मेरा कोई जीवन-दर्शन नहीं है--ओशो
(अमेरिका में तथा विश्व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप ‘’दि लास्ट टैस्टामैंट’’ शीर्षक से उपलब्ध है। इसके छह भाग है लेकि अभी केवल एक भाग ही प्रकाशित हुआ है।)
दि लास्ट टेस्टामेंट
(गुड़ मोर्निंग अमेरिका, ए बी सी नेटवर्क के साथ)
प्रश्न—पहले तो आज रात हमारे साथ बात करने के लिए हम आपके आभारी है। कुछ वर्ष आपके मौन व्रत लिया हुआ था। हाल ही में आपने पुन: बोलने का निर्णय लिया है—अपने समर्थकों से, और आज हमसे आपने इस समय बोलने का निर्णय क्यों लिया?
ओशो—मैं सहजस्फूर्त जीता हूं। मैं कुछ भी पहले से सोचता नहीं हूं। मैं ‘’कल’’ को मुक्त रखता हूं। यदि बोलने का मन हुआ तो मैं बोलता हूं। मैं सिर्फ नदी के साथ बहता हूं। कभी यह नहीं पूछता कि वह कहां जा रही है, क्यों जा रही है। वह कहां समाप्त होगी। जीवन के प्रति मेरा यही दृष्टि कोण है, तथाता।
प्रश्न—आपने जो मौन लिया उसके पीछे कोई वजह थी या उसके पीछे भी कोई वजह नहीं थी?
ओशो—कभी कोई वजह नहीं होती। मैं वजह के साथ जीता ही नहीं। मैं सिर्फ घटनाओं को घटने देता हूं। मैं नहीं जानता कि मैं क्यों मौन हुआ और मैंने फिर से बोलना क्यों शुरू कर दिया। लेकिन मैंने मौन का आनंद लिया और अब मौन को तोड़ने का मजा ले रहा हूं। मुझे कल का कोई पता नहीं है। हो सकता है मैं मौन रहूँ या बोल लूं। या मैं यहां होऊं ही नहीं।
प्रश्न—जब आप वीसा लेने के लिए धर्मगुरू के नाते इमिग्रेशन सर्विस के अधिकारियों के पास गये तब उन्होंने कहा कि आप धर्म गुरु है ही नहीं, क्योंकि आप बोलते नहीं। उसका आपके उपर कुछ असर हुआ।
ओशो—नहीं, मेरे ऊपर किसी बात का कोई असर नहीं होता। न ही मैं चाहता कि कोई मुझसे प्रभावित हो क्योंकि दूसरे से प्रभावित होना मानसिक गुलामी है। मैंने अपने आपको प्रभाव से बिलकुल मुक्त कर रखा है। मैं किसी को प्रभावित नहीं करता। कभी किसी को बदलने या राज़ी करने की कोशिश नहीं करता। मैं पहला व्यक्ति हूं जो धार्मिक होने का दावा कर सकता है। समूचा अतीत और उसके धर्म झूठे रहे है। मेरे लिए धर्म का मतलब बिलकुल अलग है। न कोई ईश्वर है, न स्वर्ग, न नर्क। उन सभी धर्मों ने मनुष्य को मंदबुद्धि बना दिया है। ईश्वर के अधीन बना दिया है। और उनका ईश्वर है कोई परम पिता जो ऊपर कहीं बैठा सबकी देखभाल कर रहा है। इससे मनुष्य गैरजिम्मेदार हो गया है, मूढ़ हो गया है।
मेरा धर्म मूलत: चेतना के, मौन के इर्द-गिर्द केंद्रित है। मौन का अपना तरीका है संप्रेषण करने का। जैसे शब्द बोलते है लेकिन वे गलत समझे जा सकते है। और वे गलत समझे जाते है। मौन भी बोलता है, वह भी गलत समझा जा सकता है। मौन को समझने के लिए दूसरी तरफ का व्यक्ति भी मौन होना जरूरी है। तब फिर ह्रदय से ह्रदय का मिलन होता है। सूर से सूर मिल जाता है। एक तरह की समस्वरता, तालमेल हो जाता है। न कुछ कहा जाता है। प्रेमी जानते है—सिर्फ एक दूसरे के पहलू में बैठे, कुछ न बोल कर भी उनके बीच पुरवाईया चलती है।
प्रश्न—जो व्यक्ति आपके बारे में कुछ नहीं जानता और आपको सिर्फ देख रहा है या सुन रहा है, ऐसे व्यक्ति को अगर आपको समझना हो कि आपका दर्शन क्या है, धर्म क्या है, आपके विश्वास क्या है और आप किसका प्रतिनिधित्व करते है, तो आप क्या कहेंगे?
ओशो—मेरी कोई विश्वास पद्धति नहीं है। ईसाइयों की तरह मेरे कोई नैतिक सिद्धांत नहीं है। न ही मेरे कोई सिद्धांत, तत्व या देव विज्ञान है। यदि कोई मुझे समझना चाहता है। तो उसे ध्यान सीखना होगा। मौन होकर मेरे पास बैठना सीखना पड़ेगा। और कोई उपाय नहीं है। सारी विश्वास पद्धतियां तुम्हें संस्कारित करने की प्रक्रिया है।
विश्वास का अर्थ है, तुम नहीं जानते और फिर भी विश्वास करते हो। यहां मेरा प्रयास यह है कि जब तक तुम जानते तब तक विश्वास मत करो। एक बार तुम जान गये तो विश्वास का प्रश्न ही नहीं उठता। तुम जानते हो। मैं सभी विश्वास पद्धतियों को तोड़ता हूं, और तुम्हें कोई विकल्प नहीं देता। इसलिए मुझे समझना आसान नहीं है।
प्रश्न—क्या आपका कोई जीवन दर्शन नहीं है।
ओशो—कोई जीवन-दर्शन नहीं है। मेरे पास जीवन ही है। ऐसे लोग है जिनका जीवन-दर्शन है।
लेकिन जिनका कोई जीवन नहीं है।
प्रश्न—आपका जीवन-दर्शन यदि कोई है तो तीन ‘’एल’’ में व्यक्त किया गया है। लव, लाइफ और लाफ्टर ( प्रेम, जीवन और हास्य) क्या यह जीवन दर्शन है।
ओशो—नहीं।
प्रश्न—इसे थोड़ा स्पष्ट करेंगे।
ओशो—मौन होने का, आस्तित्व के साथ तादात्म्य होने का यह परिणाम है—तुम में प्रेम उदित होता है। जीवन भरपूर होता है और अकारण हास्य। क्योंकि अस्तित्व इतना मजेदार है। यह दर्शन नहीं है। यह मौन होने का परिणाम है।
प्रश्न—क्या यह जीवन का आनंद लेना और कल कि चिंता न करना है?
ओशो—कल है ही नहीं। यदि कल है तो तुम उसकी चिंता करना छोड़ ही नहीं सकते। कल कभी नहीं आता। वह मात्र चिंता करने की प्रक्रिया है। और न कोई बीता हुआ कल है। एक है ही नहीं दूसरा अभी नहीं है। हमारे हाथ में जो है वह सिर्फ यह क्षण है—अभी, यहीं। और यह चमत्कार से भरा अनुभव है। यदि आने वाला कल नहीं है। बीता कल नहीं है तो इस क्षण तुम मौन हो जाते हो। सारी चिंताएँ विलीन हो जाती है। सब कल्पनाएं स्वप्न प्रक्षेपण विदा हो जाती है।
ऐसा नहीं है कि तुम्हें इस क्षण आनंद मनाना है, इस क्षण में आनंद उमगता है। लेकिन तुम यहां होते नहीं। तुम कहीं और होते हो। तुम ‘’अभी’’ नहीं होते, तुम ‘’तब’’ होते हो। अन्यथा सब कुछ उपलब्ध है, लेकिन तुम नहीं होते।
मैं चाहता हूं कि मेरे लोग एक साधारण तथ्य को समझ लें—यह दर्शन नहीं है, अस्तित्वगत बात है। वर्तमान क्षण में मौजूद रहो और फिर देखो क्या होता है
ओशो
दि लास्ट टेस्टामेंट
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