सकते हो? इसलिए पिछले
युगों से मनुष्य प्रेम को नकारता आया है। जिसने उसे निर्बल बना रहने दिया है।
दूसरी बात: जितना
सम्भव हो सके मनुष्य को अज्ञानी और भ्रमित बनाये रखो जिससे उसे सरलता से धोखा दिया
जा सके। और यदि तुम एक तरह की मूढ़ता सृजित करना चाहते हो,
जो कि पुरोहितों और राजनीतिकों तथा उनके षडयंत्र के लिए अनिवार्य है—तब सबसे अच्छी चीज यही है कि मनुष्य को स्वतंत्र रूप से प्रेम में गतिशील
होने की अनुमति न दी जाएं। बिना प्रेम के मनुष्य की बुद्धिमत्ता का पतन हो जाता
है। वह नीचे गिर जाती है। क्या तुमने इसे नहीं देखा है?जब
तुम प्रेम में पड़ते हो और अकस्मात तुम्हारे अस्तित्व में एक महान प्रसन्नता और
आनंद का विस्फोट होता है,तुम जोश से भरकर प्रज्वलित हो उठते
हो। जिस समय तक लोग प्रेम में होते हैं वे अधिकतम सृजनात्मक कार्य पूरे करते हैं।
जब प्रेम तिरोहित हो जाता है अथवा जब वहां प्रेम नहीं होता है, वे सबसे कम कार्य पूरे कर पाते हैं।
सबसे अधिक
प्रज्ञावान और महान व्यक्ति सबसे अधिक कामातुर होते हैं। इसे तुम ठीक से समझ लेना
है क्योंकि प्रेम ऊर्जा ही मूल रूप से प्रज्ञा अथवा बुद्धिमत्ता है। यदि तुम प्रेम
नहीं कर सकते तो किसी तरह से तुम्हारे हृदय के द्वार बंद हो जाते हैं,
तुम उदासीन हो जाते हो, तुम प्रवाहित नहीं हो
सकते। जिस समय तक कोई प्रेम में होता हैं, वह प्रवाहित होता
है। जिस समय तक कोई प्रेम में होता है, वह इतना अधिक साहसी
और आश्वस्त होता है कि वह सितारों तक को छू सकता है। इसी कारण एक स्त्री अथवा एक
पुरूष एक महान प्रेरणा बन जाते हैं। जब एक स्त्री को प्रेम किया जाता है, वह तुरंत ही और अधिक सुंदर हो जाती है। ठीक एक क्षण पूर्व ही वह एक
सामान्य स्त्री थी और तब जब उस पर प्रेम की वर्षा होती है, उसमें
स्नान कर पूर्ण रूप से उसके चारों और एक नई ऊर्जा और एक नया आभामंडल उत्पन्न हो
जाता है। वह फिर कहीं अधिक गरिमा और गौरव से चलती हैं, उसके
कदम में एक नर्तन होता है उसकी आंखों में अब अत्यधिक सौंदर्य होता है। उसका चेहरा
एक अद्भुत दीप्ति से दमकता रहता है। और ऐसा ही पुरूष के भी साथ होता है।
जब लोग प्रेम में
होते हैं,
वे सर्वोत्तम कार्य करते हैं। उन्हें प्रेम करने की अनुमति मत दो,
तो वे निम्नतम बिंदु पर बने रहेंगे। जब वे निम्नतम बिंदु पर बने
रहते हैं, वे मूढ़ और अज्ञानी होते हैं, और वे कुछ भी जानने की चिंता नहीं करते। और जब लोग अज्ञानी, मूढ़ और भ्रमित होते हैं, तो उन्हें सरलता से धोखा
दिया जा सकता है। जब लोगों की कामवासना दमित होती हैं, जब वे
प्रेम और बुद्धि का भी दमन करते हैं, तो वे दूसरे जीवन के
लिए लालसा करना शुरू कर देते हैं, वे स्वर्ग और बहिश्त के
बारे में सोचने लगते है, लेकिन वे यहीं और अभी स्वर्ग सृजित
करने के बारे में नहीं सोचते।
जब तुम प्रेम में
होते हो,
तो स्वर्ग यहीं और अभी होता है। तब तुम ज़रा भी फिक्र करता है कि
वहां एक स्वर्ग भी होना चाहिए?तुम पहले ही से वहां हो,
तुम फिर और अधिक दिलचस्पी नहीं लेते हो। लेकिन जब तुम्हारी
प्रेम-ऊर्जा दमित होती है तो तुम यह सोचना शुरू कर देते हो—‘यहां
कुछ भी नहीं है। अब सभी कुछ खाली है, तब वहां और कुछ लक्ष्य
होना चाहिए....’ तुम पुरोहित या मौलवी के पास जाकर स्वर्ग या
बहिश्त के बारे में पूछते हो और वह स्वर्ग की सुंदर तस्वीरों का चित्रण करता है।
सेक्स का दमन किया
गया है जिससे तुम दूसरे जीवन में अभिरुचि ले सको। और जब लोगों की दिलचस्पी दूसरे
जीवन में होती है तो स्वाभाविक रूप से वे इस जीवन में अभिरुचि नहीं रखते है। और
तंत्र कहता है कि यह जीवन ही केवल एक जीवन है। दूसरा जीवन इसी जीवन के अंदर छिपा
है। वह इसके विरूद्ध नहीं है, वह उससे दूर नहीं है,
वह उसके अंदर ही है। उसके अंदर जाओ—और यह वहीं
है।
उसके अंदर जाओ और
तुम दूसरा भी पा लोगे। तंत्र का संदेश है कि दिव्यता और धार्मिकता इस संसार में ही
छिपी हुई है। यह एक सर्वश्रेष्ठ अतुलनीय और महान संदेश है।
धार्मिकता अथवा
दिव्यता इसी संसार में छिपी है। धार्मिकता अभी और यहीं छिपी है। यदि तुम प्रेम
करते हो,
तो तुम इसे अनुभव करने में समर्थ होगे।
तीसरा रहस्य है:
जितना अधिक सम्भव हो, मनुष्य को भयभीत बनाकर रखो,
और इसका निश्चित उपाय है उसे प्रेम करने की अनुमति न देना, क्योंकि प्रेम भय को नष्ट कर देता है। ‘प्रेम भय को
दूर कर देता है।’ जब तुम प्रेम में होते हो, तो तुम भयभीत नहीं होते। जब तुम प्रेम में होते हो, तुम
पूरे संसार के विरूद्ध लड़ सकते हो। लेकिन जब तुम प्रेम में नहीं होते तो तुम छोटी
सी चीजों से ही भय भीत हो जाते हो। जब तुम प्रेम में नहीं होते तो बचाव और सुरक्षा
में अधिक दिलचस्पी लेने लगते हो। जब तुम प्रेम में होते हो तो तुम खोज और साहसिक
कार्यों में अधिक दिलचस्पी लेते हो।
लोगों को प्रेम
करने की अनुमति नहीं दी गई है क्योंकि उन्हें भयभीत बनाये रखने का केवल यही एक उपाय
है। और जब लोग भयभीत हैं और भय से कांप रहे हैं, तो
वे हमेशा घुटनों के बल पुरोहितों और राजनीतिज्ञों के आगे झुके रहते है। मनुष्य के
विरूद्ध यह एक बहुत बड़ी साजिश है। यह तुम्हारे विरूद्ध एक बहुत बड़ा षड़यंत्र है।
तुम्हारे राजनेता और तुम्हारे पुरोहित ये तुम्हारे दुश्मन हैं, लेकिन वे जन सेवक होने का बहाना बनाते हैं। वे कहते हैं—‘हम यहां तुम्हारी सेवा करने के लिए हैं, एक बेहतर
जीवन प्राप्त करने में तुम्हारी सहायता करने के लिए हैं।’ हम
यहां तुम्हारे लिए एक अच्छा जीवन सृजित करने के लिए हैं। और वे लोग स्वयं जीवन को
बर्बाद करने वाले हैं।
चौथा रहस्य: मनुष्य
को जितना सम्भव हो सके दुःखी रखो—क्योंकि एक दुःखी
व्यक्ति ही सदा उलझन में रहता है, एक दुःखी व्यक्ति के पास
स्वयं का कोई मूल्य नहीं होता, एक दुःखी व्यक्ति आत्म निंदक
होता है, और एक दुःखी व्यक्ति ही यह अनुभव करता है कि उसने
अनिवार्य रूप से कुछ चीज़ गलत की है। एक दुःखी व्यक्ति के पास कोई आधार-भूमि नहीं
होती; और तुम उसे यहां से वहां धकेल सकते हो और वह धारा में
बहने वाली लकड़ी की तरह सरलता से मोड़ा जा सकता है। और एक दुःखी व्यक्ति हमेशा
अनुशासित होकर, आदेश मानकर अनुसरण करने के लिए पहले ही से
तैयार होता है। क्योंकि वह जानता हैं—‘मैं अपने आप में पूर्ण
रूप से दुःखी हूं, और हो सकता है कि अन्य व्यक्ति मेरे जीवन
में अनुशासन ला सके।’ वह पहले ही से तैयार शिकार होता है।
और पाँचवाँ है:
जितना सम्भव हो सके मनुष्यों को एक दूसरे से अलग रखा जाये जिससे वे किसी उद्देश्य
के लिए एक साथ किसी ऐसी प्रतिज्ञा के बंधन में न बंध जायें। जिसका पुरोहित और
राजनीतिज्ञ अनुमोदन नहीं करते। लोगों को एक दूसरे से अलग रखो और उन्हें बहुत अधिक
घनिष्ठ होने की अनुमति मत दो। जब लोग एक दूसरे से पृथक,
अकेले और अलग रहते है वे एक साथ किसी बंधन में नहीं बंध सकते। और
उन्हें दूर बनाये रखने के लिए वहां अनेक चाल बाजियां हैं।
उदाहरण के लिए यदि
तुम एक युवक का हाथ पकड़ रहे हो—तुम भी एक पुरूष हो और
तुम एक युवक का हाथ पकड़कर सड़क पर गाते हुए टहल रहे हो—तो
तुम अपराधी होने का अनुभव करोगे, क्योंकि लोग तुम्हारी और
देखना शुरू कर देंगे; क्या तुम विलासी और समलैंगिक हो अथवा
कुछ अन्य?दो पुरुषों को भी एक साथ प्रसन्न बने रहने की
अनुमति नहीं है। उन्हें एक दूसरे का हाथ पकड़ने की अनुमति नहीं है, उन्हें एक दूसरे का आलिंगन लेने की अनुमति नहीं है और समलैंगिक की भांति
उनकी निंदा की जाती है। भय उत्पन्न होता है।
यदि तुम्हारा मित्र
आता है और तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेता है, तो तुम
चारों और देखते हो; कोई व्यक्ति कहीं से देख तो नहीं रहा है?
और बस हाथ छोड़ने के लिए शीघ्रता में होते हो। तुम हाथों को भी एक
जल्दी बाज़ी में मिलाते हो। क्या तुमने इसे देखा है?तुम हाथ
मिलाते हुए केवल एक दूसरे के हाथ का स्पर्श करते हो और तुम बाप समाप्त कर देते हो;
तुम हाथ को कुछ देर तक थामें नहीं रहते। तुम एक दूसरे को आलिंगन में
नहीं लेते। तुम भयभीत हो।
क्या तुम्हें स्मरण
है कि क्या कभी तुम्हारे पिता ने तुम्हें अपने आलिंगन में बांधा है?
क्या तुम्हें स्मरण है कि कामवासना में विकसित होने के बाद क्या
तुम्हारी मां ने तुम्हें अपनी भुजाओं में बांधा है; आखिर
क्यों नहीं?भय उत्पन्न कर दिया गया है। एक युवक और उसकी मां
एक दूसरे का आलिंगन कर रहे हैं? उनके मध्य सेक्स का कोई
विचार या कोई कल्पना उत्पन्न हो सकती है। भय सृजित कर दिया गया है। पिता और पुत्र,
पिता और पुत्री; भाई और बहन, नहीं भाई और भाई भी एक दूसरे को आलिंगन में नहीं ले सकते।
लोगों को पृथक-पृथक
बक्सों में रखा गया है और उसके साथ उनके चारों और ऊंची दीवारें खड़ी कर दी गई हैं।
प्रत्येक व्यक्ति का वर्गीकरण कर दिया गया है। और वहां अनेक अवरोध हैं। हां,
इस सारे प्रशिक्षण के बाद, पच्चीस वर्षों बाद,
एक दिन तुम्हें अपनी पत्नी के साथ प्रेम करने की अनुमति दे दी जाती
है। लेकिन अब वह प्रशिक्षण तुम्हारे अंदर इतनी गहराई तक चला गया है कि अचानक तुम
नहीं जानते कि अब क्या किया जाये। कैसे प्रेम किया जाये?तुमने
इसकी भाषा सीखी ही नहीं है।
यह लगभग ऐसा ही है
जैसे किसी व्यक्ति को पच्चीस वर्षों तक बोलने के लिए अनुमति न दी जाये। पच्चीस
वर्षों तक जो बस सुनता ही रहा हो और उसे एक शब्द भी बोलने की अनुमति न दी गई हो अब
तब अचानक तुम उसे स्टेज पर खड़ा कर उससे कहो—‘हमारे लिए
अब एक अच्छा सा भाषण दो।’ होगा क्या?वह
तुरंत वहीं का वहीं नीचे गिर पड़ेगा। वह मूर्च्छित हो सकता है, वह मर भी सकता है। पच्चीस वर्षों की खामोशी और अब अचानक उसे अपेक्षा की
जाती है कि वह एक बहुत सुंदर भाषण दे। यह सम्भव नहीं है।
यही है वह जो हो
रहा है: पच्चीस वर्षों तक प्रेम का विरोध और उसका भय,
और तब अचानक तुम्हें नियमानुसार अनुमति दी जाती है, तुम्हें एक लाइसेंस दिया जाता है, कि अब इस स्त्री
से प्रेम कर सकते हो। यह तुम्हारी पत्नी है, तुम उसके पति हो,
और तुम्हें प्रेम करने की अनुमति दी जाती है। लेकिन पच्चीस वर्षों
के गलत प्रशिक्षण में बिताया गया समय तुम्हें कहां ले जा रहा है?वहां बने ही रहेंगे।
हां,
तुम ‘प्रेम’ करोगे,
तुम प्रयास करोगे, अंगों का संचालन करोगे। पर
वह विस्फोटक होने नहीं जा रहा है। वह यांत्रिक बनने जा रहा है; वह बहुत बौना प्रेम होगा। यही कारण है कि एक स्त्री से प्रेम करने के बाद
तुम बहुत निराश होते हो। निन्यानवे प्रतिशत लोग प्रेम करने के बाद उसकी अपेक्षा
कहीं अधिक निराश होते हैं, जितने कि पहले कभी रहे हैं। और वे
अनुभव करते हैं—‘यह है क्या?इस बारे
में कुछ भी तो नहीं है। यह सच नहीं है।’
अब,
पहले तो पुरोहितों और राजनीतिकों ने यह व्यवस्था की है कि तुम्हें
प्रेम करने में समर्थ नहीं होना चाहिए। और वे आते हैं और उपदेश देते है कि प्रेम
में वहां कुछ भी नहीं है। और निश्चित रूप से उनका उपदेश देना ठीक प्रतीत होता है।
पहले वह प्रेम की निराशा और व्यर्थता का अनुभव सृजित करने हैं—तब वे शिक्षा देते हैं। और दोनों ही एक साथ इकट्ठे तर्क पूर्ण प्रतीत होते
है।
यह सबसे बड़ी
बाजीगरी है। मनुष्य के विरूद्ध जो खेल खेले गए हैं। यह उनमें सबसे अधिक बड़ा खेल
है। वे पांचों चीजें एक अकेली चीज़ के द्वारा व्यवस्थित की जा सकती है,
और वह है प्रेम का निषेध या वर्जना करना लोगों को किसी तरह से एक
दूसरे से प्रेम करने से रोकने के लिए, इन सभी उद्देश्यों की
पूर्ति होना सम्भव है। और यह निषेध अथवा अवरोध एक ऐसी वैज्ञानिक विधि से व्यवस्थित
किया गया है, जो एक महान कला, कुशलता
का एक अनुपम नमूना है, जिसके अंदर एक बहुत बड़ी चालबाजी
प्रविष्ट कर दी गई है और वह वास्तव में एक जटिल रचना है। यह निषेध अथवा अवरोध समझ
लेने जैसा है।
पहली बात: यह अप्रत्यक्ष
है,
यह छिपा हुआ है। यह प्रकट नहीं है, क्योंकि जब
कभी कोई भी निषेध बहुत स्पष्ट और प्रत्यक्ष होता है, वह काम
नहीं करेगा। निषेध को बहुत छिपा रहना होता है, जिससे तुम यह
नहीं जानते कि वह कैसे कार्य करता है। निषेध या अवरोध इतना छिपा हुआ होता है कि
तुम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि इस तरह की कोई भी चीज़ सम्भव है। निषेध को चेतन
में नहीं अचेतन में जाना होता है। उसे कैसे इतना अधिक सूक्ष्म और अप्रत्यक्ष बनाया
जाए?छल कपट से भरी चालबाजी यह है कि पहले यह शिक्षा दिए चले
जाओ कि प्रेम बहुत महान है, जिससे लोग कभी भी यह न सोचे कि
पुरोहित और राजनीतिज्ञ के विरूद्ध हैं। यह शिक्षा दिए चले जाओ कि प्रेम महान है,
प्रेम करना एक ठीक चीज़ है—और तब ऐसी किसी भी
स्थिति उत्पन्न होने की अनुमति मत दो, ऐसे किसी भी अवसर की
अनुमति ही मत दो, जहां प्रेम घट सके। यह सिखाते चले जाओ कि
भोजन करना बहुत महान आनंदमय कृत्य है और उतना खाओ जितना तुम खा सकते हो, पर खाने के लिए किसी चीज की आपूर्ति मत करो और न उन्हें खाने के लिए कोई
अवसर दो लोगों को प्रेम का भूखा बजाये रखो और प्रेम के बारे में बातचीत किये चले
जाओ।
इसलिए सभी पुरोहित
प्रेम के बारे में बातचीत किये चले जाते है। प्रेम की इस तरह प्रशंसा की जाती है
जैसे उससे उच्चतम अन्य कोई भी चीज़ नहीं है। वह ठीक परमात्मा के बाद है,
लेकिन उसके होने देने की प्रत्येक सम्भावना नकार दी जाती है।
प्रत्येक रूप से उसे प्रोत्साहित करो। पर अप्रत्यक्ष रूप से उसकी जड़े काटते रहो।
यह सर्वोत्तम विधि है।
इस बारे में कोई भी
पुरोहित बात तक नहीं करता कि उन्होंने यह हानि कैसे पहुंचाई। यह ऐसा है जैसे मानो
तुम एक वृक्ष से सह कहे चले जाओ—‘हरे भरे बने रहो,
फलो-फूलो और मस्त रहो।’ और साथ ही तुम उसकी
जड़े काटते चले जाओ, जिससे वृक्ष हरा-भरा न रह सके। और जब
वृक्ष हरा-भरा न हो, तो तुम वृक्ष पर कूद पड़ो और उससे कहो—‘सुनो तुम मेरी बात सुनते ही नहीं, तुम हमारी बात का
अनुसरण ही नहीं करते। हम सभी लोग तुमसे कहे चले जा रहे—हरे
भरे बने रहो, फूलो-फलो और मस्त रहो।’ और
इस सब के साथ-साथ उसकी जड़े भी काटते चले जाओ।
प्रेम को इतना अधिक
अस्वीकार किया गया है। और प्रेम संसार में दुर्लभ तम चीज है,
और इसे अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। यदि एक व्यक्ति पांच लोगों
से प्रेम कर सकता है। तो उसे पांच से प्रेम करना चाहिए। यदि एक व्यक्ति पचास से
प्रेम कर सकता है तो उसे पचास से प्रेम करना चाहिए। यदि एक व्यक्ति पांच सौ से
प्रेम कर सकता है उसे पांच सो से करने दिया जाना चाहिए। प्रेम इतना अधिक दुर्लभ है
कि तुम उसे जितना अधिक फैला सके हो, उतना ही अच्छा है।
लेकिन इस बारे में
बहुत से छल कपट और चाल बाजियां हैं। तुम्हें एक तंग एक बहुत तंग कोने तक विवश कर
दिया जाता है। तुम केवल अपनी पत्नी से प्रेम कर सकते हो। तुम केवल अपने पति से
प्रेम कर सकते हो, तुम केवल इससे और तुम केवल
उससे ही प्रेम कर सकते हो। ऐसी बहुत अधिक शर्तें हैं। यह ऐसा है जैसे मानो इस बारे
में एक कानून है कि तुम केवल तभी श्वास ले सकते हो जब तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ
हो और तुम केवल तभी स्वांस ले सकती हो जब तुम्हारा पति तुम्हारे साथ हो। तब श्वास
लेना असम्भव हो जायेगा और तुम मर जाओगे और तुम तब भी श्वास लेने में समर्थ नहीं
होगे जब तुम अपने पति अथवा अपनी पत्नी के साथ होते हो। तुम्हें दिन में चौबीसों
घंटे श्वास लेनी है, तुम जितना अधिक श्वास लेते हो और जब तुम
अपने पति अथवा पत्नी के साथ हो, तुम उतनी ही अधिक श्वास लेने
में समर्थ होगे।
प्रेम पूर्ण बनो:
तब वहां एक दूसरी
चालबाजी है: वे उच्चतम प्रेम के बारे में बात करते हैं और निम्नतम को नष्ट कर देते
हैं। और वे कहते है कि निम्न तल के प्रेम को अस्वीकार करना है;
शारीरिक प्रेम बुरा और गंदा है और आध्यात्मिक प्रेम अति सुंदर और
अच्छा है। क्या तुमने बिना शरीर के कभी भी कोई आत्मा देखी हैं? क्या तुमने बिना बुनियाद का कभी कोई मकान देखा है? निम्न
तल ही उच्च तल का आधार होता है। शरीर ही तुम्हारा घर है और आत्मा शरीर में ही शरीर
के ही साथ है। तुम पूर्ण रूप में एक आत्मा हो और एक आत्मा वान शरीर भी। तुम दोनों
एक साथ हो। निम्नतम और उच्चतम पृथक नहीं हैं। वे एक ही हैं, वे
एक ही सीढ़ी के डंडे है।
यह वही चीज़ है,
जिसे तंत्र स्पष्ट बनाना चाहता है: निम्नतम प्रेम को अस्वीकार नहीं
करना है, निम्नतम को ही उच्चतम में रूपांतरित करना है। निम्न
तल का प्रेम अच्छा है। यदि तुम निम्न के साथ कठिनाई में पड़ जाते हो तो दोष
निम्नतल के प्रेम का न होकर तुम्हारा ही है। सीढ़ी के नीचे वाले डंडे के साथ कुछ
भी बुरा नहीं है। यदि तुम उसके साथ आगे बढ़ने में असमर्थ हो जाते हो तुम कठिनाई
में पड़ जाते हो, तो कुछ गलत चीज तुम्हारे ही अंदर है। आग
बढ़ो।
सेक्स गलत नहीं है;
यदि तुम वहां से आगे नहीं बढ़ते हो, तो तुम ही
गलत हो। उच्च तल की और गतिशील हो जाओ। उच्चतम निम्नतम के विरूद्ध नहीं है। निम्नतम
ही उच्चतम का अस्तित्व में बने रहना सम्भव बनाता है।
और इन चालाकियों ने
बहुत सी अन्य समस्याओं को उत्पन्न किया है। प्रत्येक बार जब तुम प्रेम कर रहे होते
हो,
किसी भांति तुम अपराधी होने का अनुभव करते हो। एक अपराध बोध उत्पन्न
हो जाता है। और जब वहां अपराध बोध होता है तो तुम प्रेम में समग्रता से आगे नहीं
बढ़ सकते। अपराध बोध तुम्हें आगे बढ़ने से रोकता हे। वह तुम्हें पकड़ कर रखता है।
यहां तक कि जब तुम अपनी पत्नी अथवा अपने पति के साथ भी प्रेम करते हो, तब भी अपराध बोध होता है: तुम जानते हो यह पाप है, तुम
जानते हो कि तुम गलत कार्य कर रहे हो। संत लोग इस कार्य को नहीं करते और तुम एक
पापी हो। इसलिए तुम समग्रता से तब भी प्रेम में गतिशील नहीं हो सकते। जब तुम्हें
पत्नी से उथले पन से प्रेम करने की अनुमति दी गई है।
तुम्हारे अपराध बोध
के अनुभव के पीछे पुरोहित छिपा हुआ है, वह वहीं
से तुम्हें खींच रहा है, वह पीछे से तुम्हारी डोरियां खींच
रहा है। जब अपराध बोध उत्पन्न होता है तुम यह अनुभव करना शुरू कर देते हो कि तुम
गलत हो: तुम स्वयं अपना मूल्य खो देते हो, तुम आत्म सम्मान
खो देते हो।
तब वहां एक दूसरी
समस्या उत्पन्न होती है: जब वहां अपराध बोध होता है तुम बहानेबाजी करना शुरू कर
देते हो। माता-पिता अपने बच्चों को यह जानने की अनुमति नहीं देते कि वे आपस में
प्रेम कर रहें हैं। वे कपट करते हुए बताते हैं कि प्रेम का कोई अस्तित्व ही नहीं
है। बच्चों के द्वारा देर या सवेर उनका कपट सामने आ ही जाता है। जब बच्चे इस कपट
या बहानेबाजी के बारे में जान जाते हैं तो वे सारा विश्वास खो देते हैं। और वे
विश्वासघात करने जैसा धोखा दिये जाने का अनुभव करते है। और माता-पिता कहते हैं कि
उनके बच्चे उनका सम्मान नहीं करते। तुम ही उनका कारण हो;
वे कैसे तुम्हारा सम्मान कर सकते है? तुम
उन्हें प्रत्येक तरह से धोखा देते रहे हो। तुम उनके आगे बेईमान बन कर रहे हो। बहुत
तुच्छ बनकर रहे हो। तुम उन्हें प्रेम में न पड़ने के बारे में बताते हुए सावधान
करते रहे थे और स्वयं पूरे समय प्रेम करते थे। और देर या सवेर वह दिन आयेगा जब वे
अनुभव करेंगे कि उनके पिता भी और उनकी माता भी उनके साथ सच्चे नहीं थे। इसलिए वे
कैसे तुम्हारा सम्मान कर सकते है?
पहले अपराध-बोध,
कपट या बाहने बाजी को जन्म देता है, तब बहाने
बाजी से लोगों में अलगाव उत्पन्न होता है। बच्चे भी तुम्हारा अपना बच्चा भी
तुम्हारे साथ लयबद्धता का अनुभव नहीं करता हैं। वहां एक अवरोध है, रूकावट है, तुम्हारा कपट है। और जब तुम जानते हो कि
प्रत्येक व्यक्ति कपट कर रहा है। तो तुम उससे सम्बंध कैसे जोड़़ सकते हो? जब हर कहीं वहां धोखा और प्रपंच है, तुम कैसे
मित्रवत बने रह सकते हो? तुम वास्तविक सत्य के बारे में
बहुत-बहुत दुखी हो जाते हां, तुम बहुत कटु हो जाते हो और तुम
इस समाज को केवल शैतान के कारखाने की भांति देखते हो।
और प्रत्येक
व्यक्ति के पास एक नकली चेहरा है और कोई भी व्यक्ति प्रामाणिक नहीं है। प्रत्येक
मुखौटों को ढोये जा रहा है। और कोई भी व्यक्ति अपना मौलिक चेहरा नहीं दिखलाता। तुम
अपराधी होने का अनुभव करते हो कि तुम भी कपट कर रहे हो,
और तुम जानते हो कि प्रत्येक व्यक्ति कपट कर रहा है, बहाने बाजी कर रहा है, प्रत्येक व्यक्ति अपराधी या
पापी होने का अनुभव करत रहा है। और प्रत्येक व्यक्ति ठीक एक घिनौने घाव के समान बन
गया है। अब इन लोगों को गुलाम बनाना बहुत सरल है, अब इन्हें क्लर्क,
स्टेशन मास्टर, स्कूल के शिक्षकों, कलेक्टरों, डिप्टी कलक्टरों, मंत्रियों,
राज्यपालों और अध्यक्षों में बदलना बहुत सरल है। तुमने उन्हें उनकी
जड़ों से हिलाकर विचलित कर दिया है। सेक्स ही मूल जड़ है, इसीलिए
उसका नाम है मूलाधार। मूलाधार का अर्थ है वास्तविक मूल ऊर्जा।
मैंने सुना
है......
यह उसकी सुहागरात
थी और घमण्डी ज़ेन अपने वैवाहिक कर्तव्यों का पहली बार पूरा करने जा रही थी।
उसने अपने नव
विवाहित पति से पूंछा—‘हे मेरे ईश्वर! क्या यही है
वह जिसे सामान्य लोग प्रेम करना कहते हैं?’
पहले की ही भांति
कार्य पूरा होने के बाद लार्ड रेगिनाल्ड ने उत्तर दिया—‘हां प्रिय, यह वही है।’
कुछ समय के बाद
लेडी ज़ेन ने तिरस्कार से चीखते हुए कहा—‘यह
सामान्य लोगों के लिए बहुत अच्छा है।’
वास्तव में सामान्य
लोगों को प्रेम करने की अनुमति नहीं दी गई है: इसलिए उनके लिए यह बहुत अच्छा है।
लेकिन समस्या यह है कि जब तुम पूरे संसार को विष देते हो,
तो तुम भी विषैले हो जाते हो। यदि तुम उस वायु में जिसमें सामान्य
लोग सांस लेते हैं, जहर, फैला दो तो
सांस लेने वाली मुख्य वायु भी जहरीली हो जायेगी। जब राजनीतिज्ञ सामान्य लोगों की
वायु को ज़हरीला बना देते हैं तो और अंत में वे भी उसी वायु में सांस लेते हैं।
क्योंकि वहां कोई दूसरी वायु नहीं है।
एक छोटा पादरी अपने
एक बिशप एक रेल के डिब्बे में एक लम्बी यात्रा करते हुए दो विपरीत छोरों पर थे।
जैसे ही बिशप आगे बढ़ा पादरी ने प्लेबॉय (एक अश्लील चित्रों वाली पत्रिका) मैगजीन
अलग उठाकर रख दी और ‘चर्च टाइम्स’ पत्रिका पढ़ना शुरू कर दिया। बिशप ने उसकी अवहेलना की और वह ‘दि टाइम्स क्रासवर्ड’ की पहेली हल करता रहा।
कुछ समय बाद पादरी
ने बातचीत करने का प्रयास किया। और जब बिशप ने बहुत अधिक सिर मगज खपाई करने के बाद
वर्ग पहेली में रखे जाने वाले याद आए प्रत्येक शब्द को न करते हुए सिर खुजाना और
टुट-टुट करना प्रारम्भ किया। तो पादरी ने फिर बातचीत शुरू करने का प्रयास करते हुए
उससे पूंछा—‘श्रीमान! क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर
सकता हूं?’
बिशप ने कहा—‘शायद कर सको। मैं केवल एक शब्द से ही चूक रहा हूं। और चार अक्षरों वाला
कौन सा शब्द है जिससे अंतिम तीन अक्षर यू. एन. और डी. हैं और संकेत यह है कि वह
मुख्य रूप से स्त्री से संबंधित है।’
कुछ रूकने के बाद
पादरी ने कहा—‘क्यों श्रीमान वह आंटी (चाची, मामी या मौसी) भी हो सकता है।’
बिशप ने कहा—निश्चित रूप से निश्चित ही, वह यही है।
जवान,
क्या तुम मुझे अपनी रबर अथवा इरेज़र दे सकते हो?
जब तुम बाहर परिधि
पर दमन करते हो, तो प्रत्येक चीज़ अंदर अचेतन की गहराई
में चली जाती है। सेक्स नष्ट नहीं हुआ है, वह वहां मौजूद है।
भाग्यवश, वह अभी तक नष्ट नहीं हुआ है। वह केवल जहरीला हो गया
है। वह नष्ट नहीं हो सकता। वह जीवन ऊर्जा है। वह प्रदूषित हो गया है। उसे शुद्ध
किया जा सकता है। तंत्र की पूरी पद्धति ही यहीं है, शुद्धीकरण
करने की एक बहुत बड़ी विधि।
मूल रूप से
तुम्हारे जीवन की समस्याओं को तुम्हारी सेक्स समस्याओं के आधीन रखा जा सकता है।
तुम अपनी दूसरी समस्याओं को समाधान करने का प्रयास किए चले जा सकते हो,
लेकिन तुम कभी भी उन्हें हल करने में समर्थ न हो सकोगे, क्योंकि वे सच्ची समस्याएं नहीं है। और यदि तुम अपनी सेक्स की समस्या को
हल कर लेते हो, तो सभी समस्याएं विलुप्त हो जायेंगे, क्योंकि तुमने आधारभूत समस्या को सुलझा लिया है।
लेकिन तुम उसके
अंदर देखने में भी इतने अधिक भयभीत हो। यह सरल: यदि तुम अपनी ‘कंडीशनिंग’ को
अलग कर सकते हो तो यह बहुत सरल है, यह इतना ही सरल है जितनी
सरल यह कहानी है।
एक निराश और अधिक
बहमी कुंवारी महिला पुलिस के लिए परेशानी का विषय थी। वह यह कहते हुए टेलीफोन
निरंतर करती थी कि एक व्यक्ति उसके पलंग के नीचे घुसा हुआ है। अंतिम रूप से उसे
मानसिक चिकित्सालय भेजा गया लेकिन वह फिर भी डाक्टरों को बताती थी कि वहां एक
व्यक्ति उसके पलंग के नीचे लेटा था। उन्होंने उसे सबसे हाल ही आई ऐसी औषधियां दी
कि उसने अचानक घोषणा की कि वह बिलकुल ठीक हो गई है।
‘……मिस
रस्टीफैन! तो तुम्हारे कहने का यह अर्थ हैं कि अब तुम अपने पलंग के नीचे एक पुरूष
को नहीं देख सकती?’
एक डॉक्टर ने दूसरे
डॉक्टर से कहा—‘इस बारे में वास्तव में वहां केवल एक
तरह का इंजेक्शन है जो उसकी शिकायत दूर कर देगा जिसे वह विद्रोही कुंवारापन कहता
है—क्यों ने उसे उसके शयनकक्ष में अस्पताल के बढ़ई बिलडेन के
साथ रख देना चाहिए?’
बिलडेन को वहां
लाया गया। और उस स्त्री की जो शिकायत थी, वह उसे
बताई गई और उससे कहा गया कि वह उसके साथ एक घंटे के लिए ताले में बंद कर दिया जायेगा।
उसने कहा—‘इससे इतना अधिक लम्बा समय नहीं लगेगा उन लोगों का समूह जो इस बारे में
जानने का इच्छुक था, वस्तु स्थिति जानने को वहां इकट्ठा हो
गया।’
उन लोगों ने कमरे
के अंदर से ये आवाजें सुनी।
‘...नहीं,
डेन रूक जाओ। मां मुझे कभी माफ नहीं करेंगी।’
‘—शटआप! इसे
तो पहले ही किसी समय वर्षों पूर्व ही हो जाना चाहिए था।’
--‘तुम
जंगली बनकर अपने लिए बलपूर्वक अपने लिए रास्ता बनाओगे?’
--‘यह केवल
वहीं कार्य है, कि यदि तुम्हारा कोई पति हुआ होता तो उसने
उसे पहले ही कर दिया होता।’
अंदर अनोपचारिक
चीज़ हट गई और अधिक देर तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी।
डेन ने कहा—‘मैंने उसका उपचार कर उसे ठीक कर दिया हे।’
मिस रस्टफैन ने भी
कहा—‘उसने मेरा उपचार कर मुझे ठीक कर दिया है।’
उसने पलंग के चारों
पायो को आरी से काट दिया था।
कभी-कभी उपचार बहुत
सरल होता है और तुम अनेक उपाय किये चले जाते हो। और उस बढ़ई ने पलंग के केवल पाए
काटकर बहुत अच्छा किया और बात समाप्त हो गई। अब पुरूष कहां छिप सकता था?
तुम्हारी लगभग सभी
समस्याओं की जड़ सेक्स है, क्योंकि हजारों वर्षों तक
विष दिए जाने से उसे ऐसा होना ही है। एक बहुत बड़ी शुद्धीकरण की आवश्यकता है।
तंत्र तुम्हारी सेक्स ऊर्जा को शुद्ध कर सकता है। तंत्र के संदेश को सुनो और उसे
समझने का प्रयास करो। यह बहुत क्रांतिकारी संदेश है। यह सभी पुरोहितों और राजनीतिकों
के विरूद्ध है, यह उन सभी ज़हर दिये जाने वालों के विरूद्ध
है, जिसने पृथ्वी पर सारी प्रसन्नता और आनंद की हत्या कर दी,
और केवल इसलिए जिससे मनुष्य को पराधीन बनाकर एक गुलाम में बदल दिया
जाये।
अपनी स्वतंत्रता का
फिर से दावा करो, अपनी प्रेम करने की
स्वतंत्रता का फिर से दावा करो। अपनी स्वतंत्रता को बने रहने का पुन: दावा करो और
तब जीवन फिर और एक समस्या नहीं रहेगा—यह एक रहस्य है—यह एक परमानंद है, यह एक अनुग्रह और वरदान है।
आज के लिए इतना
प्रर्याप्त है।
thank you guruji
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