भगवान बुद्ध ने एक बार सारिपुत्र से कहां की तुम हंसी पर ध्यान के देखो और मुझे बतलाओ हंसी कितने प्रकार की होती है। सारिपुत्र ने पुरा विवरण बुद्ध भगवान को दिया। सारिपुत्र के पहले और सारिपुत्र के बाद कभी भी किसी ने हंसी को इतनी गहराई से नहीं समझा। सारिपुत्र ने हंसी के छह कोटियों में विभक्त किया। जिसमें हंसी की महिमा के सभी अच्छे और बुरे रूपों को वर्णन किया है। सारिपुत्र के सामने हास्य ने अपना पूरा रूप उद्घाटित कर दिया।
1—सिता
2—हंसिता
3—विहंसिता
4—उपहंसिता
5—अपहंसिता
पहली कोटि को उसने कहा सिता: एक धीमी लगभग अदृष्य मुस्कान, जो कि सूक्ष्मतम भाव मुद्रा में अभिव्यक्त होती है। अगर व्यक्ति सचेत हो, तभी उस हास्य को देखा जा सकता है। सारिपुत्र ने उसे ‘’सिता’’ कहा।
अगर तुम बुद्ध के चेहरे को ध्यान से देखो, तो तुम इसे वहां पाओगे। यह हंसी बहुत ही सूक्ष्म और परिष्कृत होती है। केवल एकाग्र चित होकर ही उसे देखा जा सकता है। वरना तो उसे चूक जाओगे, क्योंकि वह केवल भाव में अभी व्यक्त होती है। यहां तक कि ओंठ भी नहीं हिलते। सच तो यह है बाहर से कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता है: बस वह एक न दिखाई पड़ने वाली हंसी होती है।
शायद इसी कारण से ईसाई लोग सोचते है कि जीसस कभी हंसे ही नहीं, वह ‘’सिता’’ जैसी बात ही होगी। ऐसा कहा जाता है कि सारिपुत्र ने बुद्ध के चेहरे पर ‘सिता’ को दिखा। यह बहुत ही दुर्लभ घटना है। क्योंकि ‘’सिता’’ को देखना सर्वाधिक परिष्कृत बात है। आत्मा जब उच्चतम शिखर पर पहुँचती है। केवल तभी सिता का आविर्भाव होता है। तब यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे कि करना होता है। तब तो कुछ ऐसा नहीं है जिसे कि करना होता है: तब तो यह बस होती है। और जो व्यक्ति थोड़ा भी संवेदन शील होगा वह इसे देख सकता है।
दूसरी को सारिपुत्र ने कहा ‘’हंसिता’’ वह मुस्कान, वह हंसी जिसमें आठों का हिलना शामिल होता है और जो दाँतों के किनारे से स्पष्ट रूप से दिख रही होती है।
तीसरे को उसने कहा, ‘’विहंसिता’’ एकदम चौड़ी खुली मुस्कान, जिसके साथ थोड़ी सी हंसी भी शामिल होती है।
चौथे को उसने कहा है ‘’उपहंसिता’’। जोर दार ठहाके दार हंसी। जिसमें जोर की आवाज होती है। जिसके साथ सिर का कंधों का और बाँहों का हिलना डुलना जुड़ा होता है।
पांचवें को उसने कहा ‘’अपहंसिता’’ इतने जोर की हंसी कि जिसके साथ आंसू आ जाते है।
छठवें को उसने कहा ‘’अतिहंसिता’’ । सबसे तेज शोर भरी हंसी। जिसके साथ पूरे शरीर की गति जुड़ी रहती है। शरीर ठहाकों के साथ दुहरा हुआ जाता है, व्यक्ति हंसी से लोट-पोट हो जाता है।
जब हंसी जैसी छोटी सी चीज पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए तो वह भी एक अद्भुत और एक विराट चीज में बदल जाती है। कहना चाहिए कि पूरा संसार ही बन जाती है।
---ओशो
पतंजलि: योग-सूत्र
भाग—4
प्रवचन—1
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