सारा विश्व एक पागलखाना बना हुआ है—ओशो
(अमेरिका में तथा विश्व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप ‘’दि लास्ट टैस्टामैंट’’ शीर्षक से उपलब्ध है। इसके छह भाग है लेकि अभी केवल एक भाग ही प्रकाशित हुआ है।)
ये पत्रकार वार्ताएं जुलाई 1985 और जनवरी 1986 के बीच संपन्न हुई।
(इस अंक में प्रकाशित अंश ओशो के अमेरिका प्रवास से है) प्रश्न—ओशो, अब मैं एक विषय की और मुड़ता हूं। पुन:, आपके और आपके संन्यासियों के बारे में कहा या लिखा गया है उसे मद्देनज़र रखते हुए यह कि लोगों में भय पैदा होता है जब वे आपके अंग रक्षकों को हथियारों से लैस देखते है। और ऐसी अफवाह है कि इस रैंच पर कहीं हथियारों का बड़ा भंडार है। क्या यह सही है? यदि यह सही है तो ये हथियार यहां क्यों रखे जाते है?
ओशो—मैं कोई जीसस क्राइस्ट जैसा व्यक्ति नहीं हूं। मैं अपने कंधे पर सूली रख कर नहीं चलता। और मैं आत्म घाती भी नहीं हूं। जीसस आत्मघाती रहे होंगे। मुझे जीवन से प्रेम है, मेरे लोगों को जीवन से प्रेम है। मुझे मृत्यु का कोई भय नहीं है। मैं मृत्यु का भी उतना ही आनंद लुंगा जितना जीवन का लेता हूं। परंतु मेरे लोग नहीं चाहते की अभी मैं अपना शरीर छोड़ दूँ। और मेरी रक्षा का उन्हें पूरा अधिकार है। यदि कोई मेरी हत्या करना चाहेगा तो मैं उसे नहीं रोकूंगा। फिर मैं मेरे लोगों को मेरी रक्षा करने से क्यों रोकूं?
यदि हत्यारा मुझे मारने के लिए मुक्त है तो मैं उसके कार्य में दखल अंदाजी नहीं करूंगा। और जो लोग मुझे प्रेम करते है और मेरी रक्षा करना चाहते है तो मैं उनके मामले में भी दखलअंदाजी नहीं करूंगा। यह सब उन लोगों के बीच में है जो मुझसे प्रेम करते है और जो मुझसे घृणा करते है। यह उनका मामला है, मैं इस सबसे बिलकुल बाहर हूं। हां, बंदूकें है पर उतनी नहीं जितनी की अफवाह है। वे अफवाहें अतिशयोक्ति से भरी है।
प्रश्न—क्या बंदूकें बड़ी मात्रा में है?
ओशो—नहीं बड़ी मात्रा में नहीं।
प्रश्न—क्या आपको आशंका है कि आप पर हमला होगा? क्या आप हमले से भयभीत है?
ओशो—मुझे किसी चीज का भय नहीं है। पहले भी मुझ पर कई बार हमले हुए है। मुझ पर कभी भी हमला हो सकता है। लेकिन मुझे उसकी कोई चिंता नहीं है। परंतु मेरे लोग चिंतित है। यदि वे मुझसे प्रेम करते है और उसकी वजह से कुछ करना चाहते है तो मैं कौन होता हूं उन्हें रोकने वाला? और मेरे साथ सबसे बुद्धिमान लोग जुड़े हुए है। जीसस के साथ तो केवल बारह मूढ़ थे—अशिक्षित, बुद्धिहीन, मछुआरे, लकड़ी की चीजें बनानेवाले, और जीसस स्वयं अशिक्षित थे, असंस्कृत थे। और जब उन्हें सूली दी गई तो वे सब भाग खड़े हुए। उन्हें जीसस से कोई प्रेम नहीं था। उन्हें तो सिर्फ यह आशा थी कि जीसस के ज़रिये वे स्वर्ग में प्रवेश कर पाएंगे। और स्वर्ग का आनंद उठा सकेंगे। मैं मेरे लोगों को कोई आशा नहीं देता, कोई आश्वासन नहीं देता। उन्हें पुरस्कार के रूप में कुछ मिलनेवाला नहीं है।
प्रश्न—तो फिर वे यहां क्यों रहते है?
ओशो—वे यहां इसलिए है क्योंकि ध्यान अपने आप में एक पुरस्कार है। उससे बढ़कर कोई पुरस्कार नहीं।
प्रश्न—वास्तव में अभी-अभी, ऐसा लगता है कि आपने विश्व एवं मनुष्य जाति को लेकिर एक बड़ा ही निराशाजनक भविष्य चित्रित किया है जिसमें आपने सावधान किया है कि एक विनाश का तूफ़ान, प्राकृतिक और मानव निर्मित सारे संसार पर टूट पड़ेगा। और यह भी कि आपका धर्म आपके समर्थकों को बचाने के लिए एक ‘’चेतना का आरक्षण उपलब्ध करायेगा।‘’
ओशो—ये निराशाजनक नहीं है। यह सिर्फ हकीकत है।
प्रश्न—क्या आप इसे स्पष्ट करेंगे? इसका मतलब क्या है?
ओशो—इसका मतलब सिर्फ इतना ही है जो सदियों बीत गई है वे इस दिन को करीब लाती रही है। सारे धर्म शांति की बातें करते रहे है। और लड़ते रहे है, लोगों को जिंदा जलाते रहे है। एक और तो वह कहते चले जाएंगे परमात्मा प्रेम है और दूसरी और वे लोगों को जिंदा जलाएंगे। ईसाई हत्या करते रहे है, मुसलमान हत्या करते रहे है, हिंदू हत्या करते रहे है। एक अजीब बात है कि बुद्ध भारत में पैदा हुए, परंतु भारत में कोई बौद्ध नहीं है। पिछली पच्चीस सदियों से भारत में कोई बौद्ध नहीं है। उन्हें भागना पडा क्योंकि हिंदू उनकी जान ले रहे थे।
प्रश्न—परंतु आपकी दृष्टि में विनाश के इस चक्र से क्या घटित होगा?
ओशो—हमने अनापशनाप वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा प्रकृति के तालमेल को नष्ट कर दिया है। अब राजनेताओं के हाथ में, जो कि दुनिया के सबसे साधारण लोग है, हमने विनाश की इतनी सारी ऊर्जा दे रखी है। कि वे सात सौ बार इस सारी पृथ्वी को नष्ट कर सकते है। अब अगर एक भी राजनेता पागल हो गया तो काफी है—और वे सब पगला गये है। तो मैं भविष्य का कोई निराशाजनक चित्र नहीं दे रहा हूं। न मैं निराशावादी हूं, न मैं आशावादी हूं। मैं सिर्फ एक वस्तुनिष्ठ हूं।
प्रश्न—ओशो, अभी थोड़ी देर पहले आपने कहा कि आप निराशावादी नहीं है। फिर भी, मैं आपका एक अन्या उद्धारण देना चाहूंगा जिसमे आपने कहा है, ‘’इस संसार को बचाने का कोई मतलब नहीं है। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि तीसरी विश्व युद्ध हो जाये और इस तमाम मूढ़ मानवता को नष्ट कर दें।‘’ क्या यह वक्तव्य निराशावादी नहीं है? नितांत विषादपूर्ण नहीं है?
ओशो—यह आशावादी वक्तव्य है।
प्रश्न-- कैसे?
ओशो—क्योंकि यदि कोई चीज इतनी सड़ गई हो तो अच्छा है उसे खत्म किया जाये।
प्रश्न—आप यह सोचते है कि इस विश्व को नष्ट कर दिया जाये?
ओशो—सारा विश्व एक पागलखाना बना हुआ है। अगर हम लोगों की चेतना को नहीं बदल सकते, अगर हम देशों के बीच की सीमाएं रंग-भेद की सीमाएं, धर्मों के बीच की सीमाएं नहीं मिटा सकते—यदि यह नहीं होने वाला है.....मैं अपनी और से जो कर सकता हूं कर रहा हूं, परंतु वास्तविकता को भुलाया नहीं जा सकता। सारा विश्व देशों में, धर्मों में बटा हुआ है। सभी एक दूसरे से लड़ रहे है। और एक दूसरे की जान लेने पर उतारू है। इस बात को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। कि अमरीका और सोवियत रशिया किसी भी क्षण सारे विश्व को नष्ट कर सकते है। यह एक निरीह वास्तविकता है। मेरी दृष्टि में, यह मनुष्यता अगर अपने आपको बदलने के लिये तैयार नहीं है तो इसे बचाने का कोई मतलब नहीं है।
प्रश्न—एक धार्मिक नेता के रूप में क्या आपका यह कर्तव्य नहीं है कि आप लोगों को प्रबुद्ध करें और उन्हें बदलने में सहायता करें?
ओशो—वह तो मैं कर रहा हूं।
प्रश्न—बजाय यह कहने के कि सारा विश्व नष्ट हो जाना चाहिए?
ओशो—वह मेरे प्रयत्नों का ही हिस्सा है। उसकी वजह से मेरी बात सुनिश्चित रूप से स्पष्ट हो जाती है। या तो रूपांतरित हो जाओ, अन्यथा वह विश्व नष्ट हो जायेगा। इसलिए तुम्हारा रूपांतरण बिलकुल अनिवार्य है। वह ऐसा नहीं है कि उसे रोका जा सके कि हम कल रूपांतरित हो जाएंगे।
ओशो
दि लास्ट टेस्टामेंट भाग--1
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