
तुम यात्रा आरंभ कर ही चुके हो। किसी भी घडी,यदि तुम गति बढ़ा देते हो, तो तुम पहुंच सकते हो परम सत्य तक। किसी घड़ी संभव है ऐसा। अब स्थगित करना खतरनाक होगा। यह सोचकर कि मैं फिर आऊँगा, तुम्हारा मन विश्राम कर सकता है। और स्थगित कर सकता है बात को। अब मैं कहता हूं,मैं नहीं आ रहा हूं।
एक कथा कहूंगा मैं तुमसे। ऐसा हुआ एक बार मुल्ला नसरूदीन कहता था अपने बेटे से, मैं जंगल में गया शिकार करने और न केवल एक, दस शेर अकस्मात मुझ पर टुट पड़े।
अचानक वह लड़का बोला: ठहरो पापा। पिछले साल तो आपने कहा था पाँच शेर, और इस साल आप कह रह है दस शेर।
मुल्ला ने कहा: हां, पिछले साल तुम पर्याप्त रूप से प्रौढ़ न थे। और तुम बहुत डर गए होते दस शेरों की बात सुन कर। अब मैं तुम्हें सच्ची बात बतलाता हूं। तुम विकसित हो गये हो यही में कहता हूं तुमसे।
पहले मैंने कहा था कि मैं आऊँगा। क्योंकि तुम पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुए थे। लेकिन तुम थोड़े विकसित हुए हो। और मैं तुम्हें बतला सकता हूं सच्ची बात। बहुत बार मुझे कहनी पड़ती है झूठी बातें तुम्हारे ही कारण,क्योंकि तुम नहीं समझ सकते। तुम जब सचमुच में ही विकसित हो जाते हो। तब मैं तुम्हें बताऊंगा वास्तविक सच। तब झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी है। यदि तुम विकसित नहीं होते,तब सत्य विनाशकारी होगा।
तुम्हें असत्य की आवश्यकता है उसी भांति जैसे कि बच्चों को आवश्यकता होती है खिलौनों की। खिलौने झूठी बातें है। तुम्हें असत्य की जरूरत होती है। यदि तुम विकसित नहीं होते। और यदि करूणा होती है, ति वह व्यक्ति जिसके पास गहरी करूणा होती है वह चिंतित नहीं होता इस बारे में कि यह झूठ बोलता है या सच। उसका पूरा अस्तित्व तुम्हारी मदद करने को ही होता है। लाभ पहुंचाने को होता है। करूणा वान होते है वे। और कोई बुद्ध से ही कहा जा सकता है इसे। लेकिन किसी दूसरे बुद्ध को इसकी आवश्यकता नहीं होगी।
झूठी बातों के द्वारा धीरे-धीरे सद्गुरू तुम्हें ले आता है प्रकाश की और। तुम्हारा हाथ थाम कर कदम-दर-कदम, उसे तुम्हारी मदद करनी पड़ती है। प्रकाश की और जाने से। संपूर्ण सत्य तो बहुत ज्यादा हो जाएगा। तुम एकदम धक्का खा सकते हो। बिखर सकते हो। संपूर्ण सत्य को तुम अपने में समा नहीं सकते; वह विनाशकारी हो जाएगा। केवल झूठ द्वारा ही तुम्हें लाया जा सकता है मंदिर के द्वार तक, और केवल द्वार पर ही तुम्हें दिया जा सकता है। संपूर्ण सत्य। केवल तभी समझोगे तुम तब तुम समझोगे कि वे तुमसे झूठ क्यों बोले। न ही केवल समझोगे तुम, तुम अनुगृहीत होओगे उनके प्रति।
--ओशो
पतंजलि: योग-सूत्र,
भाग—2
प्रवचन—10,
पूना, 10 मार्च, 1975
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