एक मात्र विकल्प: एक विश्व सरकार
(अमेरिका में तथा विश्व भ्रमण के दौरान ओशो ने जगह-जगह विश्व के पत्रकारों के साथ वार्तालाप किया। ये सभी वार्तालाप ‘’दि लास्ट टैस्टामैंट’’ शीर्षक से उपलब्ध है। इसके छह भाग है लेकि अभी केवल एक भाग ही प्रकाशित हुआ है।)
(डेर श्पीगल, जर्मन पत्रिका के साथ)
प्रश्न—अमेरिकन समाज प्रजातांत्रिक नहीं है?
ओशो—नहीं, कोई भी समाज अभी तक सभ्य नहीं हुआ है।
प्रश्न—आपका कम्यून इतना प्रेमपूर्ण है, फिर पुलिस और शास्त्रों की जरूरत क्यों है?
ओशो—हम इतने प्रेम पूर्ण है, इसलिए। हम नहीं चाहते कि कोई मुर्ख इस प्रेमपूर्ण कम्यून को समाप्त कर दे। इन चार सालों में इस कम्यून में कोई अपराध नहीं हुआ, किसी प्रकार के ड्रग्स ने यहां प्रवेश नहीं किया। कोई चोरी नहीं हुई। कोई हत्या नहीं हुई। कोई बलात्कार नहीं हुआ। कोई हिंसा नहीं हुई।
प्रश्न—यदि कोई अपराध होता है तो क्या तो क्या आपके यहां निपटने की सुविधा है?
ओशो—हमारे पास सभी तरह की सुविधा है। यहां चार सौ सन्यासी है जो कानूनविद है। शायद तुम्हें और कहीं इतने कानूनविद नहीं मिलेंगे। और ये चार सौ कानूनविद अंत तक संघर्ष करेंगे।
प्रश्न–यदि कोई व्यक्ति ऐसा कुछ करता है जिसे बाकी कम्यून के वासी उचित नहीं समझते तो क्या होता है?
ओशो—तो उसे अस्पताल ले जाया जाता है।
प्रश्न—उसकी इच्छा के विपरीत?
ओशो—अन्यथा उसे कह दिया जायेगा कि वह यहां से चला जाये। यदि वह यहां कम्यून में अन्य लोगों के साथ नहीं रहना चाहता तो वह यहां से जाने को पूरा स्वतंत्र है। यदि वह यहां रहना चाहता है और यदि कम्यून महसूस करता है। कि उसमे कुछ गलत है तो अस्पताल जाना होगा। और इन चार सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
प्रश्न—एक बार आपने कहा है कि, ‘’मेरे कम्यून का हिस्सा होना खतरनाक है। तुम जोखिम ले रहे हो।‘’ जो लोग आपके साथ होते है वे किस तरह का जोखिम लेते है?
ओशो—सारा कचरा जिसे वे मूल्य वान समझते है। और उसे ढो रहे है, उसे छोड़ने का जोखिम। तुम्हारे धर्म विदा हो जायेंगे, तुम्हारे राष्ट्र विदा हो जायेंगे, तुम्हारा सार भेदभाव का सोचा विदा हो जायेगा। तुम्हारे विश्वास का ताम-झाम, तुम्हारी राजनैतिक विचारधाराएँ समाप्त हो जायेगी। यहां तुम सहज सरल, भोले मानव मात्र होओगे। मैं वैयक्तिकता में विश्वास करता हूं।
प्रश्न—भोले का मतलब गैरजिम्मेदार भी होता है।
ओशो—हां, इसके दोनों अर्थ होते है। इसका मतलब है उन लोगों के प्रति गैरजिम्मेदार होना जो जिम्मेदारी तुम्हारे पर थोप रहा है। परंतु असल में इसका अर्थ है जिम्मेदारी क्योंकि जो व्यक्ति पूरी तरह से स्वतंत्र है, जो भी वह करता है उसके लिये वह जिम्मेदार है। वह नहीं कहा सकता, ‘’मेरे कमांडर इन चीफ’’ ने मुझे हुक्म दिया है। यह पोप का हुक्म है।, मैं क्या कर सकता हूं। यह जीसस, परमात्मा के एकमात्र पुत्र का आदेश था। उसके पास कोई नहीं जिसके ऊपर वह अपने जिम्मेदारी डाल दे। सभी जिम्मेदारी उसकी है। इसलिए जो भी वह करता है। उसकी जिम्मेदारी आपने कंधों पर लेता है। तो उसके लिए यह जिम्मेदारी है परंतु दूसरों को यह गैर जिम्मेदाराना लगेगा।
प्रश्न–शायद उसे आसानी से धोखा दिया जा सकता है।
ओशो—चारों तरफ सभी को धोखा दिया जा रहा है और बड़ी आसानी से।
प्रश्न–अब फिर से एक व्यावहारिक बात पर आते है। दो दिन आपसे पूछा गया है कि आप अपनी ताकत व प्रभाव पूरे ऑरेगान पर फैलाना चाहते है। आपने कहा कि आप पूरे अमेरिका पर कोशिश कर रहे है। क्या यह गलत समझा गया है?
ओशो—नहीं वे मेरे शब्द नहीं थे। उन्होंने पूछा ‘’क्या आप पूरा रेंगाना ले लेंगे? वह प्रश्न मूर्खतापूर्ण है। और मूर्खतापूर्ण प्रश्न.........
प्रश्न—परंतु उस मूर्खतापूर्ण प्रश्न का आपका ईमानदार अत्तर क्या है?
ओशो—मैंने उस व्यक्ति को कहा, कि मैं पूरी दुनिया पर छा जाना पसंद करूंगा। और्गन तो बहुत छोटा है।
प्रश्न—परंतु और्गन के निवासियों को एक प्रकार का खतरा है। मेरा मतलब है कि आप पूरा और्गन पर कब्जा कर लेंगे।
ओशो—मेरे लोगों से किसी को कोई खतरा नहीं है।
प्रश्न--परंतु वे महसूस करते है।
ओशो—वे डरपोक है।
प्रश्न—आपकी भविष्यवाणी की है कि तीसरी विश्व युद्ध 1984 से 1999 के बीच कभी भी हो सकता है। क्या आप बता सकते है ये कब होगा।
ओशो—नहीं यह भविष्यवाणी नहीं है।
प्रश्न—या आपको लगता है?
ओशो—यह केवल एक तर्क है।
प्रश्न—दर्शन .....कैसे...... ?
ओशो—नहीं, यह दर्शन नहीं है।
प्रश्न—परंतु यह दर्शन कितना सच है। क्या हम सचमुच ऐसी स्थिति में है। या एक मात्र विचार है।
ओशो—मैं नहीं कहता की इस पर भरोसा करो। मैं गैर भरोसे का व्यक्ति हूं। जो कुछ भी मैंने कहा है वह मात्र दुनिया की स्थिति की तार्किक निष्पति है।
प्रश्न–किस बात की निष्पति? हाल ही के सालों में राजनैतिक गतिविधियों कि?
ओशो—हां, राजनैतिक करतूतों......आणविक शास्त्र....।
प्रश्न–क्या कोई विशेष बात आपके दिमाग में है।
ओशो—नहीं पूरी मानवता जिस गंदगी में पड़ी है। और राजनेता मारने के लिए आणविक अस्त्रों का निर्माण किये जा रहे है। देर सवेर ये विस्फोट होने वाला है।
प्रश्न–हां, परंतु आप यह नहीं कह सकते कि कौन अधिक जिम्मेदार है। और कौन इतना जिम्मेदार नहीं है?
ओशो—सभी जिम्मेदार है।
प्रश्न–क्या आपके पास राजनेताओं के लिए कोई सलाह है?
ओशो—एक मात्र सलाह: सभी देश विश्व सरकार में मिल जाएं। सिर्फ एक ही तरीका है, तीसरे विश्व युद्ध से बचने का और वह यह कि सभी देश समाप्त हो जाएं और बचे सिर्फ एक संसार।
प्रश्न–-इस संदर्भ में आपने कहा है, कि जमीन के अंदर घर बनाकर दुनिया के चुने हुए लोगों को बचाएंगे। और इसी तरह से सिर्फ संन्यासी ही तीसरे युद्ध में बचेंगे बाकी की मानवता समूल नष्ट हो जायेगी। या आत्महत्या कर लेगी। या बंदरों के तल पर गिरजायेगी। तो क्या युद्ध के बाद इस तरह की दुनियां हो जायेगी?
ओशो—यदि युद्ध होता है, तो कुछ लोग ही बच पायेंगे.....शायद वे भी न बचे।
प्रश्न—और संन्यासी बचेंगे, आपने कहां? क्या आप इसके लिए तैयार कर रहे है। क्या आप आवास बना रहे है। आणविक रोधक आवास?
ओशो—हम कुछ भी ऐसा नहीं बना रहे, हमे कुछ भी बनाने से राज्य रोक रहा है। घर बनाने सक भी। फिर.....हम कोर्ट में लड़ रहे है।
ओशो
दि लास्ट टेस्टामेंट भाग—1
(डेर श्पीगल, जर्मन पत्रिका के साथ)
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