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सोमवार, 7 मार्च 2011

स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—24

मेरे एथिक्‍स के प्रोफेसर और मेरे पंचानवे प्रतिशत अंक
जब मैं विश्‍वविद्यालय में विद्यार्थी था। मैंने एथिक्‍स, निति शास्‍त्र लिया था। मैं उस विषय के प्रोफेसर के केवल एक ही लेक्‍चर में उपस्‍थित हुआ। मुझे तो विश्‍वास ही नहीं आ रहा था कि कोई व्‍यक्‍ति इतना पुराने विचारों का भी हो सकता है। वे सौ साल पहले जैसी बातें कर रहे थे। उन्‍हें जैसे कोई जानकारी ही नहीं थी। कि नीति शास्‍त्र में क्‍या-क्‍या परिवर्तन हो चुके है। फिर भी उस बात को में नजर अंदाज कर सकता था। वे प्रोफेसर एकदम उबाऊ आदमी थे।
और जैसे कि विद्यार्थियों को बोर करने की उन्‍होंने कसम खा ली थी। लेकिन वह भी कोई खास बात न थी। क्‍योंकि मैं उस समय सौ सकता था। लेकिन इतना ही नहीं वे झुंझलाहट भी पैदा कर रहे थे। उनकी कर्कश आवाज उनके तौर-तरीके,उनका ढंग, सब बड़ी झुंझलाहट ले आने वाले थे। लेकिन उसके भी अभ्‍यस्‍त हुआ जा सकता था। लेकिन वह बहुत उलझे हुए इंसान थे। सच तो यह है मैंने कभी कोई ऐसा आदमी नहीं देखा जिसमें इतने सारे गुण एक साथ हो।

      मैं उनकी कक्षा में फिर कभी दुबारा नहीं गया। निश्‍चित ही, वे इस बात से नाराज तो हुए होंगे। लेकिन उन्‍होंने कभी कुछ कहा नहीं। वे ठीक समय का इंतजार करते रहे। क्‍योंकि उन्‍हें मालूम तो था ही कि एक दिन मुझे परीक्षा में भी बैठना था।
      मैं परीक्षा में बैठा। वे तो और भी चिढ़ गये, क्‍योंकि मेरे पंचानवे प्रतिशत अंक आये। उन्‍हें तो इस बात पर भरोसा ही नहीं आया।
      एक दिन जब मैं युनिवर्सिटी की कैनटीन से बहार आ रहा था। और वे कैनटीन के भीतर जा रहे थे। उन्‍होंने मुझे पकड़ लिया। मुझे रोककर वे बोले, सुनो। तुमने यह सब कैसे मैनेज किया? तुम तो केवल मेरे एक ही लेक्‍चर में आए थे।  और पूरे साल मैंने तुम्‍हारी शक्‍ल तक नहीं देखी। आखिर तुम पंचानवे प्रतिशत अंक पाने में सफल कैसे हुए?
      मैंने कहा, ऐसा आपके पहले लेक्‍चर के कारण हुआ।
      वे थोड़े से परेशान से दिखाई दिये। वे बोले, मेरा पहला लेक्‍चर? मात्र एक लेक्‍चर के कारण? मुझे धोखा देने की कोशिश मत करो; वे बोले, मुझे सच-सच बताओ कि आखिर बात क्‍या है?
      मैंने कहा: आप मेरे प्रोफेसर है, अत: यह मर्यादा के अनुकूल न होगा।
      वे बोल: मर्यादा की बात भूल जाओ। बस मुझे सच-सच बात बताओ। मैं बुरा नहीं मानूँगा।
      मैंने कहा: मैंने तो सच बात बता दी है, लेकिन आप समझे नहीं। अगर मैं आपके पहले लेक्‍चर में उपस्‍थित न हुआ होता तो मुझे सौ प्रतिशत अंक मिले होते। आपने मुझे कन्फ्यूज कर दिया, उसी के कारण मैंने पाँच प्रतिशत अंक गंवा दिए।
     
पतंजलि : योग-सूत्र
भाग-चार
प्रवचन-1





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